बेर
बेर भारत का बहुत ही प्राचीन एंव लोकप्रिय फल है। यह विटामिन 'सी', 'सी' व 'बी' का अच्छा स्त्रोत है तथा इसमें कैल्शियम, लौह और शर्करा प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। सस्ता एंव लोकप्रिय फल होने के कारण इसे 'ग़रीबों का मेवा' भी कहा जाता है।
बेर की खेती
मुख्य रूप से उगायी जाने वाली बेरी की किस्मों को फलों के पकने के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है:
- अगेती: गोला, सेब, सन्धूरा, नारनौल
- कैथली, सनौरी नं.-5, बनारसी कड़ाका, छुहारा
- पछेती: उमरान, इलायची, काठाफल
पौधे लगाने का समय व दूरी
बेरी के प्यौंदी पौधों को लगाने का समय अगस्त-सितम्बर है तथा बिना गाची वाले पौधों को 15 जनवरी से फरवरी के प्रथम सप्ताह तक लगाया जा सकता है। जहां पानी की सुविधा हो वहां पौधे से पौधे की दूरी 9 मीटर रखनी चाहिये।[1]
भूमि तथा जलवायु
बेर का वृक्ष उन ख़राब तथा कम उपजाऊ भूमि में भी पैदा हो जाता है, जहाँ पर अन्य फल वृक्ष नहीं उग पाते हैं। अच्छी फ़सल के लिए उदासीन या थोड़ी क्षारीय गहरी दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। मार्च - अप्रैल में फल देने के बाद बेर पत्तियां गिरा देता है। तथा नई पत्तिया जून तक नहीं आती हैं, इस कारण से यह सूखे को सहन कर लेता है। अतः इन्हें शुष्क और अर्ध - शुष्क जलवायु वाले भागों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।ref name="उत्तम कृषि"> बेर की उत्तम खेती (हिंदी) उत्तम कृषि। अभिगमन तिथि: 6 फ़रवरी, 2013।</ref>
क़िस्में==
भारत के विभिन्न भागों में इसकी बहुत सी प्रजातियाँ उगाई जाती हैं।
राज्य | क्षेत्र |
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उत्तर प्रदेश | बनारसी कडाका, बनारसी, पैवन्दी, नरमा, अलीगंज |
बिहार | बनारसी, नागपुरी, पैवन्दी, थोर्नलैस |
महाराष्ट्र | कोथो, महरूम, उमरान |
आन्ध्र प्रदेश | बनारसी, दोढया, उमरान |
पंजाब और हरियाणा | उमरान, कैथली, गोला, सफेदा, सौनोर - २, पौंडा |
राजस्थान | सौनोर, थोर्नलैस |
दिल्ली | गोला, मुड़या महरेश, उमरान, पोंडा |
उमरान के फल तोड़ने के बाद जल्दी ख़राब नहीं होते हैं। तथा यह एक अच्छी कीमत पर बिकता है। गोला, मुड़या तथा महारा जल्दी पकने वाली जातियाँ हैं तथा बाजार में अच्छी कीमत देती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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