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{श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल स्थित है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-197 प्रश्न-91 | {श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल स्थित है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-197 प्रश्न-91 | ||
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- | -नागपुर | ||
+अमरावती | +[[अमरावती]] | ||
-पटियाला | -[[पटियाला]] | ||
-मद्रास | -[[मद्रास]] | ||
||श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल महाराष्ट्र के अमरावती शहर में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1914 में की गई थी। यह बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1050 एवं सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत है। इसकी स्थापना वैद्य भाइयों, अनंत कृष्ण वैद्य एवं अंबादास कृष्ण वैद्य ने की थी। | ||श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल [[महाराष्ट्र]] के [[अमरावती]] शहर में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष [[1914]] में की गई थी। यह बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1050 एवं सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत है। इसकी स्थापना वैद्य भाइयों, अनंत कृष्ण वैद्य एवं अंबादास कृष्ण वैद्य ने की थी। | ||
{द्रोणाचार्य पुरस्कार (Award) कब स्थापित किया गया। (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-203 प्रश्न-11 | {[[द्रोणाचार्य पुरस्कार]] (Award) कब स्थापित किया गया। (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-203 प्रश्न-11 | ||
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-1986 | -[[1986]] | ||
-1984 | -[[1984]] | ||
+1985 | +[[1985]] | ||
-1983 | -[[1983]] | ||
||द्रोणाचार्य पुरस्कार (Award) वर्ष 1985 में स्थापित किया गया। यह पुरस्कार विभिन्न खेलों से संबंधित कोच को उनके उत्कृष्ट कार्य के सम्मान स्वरूप प्रदान किया जाता है। 7 लाख रु. की धनराशि तथा द्रोणाचार्य की प्रतीक मूर्ति | ||[[द्रोणाचार्य पुरस्कार]] (Award) वर्ष [[1985]] में स्थापित किया गया। यह पुरस्कार विभिन्न खेलों से संबंधित कोच को उनके उत्कृष्ट कार्य के सम्मान स्वरूप प्रदान किया जाता है। 7 लाख रु. की धनराशि तथा द्रोणाचार्य की प्रतीक मूर्ति पुरस्कार स्वरूप प्रदान की जाती है। | ||
{"योगाकार्माशु कौशलम" परिभाषा किसने दी है? (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-208 प्रश्न-59 | {"योगाकार्माशु कौशलम" परिभाषा किसने दी है? (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-208 प्रश्न-59 | ||
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+भगवद्गीता | +[[गीता |भगवद्गीता]] | ||
-महाभारत | -[[महाभारत]] | ||
-रामायण | -[[रामायण]] | ||
-योगसूत्र | -योगसूत्र | ||
||बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। | ||बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम॥(गीता में 'योग' कर्मसु कौशलम की परिभाषा 50 वें श्लोक में की गई है। इसका अर्थ है- समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इस लोक में ही त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है, इससे (तू) समत्त्वरूप योग में लग जा, समत्त्वरूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंधन से छूटने का उपाय है।) | ||
तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम॥ | |||
गीता में 'योग' कर्मसु कौशलम की परिभाषा 50 वें श्लोक में की गई है। इसका अर्थ है- समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इस लोक में ही त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है, इससे (तू) समत्त्वरूप योग में लग जा, समत्त्वरूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंधन से छूटने का उपाय है। | |||
{'लैट' शब्द प्रयोग होता है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-218 प्रश्न-13 | {'लैट' शब्द प्रयोग होता है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-218 प्रश्न-13 |
12:20, 24 दिसम्बर 2016 का अवतरण
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