"प्रयोग:कविता बघेल 9": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कविता बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
कविता बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 174: | पंक्ति 174: | ||
{किसने कहा "राज्य पृथ्वी पर ईश्वर की गति है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-13 | {किसने कहा "[[राज्य]] [[पृथ्वी]] पर [[ईश्वर]] की गति है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-13 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-बेथम | -बेथम | ||
-जे.एस. मिल | -जे.एस. मिल | ||
-कार्ल मार्क्स | -[[कार्ल मार्क्स]] | ||
+हीगल | +हीगल | ||
||हीगल 19वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध का जर्मन दार्शनिक था। इसे आदर्शवाद का प्रमुख उन्नायक माना जाता है। आदर्शवाद के अनुसार, इस जगत की समस्त वस्तुएं और सामाजिक संस्थाएं विचार | ||हीगल 19वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध का जर्मन दार्शनिक था। इसे आदर्शवाद का प्रमुख उन्नायक माना जाता है। आदर्शवाद के अनुसार, इस जगत की समस्त वस्तुएं और सामाजिक संस्थाएं विचार तत्त्व की अभिव्यक्ति है। इसी संदर्भ में हीगल ने कहा है कि "राज्य पृथ्वी पर ईश्वर की गति है।" इनके अनुसार, राज्य आत्मा के उच्चतम विकास का प्रतीक है। यह ईश्वर की महायात्रा का अंतिम पड़ाव है। | ||
{समाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से | {समाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से किस प्रकार के कार्य करने का प्रयत्न करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न-13 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-राज्य के इतिहासिक उद्गम का पता लगाना | -[[राज्य]] के इतिहासिक उद्गम का पता लगाना | ||
+राजनीतिक बाध्यता के आधार की व्याख्या करना | +राजनीतिक बाध्यता के आधार की व्याख्या करना | ||
-यथास्थिति का औचित्य स्थापित करना | -यथास्थिति का औचित्य स्थापित करना | ||
-क्रांति द्वारा समाज में आमूल परिवर्तन लाना | -क्रांति द्वारा समाज में आमूल परिवर्तन लाना | ||
||सामाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से राजनीतिक बाध्यता के आधार की व्याख्या करता है। राजनीतिक बाध्यता का सामान्यत: अर्थ राजा के | ||सामाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से राजनीतिक बाध्यता के आधार की व्याख्या करता है। राजनीतिक बाध्यता का सामान्यत: अर्थ राजा के क़ानूनों का नैतिक रूप से पालन करने से लगाया जाता है। जॉन लॉक ने 'टू ट्रीटाइसिस ऑफ़ गवर्नमेंट' में राजनीतिक बाध्यता की व्याख्या करते हुए बताया कि यह व्यक्ति की स्वयं की कल्पना व सहमति है। रूसो ने भी सामाजिक समझौता सिद्धांत में बताया है कि व्यक्ति अपने स्वयं के सहमति प्रदान किए हुए राज्य के नियमों के पालन के लिए बाध्य है। | ||
{राजनीतिक न्याय से तात्पर्य है | {राजनीतिक न्याय से क्या तात्पर्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-3 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों | +सभी को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों | ||
-समान आर्थिक अधिकार प्राप्त हों | -सभी को समान आर्थिक अधिकार प्राप्त हों | ||
-समान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो | -सभी को समान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो | ||
-हर प्रकार के भेद-भाव से रहित समान सुविधा प्राप्त हो। | -सभी को हर प्रकार के भेद-भाव से रहित समान सुविधा प्राप्त हो। | ||
