"प्रयोग:कविता बघेल 6": अवतरणों में अंतर
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कविता बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{ | {प्रागैतिहासिक कला अर्थ है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-1 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -आधुनिक कला | ||
+ | -मध्यकालीन कला | ||
- | -सिंधु घाटी सभ्यता की कला | ||
+ऐतिहासिक कला के पूर्व की कला | |||
||प्रागैतिहासिक कला का अर्थ 'ऐतिहासिक काल के पूर्व की कला' है। 'प्रागैतिहासिक' इतिहास के उस काल को कहा जाता है जब मानव तो अस्तित्व में था लेकिन उसका कोई लिखित वर्णन नहीं प्राप्त होता है। | |||
{'अल्टामीरा' गुफा कहां स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-फ्रांस में | |||
+स्पेन में | |||
-इटली में | |||
-रोम में | |||
||'अल्टामीरा' गुफा स्पेन में स्थित है। पूरी गुफा में चित्रकारी की गई है। इसको बनाने के लिए चारकोल और हेमटिट का इस्तेमाल किया गया है। इस गुफा में प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र प्राप्त हुए हैं। | |||
{अजंता में कितनी जातक कथाएं चित्रित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-36,प्रश्न-63 | |||
|type="()"} | |||
-548 | |||
+547 | |||
-347 | |||
-550 | |||
||जातक कथाओं का अर्थ है-'पूर्वजन्म की कथाएं'। यह जातक कथाएं बुद्ध के जन्म-जन्मान्तर की कथाएं हैं, जिनको उन्होंने स्वयं अपने उपदेशों में सुनाया। जातक कथा में 547 जन्मों का उल्लेख है। यद्यपि अजंता में जीवन तथा धर्म दोनों से संबंधित चित्र हैं परंतु फिरभी विशेष रूप से जातक कथाओं याबुद्ध के जीवन की कथाओं का अंकन है। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.अप्रत्यक्ष रूप से जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध का एक संदेश छिपा है। | |||
.इन कथाओं को वेदिका स्तंभों पर सूचिकाओं पर अथवा दीवारों पर सांची, अमरावती आदि स्थानों पर तथा गांधार कला में जातक कथाओं के दृश्य अंकित हैं। | |||
{गोथिक कला में विकास हुआ था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-38,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
+रंगीन कांच की खिड़कियों का | |||
-मणिकुट्टिम का | |||
-पुस्तक चित्रण का | |||
-पट्टिका चित्रण का | |||
||गोथिक कला में रंगीन कांच की खिड़कियों का विकास हुआ था। गोथिक चित्रकला का प्रयोग गिरजाघरों के दरवाजों और खिड़कियों में लगे कांच एवं मेहराबों तथा दीवारों के छोटे-छोटे पैनलों में दिखाई पड़ता है। अन्य विकल्प बाइजेन्टाइन कला से सम्बद्ध हैं। | |||
{किस मुगलकालीन चित्रकार को 'पूर्व का राफेल' की संज्ञा दी गयी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-अब्दुलस्समद | |||
-दसवंत | |||
+बिहजाद | |||
-मंसूर | |||
||ईरानी फारसी मुगलकालीन चित्रकार बिहजाद को 'पूर्व का रोफल' कहा जाता है। बिहजाद ईरानी शैली का अपने समय का सबसे उत्तम चित्रकार था। वह पहले तैमूर वंशीय सुल्तान हुसेन वेगरा (मिर्जा) का दरबारी चित्रकार था। बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में बिहजाद का उल्लेख किया है। | |||
{चित्रकार मानकू द्वारा चित्रित ग्रंथ है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-रामायण | |||
+गीत गोविंद | |||
-महाभारत | |||
-रसिकप्रिया | |||
||पहाड़ी चित्रकला की गढ़वाली उपशैली के प्रसिद्ध चित्रकार मानकू द्वारा प्रसिद्ध चित्रित ग्रंथ 'गीत गोविंद' है। चित्रकार 'मानकू' और 'चौत्तुशाह' जो मोलाराम के भाइयों में थे, ने महाराजा सुदर्शन शाह के शासनकाल (1815-1859 ई.) में थे। मानकू द्वारा बनाये चित्रों में 'कृष्ण-राधा' शीर्षक हैं, जिस पर 1896 ई. तिथि अंकित है। उसने 'बिहारी सतसई' और 'गीत गोविंद' के सुंदर दृष्टांत चित्र उतारे थे। | |||
{राजा रवि वर्मा जो एक प्रसिद्ध कलाकार थे, का जन्म किस राज्य में हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-महाराष्ट्र | |||
-पंजाब | |||
-बंगाल | |||
+केरल | |||
||राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: रामायण एवं महाभारत महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु 2 अक्टूबर, 1906 को हुई थी। | |||
{बाइजेंटाइन-कला का समय है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-101,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-दूसरी से दसवीं शताब्दी | |||
-तीसरी से चौदहवीं शताब्दी | |||
+चौथी से पंद्रहवीं शताब्दी | |||
-पांचवीं से सोलहवीं शताब्दी | |||
||बाइजेन्टाइन-कला का नाम बाइजेन्टियम नामक नगर के आधार पर हुआ। सन् 330 ई. में सम्राट कांस्टेंटाइन ने इस नगर में जीत दर्ज किया और इसका नाम कुस्तुंतुनिया रख दिया। | |||
{पुनरुत्थान कला शैली किस पर आधारित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
+मानवीयता | |||
-मूर्तिपूजा | |||
-इब्सट्रेशनिज्म | |||
-प्रभाववाद | |||
||पुनर्जागरण कला शैली की तिथि निर्धारण कठिन है तथापि जिओत्तो की कला से ही इसका आरंभ मानने पर जिओत्तो एक ओर गोथिक कला का अंतिम कलाकार और दूसरी ओर पुनरुत्थान का आरंभिक कलाकार हो जाता है। शास्त्रीय दृष्टि अर्थात मानववादी वैज्ञानिक दृष्टि इसके मूल में रही है। इसका प्रथम चरण मोटे तौर पर इटली में सन् 1420 से समझा जाता है। जिओत्तो को शामिल कर लेने पर पुनर्जागरण काल को 1340-30 से 1520-30 तक अथवा अंतिम चरण 1600 ई. तक माना जा सकता है। इस अवधि में रीतिवाद ही प्रचलित था। मनुष्य को इसका केंद्र बनाया गया। धार्मिक विषयों को मानवीय दृष्टि से अंकित किया गया। | |||
{प्रागैतिहासिक चित्रों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा कथन असत्य है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-प्रागैतिहासिक चित्रों का मुख्य विषय शिकार रहा है। | |||
-प्रागैतिहासिक चित्र गुफावासियों द्वारा बिना किसी कला-दक्षता के बनाए गए हैं। | |||
+प्रागैतिहासिक चित्रों में दमकता लाल, चमकीला नीला एवं प्रफुल्ल हरा रंग भरा गया है। | |||
-मानव व पशु आकृतियों को बनाने से पहले गुफा की भितियों पर पृष्ठभूमि में कहीं कोई रंग की तह नहीं लगाई गई है। | |||
||प्रागैतिजासिक काल के चितर चट्टानों की दीवारों, गुफाओं के फर्शों, भित्तियों या छतों में बनाए गए हैं। अनेक चित्र प्रस्तर शिलाओं पर भी अंकित किए गए हैं। इन चित्रों में सुगमता से प्राप्त रंगों का प्रयोग किया गया है। इनमें प्रधानता गेरू, हिरौंजी, रामरज तथा खड़िया के रंगों का प्रयोग है। इन रंगों के अतिरिक्त रासायनिक रंगों में कोयला या काजल का प्रयोग किया गया है। अत: विकल्प (c) असत्य है, शेष सभी सत्य हैं। | |||
{अल्टामीरा की गुफाओं में किस जानवर का चित्र अधिक दिखाई पड़ता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-बैल | |||
-हाथी | |||
-भालू | |||
+जंगली भैंसा | |||
||अल्टामीरा की गुफा की छत पर अंकित चित्र सर्वाधिक सुरक्षित हैं। यहां प्राय: महिष (जंगली भैंसा-Bison) ही अंकित है। कुछ चित्रों में जंगली अश्व, लंबे सींग वाला बकरा, लाल हिरन (रेड डियर), बारहसिंगा तथा सूअर के अलावा मानव हाथ के विचित्र शैल चित्रों की विशेषता है। यदा- कदा जंगली वृषभ और दुर्लभ रूप में भेड़िये तथा लंबे कानों वाला 'एल्क' नामक हिरण भी चित्रित है। सभी पशु प्राकृतिक मुद्राओं में बनाए गए हैं। यहां ऐसे चित्र अंकित हैं जिनमें हाथ को दीवाए पर रखकर चारों ओर रंग फूंक दिया गया है या रंग के चूर्ण को दीवार पर हाथ के चारों ओर फेंका गया है, जिससे हाथ रखने पर दीवार का धरातल रंगयुक्त हो गया है। | |||
{जातक कथाएं क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-36,प्रश्न-64 | |||
|type="()"} | |||
-राजाओं की कहानियां | |||
-गणेश की कहानियां | |||
-काली का प्रताप | |||
+बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं | |||
