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साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान
      "अगर तुम्हारी जगह कोई और यहाँ जेल में बन्द हो जाय... जिससे कि अगर तुम नहीं लौटे तो तुम्हारी जगह उसे फाँसी दे दी जाय...सिर्फ़ यही तरीक़ा है... लेकिन कभी ऐसा हुआ नहीं है क्योंकि कोई भी किसी की फाँसी की ज़मानत थोड़े ही देता है।"
"आप मेरे गाँव से मेरे दोस्त धीर को बुलवा दीजिए... मेहरबानी करके जल्दी उसे बुलवा दें" ...पूरा पढ़ें

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