|| | ||राजव्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। सभी व्यक्तियों को समान अवसर, समान रूप से प्राप्त होने चाहिएं तथा राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा सभी व्यक्तियों की लाभ प्राप्त भी सुनिश्चित होनी चाहिए, यही राजनीतिक न्याय है। इसकी प्राप्ति स्वाभाविक रूप से एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत ही की जा सकती है, जिसका आधार (स्त्रोत) संविधान होता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1) राजनीतिक न्याय प्राप्ति के मुख्य साधन हैं- वयस्क मताधिकार, सभी व्यक्तियों को भाषण- विचार, सम्मेलन, संगठन आदि नागरिक स्वतंत्रताएं, प्रेस की स्वतंत्रता, [[न्यायपालिका]] की स्वतंत्रता, भेद-भाव के बिना सार्वजनिक पदों हेतु सभी को समान अवसर आदि। (2) राजनीतिक न्याय की धारणा में यह तथ्य निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होगा। | ||
{ | {लेसेज़ फेयर का क्या अभिप्राय है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-13 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-धर्मनिरपेक्ष | -[[धर्मनिरपेक्षता|धर्मनिरपेक्ष]] | ||
-समाजवाद | -समाजवाद | ||
+व्यक्ति को अकेला छोड़ दो | +व्यक्ति को अकेला छोड़ दो | ||
-इनमें से सभी | -इनमें से सभी | ||
||आमतौर पर समझा जाता है कि यह पद 18वीं शताब्दी में फ्रांस के एक व्यक्ति जी.सी.एम. बिसेट द गोर्ने की देन है। व्यापार पर लगी अनेक पाबंदियों से तंग आकर एक दिन उनके मुंह से ' | ||आमतौर पर समझा जाता है कि यह पद 18वीं शताब्दी में [[फ्रांस]] के एक व्यक्ति जी.सी.एम. बिसेट द गोर्ने की देन है। व्यापार पर लगी अनेक पाबंदियों से तंग आकर एक दिन उनके मुंह से 'लेसेज़ फेर' अर्थात 'चीजों को अपने हाल पर छोड़ दो' निकल पड़ा। व्यक्ति- वादियों ने राज्य के हस्तक्षेप से बचने के लिए 'व्यक्ति को अकेला छोड़ दो' के रूप में इसका प्रयोग किया। | ||
{किसने कहा था कि राज्य को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-3 | {किसने कहा था कि [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-3 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-प्लेटो | -[[प्लेटो]] | ||
-मार्क्स | -[[कार्ल मार्क्स]] | ||
+एडम स्मिथ | +[[एडम स्मिथ]] | ||
-लॉक | -जॉन लॉक | ||
||नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक/विचारक एडम स्मिथ ने राज्य को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का समर्थन किया। एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में निजी | ||नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक/विचारक [[एडम स्मिथ]] ने [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का समर्थन किया। एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में निजी स्वामित्त्व के सिद्धांत का समर्थन करते हुए 'अहस्तक्षेप का सिद्धांत' प्रतिपादित किया। इसके अनुसार, व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों में राज्य का हस्तक्षेप न होने पर मनुष्य में कार्य करने की प्रेरणा अधिक होगी जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अधिक से अधिक संपदा उत्पन्न करेगा और वह अंतत: समाज के हित में होगी। स्मिथ के अनुसार "सच्ची स्वतंत्रता वाणिज्य से ही संभव है।" | ||
{निम्न में से कौन लोकतंत्र को 'स्वीकृत पागलपन' कहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-4 | {निम्न में से कौन लोकतंत्र को 'स्वीकृत पागलपन' कहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-4 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
||टेलीरैंड के अनुसार, "लोकतंत्र स्वीकृत पागलपन है।" उन्होंने लोकतंत्र को 'दुष्ट लोगों का कुलीनतंत्र' भी कहा है। | -ल्यूडोविकी | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | -[[कार्ल मार्क्स]] | ||
