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'''गरीवदास''' (जन्म- [[वैशाख]] सुदी 15, 1717 ई., रोहतक, झज्जर तहसील; मृत्यु- 1835 ई.) शब्दातीत, निर्गुण-सगुण से परे [[ब्रह्मा]] के उपासक तथा 'गरीब-पंथ' के संस्थापक थे। गरीबदास को स्वप्न में कबीर साहब के दर्शन हुए और उसी क्षण से इन्होंने उन्हें अपना गुरु मान लिया। | |||
== परिचय == | == परिचय == | ||
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गरीबदास 'गरीब-पंथ' के संस्थापक थे। पूर्वी पंजाब, दिल्ली, अलवर, नारनोल, विजेसर तथा रोहतक इसके केन्द्र हैं। पूर्वी पंजाब में यह पन्थ बड़ा जनप्रिय है। इस पंथ के शिष्यों में सभी वर्ग, सभी वर्ण तथा सभी जातियां के व्यक्ति पाये जाते हैं, हिन्दू मुसलमानों का भी कोई भेद नहीं माना जाता है। | |||
==== रचनाएँ ==== | |||
गरीबदास बड़े भावुक, शीलवान तथा श्रद्धालु प्राणी थे। उन्होंने 24 हजार साखिये और पदों का संग्रह 'हिंखर बोध' नाम के प्रस्तुत किया था। इनमें से 17 हजार रचनाएँ इनकी हैं और शेष कबीरदास की हैं। इन 17 हजार [[पद|पदों]] एवं साखियों में से कुछ का संग्रह वेलवेडियर प्रेस, प्रयाग से 'गरीबदास की बानी' नाम से प्रकाशित हुआ है। प्रसिद्ध है कि कबीर साहब की शैली पर उन्होंने भी एक बीजक नामक ग्रंथ की रचना की थी। गरीबदास के सम्बन्ध में अनेक चमत्कार प्रसिद्ध हैं। बादशाह के कैद खाने से चमत्कार द्वारा निकल भागना, श्रद्धाविहीन व्यक्तियों में श्रद्धा का बीज अंकुरित कर देना आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। | |||
गरीबदास | गरीबदास शब्दातीत, निर्गुण-सगुण से परे [[ब्रह्मा]] के [[उपासक]] थे। उन्होंने कहा भी है- "शब्द अतीत अगाध है, निरगुन सरगुन नहि।" यह ब्रह्माण्ड उस ब्रह्माण्ड से किसी प्रकार भिन्न नहीं है। सामान्य मानव को भ्रांति का जो आभास होता है, उसका कारण माया है- "दास गरीब वह अमर निज ब्रह्म हैं, एक ही फूल, फल, डाल है रे।" गरीबदास ने स्वानुभूमि के लिए "सुरत व निरत का परचा" हो जाना अनिवार्य बताया है। | ||
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12:23, 1 जनवरी 2017 का अवतरण
दीपिका
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पूरा नाम | गरीबदास |
जन्म | 15, 1717, वैशाख सुदी |
जन्म भूमि | चुड़ानी ग्राम, रोहतक जिला, झज्जर तहसील, हरियाणा |
मृत्यु | 2, संवत 1835 |
गुरु | कबीर साहब, |
मुख्य रचनाएँ | 'गरीबदास की बानी', 'गरीबदास की बानी' |
भाषा | हिन्दी, |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | कबीर , |
अन्य जानकारी | गरीबदास शब्दातीत, निर्गुण-सगुण से परे ब्रह्मा के उपासक थे। उन्होंने कहा भी है- "शब्द अतीत अगाध है, निरगुन सरगुन नहि।" यह ब्रह्माण्ड उस ब्रह्माण्ड से किसी प्रकार भिन्न नहीं है। |
