वालचंद हीराचंद
वालचंद हीराचंद
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पूरा नाम | वालचंद हीराचंद |
जन्म | 22 नवम्बर, 1882 |
जन्म भूमि | ज़िला शोलापुर, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 8 अप्रैल, 1953 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | उद्योगपति और व्यापारी |
प्रसिद्धि | उद्योगपतिय |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | वालचंद हीराचंद ने जहाज़ों के निर्माण के लिए विशाखापट्टनम में कारखाना स्थापित किया था। स्वतंत्रता के बाद सरकारी प्रबंध में देश का यह एक बड़ा जहाज़ी कारखाना है। बंगलौर में हवाई जहाज़ निर्माण का कारखाना बना था। |
वालचंद हीराचंद (अंग्रेज़ी: Walchand Hirachand, जन्म- 22 नवम्बर, 1882, ज़िला शोलापुर, महाराष्ट्र; मृत्यु- 8 अप्रैल, 1953) भारत के प्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक थे। ये उद्योगों के स्तर पर देश को उन्नत करने और विदेशियों का सामना करने में अग्रणी थे। वालचंद हीराचंद ने जहाज़ों के निर्माण के लिए विशाखापट्टनम में कारखाना स्थापित किया था।[1]
परिचय
वालचंद हीराचंद का जन्म 22 नवम्बर, 1882 ई. को शोलापुर (महाराष्ट्र) में एक जैन परिवार में हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद वे पिता के साथ पैतृक व्यवसाय में लग गए थे। साथ ही उनकी रुचि सार्वजनिक कार्यों की ओर भी थी। वालचंद का व्यक्तिगत जीवन बहुत सादा था। वे अंतरजातीय विवाह को छोड़कर और किसी प्रकार का भेदभाव नहीं मानते थे।[1]
देश निर्माण का संकल्प
1906 की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता दादा भाई नौरोजी ने की। युवक वालचंद वहां उपस्थित थे। दादा भाई ने देश के पुनर्निर्माण के लिए जो मार्मिक अपील की उसने युवक का हृदय छू लिया। वालचंद हीराचंद ने अपने ढंग से देश निर्माण का संकल्प लिया। भारत उस समय ब्रिटेन के लिए कच्चा माल तैयार करने वाला विवश देश था। फिर वही माल भारत लाकर बेचकर अंग्रेज़ दोहरा लाभ उठाते थे। वालचंद ने भारत में मूल उद्योगों की स्थापना का बीड़ा उठा कर इस शोषण को रोकने की दिशा में कदम उठाये थे।
उद्योगिक विकास
वालचंद हीराचंद ने जहाज़ों के निर्माण के लिए विशाखापट्टनम में कारखाना स्थापित किया था। स्वतंत्रता के बाद सरकारी प्रबंध में देश का यह एक बड़ा जहाज़ी कारखाना है। बंगलौर में हवाई जहाज़ निर्माण का कारखाना बना था। कुर्ला (मुंबई) में मोटर का नर्माण आरंभ हुआ था। वे चीनी उद्योग, भवन निर्माण आदि अन्य क्षेत्रों में भी अग्रणी थे। वालचंद हीराचंद मानते थे कि उद्योगों के विकास से देश में बेरोजगारी दूर करने में भी सहायता मिलेगी। वे बड़े व्यावहारिक व्यक्ति थे जो कहते, उसे करके दिखाते थे।[1]
निधन
8 अप्रैल, 1953 को वालचंद हीराचंद का देहांत हो गया था।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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