लोकतंत्र की आलोचना करने वाले अन्य विद्वानों के कथन निम्नलिखित हैं- | +टेलीरैंड | ||
-प्रौंधा | |||
||टेलीरैंड के अनुसार, "लोकतंत्र स्वीकृत पागलपन है।" उन्होंने लोकतंत्र को 'दुष्ट लोगों का कुलीनतंत्र' भी कहा है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-लोकतंत्र की आलोचना करने वाले अन्य विद्वानों के कथन निम्नलिखित हैं- (1) [[प्लेटो]], [[अरस्तू]] के अनुसार, "लोकतंत्र, भीड़तंत्र या मूर्खतंत्र या विकृत व्यवस्था है।" (2) कार्लाइल के अनुसार, "लोकतंत्र लाखों मूर्खों की सरकार है।" (3) लुडोविसी के अनुसार, "लोकतंत्र का अर्थ है [[मृत्यु]]।" (3) वाल्टर वेल के अनुसार, "लोकतंत्र भ्रष्ट प्लेटोवाद है।" (4) एंथनी गिडिन्स के अनुसार, "लोकतंत्र में भावनात्मकता एवं बहुमत अत्याधिकता देखी जाती है।" (4) वार्कर के अनुसार, "लोकतंत्र जुगाड़ों का शासन है।" | |||
{ | {माओ के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की भूमिका कैसी होगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-13 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-प्रतिक्रियात्मक | -प्रतिक्रियात्मक | ||
-शून्य | -शून्य | ||
+महत्त्वपूर्ण | +महत्त्वपूर्ण | ||
-महत्त्वहीन | -महत्त्वहीन | ||
||माओ के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। माओ किसानों को साथ लेकर मार्क्सवदी क्रांति की सफलता के लिए संघर्ष करता रहा। चीन के गांवों में विद्रोही किसानों को एकजुट करते हुए उसने चीन सोवियत रिपब्लिक की नींव | ||माओ के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। माओ किसानों को साथ लेकर मार्क्सवदी क्रांति की सफलता के लिए संघर्ष करता रहा। [[चीन]] के गांवों में विद्रोही किसानों को एकजुट करते हुए उसने चीन सोवियत रिपब्लिक की नींव रखी। | ||
{"किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस-संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में | {"किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस-संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्त-संपन्न संस्था समझना असंगत है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-13 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-डायसी | -डायसी | ||
पंक्ति 240: | पंक्ति 236: | ||
-मेटलैंड | -मेटलैंड | ||
-लॉर्ड ब्राइस | -लॉर्ड ब्राइस | ||
||लास्की का कथन है कि "वर्तमान | ||लास्की का कथन है कि "वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि संसद को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्ता-संपन्न समझना असंगत है।" | ||
{हेगेल ने सभ्य समाज को देखा | {हेगेल ने सभ्य समाज को किस रूप में देखा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-78,प्रश्न-92 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-विशिष्टता के साकार रूप में | -विशिष्टता के साकार रूप में | ||
पंक्ति 250: | पंक्ति 246: | ||
||हेगेल ने सभ्य समाज को सार्वभौमिकता के साकार के रूप में देखा। इनके अनुसार सार्वभौमिकता अथवा विश्वात्मा का साकार रूप ही राज्य है। पहले यह विश्वात्मा जड़ में फिर धीरे-धीरे समाज में अंतत: राज्य का रूप ले लेती है। हेगेल आदर्शवादी सिद्धांत का प्रवर्तक है। | ||हेगेल ने सभ्य समाज को सार्वभौमिकता के साकार के रूप में देखा। इनके अनुसार सार्वभौमिकता अथवा विश्वात्मा का साकार रूप ही राज्य है। पहले यह विश्वात्मा जड़ में फिर धीरे-धीरे समाज में अंतत: राज्य का रूप ले लेती है। हेगेल आदर्शवादी सिद्धांत का प्रवर्तक है। | ||
{"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन है | {"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-3 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+सीले | +सीले | ||
