बेलपत्र
बेलपत्र
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विवरण | 'बेलपत्र', जो बेल वृक्ष का पत्ता होता है, इसका शिवपूजा में बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। माना जाता है कि इसे अर्पित करने से शिव को शीलतता प्राप्त होती है। |
धार्मिक मान्यता | पुराणों आदि में बताया गया है कि शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करने से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं और सभी कामनाओं को पूर्ण करते हैं। |
उत्पत्ति | माना जाता है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। |
औषधीय महत्त्व | बिल्व वृक्ष के फल का सेवन वात, पित्त, कफ व पाचन क्रिया के दोषों को दूर करता है। यह त्वचा रोग और मधुमेह को बढ़ने से भी रोकता है। |
अन्य जानकारी | 'शिवपुराण' में बेलपत्र के वृक्ष की जड़ में शिव का वास माना गया है। इसलिए इसकी जड़ में गंगाजल के अर्पण का बहुत महत्व है। शिव और बेलपत्र का व्यावहारिक और वैज्ञानिक पहलू भी है। |
बेलपत्र अथवा बिल्व पत्र बेल नामक वृक्ष के पत्तों को कहा जाता है, जो भगवान शिव को पूजा में अत्यंत प्रिय है। इसके वृक्ष के नीचे पूजा-पाठ करना पुण्यदायक माना जाता है। बेलपत्र और जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता है और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव अति शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं।
पौराणिक कथा
भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका उन्हें 'बेलपत्र' अर्पित करना है। बेलपत्र के पीछे भी एक पौराणिक कथा का महत्त्व है। इस कथा के अनुसार- "भील नाम का एक डाकू था। यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था। एक बार सावन माह में यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया और एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। एक दिन-रात पूरा बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला। जिस पेड़ पर वह डाकू छिपा था, वह बेल का पेड़ था। रात-दिन पूरा बीतने पर वह परेशान होकर बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। जो पत्ते वह डाकू तोडकर नीचे फेंख रहा था, वह अनजाने में शिवलिंग पर ही गिर रहे थे। लगातार बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए और डाकू को वरदान माँगने को कहा। उस दिन से बिल्व-पत्र का महत्त्व और बढ़ गया।[1]
शिव का वास
'शिवपुराण' में बेलपत्र के वृक्ष की जड़ में शिव का वास माना गया है। इसलिए इसकी जड़ में गंगाजल के अर्पण का बहुत महत्व है। शिव और बेलपत्र का व्यावहारिक और वैज्ञानिक पहलू भी है। यह शिव पूजा द्वारा प्रकृति से प्रेम और उसे सहेजने की सीख देता है। कुदरत के नियमों या उसकी किसी भी रूप में हानि मानव जीवन के लिए घातक है। इसी तरह प्रकृति और सावन में बारिश के मौसम के साथ तालमेल बैठाने के लिए इसे गुणकारी माना गया है। शिव को बेलपत्र चढ़ाने से तीन युगों के पाप नष्ट हो जाते हैं। ग्रंथों में भगवान शिव को प्रकृति रूप मानकर उनकी रचना, पालन और संहार शक्तियों की वंदना की गई है। यही कारण है कि भगवान शिव की उपासना में भी फूल-पत्र और फल के चढ़ावे का विशेष महत्व है। शिव को बेलपत्र या बिल्वपत्र का चढ़ावा बहुत ही पुण्यदायी माना गया है।[2]
- भगवान शिव की अर्चना करते समय शिवलिंग पर बेलपत्र और दूध अथवा पानी चढ़ाया जाता है।
- सामान्यत: बेलपत्र तीन पत्तों वाला होता है।
- पाँच पत्तों वाला बेलपत्र अधिक शुभ माना जाता है।
- शिव की पूजा सामग्री में बेलपत्र और गंगाजल का समावेश होता है।
- ज्येष्ठा नक्षत्र युक्त जेठ के महीने की पूर्णिमा की रात्रि को 'बिल्वरात्र' व्रत किया जाता है।
बेल वृक्ष की महिमा
भगवान शिव की पूजा में बिल्वपत्र यानी बेलपत्र का विशेष महत्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए तो उन्हें 'आशुतोष' भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर बेलपत्र में एक साथ तीन पत्तियां जुड़ी रहती हैं, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो बेलपत्र की महिमा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है, लेकिन शिवपुराण में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बतायी गयी है। शिवपुराण में कहा गया है कि बेलपत्र भगवान शिव का प्रतीक है। भगवान स्वयं इसकी महिमा स्वीकारते हैं। मान्यता है कि बेल वृक्ष की जड़ के पास शिवलिंग रखकर जो भक्त भगवान शिव की आराधना करते हैं, वे हमेशा सुखी रहते हैं। बेल वृक्ष की जड़ के निकट शिवलिंग पर जल अर्पित करने से उस व्यक्ति के परिवार पर कोई संकट नहीं आता और वह सपरिवार खुश और संतुष्ट रहता है।

