दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान
"महाराज ! मैंने तो अपनी माँ के लिए सारा इन्तज़ाम एक सप्ताह में ही कर दिया था और उसे समझा भी दिया था कि अब उसका ध्यान धीर ही रखेगा। जब मैं वापस लौट रहा था तो लुटेरों से मेरी मुठभेड़ हो गई। मैं 15 दिन घायल और बेसुध पड़ा रहा। जैसे ही मुझे होश आया, मैं भागा-भागा यहाँ आया हूँ।" पूरा पढ़ें