-प्लेटो | -[[प्लेटो]] | ||
-अरस्तू | -[[अरस्तू]] | ||
-लॉक का | -जॉन लॉक | ||
||"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के कानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। | |||
{"राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का पदक्षेप है" किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-14 | {"[[राज्य]] [[पृथ्वी]] पर [[ईश्वर]] का पदक्षेप है" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-14 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -काण्ट | ||
+हीगल | +हीगल | ||
-रूसो | -रूसो | ||
-बोसांके | -बोसांके | ||
||हीगल के अनुसार, राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का अवतरण (पदक्षेप) है। हीगल ने अपनी पुस्तक "The Philosophy of Rights" में राज्य को मानवीय चेतना का विराट रूप कहा है। हीगल के अनुसार, राज्य चेतना की साकार प्रतिमा है इसलिए राज्य का | ||हीगल के अनुसार, राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का अवतरण (पदक्षेप) है। हीगल ने अपनी पुस्तक "The Philosophy of Rights" में राज्य को मानवीय चेतना का विराट रूप कहा है। हीगल के अनुसार, राज्य चेतना की साकार प्रतिमा है इसलिए राज्य का क़ानून वस्तुपरक चेतना का मूर्त रूप है। अत: जो कोई क़ानून का पालन करता है, वही स्वतंत्र है। इस प्रकार हीगल ने निरंकुश राज्य का समर्थन करते हुए व्यक्ति को विरोध का अधिकार नहीं दिया। मुसोलिनी हीगल के इसी विचार से प्रभावित थे, इसलिए हीगल को फॉसीवाद का आध्यात्मिक गुरु कहा जाता है। | ||
{निम्न वक्तव्यों में से कौन-सा वक्तव्य राज्य की उत्पत्ति के विषय में मार्क्सवादी सिद्धांत को स्पष्ट करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-14 | {निम्न वक्तव्यों में से कौन-सा वक्तव्य राज्य की उत्पत्ति के विषय में मार्क्सवादी सिद्धांत को स्पष्ट करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-14 | ||
पंक्ति 275: | पंक्ति 271: | ||
+राज्य की उत्पत्ति उत्पादन के शोषणपरक संबंधों के रक्षार्थ हुई | +राज्य की उत्पत्ति उत्पादन के शोषणपरक संबंधों के रक्षार्थ हुई | ||
-राज्य की उत्पत्ति वर्गविहीन समाज के उद्देश्य से हुई | -राज्य की उत्पत्ति वर्गविहीन समाज के उद्देश्य से हुई | ||
||मार्क्सवाद के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति किसी नैतिक की सिद्धि के लिए नहीं हुई है बल्कि यह एक कृत्रिम संस्था है, जिसकी उत्पत्ति संपत्तिशाली-वर्ग के हितों की सुरक्षा के लिए हुई है। राज्य एक ऐसी संस्था है जो एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के दमन और शोषण के लिए स्थापित की गई है। इसमें उत्पादन के साधनों पर पूंजीपति | ||मार्क्सवाद के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति किसी नैतिक की सिद्धि के लिए नहीं हुई है बल्कि यह एक कृत्रिम संस्था है, जिसकी उत्पत्ति संपत्तिशाली-वर्ग के हितों की सुरक्षा के लिए हुई है। राज्य एक ऐसी संस्था है जो एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के दमन और शोषण के लिए स्थापित की गई है। इसमें उत्पादन के साधनों पर पूंजीपति व्यक्तियों का अधिकार बना रहता है। इसलिए मार्क्स राज्यविहीन समाज की स्थापना की वकालत करता है। | ||
{राल्स की न्याय की धारणा है | {जॉन राल्स के की न्याय की धारणा क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-4 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-समाजवादी | -समाजवादी | ||
पंक्ति 283: | पंक्ति 279: | ||
-समुदायवादी | -समुदायवादी | ||
+उदारवादी | +उदारवादी | ||