उत्पत्ति
कहा जाता है कि बेल वृक्ष के नीचे भगवान भोलेनाथ को खीर का भोग लगाने से परिवार में धन की कमी नहीं होती और वह व्यक्ति कभी निर्धन नहीं होता। बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में स्कंद पुराण में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं। कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियां समाहित हैं। यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेलवृक्ष में वास है। जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है।[3]
बेलपत्र से महादेव की पूजा का रहस्य
भगवान शिव को औढ़र दानी कहते हैं। शिव का यह नाम इसलिए है, क्योंकि यह जब देने पर आते हैं तो भक्त जो भी मांग ले, बिना हिचक दे देते हैं। इसलिए सकाम भावना से पूजा-पाठ करने वाले लोगों को भगवान शिव अति प्रिय हैं। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या और भोग सामग्री की भी जरूरत होती है, जबकि शिव जी थोड़ी सी भक्ति और बेलपत्र एवं जल से भी खुश हो जाते हैं। यही कारण है कि भक्तगण जल और बेलपत्र से शिवलिंग की पूजा करते हैं। शिव जी को ये दोनों चीजें क्यों पसंद हैं, इसका उत्तर पुराणों में दिया गया है।
समुद्र मंथन के समय जब हलाहल नाम का विष निकलने लगा, तब विष के प्रभाव से सभी देवता एवं जीव-जंतु व्याकुल होने लगे। ऐसे समय में भगवान शिव ने विष को अपनी अंजुली में लेकर पी लिया। विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए शिव जी ने इसे अपनी कंठ में रख लिया, इससे शिव जी का कंठ नीला पड़ गया और शिव जी 'नीलकंठ' कहलाने लगे। लेकिन विष के प्रभाव से शिव का मस्तिष्क गर्म हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिव के मस्तिष्क पर जल उड़लेना शुरू किया, जिससे मस्तिष्क की गर्मी कम हुई। बेल के पत्तों की तासीर भी ठंढ़ी होती है। इसलिए शिव को बेलपत्र भी चढ़ाया गया। इसी समय से शिव जी की पूजा जल और बेलपत्र से शुरू हो गयी। बेलपत्र और जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता है और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव जी प्रसन्न होते हैं।[4]

महत्त्वपूर्ण तथ्य
- जो व्यक्ति दो अथवा तीन बेलपत्र भी शुद्धतापूर्वक भगवन शिव पर चढ़ाता है, उसे निःसंदेह भवसागर से मुक्ति प्राप्ति होती है।[2]
- यदि कोई व्यक्ति अखंडित (बिना कटा हुआ) बेलपत्र भगवान शिव पर चढ़ाता है, तो वह निर्विवाद रूप से अंत में शिवलोक को प्राप्त होता है।
- बिल्व वृक्ष के दर्शन, स्पर्शन व प्रणाम करने से ही रात-दिन के सम्पूर्ण पाप दूर हो जाया करते हैं।
- चतुर्थी, अमावस्या, अष्टमी, नवमी, चौदस, संक्रांति, और सोमवार के दिन बिल्वपत्र तोड़ना निषिद्ध है।
- भगवान शिव को बिल्वपत्र सदैव उल्टा अर्पित करना चाहिए, अर्थात पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए।
- बिल्वपत्र में चक्र एवं वज्र नहीं होना चाहिये। कीड़ों द्वारा बनाये हुए सफ़ेद चिन्ह को चक्र कहते हैं और बिल्वपत्र के डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं।
- बिल्वपत्र तीन से ग्यारह दलों तक के प्राप्त होतें हैं। ये जितने अधिक पत्रों के हों, उतना ही उत्तम होता है।
- शिव जी को अर्पित किये जाने वाले बिल्वपत्र कटे-फटे एवं कीड़े के खाए नहीं होने चाहिए।
- यदि किसी को बिल्वपत्र मिलने की मुश्किल हो तो उसके स्थान पर चांदी का बिल्वपत्र चढ़ाया जा सकता है, जिसे नित्य शुद्ध जल से धोकर शिवलिंग पर पुनः स्थापित किया जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तो इसीलिए भोलेनाथ के लिए विशेष हो गया सावन का महिना (हिन्दी) पर्दाफाश टुडे.कॉम। अभिगमन तिथि: 17 जुलाई, 2014।
- ↑ 2.0 2.1 शिवपूजा में बिल्वपत्र की महिमा (हिन्दी) युवामेल। अभिगमन तिथि: 18 जुलाई, 2014।
- ↑ बेल वृक्ष की महिमा (हिंदी) प्रभात खबर। अभिगमन तिथि: 15 अप्रॅल, 2013।
- ↑ जल और बेलपत्र से महादेव की पूजा का रहस्य (हिंदी) स्पीकिंग ट्री। अभिगमन तिथि: 15 अप्रॅल, 2013।
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