त्याग और बलिदान

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'त्याग' और 'बलिदान' दोनों का अर्थ समान समझ लिया जाता है, पर ऐसा है नहीं। त्याग बना है 'त्यज्' धातु से, जिसका अर्थ है छोड़ना। लोक कल्याण के लिए कोई अपने सुखों का त्याग कर सकता है। परिवार के लिए, मित्रों की भलाई के लिए अपने किसी प्रिय वस्तु का त्याग किया जा सकता है। त्याग में 'छोड़ना' तो होता है, पर इसके मूल में किसी के प्रति भलाई की भावना अंतर्निहित है। 'बलिदान' के मूल में भी 'त्याग' ही है, पर यह सबसे बड़ा त्याग है। किसी के भले के लिए, देश-समाज के लिए प्राण की आहुति देना बलिदान है।


इन्हें भी देखें: समरूपी भिन्नार्थक शब्द एवं अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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