||जॉन राल्स (1921-2002) 20वीं सदी के उदारवादी परम्परा के अमेरिकी विचारक हैं। इनकी पुस्तक (थ्योरी ऑफ़ जस्टिस) न्याय की अवधारणा के विकास में महत्त्वपूर्ण है। इसमें इन्होंने आज के उदारवादी समतावादी राज्य के अनुरूप न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इनका न्याय सिद्धान्त हॉब्स, लॉक, रूसो की भांति सामाजिक समझौते पर आधारित | ||जॉन राल्स ([[1921]]-[[2002]]) 20वीं सदी के उदारवादी परम्परा के अमेरिकी विचारक हैं। इनकी पुस्तक (थ्योरी ऑफ़ जस्टिस) न्याय की अवधारणा के विकास में महत्त्वपूर्ण है। इसमें इन्होंने आज के उदारवादी समतावादी [[राज्य]] के अनुरूप न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इनका न्याय सिद्धान्त हॉब्स, लॉक, रूसो की भांति सामाजिक समझौते पर आधारित है। इनके न्याय सिद्धान्त को शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय सिद्धांत कहा जाता हैं इनके अनुसार राज्य का कार्य केवल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा करना नहीं है बल्कि सबसे अधिक जरुरत मंद लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक आदर्श बना कर मूल पदार्थों (वेतन, संपत्ति, अवसर, अधिकार, स्वतंत्रता, तथा स्वास्थ्य, शक्ति, क्षमता) को पुनर्वितरण द्वारा उपलब्ध कराना है। राल्स के अनुसार न्याय पुरस्कार का सिद्धांत न होकर क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है। | ||
{"राजनीति के बिना इतिहास निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14 | {"राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-सेबाइन | -सेबाइन | ||
पंक्ति 291: | पंक्ति 287: | ||
-बार्कर | -बार्कर | ||
-वेपर | -वेपर | ||
||इतिहास में व्यक्ति, समाज और राज्य के भूतकालीन जीवन का लेखा- जोखा होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन। इन दोनों के बीच संबंधों को दर्शाते हुए सीले ने कहा है कि "राजनीति के बिना इतिहास निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" सीले पुन: कहते है, "राजनीति उच्छृंखल हो जाती है, यदि इतिहास द्वारा उसे उदार नहीं बनाया जाता तथा इतिहास कोरा साहित्य | ||इतिहास में व्यक्ति, समाज और [[राज्य]] के भूतकालीन जीवन का लेखा-जोखा होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन। इन दोनों के बीच संबंधों को दर्शाते हुए सीले ने कहा है कि "राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" सीले पुन: कहते है, "राजनीति उच्छृंखल हो जाती है, यदि इतिहास द्वारा उसे उदार नहीं बनाया जाता तथा इतिहास कोरा साहित्य रह जाता है, यदि राजनीति से उसका विच्छेद हो जाता है।" | ||
{संपत्ति के अधिकार की मांग किसने की? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-4 | {संपत्ति के अधिकार की मांग किसने की? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-4 | ||
पंक्ति 299: | पंक्ति 295: | ||
-समाजवाद | -समाजवाद | ||
-गांधीवाद | -गांधीवाद | ||
||उदारवाद के प्रणेता जॉन लॉक ने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना और कहा कि इन्हीं अधिकारों की सुरक्षा के लिए राज्य की उत्पत्ति हुई और उसका | ||उदारवाद के प्रणेता जॉन लॉक ने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना और कहा कि इन्हीं अधिकारों की सुरक्षा के लिए [[राज्य]] की उत्पत्ति हुई और उसका अस्तित्त्व बना हुआ है। लॉक इन अधिकारों में सबसे महत्त्वपूर्ण 'संपत्ति के अधिकार' को मानता है। | ||
{निम्न में से किसने लोकतंत्र को 'एक जीवन रैली' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-5 | {निम्न में से किसने लोकतंत्र को 'एक जीवन रैली' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-एडम स्मिथ | -[[एडम स्मिथ]] | ||
-इ. बर्क | -इ. बर्क | ||
- | -हेरोल्ड लास्की | ||
