"तासु चरन सिरु नाइ करि": अवतरणों में अंतर
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तासु चरन सिरु नाइ करि प्रेम सहित मतिधीर। | तासु चरन सिरु नाइ करि प्रेम सहित मतिधीर। | ||
गयउ गरुड़ बैकुंठ तब हृदयँ राखि रघुबीर॥125 क॥ | गयउ गरुड़ बैकुंठ तब हृदयँ राखि रघुबीर॥125 क॥ | ||
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उन (भुशुण्डिजी) के चरणों में प्रेमसहित सिर नवाकर और [[हृदय]] में श्री रघुवीर को धारण करके धीरबुद्धि [[गरु़ड़|गरु़ड़ जी]] तब [[वैकुंठ]] को चले गए॥125 (क)॥ | उन (भुशुण्डिजी) के चरणों में प्रेमसहित सिर नवाकर और [[हृदय]] में श्री रघुवीर को धारण करके धीरबुद्धि [[गरु़ड़|गरु़ड़ जी]] तब [[वैकुंठ]] को चले गए॥125 (क)॥ | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
05:55, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
तासु चरन सिरु नाइ करि
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
तासु चरन सिरु नाइ करि प्रेम सहित मतिधीर। |
- भावार्थ
उन (भुशुण्डिजी) के चरणों में प्रेमसहित सिर नवाकर और हृदय में श्री रघुवीर को धारण करके धीरबुद्धि गरु़ड़ जी तब वैकुंठ को चले गए॥125 (क)॥
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तासु चरन सिरु नाइ करि | ![]() |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-541
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