"सनातन गोस्वामी की भक्ति-साधना": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{| style="background:transparent; float:right"
{| style="background:transparent; float:right"
|-valign="top"
|-valign="top"
|
[[चित्र:Madanmohan-2.jpg|मदन मोहन जी का मंदिर, [[वृन्दावन]]<br /> Madan Mohan temple, Vrindavan|thumb|200px]]
|
|
{{सनातन गोस्वामी विषय सूची}}
{{सनातन गोस्वामी विषय सूची}}
पंक्ति 6: पंक्ति 8:
'''सनातन गोस्वामी''' गौड़ दरबार में सुलतान के शिविर में रहते समय मुसलमानी वेश-भूषा में रहते, अरबी और फारसी में अनर्गल चैतन्य-चरितामृत में उल्लेख है कि रूप और सनातन जब रामकेलि महाप्रभु के दर्शन करने गये, उस समय नित्यानन्द और हरिदास ने, जो महाप्रभु के साथ थे, कहा-  
'''सनातन गोस्वामी''' गौड़ दरबार में सुलतान के शिविर में रहते समय मुसलमानी वेश-भूषा में रहते, अरबी और फारसी में अनर्गल चैतन्य-चरितामृत में उल्लेख है कि रूप और सनातन जब रामकेलि महाप्रभु के दर्शन करने गये, उस समय नित्यानन्द और हरिदास ने, जो महाप्रभु के साथ थे, कहा-  
रूप और साकर आपके दर्शन को आये हैं। यहाँ सनातन को ही साकर (मल्लिक) कहा गया है।<ref>रूप साकर आइला तोमा देखिबारे। (चैतन्य-चरितामृत 2।1।174</ref>
रूप और साकर आपके दर्शन को आये हैं। यहाँ सनातन को ही साकर (मल्लिक) कहा गया है।<ref>रूप साकर आइला तोमा देखिबारे। (चैतन्य-चरितामृत 2।1।174</ref>
[[चित्र:Madanmohan-2.jpg|मदन मोहन जी का मंदिर, [[वृन्दावन]]<br /> Madan Mohan temple, Vrindavan|thumb|200px]]
== कृष्ण-लीला का चिन्तन==
== कृष्ण-लीला का चिन्तन==
वार्तालाप करते और विधर्मी सुलतान और अमीर-उमराव की सामाजिक रीतिनीति के अनुसार व्यवहार करते। पर दिन ढ़लते अपने गृह रामकेलि पहुँचते ही उद्भासित हो उठता उनका निज-स्वरूप। स्नान तर्पणादि के पश्चात शुद्व होकर वे लग पड़ते दान-ध्यान, पूजा-अर्चना, शास्त्र-पाठ और धर्म सम्बन्धी आलाप-आलोचना में। रामकेलि में और उसके आसपास [[सनातन गोस्वामी]] ने बना रखा था, एक अपूर्व धार्मिकता का परिवेश। उनके द्वारा प्रतिष्ठित श्री [[मदन मोहन जी का मंदिर|मदन मोहन]] का मन्दिर और उनके बनवाये सनातन सागर, रूप सागर, दीधि, श्याम कुण्ड, [[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुण्ड]], [[ललिता कुण्ड काम्यवन|ललिता कुण्ड]], [[विशाखा कुण्ड वृन्दावन|विशाखा कुण्ड]], सुरभी कुण्ड, रंगदेवी कुण्ड और इन्दुरेखा कुण्ड आज भी वहाँ वर्तमान हैं। इन कुण्डों के किनारे आरोपित [[कदम्ब]] के वृक्षों के नीचे बैठकर वे कृष्ण-लीला का चिन्तन करते थे। भक्ति-रत्नाकर में नरहरि चक्रवर्ती का उल्लेख है-
वार्तालाप करते और विधर्मी सुलतान और अमीर-उमराव की सामाजिक रीतिनीति के अनुसार व्यवहार करते। पर दिन ढ़लते अपने गृह रामकेलि पहुँचते ही उद्भासित हो उठता उनका निज-स्वरूप। स्नान तर्पणादि के पश्चात शुद्व होकर वे लग पड़ते दान-ध्यान, पूजा-अर्चना, शास्त्र-पाठ और धर्म सम्बन्धी आलाप-आलोचना में। रामकेलि में और उसके आसपास [[सनातन गोस्वामी]] ने बना रखा था, एक अपूर्व धार्मिकता का परिवेश। उनके द्वारा प्रतिष्ठित श्री [[मदन मोहन जी का मंदिर|मदन मोहन]] का मन्दिर और उनके बनवाये सनातन सागर, रूप सागर, दीधि, श्याम कुण्ड, [[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुण्ड]], [[ललिता कुण्ड काम्यवन|ललिता कुण्ड]], [[विशाखा कुण्ड वृन्दावन|विशाखा कुण्ड]], सुरभी कुण्ड, रंगदेवी कुण्ड और इन्दुरेखा कुण्ड आज भी वहाँ वर्तमान हैं। इन कुण्डों के किनारे आरोपित [[कदम्ब]] के वृक्षों के नीचे बैठकर वे कृष्ण-लीला का चिन्तन करते थे। भक्ति-रत्नाकर में नरहरि चक्रवर्ती का उल्लेख है-

