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| [[चित्र:Bagore-Ki-Haveli-Udaipur.jpg|thumb|बगोर की हवेली, [[उदयपुर]]]] | | #REDIRECT [[बागोर की हवेली, उदयपुर]] |
| '''बागोर की हवेली''' [[उदयपुर]], [[राजस्थान]] का एक आकर्षक पर्यटन स्थल माना जाता है। इस हवेली का निर्माण 18वीं [[शताब्दी|शताब्दी]] में हुआ था। हवेली में 138 कमरे हैं। हर शाम को सात बजे से मेवाड़ी नृत्य तथा राजस्थानी नृत्य का आयोजन बागोर की हवेली में किया जाता है। ऐतिहासिक बागोर की हवेली में [[वास्तुकला]] एवं भित्तिचित्रों को इस तरह से संजोया गया है कि यहां आने वाले देशी-विदेशी पयर्टक इसे देखना नहीं भूलते। खासकर इस ऐतिहासिक हवेली को पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र का मुख्यालय बनाए जाने से यहां की रौनक नए सिरे से बढ़ गई है।
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| ==निर्माण==
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| बागोर की हवेली का निर्माण [[वर्ष]] 1751 से 1781 ई. के बीच [[मेवाड़]] के शासक के तत्कालीन प्रधानमंत्री अमर चन्द्र बडवा की देखरेख में हुआ था। ऐतिहासिक [[पिछोला झील]] के किनारे निर्मित इस हवेली में 138 कक्ष, बरामदे एवं झरोखे हैं। हवेली के द्वारों पर कांच एवं प्राकृतिक रंगों से चित्रों का संकलन आज भी मनोहारी है। इस हवेली में स्नानघरों की व्यवस्था थी, जहां [[मिट्टी]], [[पीतल]], [[तांबा]] और [[कांस्य]] की कुंडियों में [[दुग्ध]], [[चंदन]] और मिश्री का पानी रखा होता था और राज परिवार के लोग सीढ़ी पर बैठकर [[स्नान]] किया करते थे।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=111228-110330-290010|title= उदयपुर की एक हवेली जिसे दुनिया जानती है|accessmonthday= 31 जनवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= प्रभा साक्षी|language= हिन्दी}}</ref>
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| ==इतिहास==
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| [[मेवाड़ का इतिहास|मेवाड़ के इतिहास]] के अनुसार महाराणा शक्ति सिंह ने बागोर की इस हवेली में निवास के दौरान ही त्रिपौलिया पर महल का निर्माण कराया था, जिसका [[1878]] ई. में विधिवत मुर्हूत हुआ था; लेकिन इसके बाद से ही बागोर की हवेली की रौनक कम होने लगी। [[इतिहास]] के अनुसार वर्ष [[1880]] में महाराणा सज्जन सिंह ने बागोर की हवेली का वास्तविक स्वामी अपने [[पिता]] महाराणा शक्ति सिंह को घोषित कर दिया, लेकिन ऐसा क्यों किया गया और इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी, इसका उल्लेख नहीं किया गया है। बाद के वर्षों तक उत्तराधिकारी के अभाव में यह उपेक्षित रही। इतिहास के अनुसार वर्ष [[1930]] से [[1955]] के बीच महाराणा भूपाल सिंह ने इस हवेली का नए सिरे से जीणोद्धार कराकर इसे राज्य की तीसरी श्रेणी का विश्राम गृह घोषित कर दिया।
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| ====पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र का मुख्यालय====
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| [[मेवाड़]] रियासत के [[राजस्थान]] में विलय के बाद यह हवेली 'लोकनिर्माण विभाग' के अधिकार में चली गई। वर्ष [[1986]] में तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[राजीव गांधी]] ने सांस्कृतिक विकास के लिए देश में सांस्कृतिक विकास केन्द्रों की स्थापना की और इसी क्रम में 'पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र' का मुख्यालय इस हवेली में बनाया गया। इसके बाद केन्द्र के सौजन्य से इस ऐतिहासिक हवेली की साफ-सफाई एवं नए सिरे से [[रंग]] रोगन किया गया। केन्द्र के अधिकारियों के अनुसार साफ-सफाई के दौरान हवेली के जनाना महल में दो सौ [[वर्ष]] पुराने मेवाड़ शैली के भित्तिचित्र मिले हैं, जो यहां के राजा-रजवाडे़ के जमाने के रहन-सहन एवं ठाट-बाट को प्रदर्शित करते हैं। उनके अनुसार इस हवेली को व्यवस्थित करने में करीब पांच वर्ष लगे। इसके बाद से यहां पयर्टकों की भीड़ जुटने लगी है।<ref name="aa"/>
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| स्थानीय लोगों के मुताबिक आजादी से पूर्व राजा महाराजाओं के जमाने में यह हवेली अति सुरक्षित क्षेत्र में आती थी और इस इलाके में आम लोगों का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित था। स्थानीय निवासियों के मुताबिक उनके पूवर्ज ऐसा कहा करते थे कि बागोर की हवेली पर्याप्त जल क्षेत्र एवं सुरक्षा की दृष्टि से बनाई गई थी। इसलिए [[पिछोला झील]] के किनारे हवेली का निर्माण किया गया था। इस हवेली में राज परिवार को छोड़कर किसी को प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी। वैसे अनुमानों के मुताबिक पिछले एक दशक में इस हवेली के प्रति देशी.विदेशी पयर्टकों का आकर्षण बढ़ा है।
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| ====रंगों का प्रयोग====
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| प्रत्येक [[मौसम]] के लिए अलग-अलग [[रंग]] में रंगे कक्षों की साफ-सफाई एवं मरम्मत से [[उदयपुर]] की ढाई सौ साल पुरानी बागोर की हवेली पयर्टकों को खूब लुभाती है। इस हवेली में ऐसे अनेक कक्ष अलग-अलग रंगों में रंगे हैं, जिनका उपयोग मौसम के अनुकूल हुआ करता था। इन कक्षों में सुसज्जित वस्त्रों का इस्तेमाल भी उसी के अनुरूप होता था, जैसे [[फाल्गुन|फाल्गुन माह]] में फगुनियां एवं [[श्रावण]] में लहरियां इत्यादि।<ref name="aa"/>
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| ====ऐतिहासिक वस्तुएँ====
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| इस हवेली में राजा रजवाड़े के जमाने के शतरंज, चौपड़, सांप सीढ़ी और गंजीफे आज भी मौजूद हैं, जिसका उपयोग राजपरिवार की महिलाएं खेल, व्यायाम तथा मनोरंजन के लिए किया करती थीं। हवेली में [[स्वर्ण]] तथा अन्य बेशकीमती अलंकारों को रखने के लिए अलग से तहखाना बना हुआ था।
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{राजस्थान के पर्यटन स्थल}}
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| [[Category:राजस्थान]][[Category:राजस्थान_के_पर्यटन_स्थल]][[Category:उदयपुर]][[Category:उदयपुर_के_पर्यटन_स्थल]][[Category:पर्यटन_कोश]][[ऐतिहासिक स्थान कोश]][[इतिहास कोश]]
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