तिल का ताड़ -रांगेय राघव
तिल का ताड़ -रांगेय राघव
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लेखक | शेक्सपियर |
अनुवादक | रांगेय राघव |
प्रकाशक | राजपाल एंड संस |
ISBN | 81-7028-645-X |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
प्रकार | नाटक |
तिल का ताड़ प्रसिद्ध नाटककार शेक्सपियर द्वारा रचित 'मच एडो अवाउट नथिंग' का हिन्दी अनुवाद है। हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के इस नाटक का हिन्दी अनुवाद किया था। 'तिल का ताड़' का प्रकाशन 'राजपाल एंड संस' द्वारा किया गया था।
भूमिका
शेक्सपियर ने मानव-जीवन की शाश्वत भावनाओं को बड़े ही कुशल कलाकार की भाँति चित्रित किया है। उसके पात्र आज भी जीवित दिखाई देते हैं। जिस भाषा में शेक्सपियर के नाटक का अनुवाद नहीं है वह उन्नत भाषाओं में कभी नहीं गिनी जा सकती। साहित्यकार रांगेय राघव के अनुसार- इंग्लैंड में न तिल होता है, न ताड़। परन्तु हमने शेक्सपियर के नाटक 'मच एडो अवाउट नथिंग'[1] का 'तिल का ताड़' ही अनुवाद किया है, क्योंकि 'तिल का ताड़' मुहावरा इसके विषय को बिलकुल प्रस्तुत कर देता है। आज से लगभग सत्तर वर्ष पूर्व हिन्दी में ‘चार्ल्स लैम्ब कृत चेल्स फ्रॉम शेक्सपियर’ का अनुवाद किया गया था। उसमें 'मच एडो अवाउट नथिंग' का अनुवाद किया गया मिलता है- व्यर्थ हौरा मचाना। मैं समझता हूँ तुलनात्मक दृष्टि से यह नया नाम अधिक उपयुक्त है। शेक्सपियर ने इसे सन 1597-1600 ई. के बीच लिखा, जब ‘ऐज़ यू लाइक इट’ तथा ‘ट्वैल्फ्थ नाइट’ और ‘मेरी वाइव्ज़ ऑफ विंडज़र’ आदि प्रसिद्ध सुखान्त नाटक लिखे गए थे। यह शेक्सपियर के नाट्य रचना-काल में द्वितीय युग था। इस युग के बाद ही कवि में दुःख ने अपना प्रभाव अधिक बढ़ाया और उसके नाटकों में गद्य भी अधिक मिलता है।[2]
कथानक
इस नाटक के कथानक में तीन कथाएँ आपस में गुंथ गई हैं-
- डॉग-बैरी और वर्गीज़
- बैनेडिक और बिएट्रिस
- हेरो तथा क्लॉडिओ और डॉन जौन
ये उपरोक्त तीन कथाएँ हैं। इनके लिए कहा जाता है कि शेक्सपियर विभिन्न स्रोतों का ऋणी है, जिनमें बैण्डैलो और एरिओस्टो प्रमुख माने जाते हैं। हेरो और बिएट्रिस दो युवतियाँ हैं, जो मैसिना में एक महल में रहती हैं। इन्हीं के प्रेम की इस नाटक में कथा है। विद्वानों का मत है कि इस नाटक में जो मूलकथा का अवसाद है, वह इसके सुखान्त तत्त्व पर आघात-सा करता हुआ लगता है। बैनेडिक-बिएट्रिस की अन्तर्कथा का मूल कथा से अन्तर्गठन परिपक्व नहीं हो पाया है, यद्यपि इस कथा में आनन्द अधिक है। उनका कथोपकथन भी उच्चकोटि का नहीं है और बिएट्रिस जैसी कुलीन स्त्री के मुख से वैसे शब्द अच्छे भी नहीं लगते।
शेक्सपियर का महत्त्व समझने के लिए आवश्यक है कि हम उसको उसके पात्रों के माध्यम से समझें। वह अपने पात्रों को स्वतन्त्रता देता है और जीवन के विभिन्न रूपों को अभिव्यक्ति देता है। वह यह नहीं मानता कि जीवन का दर्शन किसी विशेष पात्र के मुख से पूर्णतया कहलाया जा सकता है। पात्र जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न चेष्टाएं करते हैं। शेक्सपियर ने मनुष्य के रूपों को उनकी विविधता में देखा है। इस दृष्टिकोण से न हमें बिएट्रिस का पात्र खटकता है, न अन्तर्कथा का महत्त्व ही। उसके सम्राटों से लेकर उसके विदूषक तक जीवन-दर्शन व विभिन्न पहलुओं को प्रकट करते हैं। प्रत्येक जीवन को अपने दृष्टिकोण से देखता है। शेक्सपियर की कला आत्मपरक अभिव्यक्ति में नहीं है, उसकी आत्मा जाकर युग सत्य से तादात्म्य करके ही अपने को प्रगट करती है। इस दृष्टि से उसके मानव-जीवन के गम्भीर अध्ययन का पता तिल का ताड़ पढ़कर भी मिलता है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Much Ado About Nothing
- ↑ 2.0 2.1 तिल का ताड़ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 29 जनवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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