+टी.वी. स्मिथ | +टी.वी. स्मिथ | ||
||टी.वी. स्मिथ 'लोकतंत्र को एक जीवन-शैली के रूप में' परिभाषित करते हैं। इसके अतिरिक्त मैकाइवर ने भी लोकतंत्र को एक जीवन पद्धति के रूप में परिभाषित किया हैं। | ||टी.वी. स्मिथ 'लोकतंत्र को एक जीवन-शैली के रूप में' परिभाषित करते हैं। इसके अतिरिक्त मैकाइवर ने भी लोकतंत्र को एक जीवन पद्धति के रूप में परिभाषित किया हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) ऑस्टिन, डायसी, लावेल, ब्राइस आदि विचारक लोकतंत्र को सरकार के निर्वाचन की पद्धति के रूप में देखते हैं। (2) मैक्फर्सन के अनुसार, "लोकतंत्र चयन की ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोक निर्णय लिए जाते हैं।" (3) लॉरेन्स लावेल के अनुसार, "लोकतंत्र में कोई यह शिकायत नहीं कर सकता कि उसे सुनवाई का मौका नहीं मिला।" (4) वाल्टर बेजहाट के अनुसार, "लोकतंत्र, लोकशक्ति को भ्रमित करने का सबसे बड़ा तरीक़ा है। यह भ्रम इसलिए स्थापित होता है क्योंकि लोकतंत्र में वाद-विवाद एवं सहिष्णुता के लक्षण हैं जो लोगों को अधिकारों के भ्रमजाल में फंसाते हैं।" | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{'लोक युद्ध' की संकल्पना विकसित करने का श्रेय जाता है | {'लोक युद्ध' की संकल्पना विकसित करने का श्रेय किसको जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-14 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-लेनिन | -व्लादिमीर लेनिन | ||
-रूसो | -रूसो | ||
-ग्राम्सी | -ग्राम्सी | ||
+माओत्से-तुंग | +माओत्से-तुंग | ||
||'लोक युद्ध' का सिद्धांत माओत्से-तुंग की अपनी विशिष्ट एवं मौलिक संकल्पना है। इसके अंतर्गत माओ ने सेना व हथियारों की तुलना में जनता को अधिक महत्त्व प्रदान किया। माओ के अनुसार, युद्ध में हथियारों का अपना महत्त्व है पर वे निर्णायक तत्त्व नहीं हैं। निर्णय मनुष्यों द्वारा किया जाना है, जड़ वस्तुओं के द्वारा नहीं। लोक युद्ध को सफल बनाने के लिए वह गुरिल्ला युद्ध या छापामार युद्ध पर अत्यधिक बल देता है। | ||'लोक युद्ध' का सिद्धांत माओत्से-तुंग की अपनी विशिष्ट एवं मौलिक संकल्पना है। इसके अंतर्गत माओ ने सेना व हथियारों की तुलना में जनता को अधिक महत्त्व प्रदान किया। माओ के अनुसार, युद्ध में हथियारों का अपना महत्त्व है पर वे निर्णायक तत्त्व नहीं हैं। निर्णय मनुष्यों द्वारा किया जाना है, जड़ वस्तुओं के द्वारा नहीं। लोक युद्ध को सफल बनाने के लिए वह [[गुरिल्ला युद्ध]] या छापामार युद्ध पर अत्यधिक बल देता है। | ||
{मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14 | {मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14 | ||
पंक्ति 328: | पंक्ति 319: | ||
-शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था | -शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था | ||
-दृढ़ द्विध्रुवीय व्यवस्था | -दृढ़ द्विध्रुवीय व्यवस्था | ||
||अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने, उसके विश्लेषण एवं भविष्य की चुनौतियों के समाधान के लिए मॉर्टन कैप्लान की 1957 की कृति System and Process in International Politics | ||अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने, उसके विश्लेषण एवं भविष्य की चुनौतियों के समाधान के लिए मॉर्टन कैप्लान की [[1957]] की कृति System and Process in International Politics विश्व राजनीति का संरचनात्मक विश्लेषण के रूप में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था। कैप्लन ने अपनी इस पुस्तक में अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार के निम्न छ: मॉडल प्रस्तुत किए हैं- 1. शक्ति संतुलन व्यवस्थ, 2. ढीली द्विध्रुवीय व्यवस्था, 3. कठोर द्विध्रुवीय व्यवस्था, 4. सार्वभौमिक व्यवस्था | ||