||जातक कथाओं का अर्थ है-'पूर्वजन्म की कथाएं'। यह जातक कथाएं बुद्ध के जन्म-जन्मान्तर की कथाएं हैं, जिनको उन्होंने स्वयं अपने उपदेशों में सुनाया। जातक कथा में 547 जन्मों का उल्लेख है। यद्यपि अजंता में जीवन तथा धर्म दोनों से संबंधित चित्र हैं परंतु फिरभी विशेष रूप से जातक कथाओं याबुद्ध के जीवन की कथाओं का अंकन है। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.अप्रत्यक्ष रूप से जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध का एक संदेश छिपा है। | |||
.इन कथाओं को वेदिका स्तंभों पर सूचिकाओं पर अथवा दीवारों पर सांची, अमरावती आदि स्थानों पर तथा गांधार कला में जातक कथाओं के दृश्य अंकित हैं। | |||
{स्टेण ग्लास विधा किस युग में विकसित हुई थी? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-38,प्रश्न-6 | |||
|type="()"} | |||
-रोमनस्क युग | |||
-बाइजेन्टाइन युग | |||
+गोथिक युग | |||
-आधुनिक युग | |||
||स्टेंड ग्लास विधा गोथिक कला युग में विकसित हुई थी। | |||
{निम्न में से किस शासक के समय में नाथ संप्रदाय संबंधी चित्र बने? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-जोधपुर के महाराजा मान सिंह | |||
-किशनगढ़ के नागरी दास | |||
+जयपुर के सवाई जय सिंह | |||
-बूंदी के राव बुद्ध सिंह | |||
||जयपुर के सवाई जय सिंह के समय नाथ संप्रदाय से संबंधी चित्र बने। वास्तव में नाथ संप्रदाय संबंधी पेंटिंग्स मेवाड़ कला की एक उपशाखा है। नाथ संप्रदाय संबंधी चित्रकला राजसिंह के समय में फूली-फली अर्थात विकसित हुई जबकि इस कला को बढ़ाने में सर्वाधिक योगदान जय सिंह तथा अमर सिंह द्वारा दिया गया। अत: उपर्युक्त आधार पर विकल्प (c) सही उत्तर हो सकता है। | |||
{'पट-चित्र' राजस्थान की किस शैली में अधिक बने थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-बूंदी शैली | |||
+नाथद्वारा शैली | |||
-मेवाड़ शैली | |||
-अलवर शैली | |||
||'पट-चित्र' राजस्थान की नाथद्वारा शैली में अधिक बने थे। इस उप-शैली का अद्भव एवं विकास श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित किए जाने के अनंतर हुआ। इस शैली की सबसे बड़ी देन पिछवई चित्रण है। भगवान श्रीनाथ जी के स्वरूप सज्जा हेतु मंदिर में उनके मूर्ति के पीछे लगाए जाने वाले पट-चित्रों की कलात्मकता के कारण ये पिछवई बहुत प्रसिद्ध हैं। | |||
{अबुल हसन के पिता का नाम था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-बसावन | |||
+आकारिजा | |||
-मनोहर | |||
-मंसूर | |||
||अबुल हसन के पिता का नाम आकारिजा था। वह हेरात का निवासी था। अबुल हसन को जहांगीर ने 'नादिए अज़-जमा' की उपाधि से सम्मानित किया था। उसने जहांगीर की तख्तपोशी की तस्वीर बनाई थी। | |||
{नारी अंकन का सुंदर चित्रण किस शैली में है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
+पहाड़ी | |||
-राजस्थानी | |||
-जैन | |||
-मुगल | |||
||नारी अंकन का सुंदर चित्रण पहाड़ी शैली की प्रमुख विशेषताओं में से एक थी। नायिका भेद संबंधी चित्र के अंतर्गत विविध प्रकार की नायिकाओं का वर्णन किया गया है। कांगड़ा शैली में चित्रकारों ने 3 प्रकार की आयिकाओं का अंकन किया है। 1.स्वकीया, 2. परकीया तथा, 3.सामान्य। इन नायिकाओं की आठ अवस्ताएं मानी गई हैं। वे इस प्रकार हैं- स्वाधीनपतिका, उत्का, वासक सज्जा, खंडिता, अभिसंघिता, प्रेषित पतिका, विप्रलब्धा और अभिसारिका आदि। | |||
{रवि वर्मा कहां के हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-बंगाल | |||
-मैसूर | |||
-चेन्नई | |||
+केरल | |||
||राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: रामायण एवं महाभारत महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु 2 अक्टूबर, 1906 को हुई थी। | |||
{कला में आकृतियों के चित्रण का निषेध किया गया- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-101,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-गोथिक कला में | |||
+बाइजेंटाइन-कला में | |||
-ईसाई कला में | |||
-रोमन कला में | |||
||आकृति विरोधी युग लगभग 100 वर्षों तक रहा जिसमें आकृति चित्रण को निषेध कर दिया गय। इस संकटपूर्ण का आरंभ 'लियो तृतीय' के शासनकाल में हुआ जब 726 ई. में उसने कुस्तुन्तुनिया के राजकीय प्रासाद के कांस्य द्वार पर स्थित ईसा की प्रतिमा को नष्ट करके उसके स्थान पर क्रास खड़ा कर दिया था। याजिद द्वितीय ने बहुत बड़ी संख्या में ईसाई चित्रों तथा मूर्तियों को नष्ट कराया। यह परिस्थिति लगभग 100 वर्षों तक चली। 843 ई. में मूर्ति विरोधी सम्राट थियोफाइलस की पत्नी थियोडोरा ने अपने पुत्र और साम्राज्य के उत्तराधिकारी माइकेल तृतीय की संरक्षिका के रूप में आकृति-रचना को फिर से वैध कर दिया तथा क्रास हटाकर ईसा की प्रतिमा को पुन: स्थापित कर दिया। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.ईसाई धर्म से संबंधित बाइजेंटाइन कला भवन वास्तु मूर्ति शिल्प, मणिकुट्टिम, भित्तिचित्र, पुस्तक चित्र, पेनल चित्र, लद्यु चित्र इत्यादि के रूप में विकसित हुई। | |||
.इस युग के बाद ईसाई कला में दो प्रकार की आकृतियां चित्रित हुई। प्रथम प्रकार में सम्राटों को ईश्वर की सीधी वंश परंपरा में दिखाया जाने लगा और दूसरे में धार्मिक चित्र पुरानी पद्धतियों पर ही बनने आरंभ हुए। | |||
.पश्चिमी देशों में भी ईसाई कला का स्वरूप पूर्वी दिशा की भांति रहा है। | |||
.प्राय: रोम पद्धति की कला पर सीरियन प्रभाव भी देखे जा सकते हैं। | |||
{गोथिक युग का चित्रकार, जिसके चित्रों में पुनर्जागरण काल की चित्रकला को जन्म दिया- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-चिमाबू | |||
-दुच्चो | |||
+ज्योत्तो | |||
-बॉत्तीचेल्ली | |||
||पुनर्जागरण कला शैली की तिथि निर्धारण कठिन है तथापि जिओत्तो की कला से ही इसका आरंभ मानने पर जिओत्तो एक ओर गोथिक कला का अंतिम कलाकार और दूसरी ओर पुनरुत्थान का आरंभिक कलाकार हो जाता है। शास्त्रीय दृष्टि अर्थात मानववादी वैज्ञानिक दृष्टि इसके मूल में रही है। इसका प्रथम चरण मोटे तौर पर इटली में सन् 1420 से समझा जाता है। जिओत्तो को शामिल कर लेने पर पुनर्जागरण काल को 1340-30 से 1520-30 तक अथवा अंतिम चरण 1600 ई. तक माना जा सकता है। इस अवधि में रीतिवाद ही प्रचलित था। मनुष्य को इसका केंद्र बनाया गया। धार्मिक विषयों को मानवीय दृष्टि से अंकित किया गया। | |||
{फ्रैंको-कैंटाब्रियन क्षेत्र किसे कहते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
+यूरोपीय प्रागैतिहासिक चित्रों का प्रमुख केंद्र | |||
-फ्रांस की प्रारंभिक कला का प्रमुख केंद्र | |||
-फ्रांस का मिदी क्षेत्र | |||
-भूमध्य सागरीय कला का केंन्द्र | |||
||फ्रैंको-कैंटाब्रियन क्षेत्र के अंतर्गत उत्तरी स्पेन तथा दक्षिणी-पश्चिमी फ्रांस की प्रागैतिहासिक कलात्मक गुफाएं आती हैं। समस्त कला प्राय: तीन क्षेत्रों से संबंधित है- (1) दक्षिणी- पश्चिमी फ्रांस का डोर्डोन तथा उसका निकटवर्ती क्षेत्र (2) दक्षिणी फ्रांस का पेरीनियन क्षेत्र तथा (3) उत्तरी स्पेन का कैंटाब्रियन क्षेत्र। | |||
{स्पेन की प्रागैतिहासिक चित्रकला में चित्रित हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-रेड डियर | |||
-मानव | |||
-बाइसन | |||
+उक्त सभी | |||
{जातक कथाएं आधारित हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-36,प्रश्न-65 | |||
|type="()"} | |||
-महावीर के जीवन पर | |||
-शिव के जीवन पर | |||
+बुद्ध के जीवन पर | |||
-शंकराचार्य के जीवन पर | |||
||जातक कथाओं का अर्थ है-'पूर्वजन्म की कथाएं'। यह जातक कथाएं बुद्ध के जन्म-जन्मान्तर की कथाएं हैं, जिनको उन्होंने स्वयं अपने उपदेशों में सुनाया। जातक कथा में 547 जन्मों का उल्लेख है। यद्यपि अजंता में जीवन तथा धर्म दोनों से संबंधित चित्र हैं परंतु फिरभी विशेष रूप से जातक कथाओं याबुद्ध के जीवन की कथाओं का अंकन है। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.अप्रत्यक्ष रूप से जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध का एक संदेश छिपा है। | |||
