प्रयोग:नवनीत3
सनातन गोस्वामी विषय सूची
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Madan Mohan temple, Vrindavan
वृन्दावन में एकान्त भजन और लुप्त तीर्थोद्धार
ब्रजधाम पहुँचते ही सनातन गोस्वामी ने पहले सुबुद्धिराय से साक्षात् किया, फिर लोकनाथ गोस्वामी और भूगर्भ पण्डित से, जो महाप्रभु के आदेश से पहले ही ब्रज में आ गये थे, तत्पश्चात उन्होंने जमुना-पुलिन पर आदित्य टीला नाम के निर्जन स्थान में रहकर आरम्भ किया। एकान्त भजन-साधन, त्याग और वैराग्य का जीवन। किसी पद कर्ता ने उनके भजनशील जीवन का सजीव चित्र इन शब्दों में खींचा है—
"कभू कान्दे, कभू हासे, कभू प्रेमनान्दे भासे कभू भिक्षा, 'कभु उपवास। छेंड़ा काँथा, नेड़ा माथा, मुखे कृष्ण गुणगाथा परिधान छेंड़ा बहिर्वास
कखनओ बनेर शाक अलवने करि पाक
मुखे देय दुई एक ग्रास।"[1]
उस समय वृन्दावन में बस्ती नाम मात्र की थी। इसलिये साधकों को मधुकरी के लिये मथुरा जाना पड़ता था। सनातन गोस्वामी की तन्मयता जब कुछ कम होती तो वे कंधे पर झोला लटका मथुरा चले जाते। वहाँ जो भी भिक्षा मिलती उससे उदरपूर्ति कर लेते। कुछ दिन बाद उन्होंने महाप्रभु के आदेशानुसार व्रज की लीला-स्थलियों के उद्धार का कार्य प्रारम्भ किया। इसके पूर्व लोकनाथ गोस्वामी ने इस दिशा में कुछ कार्य किया था। उसे आगे बढ़ाते हुए उन्होंने व्रज के वनों, उपवनों और पहाड़ियों में घूमते हुए और कातर स्वर से व्रजेश्वरी की कृपा प्रार्थना करते हुए, शास्त्रों, लोक-गाथाओं और व्रजेश्वरी की कृपा से प्राप्त अपने दिव्य अनुभवों के आधार पर एक-एक लुप्त तीर्थ का उद्धार किया।
वीथिका-गौड़ीय संप्रदाय
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा