करी पत्ता
करी पत्ता को 'मीठा नीम' भी कहा जाता है और इन्हें बगीचों में भी उगाया जाता है। करी पत्ते के पेड़ केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, बिहार और हिमालय में कुमाऊं और सिक्किम में पाये जाते हैं।
वानस्पतिक नाम
करी पत्ते का पेड़ (मुराया कोएनिजी, (Murraya koenigii; ) सिन (syn) बर्गेरा कोएनिजी, (Bergera koenigii), चल्कास कोएनिजी (Chalcas koenigii)) उष्णकटिबंधीय तथा उप-उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में पाया जाने वाला रुतासेई (Rutaceae) परिवार का एक पौधा है। यह पौधा मूल रूप से भारत से जुड़ा है। रसेदार व्यंजनों में प्रयोग किये जाने वाले इसके पत्तों को 'करी पत्ता' या 'मीठा नीम' भी कहा जाता हैं। करी पत्ते के तमिल नाम 'கறிவேம்பு (Kari vempu)' का अर्थ है, वह पत्तियां जिनका प्रयोग रसेदार व्यंजनों में किया जाता है। कन्नड़ भाषा में इसको 'ಕರಿ ಬೇವು (Karibevu या Karibevu soppu' कहा जाता है, जिसका शब्दार्थ होता है - 'काला नीम'। इसकी पत्तियां देखने में लगभग नीम की पत्तियों जैसी ही होती हैं। किंतु करी पत्ते के पेड़ का नीम के पेड़ से कोई संबंध नहीं है।
विवरण
करी पत्ते का पेड़ छोटा होता है। इसकी उंचाई 4 से 6 मीटर तक होती है। इसके तने का व्यास लगभग 40 सें.मी. तक होता है। इसकी पत्तियां नुकीली होतीं हैं। यह पत्तियां ख़ुशबूदार होती हैं। इसके फूल छोटे-छोटे, सफ़ेद रंग केऔर ख़ुशबूदार होते हैं। इसके छोटे-छोटे, चमकीले काले रंग के फल होते हैं। करी पत्ते के बीज ज़हरीले होते हैं।
उपजाना
पौधे उगाने के लिए ताज़े बीजों को बोना चाहिए, सूखे या मुरझाये फलों में अंकुर-क्षमता नहीं होती। फल को या तो सम्पूर्ण रूप से (या गूदा निकालकर) गमले के मिश्रण में गाड़ देना चाहिए और उसे गीला नहीं, बल्कि सिर्फ़ नम बनाए रखना चाहिए।
उपयोग
मीठा नीम (करी पत्ता) एक प्रकार का पौधा है, जिसकी पत्तियों का प्रयोग सब्जी में तड़का लगाने में, चटनी पाउडर और चटनी बनाने के लिए भी किया जाता है। करी पत्ते की ताजी पत्तियों से जो ख़ुशबू मिलती है, वह सूखी पत्तियों से नहीं मिल पाती है। करी पत्ता को केरपेला, कटनीम, बाउला आदि नामों से भी जाना जाता है।
दक्षिण भारत व पश्चिमी-तट के राज्यों और श्री लंका के व्यंजनों के छौंक में, ख़ासकर रसेदार व्यंजनों में, बिलकुल तेज पत्तों की तरह, इसकी पत्तियों का उपयोग बहुत महत्त्व रखता है। साधारणतया इसे पकाने की विधि की शुरुआत में कटे प्याज़ के साथ भुना जाता है। इसका उपयोग थोरण, वड़ा, रसम और कढ़ी बनाने में भी किया जाता है। इसकी ताज़ी पत्तियां न तो खुले में, और न ही फ्रिज में ज़्यादा दिनों तक ताज़ा रहतीं हैं। वैसे ये पत्तियां सूखी हुई भी मिलती हैं पर उनमें ख़ुशबू बिलकुल नहीं के बराबर होती है।
आयुर्वेदिक प्रयोग
मुराया कोएनिजी (Murraya koenigii) की पत्तियों का आयुर्वेदिक चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. इनके औषधीय गुणों में ऐंटी-डायबिटीक (anti-diabetic), ऐंटीऑक्सीडेंट (antioxidant)[1], ऐंटीमाइक्रोबियल (antimicrobial), ऐंटी-इन्फ्लेमेटरी (anti-inflammatory), हिपैटोप्रोटेक्टिव (hepatoprotective), ऐंटी-हाइपरकोलेस्ट्रौलेमिक (anti-hypercholesterolemic) इत्यादि शामिल हैं। कढ़ी पत्ता लम्बे और स्वस्थ बालों के लिए भी बहुत लाभकारी माना जाता है।
हालांकि कढ़ी पत्ते का सबसे अधिक उपयोग रसेदार व्यंजनों में होता है, पर इनके अलावा भी अन्य कई व्यंजनों में मसाले के साथ इसका इस्तेमाल किया जाता है।
अत्यन्त गुणकारी
करी पत्ता अत्यन्त पौष्टिक तथा कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह, प्रोटीन और विटामिन ए, विटामिन बी-1, विटामिन बी-2, नायसीन और विटामिन 'सी' का श्रेष्ठ स्रोत है।[2] करी पत्ता पाचन-सम्बंधी विकारों के उपचार में अत्यन्त उपयोगी है। करी पत्ते को मधुमेह के उपचार में भी इस्तेमाल किया जाता है। करी पत्ता जलन, बवासीर (अर्श), कृमि (कीड़े), सूजन कोढ़ और जहर को नष्ट करने वाले जैसे रोगों के लिए भी उपयोगी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ The aim of the present study was to evaluate the possible protective effects of Murraya koenigii leaves extract against β-cell damage and antioxidant defense systems of plasma and pancreas in streptozotocin induced diabetes in rats. The levels of glucose and glycosylated hemoglobin in blood and insulin, Vitamin C, Vitamin E, ceruloplasmin, reduced glutathione and TBARS were estimated in plasma of control and experimental groups of rats.
- ↑ Access Online Article (अंग्रेज़ी)। । अभिगमन तिथि: 20 जून, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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