.इन कथाओं को वेदिका स्तंभों पर सूचिकाओं पर अथवा दीवारों पर सांची, अमरावती आदि स्थानों पर तथा गांधार कला में जातक कथाओं के दृश्य अंकित हैं। | |||
{अंतर्राष्ट्रीय गोथिक शैली का स्पापत्य पाया जाता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-38,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
-इंग्लैंड में | |||
-जर्मनी में | |||
-स्थापत्य शैली | |||
+उपरोक्त सभी में | |||
||अंतर्राष्ट्रीय गोथिक शैली का स्थापत्य फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड्, इटली इत्यादि में पाया जाता है। | |||
{राजस्थान के पिछवई चित्र किस क्षेत्र के हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-बूंदी | |||
+नाथद्वारा | |||
-किशनगढ़ | |||
-जयपुर | |||
||'पट-चित्र' राजस्थान की नाथद्वारा शैली में अधिक बने थे। इस उप-शैली का अद्भव एवं विकास श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित किए जाने के अनंतर हुआ। इस शैली की सबसे बड़ी देन पिछवई चित्रण है। भगवान श्रीनाथ जी के स्वरूप सज्जा हेतु मंदिर में उनके मूर्ति के पीछे लगाए जाने वाले पट-चित्रों की कलात्मकता के कारण ये पिछवई बहुत प्रसिद्ध हैं। | |||
{दिल्ली का लाल किला किसके पुत्र द्वारा बनवाया गया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-अकबर | |||
-औरंगजेब | |||
-हुमायूं | |||
+जहांगीर | |||
||जहांगीर के पुत्र शाहजहां ने दिल्ली में अपने नाम पर 'शाहजहांबावाद', नामक एक नगर की स्थापना वर्ष 1648 ई. में की तथा वहां अनेक सुंदर एवं वेभवपूर्ण भवनों के निर्माण कर उसे सुसज्जित करने का प्रयास किया। शाहजहांनाबाद के भवनों में लाल किला प्रमुख है। यह चतुर्भुज आकार का किला लाल बलुआ पत्थर से निर्मिण होने के कारण लाल किले के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण कार्य वर्ष 1648 में पूर्ण हुआ। शाहजहां द्वारा बनवाए गए अन्य प्रमुख स्मारक हैं-ताजमहल (आगरा), जामा मस्जिद (दिल्ली), मोती मस्जिद (लाहौर) आदि। | |||
{'कांगड़ा शैली' में कितने प्रकार की नायिकाएं होती थीं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-दो | |||
-सात | |||
+तीन | |||
-पांच | |||
||नारी अंकन का सुंदर चित्रण पहाड़ी शैली की प्रमुख विशेषताओं में से एक थी। नायिका भेद संबंधी चित्र के अंतर्गत विविध प्रकार की नायिकाओं का वर्णन किया गया है। कांगड़ा शैली में चित्रकारों ने 3 प्रकार की आयिकाओं का अंकन किया है। 1.स्वकीया, 2. परकीया तथा, 3.सामान्य। इन नायिकाओं की आठ अवस्ताएं मानी गई हैं। वे इस प्रकार हैं- स्वाधीनपतिका, उत्का, वासक सज्जा, खंडिता, अभिसंघिता, प्रेषित पतिका, विप्रलब्धा और अभिसारिका आदि। | |||
{प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा का जन्म कहां हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-उत्तर प्रदेश | |||
+केरल | |||
-कनार्टक | |||
-पश्चिम बंगाल | |||
||राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: रामायण एवं महाभारत महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु 2 अक्टूबर, 1906 को हुई थी। | |||
{बाइजेइटाइन-कला का प्रथम स्वर्णिम युग किस सम्राट का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-101,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
-हेड्रियन | |||
-कांस्टेन्टाइन | |||
+जस्टीनियन | |||
-वेस्पियन | |||
||बाइजेन्टाइन-कला का प्रथम स्वर्णिम युग जस्टीनियन का शासनकाल था। जस्टीनियन के शासनकाल में सर्वोत्कृष्ट दर्जे के बड़े आकारों के व चमकीले पच्चीकारी चित्र बनाए गए। जस्टीनियन के समय विशुद्ध आलंकारिक कार्य अधिक प्रचलित थे। आकृति मूलक विषयों के अतिरिक्त पशु-पक्षी तथा ज्यामितीय अभिप्राय संभवत: फारस आदि से आयातित टेक्सटाइल डिजाइनों की अनुकृति पर बने। कहीं-कहीं कूफी लिपि को उसका अर्थ समझे बिना ही, आलंकारिक अभिप्राय के रूप में प्राय: शिलाओं के हाथियों में उत्कीर्ण किया गया। ऐसी शिलाओं की एक पूरी शृंखला एथेंस के चर्च की दीवारों पर है जिसे 'लिटिल मेट्रोपोलिस' कहा जाता है। | |||
{यूरोप की प्रारंभिक पुनर्जागरण युग की कला का समय- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-1400-1480 ई. | |||
-1410-1490 ई. | |||
+1420-1500 ई. | |||
-1430-1510 ई. | |||
||पुनर्जागरण कला शैली की तिथि निर्धारण कठिन है तथापि जिओत्तो की कला से ही इसका आरंभ मानने पर जिओत्तो एक ओर गोथिक कला का अंतिम कलाकार और दूसरी ओर पुनरुत्थान का आरंभिक कलाकार हो जाता है। शास्त्रीय दृष्टि अर्थात मानववादी वैज्ञानिक दृष्टि इसके मूल में रही है। इसका प्रथम चरण मोटे तौर पर इटली में सन् 1420 से समझा जाता है। जिओत्तो को शामिल कर लेने पर पुनर्जागरण काल को 1340-30 से 1520-30 तक अथवा अंतिम चरण 1600 ई. तक माना जा सकता है। इस अवधि में रीतिवाद ही प्रचलित था। मनुष्य को इसका केंद्र बनाया गया। धार्मिक विषयों को मानवीय दृष्टि से अंकित किया गया। | |||
{फ्रैंको-कैंटेब्रियन क्षेत्र संबंधित है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
-धार्मिक कर्मकांड से | |||
+प्रागैतिहासिक कला से | |||
-आदिम गीत से | |||
-मध्यकालीन कला से | |||
||फ्रैंको-कैंटाब्रियन क्षेत्र की कलात्मक गुफाओं का पता उन्नीसवीं शती के अंत में चला था। इन गुफाओं में दीवारों तथा छतों पर अंकित चित्रों के रूप में हिमयुग (प्रागैतिहासिक कला) तक की प्राचीन सामग्री सुरक्षित है। इन चित्रों में अंकित पशुओं का अस्तित्व अब समाप्त हो चुका है। इनके अतिरिक्त इनमें अनेक उत्कीर्ण चित्र संकेताक्षर बने हुए हैं। | |||
{सर्वप्रथम अल्टामीरा गुफा में चित्रों की खोज किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
-डी. पिरानी | |||
+मारिया सातुओला | |||
-ई. रेवियर | |||
-एच. ब्रुइल | |||
||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफा की छत कहीं-कहीं 6-7 फीट ऊंची है, अत: पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी। | |||
{महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की काल्पनिक कथाएं किससे संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-66 | |||
|type="()"} | |||
-पंचतंत्र | |||
+जातक कथाएं | |||
-हितोपदेश | |||
-इनमें से कोई नहीं | |||
||जातक कथाओं का अर्थ है-'पूर्वजन्म की कथाएं'। यह जातक कथाएं बुद्ध के जन्म-जन्मान्तर की कथाएं हैं, जिनको उन्होंने स्वयं अपने उपदेशों में सुनाया। जातक कथा में 547 जन्मों का उल्लेख है। यद्यपि अजंता में जीवन तथा धर्म दोनों से संबंधित चित्र हैं परंतु फिरभी विशेष रूप से जातक कथाओं याबुद्ध के जीवन की कथाओं का अंकन है। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.अप्रत्यक्ष रूप से जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध का एक संदेश छिपा है। | |||
.इन कथाओं को वेदिका स्तंभों पर सूचिकाओं पर अथवा दीवारों पर सांची, अमरावती आदि स्थानों पर तथा गांधार कला में जातक कथाओं के दृश्य अंकित हैं। | |||
{गोथिक कला शैली मुख्यत: है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-38,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
-चित्र शैली | |||
-मूर्ति शैली | |||
+स्थापत्य शैली | |||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||गोथिक कला शैली मुख्यत: स्थापत्य शैली है परंतु साथ ही साथ इस कला ने मूर्तिकला, रंजित कांच एवं पाण्डुलिपि अलंकरण को भी प्रोत्साहित किया। | |||
{पिछवई लोक चित्र कहां मिलता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
+राजस्थान | |||
-गुजरात | |||
-बिहार | |||
-कर्नाटक | |||
||'पट-चित्र' राजस्थान की नाथद्वारा शैली में अधिक बने थे। इस उप-शैली का अद्भव एवं विकास श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित किए जाने के अनंतर हुआ। इस शैली की सबसे बड़ी देन पिछवई चित्रण है। भगवान श्रीनाथ जी के स्वरूप सज्जा हेतु मंदिर में उनके मूर्ति के पीछे लगाए जाने वाले पट-चित्रों की कलात्मकता के कारण ये पिछवई बहुत प्रसिद्ध हैं। | |||
