"प्रयोग:R3": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(/* 'जो जिण सासण भाषियउ सो मई कहियउ सार। जो पालइ सइ भाउ करि सो तरि पावइ पारु॥' इस दोहे के रचनाकार का न) |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 35: | पंक्ति 35: | ||
{{Opt|विकल्प 1=खड़ी बोली|विकल्प 2=हिन्दुस्तानी|विकल्प 3=उर्दू|विकल्प 4=अपभ्रंश}}{{Ans|विकल्प 1='''खड़ी बोली'''{{Check}}|विकल्प 2=हिन्दुस्तानी|विकल्प 3=[[उर्दू भाषा|उर्दू]]|विकल्प 4=अपभ्रंश|विवरण=}} | {{Opt|विकल्प 1=खड़ी बोली|विकल्प 2=हिन्दुस्तानी|विकल्प 3=उर्दू|विकल्प 4=अपभ्रंश}}{{Ans|विकल्प 1='''खड़ी बोली'''{{Check}}|विकल्प 2=हिन्दुस्तानी|विकल्प 3=[[उर्दू भाषा|उर्दू]]|विकल्प 4=अपभ्रंश|विवरण=}} | ||
====[[देवनागरी लिपि]] का विकास किस लिपि से हुआ है?==== | ====[[देवनागरी लिपि]] का विकास किस लिपि से हुआ है?==== | ||
{{Opt|विकल्प 1=खरोष्ठी लिपि|विकल्प 2=कुटिल लिपि|विकल्प 3=ब्राह्मी लिपि|विकल्प 4=गुप्तकाल की लिपि}}{{Ans|विकल्प 1=[[खरोष्ठी लिपि]]|विकल्प 2=कुटिल लिपि|विकल्प 3='''[[ब्राह्मी लिपि]]'''{{Check}}|विकल्प 4=गुप्तकाल की लिपि|विवरण=[[चित्र: | {{Opt|विकल्प 1=खरोष्ठी लिपि|विकल्प 2=कुटिल लिपि|विकल्प 3=ब्राह्मी लिपि|विकल्प 4=गुप्तकाल की लिपि}}{{Ans|विकल्प 1=[[खरोष्ठी लिपि]]|विकल्प 2=कुटिल लिपि|विकल्प 3='''[[ब्राह्मी लिपि]]'''{{Check}}|विकल्प 4=गुप्तकाल की लिपि|विवरण=[[चित्र:Devnagari-Lipi.jpg|thumb|250px|[[अशोक]] की ब्राह्मी लिपि के अक्षर]] | ||
*प्राचीन ब्राह्मी लिपि के उत्कृष्ट उदाहरण सम्राट [[अशोक]] (असोक) द्वारा ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बनवाये गये शिलालेखों के रूप में अनेक स्थानों पर मिलते है । नये अनुसंधानों के आधार 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के लेख भी मिले है। ब्राह्मी भी [[खरोष्ठी]] की तरह ही पूरे [[एशिया]] में फैली हुई थी। | *प्राचीन ब्राह्मी लिपि के उत्कृष्ट उदाहरण सम्राट [[अशोक]] (असोक) द्वारा ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बनवाये गये शिलालेखों के रूप में अनेक स्थानों पर मिलते है । नये अनुसंधानों के आधार 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के लेख भी मिले है। ब्राह्मी भी [[खरोष्ठी]] की तरह ही पूरे [[एशिया]] में फैली हुई थी। | ||
*अशोक ने अपने लेखों की लिपि को 'धम्मलिपि' का नाम दिया है; उसके लेखों में कहीं भी इस लिपि के लिए 'ब्राह्मी' नाम नहीं मिलता। लेकिन [[बौद्ध|बौद्धों]], [[जैन|जैनों]] तथा [[ब्राह्मण]]-धर्म के ग्रंथों के अनेक उल्लेखों से ज्ञात होता है कि इस लिपि का नाम 'ब्राह्मी' लिपि ही रहा होगा। | *अशोक ने अपने लेखों की लिपि को 'धम्मलिपि' का नाम दिया है; उसके लेखों में कहीं भी इस लिपि के लिए 'ब्राह्मी' नाम नहीं मिलता। लेकिन [[बौद्ध|बौद्धों]], [[जैन|जैनों]] तथा [[ब्राह्मण]]-धर्म के ग्रंथों के अनेक उल्लेखों से ज्ञात होता है कि इस लिपि का नाम 'ब्राह्मी' लिपि ही रहा होगा। | ||
पंक्ति 44: | पंक्ति 44: | ||
*668 ई. में लिखित एक चीनी बौद्ध विश्वकोश 'फा-शु-लिन्' में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का उल्लेख मिलता है। इसमें लिखा है कि, 'लिखने की कला का शोध दैवी शक्ति वाले तीन आचार्यों ने किया है; उनमें सबसे प्रसिद्ध ब्रह्मा है, जिसकी लिपि बाईं ओर से दाहिनी ओर को पढ़ी जाती है।' | *668 ई. में लिखित एक चीनी बौद्ध विश्वकोश 'फा-शु-लिन्' में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का उल्लेख मिलता है। इसमें लिखा है कि, 'लिखने की कला का शोध दैवी शक्ति वाले तीन आचार्यों ने किया है; उनमें सबसे प्रसिद्ध ब्रह्मा है, जिसकी लिपि बाईं ओर से दाहिनी ओर को पढ़ी जाती है।' | ||
*इससे यही जान पड़ता है कि ब्राह्मी [[भारत]] की सार्वदेशिक लिपि थी और उसका जन्म भारत में ही हुआ किंतु बहुत-से विदेशी पुराविद मानते हैं कि किसी बाहरी वर्णमालात्मक लिपि के आधार पर ही ब्राह्मी वर्णमाला का निर्माण किया गया था। }} | *इससे यही जान पड़ता है कि ब्राह्मी [[भारत]] की सार्वदेशिक लिपि थी और उसका जन्म भारत में ही हुआ किंतु बहुत-से विदेशी पुराविद मानते हैं कि किसी बाहरी वर्णमालात्मक लिपि के आधार पर ही ब्राह्मी वर्णमाला का निर्माण किया गया था। }} | ||
===='बाँगरू' बोली का किस बोली से निकट सम्बन्ध है?==== | ===='बाँगरू' बोली का किस बोली से निकट सम्बन्ध है?==== | ||
{{Opt|विकल्प 1=कन्नौजी|विकल्प 2=बुन्देली|विकल्प 3=ब्रजभाषा|विकल्प 4=खड़ीबोली}}{{Ans|विकल्प 1=कन्नौजी|विकल्प 2=बुन्देली|विकल्प 3=[[ब्रजभाषा]]|विकल्प 4='''खड़ीबोली'''{{Check}}|विवरण=}} | {{Opt|विकल्प 1=कन्नौजी|विकल्प 2=बुन्देली|विकल्प 3=ब्रजभाषा|विकल्प 4=खड़ीबोली}}{{Ans|विकल्प 1=कन्नौजी|विकल्प 2=बुन्देली|विकल्प 3=[[ब्रजभाषा]]|विकल्प 4='''खड़ीबोली'''{{Check}}|विवरण=}} |