गरीवदास (जन्म- वैशाख सुदी 15, 1717 ई., रोहतक, झज्जर तहसील; मृत्यु- 1835 ई.) शब्दातीत, निर्गुण-सगुण से परे ब्रह्मा के उपासक तथा 'गरीब-पंथ' के संस्थापक थे। गरीबदास को स्वप्न में कबीर साहब के दर्शन हुए और उसी क्षण से इन्होंने उन्हें अपना गुरु मान लिया।
परिचय
संत कवि गरीबदास का जन्म वैशाख सुदी 15, 1717 ई. को चुड़ानी ग्राम, रोहतक जिला, झज्जर तहसील, हरियाणा में हुआ था। इनके पिता जाति के जाट तथा व्यवसाय से जमीदार थे। जनश्रुति है कि गरीबदास जब 12 वर्ष की आयु के थे, उस समय भैसें चराते हुए उन्हें कबीर साहब के दर्शन हुए थे। एक अन्य जनश्रुति यह है कि गरीबदास को स्वप्न में कबीर साहब के दर्शन हुए और उसी क्षण से इन्होंने उन्हें अपना गुरु मान लिया। सत्य यह है कि गरीबदास, कबीर साहब को अपना पथप्रदर्शन मानते थे और उन्हीं के सिद्धान्तों से प्रभावित भी थे। गरीबदास ने कभी भी किसी सम्प्रदाय विशेष का भेष धारण नहीं किया और न उन्होंने गार्हस्था जीवन का परित्याग ही किया। पारिवारिक जीवन में रहते हुए इन्हें चार पुत्र तथा दो पुत्रियाँ प्राप्त हुई। वे आजीवन छुड़ानी में रहकर सत्यंग करते रहे। गरीबदास के साकेतवाद हो जाने के बाद उनके गुरुमुख शिष्य सलोत जी गद्दी पर बैठे। अपने जीवनकाल में गरीबदास ने छुड़ानी में एक मेला लगवाया था, जो अब तक वर्ष में एक दिन लगता है।
गरीबदास 'गरीब-पंथ' के संस्थापक थे। पूर्वी पंजाब, दिल्ली, अलवर, नारनोल, विजेसर तथा रोहतक इसके केन्द्र हैं। पूर्वी पंजाब में यह पन्थ बड़ा जनप्रिय है। इस पंथ के शिष्यों में सभी वर्ग, सभी वर्ण तथा सभी जातियां के व्यक्ति पाये जाते हैं, हिन्दू मुसलमानों का भी कोई भेद नहीं माना जाता है।
रचनाएँ
गरीबदास बड़े भावुक, शीलवान तथा श्रद्धालु प्राणी थे। उन्होंने 24 हजार साखिये और पदों का संग्रह 'हिंखर बोध' नाम के प्रस्तुत किया था। इनमें से 17 हजार रचनाएँ इनकी हैं और शेष कबीरदास की हैं। इन 17 हजार पदों एवं साखियों में से कुछ का संग्रह वेलवेडियर प्रेस, प्रयाग से 'गरीबदास की बानी' नाम से प्रकाशित हुआ है। प्रसिद्ध है कि कबीर साहब की शैली पर उन्होंने भी एक बीजक नामक ग्रंथ की रचना की थी। गरीबदास के सम्बन्ध में अनेक चमत्कार प्रसिद्ध हैं। बादशाह के कैद खाने से चमत्कार द्वारा निकल भागना, श्रद्धाविहीन व्यक्तियों में श्रद्धा का बीज अंकुरित कर देना आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
गरीबदास शब्दातीत, निर्गुण-सगुण से परे ब्रह्मा के उपासक थे। उन्होंने कहा भी है- "शब्द अतीत अगाध है, निरगुन सरगुन नहि।" यह ब्रह्माण्ड उस ब्रह्माण्ड से किसी प्रकार भिन्न नहीं है। सामान्य मानव को भ्रांति का जो आभास होता है, उसका कारण माया है- "दास गरीब वह अमर निज ब्रह्म हैं, एक ही फूल, फल, डाल है रे।" गरीबदास ने स्वानुभूमि के लिए "सुरत व निरत का परचा" हो जाना अनिवार्य बताया है।
निधन
छुड़ानी में भादों सुदी 2, संवत 1835 को इन्होंने पार्थिव शरीर का परित्याग करके स्वर्गारोहण किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख