प्रयोग:माधवी 1
सरदार बुध सिंह (अंग्रेज़ी: Sardar Budh Singh जन्म- मई, 1924, ज़िला- गाजीपुर, उत्तरप्रदेश; मृत्यु- 22 नवम्बर, 2016, वाराणसी ) जम्मू कश्मीर के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और सार्वजनिक कार्यकर्ता सरदार बुधसिंह का जन्म मई, 1884 ई. में जम्मू के मीरपुर नामक स्थान पर हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद वे रियासत की सर्विस में सम्मिलित हो गए। उनकी पदोन्नति डिप्टी कमिश्नर के पद तक हुई।
सार्वजनिक कामों में वे अपने सरकारी सेवाकाल में ही रुचि लेने लगे थे। अकालियाँ ने जब अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया तो बुधसिंह भी उनके समर्थक थे। रियासत में जनसामान्य की दुर्दशा की ओर अधिकारियों को ध्यान आकृष्ट करने के लिए उन्होंने 1922 में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया था।
1925 में सरदार बुधसिंह ने डिप्टी कमिश्नर के पद से इस्तीफा दि दिया और पूरी तरह सार्वजनिक कामों में लग गए। सिक्ख और हिंदू दोनों उनका अम्मान करते थे। सिक्कों ने पंजा साहिब के गुरुद्वारे के पुनरुद्धार के लिए उन्हें एक 'पंज प्यारा' चुना। जम्मू के डोगरा समुदाय ने तीन बार उन्हें 'डोगरा सभा' का अध्यक्ष चुनकर सम्मानित किया। 1934 में बुधसिंह नें 'किसान पार्टी' का गठन किया। उस समय तक शेख अब्दुल्ला 'मुस्लिम कांग्रेस' बना चुके थे। बुधसिंह आदि ने रियासत में संयुक्त मोर्चा बनाने का सुझाव दिया। इस पर 'मुस्लिम कांफ्रेस' का नाम 1939 में 'नेशनल कांफ्रेस' कर दिया गया और बुधसिंह लगभग 25 वर्षों तक उसके प्रमुख नेताओं में रहे। 1944 में वे 'नेशनल कांफ्रेस' के अध्यक्ष भी चुने गए। 1946 में उन्हें राजनीतिक आंदोलन के कारण जेल में बंद कर दिया गया था।
स्वतंत्रता के बाद सरदार बुधसिंह शेख अब्दुल्ला के मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। परंतु राज्य में जो पृथकतावादी तत्व उभर रहे थे। उनसे सामंजस्य न होने के कारण उन्होंने 1950 में मंत्रिमंडल छोड़ दिया। बाद में वे दो बार राज्य सभा के सदस्य रहे। लेकिन अपने जीवन का सबसे बड़ा आघात सरदार बुधसिंह को शेख अब्दुल्ला के कारण लगा। एक समय शेख उन्हें अपना 'आध्यात्मिक पिता' कह कर सम्मानित करते थे। बाद में उन्होंने अपने विचार और क्रिया कलाप बदल कर स्वयं को देश की मुख्य धारा से अलग कर लिया था। सरदार बुधसिंह बाद में कम्युनिस्ट विचारधारा की ओर आकृष्ट हो गए थे। अपने दीर्घकालीन योगदान के कारण वे जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक चेतना के जनक माने जाते हैं।