{ | {जहांगीर के बेटे ने कौन-सा किला बनवाया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-4 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | +लाल किला | ||
- | -दिलवाड़ा का किला | ||
- | -इंदौर का किला | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||जहांगीर के पुत्र शाहजहां ने दिल्ली में अपने नाम पर 'शाहजहांबावाद', नामक एक नगर की स्थापना वर्ष 1648 ई. में की तथा वहां अनेक सुंदर एवं वेभवपूर्ण भवनों के निर्माण कर उसे सुसज्जित करने का प्रयास किया। शाहजहांनाबाद के भवनों में लाल किला प्रमुख है। यह चतुर्भुज आकार का किला लाल बलुआ पत्थर से निर्मिण होने के कारण लाल किले के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण कार्य वर्ष 1648 में पूर्ण हुआ। शाहजहां द्वारा बनवाए गए अन्य प्रमुख स्मारक हैं-ताजमहल (आगरा), जामा मस्जिद (दिल्ली), मोती मस्जिद (लाहौर) आदि। | |||
{अंडाकार रूप में व्यक्ति चित्रण किस शैली में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
-राजस्थानी शैली | |||
-कंपनी शैली | |||
-अपभ्रंश शैली | |||
+पहाड़ी शैली | |||
||अंडाकार रूप में व्यक्ति चित्रण पहाड़ी शैली में हुआ है। पहाड़ी चित्रकला की कांगड़ा शैली में अंग तथा भाव-भंगिमाओं का सजीव चित्रण प्राप्त होता है। इस शैली में नारी चित्रण को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है। लंबी पतली भौंह, चमकीली आंखें, अंडाकार भरे हुए चेहरे, पतली कमर, लंबी-पतली उंगलियां, लहराते बाल आदि का चित्रण कांगड़ा शैली की प्रमुख विशेषताएं रही हैं। | |||
{राजा रवि वर्मा का जन्म 1848 में इस स्थान पर हुआ- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
-मदुरा | |||
-त्रिवांकुर | |||
-मैसूर | |||
+किलिमनूर | |||
||राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: रामायण एवं महाभारत महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु 2 अक्टूबर, 1906 को हुई थी। | |||
{बाइजेन्टाइन-कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण पाया जाता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-101,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-बेसिलिका गिर्जा में | |||
+सान विताले गिर्जा में | |||
-सेंट मार्क गिर्जा में | |||
-सेंट बसील गिर्जा में | |||
||रैवेन्ना के सान विताले के महामंदिर में (गिर्जा में) सम्राट जस्टीनियन व साम्राझी थियोडोरा के परिचारकों सहित बने पच्चीकारी (मोजैक) चित्र इसके विश्व प्रसिद्ध उदाहरण हैं। इस कला के चरम उन्नति रैवेन्न के सान विताले नाम अष्टभुजी बाइजेन्टाइन भवन में दिखाई देती है। | |||
{मानवतावाद किसकी कुंजी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
+पुनरुत्थानवाद | |||
-स्वच्छंदवाद | |||
-यथार्थवाद | |||
-उत्तर प्रभाववाद | |||
||पुनर्जागरण कला शैली की तिथि निर्धारण कठिन है तथापि जिओत्तो की कला से ही इसका आरंभ मानने पर जिओत्तो एक ओर गोथिक कला का अंतिम कलाकार और दूसरी ओर पुनरुत्थान का आरंभिक कलाकार हो जाता है। शास्त्रीय दृष्टि अर्थात मानववादी वैज्ञानिक दृष्टि इसके मूल में रही है। इसका प्रथम चरण मोटे तौर पर इटली में सन् 1420 से समझा जाता है। जिओत्तो को शामिल कर लेने पर पुनर्जागरण काल को 1340-30 से 1520-30 तक अथवा अंतिम चरण 1600 ई. तक माना जा सकता है। इस अवधि में रीतिवाद ही प्रचलित था। मनुष्य को इसका केंद्र बनाया गया। धार्मिक विषयों को मानवीय दृष्टि से अंकित किया गया। | |||
{भारत में प्रागैतिहासिक चित्र कहां प्राप्त हुए है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-मुजफ्फरपुर | |||
-बिन्दकी | |||
-खुर्जापुर | |||
+सरगुजा | |||
||दिए गए विकल्पों में भारत में प्रागैतिहासिक चित्र सरगुजा से प्राप्त हुए हैं। यह वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है। | |||
{अल्टामीरा की गुफाएं किस देश में हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-इटली | |||
-इंग्लैंड | |||
-फ्रांस | |||
+स्पेन | |||
||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफा की छत कहीं-कहीं 6-7 फीट ऊंची है, अत: पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी। | |||
{इनमें से कौन असंबद्ध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-68 | |||
|type="()"} | |||
-मुगल चित्रकला | |||
-राजस्थानी वित्रकला | |||
-कांगड़ा चित्रकला | |||
+अजंता चित्रकला | |||
||अजंता चित्रकला शैली भित्तिचित्र कला का अप्रतिम नमूना है। इसकी विषय-वस्तु मुख्यत: बौद्ध धर्म से संबंधित रही है। इसके विपरीत मुगल चित्रकला, राजस्थानी चित्रकला तथा कांगड़ा चित्रकला लद्यु चित्र शैली का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा अजंता चित्र शैली से काफी बाद की हैं। | |||
{गोथिक स्थापत्य शैली का प्रमुख निदर्शन है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
-सेंट डेनिस कैथेड्रल | |||
+चार्ट्रेस कैथेड्रल | |||
-मॅन्स गिर्जा | |||
-फ्लोरेन्स का गिर्जा | |||
||गोथिक स्थापत्य शैली का प्रमुख निदर्शन चार्ट्रेस कैथेड्रल थे। | |||
{पिछवई किसके लिए चित्रित की गई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
+मंदिर | |||
-स्तूप | |||
-महल | |||
-गुहा | |||
||'पट-चित्र' राजस्थान की नाथद्वारा शैली में अधिक बने थे। इस उप-शैली का अद्भव एवं विकास श्रीनाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित किए जाने के अनंतर हुआ। इस शैली की सबसे बड़ी देन पिछवई चित्रण है। भगवान श्रीनाथ जी के स्वरूप सज्जा हेतु मंदिर में उनके मूर्ति के पीछे लगाए जाने वाले पट-चित्रों की कलात्मकता के कारण ये पिछवई बहुत प्रसिद्ध हैं। | |||
{हमायूं का मकबरा किसने वनवाया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
+अकबर | |||
-बाबर | |||
-जहांगीर | |||
-शाहजहां | |||
||हमांयू का मकबरा दिल्ली में स्थित है, जो हमायूं की पत्नी के संरक्षण में निर्मित हुआ तथा मीरक मिर्जा गियास के द्वाराइसका डिजाइन तैयार किया गया। यह मकबरा भारतीय-फारसी वास्तुकला शैली का उदाहरण है। विकल्प में उपर्युक्त में से किसी का नाम न होने के कारण अकबर माना जा सकता है क्योंकि हुमायूं की मृत्यु के बाद शासन कार्य अकबर के हाथों में आ गया था। | |||
{पहाड़ी चित्रों का निर्माण कब से प्रारंभ हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-20 वीं शताब्दी | |||
+18वीं शताब्दी | |||
-11वीं शताब्दी | |||
-21वीं शताब्दी | |||
||पहाड़ी चित्रों का निर्माण 18 वीं शताब्दी से (1700 ई. से 1900 ई. तक) प्रारंभ हुआ। आर्चर महोदय के अनुसार, 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक पश्चिम्मी-हिमालय के क्षेत्र प्रकार की कला विकसित नहीं हुई थी। | |||
{राजा रवि वर्मा का जन्म किस राज्य में हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-उड़ीसा | |||
-मध्य प्रदेश | |||
+केरल | |||
-गुजरात | |||
||राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: रामायण एवं महाभारत महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु 2 अक्टूबर, 1906 को हुई थी। | |||
{बाइजेन्टाइन-कला की विशेषता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-6 | |||
|type="()"} | |||
+मोजैक भित्तिचित्र | |||
-चित्रित भित्तिचित्र | |||
-टेराकोटा भित्तिचित्र | |||
-फ्रेस्को भित्तिचित्र | |||
||रैवेन्ना के सान विताले के महामंदिर में (गिर्जा में) सम्राट जस्टीनियन व साम्राझी थियोडोरा के परिचारकों सहित बने पच्चीकारी (मोजैक) चित्र इसके विश्व प्रसिद्ध उदाहरण हैं। इस कला के चरम उन्नति रैवेन्न के सान विताले नाम अष्टभुजी बाइजेन्टाइन भवन में दिखाई देती है। | |||
