"बैठे बरासन रामु जानकि": अवतरणों में अंतर

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राम और जानकी श्रेष्ठ आसन पर बैठे; उन्हें देखकर दशरथ मन में बहुत आनंदित हुए। अपने सुकृतरूपी कल्प वृक्ष में नए फल (आए) देखकर उनका शरीर बार-बार पुलकित हो रहा है। चौदहों भुवनों में उत्साह भर गया; सबने कहा कि राम का विवाह हो गया। जीभ एक है और यह मंगल महान है; फिर भला, वह वर्णन करके किस प्रकार समाप्त किया जा सकता है।
राम और जानकी श्रेष्ठ आसन पर बैठे; उन्हें देखकर दशरथ मन में बहुत आनंदित हुए। अपने सुकृतरूपी कल्प वृक्ष में नए फल (आए) देखकर उनका शरीर बार-बार पुलकित हो रहा है। चौदहों भुवनों में उत्साह भर गया; सबने कहा कि राम का विवाह हो गया। जीभ एक है और यह मंगल महान् है; फिर भला, वह वर्णन करके किस प्रकार समाप्त किया जा सकता है।


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11:16, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

बैठे बरासन रामु जानकि
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
छन्द

बैठे बरासन रामु जानकि मुदित मन दसरथु भए।
तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपनें सुकृत सुरतरु फल नए॥
भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा।
केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु महा॥

भावार्थ-

राम और जानकी श्रेष्ठ आसन पर बैठे; उन्हें देखकर दशरथ मन में बहुत आनंदित हुए। अपने सुकृतरूपी कल्प वृक्ष में नए फल (आए) देखकर उनका शरीर बार-बार पुलकित हो रहा है। चौदहों भुवनों में उत्साह भर गया; सबने कहा कि राम का विवाह हो गया। जीभ एक है और यह मंगल महान् है; फिर भला, वह वर्णन करके किस प्रकार समाप्त किया जा सकता है।


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बैठे बरासन रामु जानकि
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छन्द- शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (बालकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-162

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