05:06, 11 दिसम्बर 2015 का अवतरण

मदन मोहन जी का मंदिर, वृन्दावन
Madan Mohan temple, Vrindavan
सनातन गोस्वामी विषय सूची

सनातन गोस्वामी गौड़ दरबार में सुलतान के शिविर में रहते समय मुसलमानी वेश-भूषा में रहते, अरबी और फारसी में अनर्गल चैतन्य-चरितामृत में उल्लेख है कि रूप और सनातन जब रामकेलि महाप्रभु के दर्शन करने गये, उस समय नित्यानन्द और हरिदास ने, जो महाप्रभु के साथ थे, कहा- रूप और साकर आपके दर्शन को आये हैं। यहाँ सनातन को ही साकर (मल्लिक) कहा गया है।[1]

कृष्ण-लीला का चिन्तन

वार्तालाप करते और विधर्मी सुलतान और अमीर-उमराव की सामाजिक रीतिनीति के अनुसार व्यवहार करते। पर दिन ढ़लते अपने गृह रामकेलि पहुँचते ही उद्भासित हो उठता उनका निज-स्वरूप। स्नान तर्पणादि के पश्चात शुद्व होकर वे लग पड़ते दान-ध्यान, पूजा-अर्चना, शास्त्र-पाठ और धर्म सम्बन्धी आलाप-आलोचना में। रामकेलि में और उसके आसपास सनातन गोस्वामी ने बना रखा था, एक अपूर्व धार्मिकता का परिवेश। उनके द्वारा प्रतिष्ठित श्री मदन मोहन का मन्दिर और उनके बनवाये सनातन सागर, रूप सागर, दीधि, श्याम कुण्ड, राधाकुण्ड, ललिता कुण्ड, विशाखा कुण्ड, सुरभी कुण्ड, रंगदेवी कुण्ड और इन्दुरेखा कुण्ड आज भी वहाँ वर्तमान हैं। इन कुण्डों के किनारे आरोपित कदम्ब के वृक्षों के नीचे बैठकर वे कृष्ण-लीला का चिन्तन करते थे। भक्ति-रत्नाकर में नरहरि चक्रवर्ती का उल्लेख है-

उनके घर के निकट एक निभृत स्थान में कदम्ब के वृक्षों से घिरा हुआ श्यामकुण्ड था। वहाँ बैठकर वे वृन्दावन-लीला का चिन्तन करते-करते धैर्य खो बैठते और उनके नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगती।[2]

साकर मल्लिक

चैतन्य भागवत में दो जगह सनातन को साकर मल्लिक कहा गया है-

साकर मल्लिक आर रूप दुई भाई।

दुई प्रति कृपा दृष्ट्ये चाहिला गोसात्रि॥[3]

यहाँ रूप का नाम लिया गया है और सनातन को साकर मल्लिक कहा गया है। महाप्रभु ने साकर मल्लिक की ही जगह सनातन का नाम सनातन रखा इसका चैतन्य-भागवत में स्पष्ट उल्लेख है-

साकर मल्लिक नाम घुचाइया तान।

सनातन अवधूत थ्इलेन नाम॥[4]

गिरिजा शंकर राय चौधरी का मत है कि सनातन को ही साकर मल्लिक और दबीर ख़ास, इन दोनों नामों से पुकारा जाता था।[5] उनका कहना है कि चैतन्य-चरितामृत और चैतन्य-भागवत में कहीं भी 'दबीर ख़ास' शब्द का प्रयोग रूप के लिये नहीं किया गया। पर चैतन्य भागवत की निम्न पंक्तियों को देखकर ऐसा नहीं कहा जा सकता---

"दबीर ख़ासेरे प्रभु बलिते लागिल।

एखने तोमार कृष्ण प्रेम-भक्ति हैला॥"[6]


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
सनातन गोस्वामी की भक्ति-साधना
आगे जाएँ
आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रूप साकर आइला तोमा देखिबारे। (चैतन्य-चरितामृत 2।1।174
  2. बाड़ीर निकटे अति बिभृत स्थाने ते
    कदम्ब-कानन धारा श्यामकुण्ड ताते
    वृन्दावन लीला तथा करये चिन्तन,
    ना धरे धैरज नेत्रे धारा अनुक्षण।(1।604-605
  3. चैतन्य-भागवत 3।10।234
  4. चैतन्य-भागवत 3।10।268
  5. श्रीचैतन्यदेव ओ ताँहार पार्षदगण, पृ0 147-149
  6. चैतन्य-भागवत 3।10।263

संबंधित लेख