{पुनरुत्थान कला का केंद्र था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-जर्मनी | |||
-इंग्लैंड | |||
+इटली | |||
-फ्रांस | |||
||इटली 16वीं सदी की यूरोपीय उच्च पुनर्जागरण (हाई रेनेसां) कालीन कला का केंद्र था। इसके बाद जर्मनी, फ्लैंर्ड्स, हॉलैंड, स्पेन फ्रांस में भी इस पुनर्जागरण का प्रभाव फैल गया और समग्र यूरोपियन कला को नई चेतना मिली। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.पुनरुत्थान कला की सबसे प्रमुख विशेषता थी 'घनत्वांकन' जिसके कारण चित्रित मानवों, प्राणियों व वस्तुओं के आकार ठोस प्रतीत होते हैं। | |||
.रंगों का गौण स्थान था। मानवाकृतियों को आदर्श, कुलीन, व्यक्तिदर्शी रूप में व भावपूर्ण मुद्रा में अंकित करना इस समय के कलाकारों ने प्रारंभ किया। | |||
.इस समय के प्रमुख चित्रकार लियोनार्दो द विंसी, माइकेल एंजेलो व राफेल थे। | |||
.तीनों कलाकारों (चरम पुनरुत्थान काल के तीनों कलाकार) में सबसे छोटा राफेल था। | |||
.राफेल की सर्वाधिक प्रसिद्ध 'मैडोना' चित्रों से है। | |||
.राफेल को 'डिवाइन पेंटर' कहा गया है। | |||
{प्रागैतिहासिक भारतीय चित्रकला किस सतह पर बनाई गई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-6 | |||
|type="()"} | |||
-लकड़ी के पटों पर | |||
-वृक्ष की छालों पर | |||
-ताल-पत्रों पर | |||
+चट्टानों पर | |||
||प्रागैतिहासिक काल के चित्र चट्टानों की दीवारों, गुफाओं के फर्शों, गिट्टियों या छतों में बनाए गए हैं। अनेक चित्र प्रस्तर शिलाओं पर भी अंकित किए गए हैं। | |||
{अल्टामीरा का गुफा चित्र कहां स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-6 | |||
|type="()"} | |||
+स्पेन | |||
-फ्रांस | |||
-इटली | |||
-भारत | |||
||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफा की छत कहीं-कहीं 6-7 फीट ऊंची है, अत: पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी। | |||
{राजस्थानी (जयपुर) शैली के भित्ति-चित्र बनाए जाते हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-संगमरमर पर | |||
+गीली सतह पर | |||
-सूखी सतह पर | |||
-ईंट की सतह पर | |||
||राजस्थानी जयपुर शैली को 'आराश' या 'राजस्थानी (जयपुर) फ्रेस्को बूनो' कहा जाता है। इस शैली में दीवार के गीले प्लास्टर पर ही पतले-पतले रंग लगाए जाते हैं जो प्लास्टर सूखने के साथ ही पक्के हो जाते हैं, इसे 'आर्द्रभित्ति-चित्रण' भी कहते हैं। | |||
{इटली के गोथिक काल के चित्रकारों में प्रमुख कलाकार कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-दूशियो | |||
-एम्ब्रॉजियो लोरंजेट्टी | |||
-जॉन वान आईक | |||
+जिओत्तो | |||
||जिओत्तो इटली के गोथिक काल के चित्रकारों में प्रमुख कलाकार थे। | |||
{राजा उम्मेद सिंह ने किस क्षेत्र शैली को मौलिकता प्रदान की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-6 | |||
|type="()"} | |||
-बूंदी शैली को | |||
-किशनगढ़ शैली को | |||
-अलवर शैली को | |||
+कोटा शैली को | |||
||राजा उम्मेद सिंह ने किस चित्रकला शैली को मौलिकता प्रदान की। राजा उम्मेद सिंह (1771-1820 ई.), के काल में कोटा शैली की बड़ी उन्नति हुई। राजा उम्मेद सिंह के शिकार के शौक के चलते चित्रकारों ने शिकार के चित्रण को काफी महत्त्व दिया। | |||
{'आइने अकबरी' पुस्तक के लेखक कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-6 | |||
|type="()"} | |||
-केशव | |||
-जगन्नाथ | |||
-दसवन्त | |||
+अबुल फजल | |||
||'आइने अकबरी' अकबर के दरबारी अबुल फजल द्वारा रचित (चित्रित) 'अकबरनामा' का ही एक भाग है। अकबरनामा तीन भागों में है जिसमें से तीसरे भाग को 'आइने अकबरी' कहते हैं। आइने अकबरी के भी अपने आप में पांच भाग हैं। मुगल साम्राज्य का भौगोलिक सर्वेक्षण तथा सभी प्रांतों विशेष तौर पर बंगाल के बारे में आंकड़ों पर आधारित विवरण प्रदान करता है। इस पुस्तक में शासन प्रणाली के नियमों का वर्णन किया गया है तथा इसमें अकबर द्वारा सभी सरकारी विभागों पर नियंत्रण के बारे में जानकरी मिलती है। | |||
{पहाड़ी पेंटिंगें किस समय विकसित थीं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-6 | |||
|type="()"} | |||
-बिलम्बित 17 से प्रारम्भिक 18 वीं शताब्दी | |||
-प्रारम्भिक 15 से विलम्बित 17 वीं शताब्दी | |||
-विलम्बित 18 और प्रारम्भिक 19 वीं शताब्दी | |||
+प्रारम्भिक 18 से विलम्बित 19 वीं शताब्दी | |||
||पहाड़ी चित्रों का निर्माण 18 वीं शताब्दी से (1700 ई. से 1900 ई. तक) प्रारंभ हुआ। आर्चर महोदय के अनुसार, 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक पश्चिम्मी-हिमालय के क्षेत्र प्रकार की कला विकसित नहीं हुई थी। | |||
{राजा रवि वर्मा की मृत्यु किस वर्ष हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-6 | |||
|type="()"} | |||
+1906 | |||
-1918 | |||
-1941 | |||
-1921 | |||
||राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक छोटे कस्बे किलिमनूर (त्रावणकोर) में हुआ था। वे अपने विस्मय पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं जो मुख्यत: रामायण एवं महाभारत महाकाव्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। इनकी मृत्यु 2 अक्टूबर, 1906 को हुई थी। | |||
{प्रथम चरण की बाइजेन्टाइन-कला यहां पाई जाती है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
+कांस्टेन्टीनोपल में | |||
-मास्को में | |||
-रैवेन्ना में | |||
-इस्ताम्बुल में | |||
||प्रथम चरण की बाइजेन्टाइन-कला कान्स्टेन्टीनेपल में पाई जाती है। बाइजेंटिम नामक नगर को ही सम्राट कांस्टेन्टाइन ने जीतकर इसका नाम कान्स्टेन्टीनोपल (कुस्तुंतुनिया) रख दिया। प्रथम चरण की बाइजेन्टाइन कला में रोम, रैवेन्न तथा सैलोनिका प्रमुख थे। | |||
{यूरोप की कला के पुनर्जागरण काल का प्रमुख कलाकार कौन था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-104,प्रश्न-6 | |||
|type="()"} | |||
-मैसेचियो | |||
+लियोनार्दो द विंसी | |||
-पाओलो उचेल्लो | |||
-टिटियन | |||
||पुनर्जागरण काल के प्रमुख कलाकारों में दिए गए विकल्पों में मैसेचियो तथा पाओलो उचेल्लो दोनों शामिल हैं। उ.प्र. माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने अपने प्रारंभिक उत्तर कुंजी में इसका उत्तर (b) माना था किंतु पतिवर्तित उत्तर-कुंजी में इसे गलत बताया है। चूंकि विकल्प में दो उत्तर सही हैं। अत: दोनों उत्तर सही हैं। | |||
{प्रागैतिहासिक चित्र क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-5,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
-ग्रंथ चित्र | |||
+गुहा चित्र | |||
-कागज पर बने चित्र | |||
-वस्त्र पर बने चित्र | |||
||प्रागैतिहासिक चित्र गुहा चित्र है। पाषाण युग के मनुष्यों ने अपने चारो ओर के वातावरण की स्मृति को बनाए रखने के लिए तथा अपनी विजय का इतिहास व्यक्त करने की भावना के वशीभूत होकर इन चित्राकृतियों का निर्माण किया। | |||
{प्रागैतिहासिक काल के चित्र कहां स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
+अल्टामीरा | |||
-बर्लिन | |||
-हॉलैंड | |||
-रोमीरा | |||
||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफा की छत कहीं-कहीं 6-7 फीट ऊंची है, अत: पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी। | |||
{जयपुरी फ्रेसको चित्रण निम्न में से वर्तमान में किस केंद्र पर सिखाया जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
+वनस्थली | |||
-मद्रास | |||
-बंबई | |||
-वाराणसी | |||
||जयपुरी फ्रेस्को कला चित्रण वर्तमान में वनस्थली केंद्र पर सिखाया जाता है। वनस्थली विश्वविद्यालय महिलाओं की शिक्षा के लिए एक बेहतरीन विश्वविद्यालय है। | |||
{गोथिक कला के विकास में प्रमुख कारण कौन-से थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-11 | |||
|type="()"} | |||
-नगरीकरण, व्यापारिक विकास एवं शक्ति-संपन्न राजसत्ता | |||
-जनमानस की आकांक्षाएं, नगरीकरण, धर्म गुरुओं | |||
+कलाकारों के समूह, धर्म, नवीन चेतना | |||
-नवीन कला धाराएं, नवीन विचार, धर्म | |||
||गोथिक कला के विकास में प्रमुख कारण कलाकारों के समूह, धर्म तथा नवीन चेतना था। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.गोथिक शैली का आरंभ 12 वीं शती में फ्रांस में हुआ। | |||
.सामाज के प्रत्येक व्यक्ति ने गोथिक कला में सहयोग दिया तथा सुंदर से सुंदर शैली के चर्चों (पूजा घरों) का निर्माण हुआ। | |||
{महान कला प्रेमी राजा हम्मेद सिंह (1771-1820 ई.) के समय में किस शैली में कार्य हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-47,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
-बूंदी | |||
+कोटा | |||
-कांगड़ा | |||
-मुगल | |||
||राजा उम्मेद सिंह ने किस चित्रकला शैली को मौलिकता प्रदान की। राजा उम्मेद सिंह (1771-1820 ई.), के काल में कोटा शैली की बड़ी उन्नति हुई। राजा उम्मेद सिंह के शिकार के शौक के चलते चित्रकारों ने शिकार के चित्रण को काफी महत्त्व दिया। | |||
{'आइने अकबरी' का मुख्य चित्रकार कौन था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-56,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
-केशू दास | |||
+अबुल फजल | |||
-समशाद | |||
-मोलाराम | |||
||'आइने अकबरी' अकबर के दरबारी अबुल फजल द्वारा रचित (चित्रित) 'अकबरनामा' का ही एक भाग है। अकबरनामा तीन भागों में है जिसमें से तीसरे भाग को 'आइने अकबरी' कहते हैं। आइने अकबरी के भी अपने आप में पांच भाग हैं। मुगल साम्राज्य का भौगोलिक सर्वेक्षण तथा सभी प्रांतों विशेष तौर पर बंगाल के बारे में आंकड़ों पर आधारित विवरण प्रदान करता है। इस पुस्तक में शासन प्रणाली के नियमों का वर्णन किया गया है तथा इसमें अकबर द्वारा सभी सरकारी विभागों पर नियंत्रण के बारे में जानकरी मिलती है। | |||
{पहाड़ी चित्रकला मुख्यतया किस क्षेत्र की है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-71,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
-राजस्थान की पहाड़ियों की | |||
-कश्मीर की पहाड़ियों की | |||
+पंजाब की पहाड़ियों की | |||
-उत्तर प्रदेश की पहड़ियों की | |||
||पहाड़ी (कांगड़ा) चित्रकला को डॉ. आर. ए. अग्रवाल ने मुख्यत: चार क्षेत्रों में विभक्त किया है- (1) कश्मीर राज्य (सिंधु तथा चिनाव की बीच का क्षेत्र), (2) जम्मू (चिनाव एवं रावी के मध्य के क्षेत्र), (3) जाति (रावी एवं सतलज के मध्य का क्षेत्र)-इसी में कांगड़ा, गुलेर, चम्बा, मंडी, नूरपुर व कुल्लू रियासतें थीं, (4) विलासपुर, टिहरी व गढ़वाल राज्य (सतलज के दक्षिण-पूर्व तथा गंगा-जमुना के मध्य)। | |||
{राजा रवि वर्मा जाने जाते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
-वॉश पेंटिंग के लिए | |||
-टेम्परा पेंटिंग के लिए | |||
-जल रंग पेंटिंग के लिए | |||
+तैल रंग पेंटिंग के लिए | |||
||राजा रवि वर्मा तैल रंग की पेंटिंग के लिए जाने जाते थे। इन्होंने भारतीय जीवन और परंपरा को इस नई कला के द्वारा प्रतिष्ठा दिलाई। इस प्रकार तैल रंगों का आधुनिक चित्रकला में प्रयोग करने का श्रेय सर्वप्रथम राजा रवि वर्मा को जाता है। | |||
{सेंट बसील का गिर्जा कहां है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
-रोम में | |||
+मॉस्को में | |||
-कांस्टेन्टीनोपल में | |||
-वियना में | |||
||सेंट बसील का गिर्जा रेड स्क्वायर, मॉर्को (रूस) में स्थित है। | |||
{पुनर्जागरण कला किस देश के केंद्रों में फली-फूली? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-105,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
+इटली | |||
-फ्रांस | |||
-इंगैंड | |||
-जर्मनी | |||
||पुनर्जागरण काल के प्रमुख कलाकारों में दिए गए विकल्पों में मैसेचियो तथा पाओलो उचेल्लो दोनों शामिल हैं। उ.प्र. माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने अपने प्रारंभिक उत्तर कुंजी में इसका उत्तर (b) माना था किंतु पतिवर्तित उत्तर-कुंजी में इसे गलत बताया है। चूंकि विकल्प में दो उत्तर सही हैं। अत: दोनों उत्तर सही हैं। | |||
{प्रागैतिहासिक चित्रों के विषय क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-6,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
-पशु | |||
-मानव | |||
-पक्षी | |||
+पशु-मानव-पक्षी | |||
||प्रागैतिहासिक काल के चित्रों का विषय आखेट, युद्ध करते हुए तथा विजय के अवसर पर नृत्य करते हुए चित्रण करना ही तत्कालीन मानव का मुख्य रुचिकर विषय रहा है। स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी आदि के चित्र भी आदियुगीन मानव की विषयवस्तु रहे हैं। इस काल में जादू-टोने के रूप में अमूर्त भावन को भी विकसित किया गया। | |||
{स्पेन की किस गुफा में अंगुलियों से बनाई गई रेखाएं हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
-लास्को | |||
-त्राय फ्रेरर्स | |||
+अल्टामीरा | |||
-ल कम्बारेली | |||
||प्रागैतिहासिक मानव द्वारा अंकित सर्वप्रथम चित्र उत्तरी स्पेन में अल्टामीरा गुफा की गीली दीवाए पर हाथ की अंगुलियों द्वारा बनाई गई फीते के समान टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं हैं। यह गुफा सेंतेंदर से 31 किमी. दूर उत्तरी स्पेन में स्थित है। यहां की गुफाएं सर्वोत्कृष्ट शिल्प का उदाहरण हैं। गुफा की छत कहीं-कहीं 6-7 फीट ऊंची है, अत: पर अंकित चित्रों को देखने हेतु भूमि पर लेटना ठीक रहता है। यही कारण है कि इन्हें सर्वप्रथम 'मारिया सातुओला' नामक एक पांच वर्षीय बालिका ने देखी थी। | |||
{जयलपुरी फ्रेस्को में निहित दीप्त रूप (चमचमाती सतह) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प सही है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-क्योंकि ये चमकदार पत्थर की सरह पर बनाए जाते हैं। | |||
-क्योंकि इन पर वार्निश की जाती है। | |||
+क्योंकि ये अकीक पत्थर से घोटाई करके चमकाए जाते हैं। | |||
-क्योंकि ये धूप में चमकते हैं। | |||
||जयपुरी फ्रेस्को में निहित दीप्त रूप के लिए उन्हें अकीक पत्थर से घोटाई करके चमकाया जाता था। हालांकि जयपुरी फ्रेस्को मार्बल तथा चमकदार टाइल्स पर भी बनाए जाते है, जिन्हें घोटाई की जरूरत नहीं होती थी। | |||
{किस काल में आंतरिक एवं ब्राह्म सज्जा एक साथ करने का विचार किया गया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-13 | |||
|type="()"} | |||
-आधुनिक काल | |||
-रोमनस्क काल | |||
-बाइजेन्टाइन काल | |||
+गोथिक काल | |||
||गोथिक काल में आंतरिक एवं बाह्य सज्जा एक साथ करने का विचार किया गया। इस काल के भवन प्राय: लंबे-पतले खंभों और नुकीले मेहराबों से बने होते थे। खंभों पर मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। | |||
{'कोटा शैली' के उत्कृष्ट भित्ति-चित्र देखने को मिलते हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-48,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
+झाला जी की हवेली में | |||
-आचार्य की हवेली में | |||
-सिटी पैलेस में | |||
-माधव निवास में | |||
||'कोटा शैली' के उत्कृष्ट भित्ति-चित्र' झाला जी की हवेली' में देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त कोटा शैली के भित्ति-चित्र 'राजमहल' तथा 'देवता जी' की हवेली में भी देखने को मिलते हैं। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.राजस्थान शैली के लघु चित्र कागज की मोटी तह (वसली) पर बनाए जाते थे। | |||
.कोटा शैली के पुष्टि मार्ग कथा प्रसंगों को अधिकांश 'रघुनाथ' तथा गोविंद नामक कलाकारों ने चिन्हित किया। | |||
{अकबर ने किस राज्य पर अपनी विजय के स्मारक के रूप में बुलंद दरवाजा बनवाया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-57,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
+गुजरात | |||
-बंगाल | |||
-उड़ीसा | |||
-दिल्ली | |||
||अकबर ने गुजरात विजय (1572-1573 ई.) के उपरांत 1601 ई. में फतेहपुर सीकरी में 'बुलंद दरवाजा' बनवाया था। इसकी ऊंचाई 134 फीट है। यह 42 फीट ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। यह फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद की दक्षिण दीवार में निर्मित है तथा भारत का सबसे ऊंचा और वैभवशाली प्रवेश द्वारा भी है। | |||
{प्रकृति चित्रण को किस शैली के चित्रों में महत्त्व मिला? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-72,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
+पहाड़ी | |||
-राजस्थानी | |||
-मुगल | |||
-आधुनिक | |||
||प्रकृति चित्रण को पहाड़ी चित्र शैली में अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया गया। पहाड़ी शैली के अंतर्गत 'बारहमासा' का अंकन किया गया है, जिसमें चैत्र माह से लेकर फाल्गुन माह तक की प्रकृति की शोभा को केंद्रित करके चित्रण किया गया है। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.पहाड़ी शैली में बसंत माह की शोभा का भी चित्रण प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त पर्वतों, नदी, काले बादल, नीले-आकाश, वन-उपवन, उद्यान तथा वाटिकाओं का मनोहारी अंकन प्राप्त होता है। | |||
{'तैल चित्रण विधि' से चित्र बनाने वाले विख्यात भारतीय चित्रकार थे- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
-नंदलाल बोस | |||
+राजा रवि वर्मा | |||
-अमृता शेरगिल | |||
-अबरीन्द्रनाथ टैगोर | |||
||राजा रवि वर्मा तैल रंग की पेंटिंग के लिए जाने जाते थे। इन्होंने भारतीय जीवन और परंपरा को इस नई कला के द्वारा प्रतिष्ठा दिलाई। इस प्रकार तैल रंगों का आधुनिक चित्रकला में प्रयोग करने का श्रेय सर्वप्रथम राजा रवि वर्मा को जाता है। | |||
{बाइजेंटाइन-कला की श्रेष्ठ दूसरी बड़ी इमारत है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
-डेन का गिर्जा | |||
-रोम का सेंट मारिया मेजिओरी गिर्जा | |||
-पूर्व यूरोप के केटाकौम्ब | |||
+हेगिया सोफिया गिर्जा | |||
||बाइजेन्टाइन-कला की अन्य प्रसिद्ध इमारतें निम्न हैं- गेला प्लेसीडिया सान विताले, सांतासोफिया, एंटमार्क, टोरसेल्लो तथा चर्च ऑफ़ द होली एपोसिल्स आदि। जस्टीनियन ने बहुत सारी इमारतें का निर्माण किया, लेकिन हेगिया सोफिया गिर्जाघर का कार्य उसके महानतम् कार्यों (कलाओं) में से एक है। इस चर्च में मणीकुट्टम शैली से निर्माण कार्य किया गया है बाइजेन्टाइन कला की पहली श्रेष्ठ इमारत रैवेन्न का सान विताले नामक चर्च है। | |||
{उच्च पुनर्जागरण काल के चित्रकार का नाम बताइए- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-105,प्रश्न-8 | |||
|type="()"} | |||
-ज्योत्तो | |||
-फ्रा एंजेलिको | |||
-बोत्तिचेल्ली | |||
+राफेल | |||
||पुनर्जागरण काल के प्रमुख कलाकारों में दिए गए विकल्पों में मैसेचियो तथा पाओलो उचेल्लो दोनों शामिल हैं। उ.प्र. माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने अपने प्रारंभिक उत्तर कुंजी में इसका उत्तर (b) माना था किंतु पतिवर्तित उत्तर-कुंजी में इसे गलत बताया है। चूंकि विकल्प में दो उत्तर सही हैं। अत: दोनों उत्तर सही हैं। | |||
{प्रागैतिहासि काल के चित्रों में सबसे अधिक चित्र किस प्रकार के मिले हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-6,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
-पशुओं के चित्र | |||
+आखेट के चित्र | |||
-मनुष्यों के चित्र | |||
-औजारों के चित्र | |||
||प्रागैतिहासिक काल के चित्रों में सबसे अधिक आखेट के चित्र मिले हैं। आदिम मनुष्य ने सांभर, महिष, गैंडा, हाथी, बारहसिंगा, घोड़ा, खरगोश, सुअर जैसे पशुओं का स्वाभाविकता के साथ अंकन किया है। यह पशु उसने अपने आखेट में देखे थे तथा उसने पन पशुओं की गति और शक्ति पर विजय प्राप्त की थी, इस कारण उसके प्रमुख चित्रण विषय के रूप में पशु जीवन का स्वभाविक था। | |||
{उत्तरी स्पेन में स्थित प्रागैतिहासिक क्षेत्र है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
-सारागोसा | |||
+अल्टामीरा | |||
-ओविएडो | |||
-सेबास्टियन | |||
||उत्तरी स्पेन में कैंटेब्रिया से पिरेन तक तथा पेरिगार्ड एवं वेजन नदी की घाटियों में लगभग 100 चित्र गुफाओं की शृंखला मिली है। उनमें अल्टामीरा, बसांडो, कुवा कास्टिलो, ला पेसीगा, हॉरनॉस डेला पेना, पिंडाल एवं पेना द काउडेमॉ नामक गुफाएं शैलचित्रों के लिए विशेष उल्लेखनीय हैं। | |||
{यूरोपीय फ्रेस्को चित्रों की तकनीक का प्रभाव भारत की किस शैली पर पड़ा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
-बंगाल शैली | |||
+जयपुर फ्रेस्को शैली | |||
-मुगल शैली | |||
-पाल शैली | |||
||यूरोपीय फ्रेस्को चित्रों में दो तकनीक प्रयोग की जाती थी-1. फ्रेस्को बूनो, 2.फ्रेस्को सेक्को। फ्रेस्को बूनो इटली में प्रयोग की जाती थी। इटैलियन फ्रेस्को पेटिंग की तकनीक जयपुरी फ्रेस्को के समान है क्योंकि दोनों ही तकनीक में चित्र गीली सतह पर प्लास्टर करके बनाए जाते थे। जिसे 'फ्रेस्को बूनो' कहते हैं। | |||
{नुकीले मेहराव वाले भवनों का निर्माण किस युग में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-14 | |||
|type="()"} | |||
+गोथिक | |||
-रोमनस्क | |||
-रोमन | |||
-यूनान | |||
||गोथिक काल में आंतरिक एवं बाह्य सज्जा एक साथ करने का विचार किया गया। इस काल के भवन प्राय: लंबे-पतले खंभों और नुकीले मेहराबों से बने होते थे। खंभों पर मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। | |||
{राजस्थान की कोटा शैली के विषयों में सर्वोत्कृष्ट है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-48,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
+पशु | |||
-प्रतिकृति | |||
-रागमाला | |||
-नायिका | |||
||राजस्थान की कोटा शैली के विषयों में सर्वोत्कृष्ट 'शिकार के दृश्य' हैं जिसमें कलाकारों ने दुर्गम वनों के अद्भुत दृश्यों को चित्रित किया है, साथ ही पशुओं के चित्रण को प्रमुखता दी गई है। इन पशुओं में शेर, चीता, सूअर तथा अन्य जानवर प्रमुख हैं। 'हाथियों की लड़ाई' का चित्र कोटा शैली का एक महत्त्वपूर्ण चित्र है। कोटा शैली में हल्के हरे, पीले और नीले रंग का बहुतायत प्रयोग हुआ है। | |||
{बुलंद दरवाजा की ऊंचाई है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-57,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
-150 फीट | |||
-234 फीट | |||
+134 फीट | |||
-124 फीट | |||
||अकबर ने गुजरात विजय (1572-1573 ई.) के उपरांत 1601 ई. में फतेहपुर सीकरी में 'बुलंद दरवाजा' बनवाया था। इसकी ऊंचाई 134 फीट है। यह 42 फीट ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। यह फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद की दक्षिण दीवार में निर्मित है तथा भारत का सबसे ऊंचा और वैभवशाली प्रवेश द्वारा भी है। | |||
{पहाड़ी चित्रों में किस रंगों का प्रयोग किया गया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-72,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
+गहरे | |||
-हल्के | |||
-काले | |||
-सफेद | |||
||गुलेर क्षेत्र में प्रसूत होकर चारों ओर फैली पहाड़ी शैली में बने चित्रों का विषय रामायण, महाभारत, राजदरबार, व्यक्ति चित्र आदि रहा है। पहाड़ी शैली के चित्रों में गहरे रंगों का प्रयोग किया गया है। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.पहाड़ी शैली का जन्म 1760 ई. में गुलेर में हुआ था। | |||
.पहाड़ी शैली पर मुगल एवं राजपूत शैली का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। | |||
.पहाड़ी शैली में बने चित्रों की मुद्राओं पर प्रेम और अनुराग की स्पष्ट अभिव्यक्ति है। | |||
.इस शैली के चित्रों की रेखाओं का गतिमान प्रवाह है। | |||
{तैल विधा में कार्य करने वाले प्रथम भारतीय चित्रकार हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