1.शक्ति संतुलन व्यवस्थ, 2.ढीली द्विध्रुवीय व्यवस्था, 3.कठोर द्विध्रुवीय व्यवस्था, 4.सार्वभौमिक व्यवस्था | 5. पदसोपानीय व्यवस्था, 6. इकाई निषेधाधिकार व्यवस्था | ||
5.पदसोपानीय व्यवस्था, 6.इकाई निषेधाधिकार व्यवस्था | |||
{राजनीतिक संस्कृति का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-93 | {राजनीतिक संस्कृति का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-93 | ||
पंक्ति 337: | पंक्ति 327: | ||
-सिडनी वेब | -सिडनी वेब | ||
+आमंड | +आमंड | ||
- | -लासवेल | ||
||वर्ष 1963 में अमेरिकी राजनीति वैज्ञानिक आमंड ने राजनीतिक संस्कृति का सबसे पहले प्रयोग किया। राजनीतिक संस्कृति का तात्पर्य संस्कृति के उन पक्षों से है जो राजनीति को प्रभावित करते हैं। | ||वर्ष [[1963]] में अमेरिकी राजनीति वैज्ञानिक आमंड ने राजनीतिक संस्कृति का सबसे पहले प्रयोग किया। राजनीतिक संस्कृति का तात्पर्य संस्कृति के उन पक्षों से है जो राजनीति को प्रभावित करते हैं। | ||
{किसने कहा स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-4 | {किसने कहा स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-4 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-बैंथम | -बैंथम | ||
-लॉक | -जॉन लॉक | ||
-कांट | -कांट | ||
+सीले | +सीले | ||
||''स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के कानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। | |||
{निम्न में किस विद्वान ने 'समाज को ईंट तथा [[राज्य]] को सीमेंट' कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-15 | |||
{निम्न में किस विद्वान ने 'समाज को ईंट तथा राज्य को सीमेंट' कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-15 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+आशीर्वादम | +आशीर्वादम | ||
-गिलक्रिस्ट | -[[गिलक्राइस्ट|गिलक्रिस्ट]] | ||
-गेटेल | -गेटेल | ||
-गार्नर | -गार्नर | ||
||आशीर्वादम ने समाज को ईंट तथा राज्य को सीमेंट कहा है। डॉ आशीर्वादम ने अपनी पुस्तक 'राजनीति विज्ञान' में 'राज्य का स्वरूप' अध्याय में राज्य और समाज के मध्य संबंधो पर विस्तृत चर्चा किया है। इसमें टिप्पणी करते हुए इन्होंने लिखा है कि ईटों की दीवार में ईटें यदि समाज है तो उनके बीच लगी सीमेंट राज्य, जो ईटों | ||आशीर्वादम ने समाज को ईंट तथा राज्य को सीमेंट कहा है। डॉ. आशीर्वादम ने अपनी पुस्तक 'राजनीति विज्ञान' में 'राज्य का स्वरूप' अध्याय में राज्य और समाज के मध्य संबंधो पर विस्तृत चर्चा किया है। इसमें टिप्पणी करते हुए इन्होंने लिखा है कि ईटों की दीवार में ईटें यदि समाज है तो उनके बीच लगी सीमेंट राज्य, जो ईटों को अपनी जगह पर बनाये रखती है ताकि दीवार ज्यों की त्यों कायम रहे। इसी प्रकार राज्य एवं समाज के मध्य संबंधों पर बार्कर ने लिखा है कि "समाज राज्य द्वारा कायम रखा जाता है औद यदि समाज इस प्रकार कायम न रखा जाए तो इसका अस्तित्व ही नहीं रहे।" | ||
{वर्तमान समय में राज्य की उत्पत्ति का कौन-सा सिद्धांत सबसे अधिक | {वर्तमान समय में [[राज्य]] की उत्पत्ति का कौन-सा सिद्धांत सबसे अधिक मान्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-15 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ऐतिहासिक | +ऐतिहासिक | ||
पंक्ति 365: | पंक्ति 355: | ||
-दैवी | -दैवी | ||
-शक्ति | -शक्ति | ||
