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+जे.एस. मिल | +जे.एस. मिल | ||
-टी.एच. ग्रीन | -टी.एच. ग्रीन | ||
||'प्रतिनिध्यात्मक शासन पर विचार' (Considerations on | ||'प्रतिनिध्यात्मक शासन पर विचार' (Considerations on Representative Government) नामक ग्रंथ के लेखक जॉन स्टुअर्ट मिल हैं जो वर्ष 1861 में प्रकाशित किया गया। | ||
{[[अरस्तू]] ने राज्यों और संविधानों का वर्गीकरण किस प्रकार किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-9,प्रश्न-30 | {[[अरस्तू]] ने राज्यों और संविधानों का वर्गीकरण किस प्रकार किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-9,प्रश्न-30 | ||
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-निर्मित और | -निर्मित और पारंपरिक रचना के आधार पर | ||
+शासकों की संख्या और शासन की गुणवत्ता के आधार पर | +शासकों की संख्या और शासन की गुणवत्ता के आधार पर | ||
-धार्मिक प्रभाव के आधार पर | -धार्मिक प्रभाव के आधार पर | ||
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{फॉसीवादियों के अनुसार जनतंत्र का सर्वाधिक वास्तविक रूप निम्न में से किसके द्वारा चलाई जाने वाली सरकार में पाया जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-17 | {फॉसीवादियों के अनुसार जनतंत्र का सर्वाधिक वास्तविक रूप निम्न में से किसके द्वारा चलाई जाने वाली सरकार में पाया जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-17 | ||
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+अभिजात | +अभिजात वर्ग | ||
-जंगखोर | -जंगखोर | ||
-जनतंत्रवादी | -जनतंत्रवादी | ||
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-अधिकतम व्यक्तियों का आर्थिक विकास | -अधिकतम व्यक्तियों का आर्थिक विकास | ||
-अधिकतम व्यक्तियों की अधिकतम | -अधिकतम व्यक्तियों की अधिकतम | ||
||बेंथम के अनुसार, विधि का लक्ष्य अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख | ||बेंथम के अनुसार, विधि का लक्ष्य अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख बढावा देते हो। बेंथम के अनुसार, कानून बनाने वालों को केवल वहीं कानून बनाने चाहिए जो 'अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख' को बढ़ाया देते हों। सरकार का कार्य भी इसी उद्देश्य की पूर्ति करना है। | ||
{[[भारत]] में महान्यायवादी के पद के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-9 | {[[भारत]] में महान्यायवादी के पद के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-9 | ||
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-उसका एक निश्चित कार्यकाल होता है। | -उसका एक निश्चित कार्यकाल होता है। | ||
-[[भारत]] के [[राष्ट्रपति]] उस व्यक्ति को महान्यायवादी नियुक्त करते हैं जिसे [[उच्च न्यायालय]] में न्यायाधीश बन सकने के लिए योग्यता प्राप्त है। | -[[भारत]] के [[राष्ट्रपति]] उस व्यक्ति को महान्यायवादी नियुक्त करते हैं जिसे [[उच्च न्यायालय]] में न्यायाधीश बन सकने के लिए योग्यता प्राप्त है। | ||
||[[संविधान]] के अनुच्छेद 76(1) के अनुसार, [[राष्ट्रपति]], उच्चतम न्यायालय का | ||[[संविधान]] के अनुच्छेद 76(1) के अनुसार, [[राष्ट्रपति]], उच्चतम न्यायालय का महान्यायवादी नियुक्त करेगा तथा अनुच्छेद 76(3) के अनुसार, महान्यायवादी को अपने कर्त्तव्यों के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा। | ||
{[[पाकिस्तान]] के खुफिया संगठन ISI का अर्थ है | {[[पाकिस्तान]] के खुफिया संगठन ISI का अर्थ क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-200,प्रश्न-47 | ||
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+इंटर सर्विसेज इंटिलिजेंस | +इंटर सर्विसेज इंटिलिजेंस | ||
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+एक मिली-जुली राष्ट्रपति-संसदीय प्रणाली की सरकार | +एक मिली-जुली राष्ट्रपति-संसदीय प्रणाली की सरकार | ||
-सरकार को नियंत्रित करने की [[संसद]] की लघुकृत शक्तियां | -सरकार को नियंत्रित करने की [[संसद]] की लघुकृत शक्तियां | ||
||फ्रांस के संविधान में न तो अध्यक्षात्मक सरकार का प्रावधान है और न ही संसदीय सरकार का। बल्कि इसमें इन दोनों ही तत्वों का मिश्रण हैं। एक ओर तो इसमें शक्तिशाली राष्ट्रपति का प्रावधान किया गया है जिसका प्रत्यक्ष निर्वाचन सात साल के कार्यकाल के लिए किया जाता है और दूसरी ओर [[प्रधानमंत्री]] के नेतृत्व में एक मनोनीत मंत्रिपरिषद होती है जिसका उत्तरदायित्व [[संसद]] के प्रति होता है, परंतु मंत्री संसद के सदस्य नहीं होते हैं। इस प्रकार फ्रांस में सरकार और [[राष्ट्रपति]] के मध्य जटिल संबंध का कारण 'अर्द्ध-अध्यक्षात्मक और अर्द्ध-संसदीय' प्रणाली है। | ||[[फ्रांस]] के [[संविधान]] में न तो अध्यक्षात्मक सरकार का प्रावधान है और न ही संसदीय सरकार का। बल्कि इसमें इन दोनों ही तत्वों का मिश्रण हैं। एक ओर तो इसमें शक्तिशाली राष्ट्रपति का प्रावधान किया गया है जिसका प्रत्यक्ष निर्वाचन सात साल के कार्यकाल के लिए किया जाता है और दूसरी ओर [[प्रधानमंत्री]] के नेतृत्व में एक मनोनीत मंत्रिपरिषद होती है जिसका उत्तरदायित्व [[संसद]] के प्रति होता है, परंतु मंत्री संसद के सदस्य नहीं होते हैं। इस प्रकार फ्रांस में सरकार और [[राष्ट्रपति]] के मध्य जटिल संबंध का कारण 'अर्द्ध-अध्यक्षात्मक और अर्द्ध-संसदीय' प्रणाली है। | ||