||राजा रवि वर्मा तैल रंग की पेंटिंग के लिए जाने जाते थे। इन्होंने भारतीय जीवन और परंपरा को इस नई कला के द्वारा प्रतिष्ठा दिलाई। इस प्रकार तैल रंगों का आधुनिक चित्रकला में प्रयोग करने का श्रेय सर्वप्रथम राजा रवि वर्मा को जाता है। | |||
{बाइजेन्टाइन-कला में पीला रंग प्रतीक है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-सूर्य का | |||
-पीले फूल का | |||
-आग का | |||
+स्वर्ग का | |||
||भारतीय सौंदर्भ-दर्शन के रंगों के प्रतीकात्मक प्रयोग पर पूरा जोर दिया गया हैं। सफेद रंग शांति और सात्विकता का प्रतीक है। लाल शौर्य और वीरता का, काला बुराइयों एवं मानसिक वृत्तियों का। इसी तरह प्राचीन ईसाई एवं मध्यकालीन बाइजेंटाइन ईसाई कला में पीला रंग स्वर्ग का प्रतीक है। अंगूर की बेल 'पुनर्जीवन' की और मछली, 'पवित्रता' की। अत: प्रतीकों और चिन्हों को कला की भाषा में विशेषकर प्राचीन और मध्यकालीन युगों में जोर दिया गया है। इधर हाल में 'मॉर्डन आर्ट' में भी यदा-कदा इस प्रकार के प्रतीकों की पुनरावृत्ति शुरू हुई है। | |||
{माइकेल एंजेलो किसके समय में हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-105,प्रश्न-9 | |||
|type="()"} | |||
-फासिज्म | |||
-घनचित्रण शैली | |||
+पुनर्जागरण | |||
-आभास चित्रण | |||
||माइकेल एंजेलो पुनर्जागरण या चरम पुनरुत्थानवादी (High Renais-sance) चित्रकार था। | |||
{गोथिक शैली के स्थापत्य का जन्म इससे हुआ- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-15 | |||
|type="()"} | |||
-नाट्रेडम गिर्जा से | |||
+सेंट डेनिस गिर्जा से | |||
-एमिएंस गिर्जा से | |||
-रीम्स गिर्जा से | |||
||गोथिक शैली के स्थापत्य का आरंभ 12वीं शताब्दी में पेरिस के बाहर निर्मित सेंट डेनिस चर्च से हुआ। | |||
{कोटा स्कूल की प्रमुख विशेषता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-48,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-राजकीय दृश्य | |||
-युद्ध दृश्य | |||
+शिकार दृश्य | |||
-पोर्ट्रेचर दृश्य | |||
||राजस्थान की कोटा शैली के विषयों में सर्वोत्कृष्ट 'शिकार के दृश्य' हैं जिसमें कलाकारों ने दुर्गम वनों के अद्भुत दृश्यों को चित्रित किया है, साथ ही पशुओं के चित्रण को प्रमुखता दी गई है। इन पशुओं में शेर, चीता, सूअर तथा अन्य जानवर प्रमुख हैं। 'हाथियों की लड़ाई' का चित्र कोटा शैली का एक महत्त्वपूर्ण चित्र है। कोटा शैली में हल्के हरे, पीले और नीले रंग का बहुतायत प्रयोग हुआ है। | |||
{मुगल शैली की उत्पत्ति किन दो शैलियों के सम्मिलन से हुई- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-57,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-बंगाली एवं पहाड़ी | |||
-कांगड़ा एवं दक्खिनी | |||
+राजस्थानी एवं ईरानी | |||
-ईरानी एवं बंगाली | |||
||मुगल शैली भारतीय (राजस्थानी) एवं पर्शियन (ईरानी) शैली के सम्मिश्रण से उत्पन्न हुई। चूंकि मुगलों का प्रभाव सबसे पहले उत्तरी भारत के क्षेत्रों पर हुआ जहां पर पहले से ही राजस्थानी चित्रकला प्रचलन में थी और मुगलों ने ईरानी शैली के चित्रकारों को पहले से प्रश्रय दिया था। ऐसे में इन दोनों शैलियों के मिश्रण से इंडो-पर्शियन शैली आगे चलकर मुगल शैली के रूप में विकसित हुई। | |||
{'मौला राम' कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-72,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-मुगल चित्रकार | |||
-राजपूत चित्रकार | |||
+पहाड़ी चित्रकार | |||
-नेपाली चित्रकार | |||
||मौला राम एक पहाड़ी चित्रकार थे। उनके द्वारा चित्रित प्रसिद्ध चित्र 'गोवर्धन धारण' है। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.प्रदीप शाह (1717-1772 ई.) के समय गढ़वाल चित्रशैली की उन्नत परंपरा का आरंभ हुआ। | |||
.सुदर्शन शाह (1815-1850 ई.) के समय में गढ़वाली चित्र शैली के कलाकारों को प्रश्रय मिला। | |||
{भारतीय की आधुनिक चित्रकला में तैल रंगों का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-90,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-रबींद्रनाथ टैगोर | |||
+राजा रवि वर्मा | |||
-बेन्द्रे | |||
-के.के. हेब्बर | |||
||राजा रवि वर्मा तैल रंग की पेंटिंग के लिए जाने जाते थे। इन्होंने भारतीय जीवन और परंपरा को इस नई कला के द्वारा प्रतिष्ठा दिलाई। इस प्रकार तैल रंगों का आधुनिक चित्रकला में प्रयोग करने का श्रेय सर्वप्रथम राजा रवि वर्मा को जाता है। | |||
{बाइजेंटाइन-कला में छतों और दीवारों को किस विधि से अलंकृत किया गया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-102,प्रश्न-11 | |||
|type="()"} | |||
+मणिकुट्टिम | |||
-वॉश | |||
-फ्रेस्को-बूनो | |||
-फ्रेस्को-सेक्को | |||
||बाइजेंटाइन-कलाकारों ने रैवेन्ना के सान विताले के महामंदिर में पच्चीकारी के साथ ही दीवारों में स्थान-स्थान पर रंगीन कांच की खिड़कियां, मेहराब, गुंबद अर्द्धवृत्ताकार गर्भगृह आदि के साथ-साथ छतों को विभिन्न प्रकार के मणिकुट्टिम चित्रों के द्वारा अलंकृत किया है। | |||
{सिस्टीन चैपेल चित्र किसका बनाया हुआ है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-105,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-राफेल | |||
+माइकेल एंजेलो | |||
-लियोनार्दो | |||
-कांसटेबल | |||
||सिस्टीन चैपेल की छत (Sistine Ctapel celling) का चित्र माइकेल एंजेलो द्वारा 1508-12 ई. के मध्य बनाया गया। छत के बीच में उत्पत्ति की किताब (Book of Genesis) के 9 चित्रों को चित्रित किया है जिसमें आदम की उत्पत्ति (The Creanion of adam) सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यहां भित्तिचित्र भी है जो माइकेल एंजेलो द्वारा चित्रित है। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
.सिस्टीन चैपल, अपोस्टोलिक पैलेस (वेटिकन सिटी में पोप का आधिकारिक निवास) में एक बड़ा तथा प्रसिद्ध चैपल है। | |||
{प्रागैतिहासिक चित्र प्रधानतया किस विषय से संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-6,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
-धर्म संबंधी | |||
+आखेट | |||
-युद्ध संबंधी | |||
-प्रकृति संबंधी | |||
||प्रागैतिहासिक काल के चित्रों में सबसे अधिक आखेट के चित्र मिले हैं। आदिम मनुष्य ने सांभर, महिष, गैंडा, हाथी, बारहसिंगा, घोड़ा, खरगोश, सुअर जैसे पशुओं का स्वाभाविकता के साथ अंकन किया है। यह पशु उसने अपने आखेट में देखे थे तथा उसने पन पशुओं की गति और शक्ति पर विजय प्राप्त की थी, इस कारण उसके प्रमुख चित्रण विषय के रूप में पशु जीवन का स्वभाविक था। | |||
{उत्तरी स्पेन में प्रागैतिहासिक गुफा स्थित है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-17,प्रश्न-10 | |||
|type="()"} | |||
+अल्टामीरा में | |||
-लास्का में | |||
-नियाऊ में | |||
-फोंट-डी-गॉम में | |||
||उत्तरी स्पेन में कैंटेब्रिया से पिरेन तक तथा पेरिगार्ड एवं वेजन नदी की घाटियों में लगभग 100 चित्र गुफाओं की शृंखला मिली है। उनमें अल्टामीरा, बसांडो, कुवा कास्टिलो, ला पेसीगा, हॉरनॉस डेला पेना, पिंडाल एवं पेना द काउडेमॉ नामक गुफाएं शैलचित्रों के लिए विशेष उल्लेखनीय हैं। | |||
{इटैलियन 'फ्रेस्को पेंटिंग' की तकनीक किसके समान है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-37,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-अजंता भित्ति चित्र | |||
-बाघ फ्रेस्को | |||
-पहाड़ी चित्र | |||
+जयपुरी फ्रेस्को | |||
||यूरोपीय फ्रेस्को चित्रों में दो तकनीक प्रयोग की जाती थी-1. फ्रेस्को बूनो, 2.फ्रेस्को सेक्को। फ्रेस्को बूनो इटली में प्रयोग की जाती थी। इटैलियन फ्रेस्को पेटिंग की तकनीक जयपुरी फ्रेस्को के समान है क्योंकि दोनों ही तकनीक में चित्र गीली सतह पर प्लास्टर करके बनाए जाते थे। जिसे 'फ्रेस्को बूनो' कहते हैं। | |||
</quiz> | </quiz> | ||
|} | |} | ||
|} | |} |
11:15, 29 मार्च 2017 का अवतरण
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