||वर्तमान समय में राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी अर्थात ऐतिहासिक सिद्धांत सबसे अधिक | ||वर्तमान समय में राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी अर्थात ऐतिहासिक सिद्धांत सबसे अधिक मान्य व सही है। इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य समस्त अतीत में हुए विकास का फल है। यह अनेक तत्त्वों जैसे- सामाजिक भावना, रक्त बंधन, शक्ति, आर्थिक गतिविधियों, [[धर्म]] तथा राजनीतिक चेतना का फल है। राज्य का विकास धीरे-धीरे हुआ है। यह कबीली चरण से राष्ट्रीय और वैश्वीकरण की तरफ़ अग्रसर है। बर्गेस के अनुसार, 'मानव प्रकृति के सार्वभौम सिद्धांतों की क्रमिक पूर्णता ही राज्य है"। | ||
{"एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धांत का | {"एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धांत का भौतिक अंग है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | +जॉन राल्स | ||
-लॉर्ड | -लॉर्ड एक्टन | ||
-टॉनी | -टॉनी | ||
-जे.एस. मिल | -जे.एस. मिल | ||
||"एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धान्त का मौलिक अंग है", यह कथन जॉन राल्स का है। जॉन राल्स ने अपनी कृति 'ए थ्योरी | ||"एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धान्त का मौलिक अंग है", यह कथन जॉन राल्स का है। जॉन राल्स ने अपनी कृति 'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' में सामाजिक संविदा और कांट के विधि-दर्शन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। जॉन राल्स ने अपने न्याय सिद्धांत को 'शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय' की संज्ञा प्रदान की है। | ||
{ | {"[[इतिहास]] का राजनीति विज्ञान के बिना फल नहीं तथा राजनीति विज्ञान का इतिहास के बिना जड़ नहीं" यह किसने कहा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-15 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-गार्नर | -गार्नर | ||
पंक्ति 381: | पंक्ति 371: | ||
+सीले | +सीले | ||
-पॉल जेनेट | -पॉल जेनेट | ||
इतिहास में व्यक्ति, समाज और [[राज्य]] के भूतकालीन जीवन का लेखा-जोखा होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन। इन दोनों के बीच संबंधों को दर्शाते हुए सीले ने कहा है कि "राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" सीले पुन: कहते है, "राजनीति उच्छृंखल हो जाती है, यदि इतिहास द्वारा उसे उदार नहीं बनाया जाता तथा इतिहास कोरा साहित्य रह जाता है, यदि राजनीति से उसका विच्छेद हो जाता है।" | |||
{'सामाजिक अभियांत्रिकी' का सिद्धांत' प्रस्तुत करने वाले उदारवादी विचारक हैं | {'सामाजिक अभियांत्रिकी' का सिद्धांत' प्रस्तुत करने वाले उदारवादी विचारक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-सी.बी. मैक्फर्सन | -सी.बी. मैक्फर्सन | ||
पंक्ति 388: | पंक्ति 379: | ||
-जॉन राल्स | -जॉन राल्स | ||
-एल.टी. हॉब हाऊस | -एल.टी. हॉब हाऊस | ||
||'सामाजिक अभियांत्रिकी का सिद्धांत' | ||'सामाजिक अभियांत्रिकी का सिद्धांत' कार्ल पॉपर ने प्रस्तुत किया था। कार्ल पॉपर को राजनीतिक चिंतन और व्यवहार के क्षेत्र में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करने के लिए जाना जाता है। अपनी कृति 'द ओपेन सोसाइटी एंड इट्स एनिमीज' के अंतर्गत पॉपर ने विशेष रूप से तीन विचारकों की मान्यताओं पर प्रहार किया। ये तीन विचारक [[प्लेटो]], हेगेल व [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] हैं। पॉपर ने 'पद्धति वैज्ञानिक व्यक्तिवाद' तथा 'उत्तरोत्तर परिवर्तन व्यक्तिवाद का सिद्धांत' भी प्रतिपादित किया। | ||
{प्रतिनिधित्व का कौन-सा सिद्धांत प्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रतिष्ठा देता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-6 | {प्रतिनिधित्व का कौन-सा सिद्धांत प्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रतिष्ठा देता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-6 |
12:10, 2 अप्रैल 2017 का अवतरण
|