{'रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट' नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-202,प्रश्न-8 | {'रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट' नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-202,प्रश्न-8 | ||
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+जे.एस. मिल | +जे.एस. मिल | ||
-अरस्तू | -अरस्तू | ||
||'प्रतिनिध्यात्मक शासन पर विचार' (Considerations on | ||'प्रतिनिध्यात्मक शासन पर विचार' (Considerations on Representative Government) नामक ग्रंथ के लेखक जॉन स्टुअर्ट मिल हैं जो वर्ष 1861 में प्रकाशित किया गया। | ||
{[[अरस्तू]] के अनुसार, राज्य का अस्तित्व- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-9,प्रश्न-31 | {[[अरस्तू]] के अनुसार, राज्य का अस्तित्व- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-9,प्रश्न-31 | ||
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-दैवी इच्छा का परिणाम है | -दैवी इच्छा का परिणाम है | ||
-बल और भय का परिणाम है | -बल और भय का परिणाम है | ||
-केवल राजनैतिक और धार्मिक | -केवल राजनैतिक और धार्मिक संयोग है | ||
+विकास का परिणाम है | +विकास का परिणाम है | ||
||अरस्तू के अनुसार, राज्य का अस्तित्व विकास का परिणाम है। [[अरस्तू]] के अनुसार, राज्य का निर्माण व्यक्ति या व्यक्ति समूह ने सोच समझकर नहीं किया बल्कि राज्य एक प्राकृतिक संस्था है, जिसका जन्म विकास के कारण हुआ है। यह एक स्वाभाविक संस्था है। इसके उद्देश्य और कार्य नैतिक है और यह सभी संस्थाओं में श्रेष्ठ है। | ||अरस्तू के अनुसार, राज्य का अस्तित्व विकास का परिणाम है। [[अरस्तू]] के अनुसार, राज्य का निर्माण व्यक्ति या व्यक्ति समूह ने सोच समझकर नहीं किया बल्कि राज्य एक प्राकृतिक संस्था है, जिसका जन्म विकास के कारण हुआ है। यह एक स्वाभाविक संस्था है। इसके उद्देश्य और कार्य नैतिक है और यह सभी संस्थाओं में श्रेष्ठ है। | ||
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+राज्य की उत्पत्ति का | +राज्य की उत्पत्ति का | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||सामाजिक समझौता सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति के संबंध में प्रचलित सिद्धांतों महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। इस सिद्धांत की स्पष्ट व व्यापक अभिव्यक्ति 17वीं सदी में [[इंग्लैण्ड]] के हॉब्स व लॉक तथा 18वीं सदी में [[फ्रांस]] के | ||सामाजिक समझौता सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति के संबंध में प्रचलित सिद्धांतों में महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। इस सिद्धांत की स्पष्ट व व्यापक अभिव्यक्ति 17वीं सदी में [[इंग्लैण्ड]] के हॉब्स व लॉक तथा 18वीं सदी में [[फ्रांस]] के रूसो के विचारों में हुई। 17वीं और 18वीं सदी की राजनीतिक विचारधारा में तो इस सिद्धांत का पूर्ण प्राधान्य था। इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य दैवीय न होकर एक मानवीय संस्था है, जिसका निर्माण व्यक्तियों द्वारा पारस्पतिक समझौते के आधार पर किया गया है। | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सी दल पद्धति लोकतंत्र के स्थायित्व के लिए सबसे उपयुक्त है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-20 | {निम्नलिखित में से कौन-सी दल पद्धति लोकतंत्र के स्थायित्व के लिए सबसे उपयुक्त है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-20 | ||
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-बहुदलीय | -बहुदलीय | ||
+द्विदलीय | +द्विदलीय | ||
||द्विदलीय दल पद्धति लोकतंत्र के स्थायित्व के लिए सबसे उपयुक्त होती है। द्विदलीय दल पद्धति | ||द्विदलीय दल पद्धति लोकतंत्र के स्थायित्व के लिए सबसे उपयुक्त होती है। द्विदलीय दल पद्धति केंद्रीय कृत होती है तथा इसमें कुछ श्रेष्ठजनों को आगे बढ़ाने के साथ स्थान पर व्यक्तिगत गुण अधिक मायने रखते हैं। प्राय: देखा जाता है कि इस दल पद्धति में पार्टियां चुनाव के समय ही सक्रिय होती हैं तथा एक बार सरकार का गठन हो जाने के बाद वह अपना कार्यकाल पूरा कर लेती हैं तथा स्थायित्व बना रहता है। [[संयुक्त राज्य अमेरिका]], [[ब्रिटेन]], [[ऑस्ट्रेलिया]], आयरलैंड आदि लोकतांत्रिक शासन प्रणालियों में स्थायित्व का कारण द्विदलीय दल पद्धति है। | ||
{निम्न में किस वर्ग के विचारकों को संप्रभुता की व्याख्या करने का श्रेय दिया जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-23,प्रश्न-8 | {निम्न में किस वर्ग के विचारकों को संप्रभुता की व्याख्या करने का श्रेय दिया जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-23,प्रश्न-8 |
11:49, 22 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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