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'''शिव वर्मा''' (जन्म- 9 फरवरी, 1907, हरदोई जिले, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 10 जनवरी, 1997, कानपुर) उत्तर भारत के विख्यात क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। वे मार्क्सवादी साहित्य से प्रभावित होकर कम्युनिस्ट बन गए।
 
==परिचय==
 
उत्तर भारत के विख्यात क्रांतिकारी शिव वर्मा का जन्म 9 फरवरी 1907 को उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में हुआ था। राष्ट्रीयता की भावना के कारण असहयोग आंदोलन में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने विद्यालय की पढ़ाई छोड़ दी थी।  जब गांधी जी ने 1922 में आंदोलन वापस ले लिया तो शिव वर्मा अध्ययन जारी रखने के लिए कानपुर आ गए।  यहां उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और शीघ्र ही भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि से उनकी निकटता हो गई। वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी नामक क्रांतिकारी संगठन के केंद्रीय समिति के सदस्य  तथा उत्तर प्रदेश में  उसके मुख्य संगठनकर्ता थे। 
 
==कम्युनिस्ट==
 
शिव वर्मा अंडमान में मार्क्सवादी साहित्य का अध्ययन करने के बाद पक्के कम्युनिस्ट बन गए। लाहौर, मद्रास, नैनी आदि जिलों में रहने के बाद छूटने पर उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और दल के विचारों के प्रचार के लिए अंत तक काम करते रहे।
 
  
उत्तर भारत के विख्यात क्रांतिकारी शिव वर्मा का जन्म 9 फरवरी 1907 को उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में हुआ था। राष्ट्रीयता की भावना के कारण असहयोग आंदोलन में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने विद्यालय की पढ़ाई छोड़ दी थी।  जब गांधी जी ने 1922 में आंदोलन वापस ले लिया तो शिव वर्मा अध्ययन जारी रखने के लिए कानपुर आ गए।  यहां उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और शीघ्र ही भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि से उनकी निकटता हो गई। वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी नामक क्रांतिकारी संगठन के केंद्रीय समिति के सदस्य  तथा उत्तर प्रदेश में  उसके मुख्य संगठनकर्ता थे। 
 
काकोरी कांड में  फांसी लगने से 1 दिन पहले शिव वर्मा भाई बनकर गोरखपुर जेल में रामप्रसाद बिस्मिल से मिले थे।  कई क्रांतिकारी कार्यों में भाग लेने के आरोप में उन्हें 1929 में गिरफ्तार कर लिया गया और द्वितीय लाहौर षड्यंत्र केस मैं आजीवन कारावास की सजा देकर अंडमान जेल भेज दिया गया।  अंडमान में मार्क्सवादी साहित्य का अध्ययन करके शिव वर्मा पक्के कम्युनिस्ट बन गए।  लाहौर मद्रास, नैनी आदि जिलों में रहने के बाद छूटने पर  उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और दल के विचारों के प्रचार के लिए अंत तक काम करते रहे। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें क्रांतिकारियों के संस्मरणों की संस्मृतियां मुख्य है।  10 जनवरी 1997 ईस्वी को कानपुर में निधन हो गया।
 
भारतीय चरित्र कोश 845
 

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