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'''विष्णु वर्धन''' (जन्म- मृत्यु-) जैन धर्मावलंबी था  बाद में इसने वैष्णव धर्म ग्रहण करके अपना पुराना नाम भी त्याग दिया और विष्णुवर्धन नाम धारण कर लिया।
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'''विष्णु शरण दुबलिश''' (जन्म- [[2 अक्टूबर]], [[1899]], [[मेरठ ज़िला]]) स्वतंत्रता सेनानी और रजनीतिज्ञ थे। [[स्वतंत्रता आंदोलन|स्वतंत्रता आंदोलनों]] के दौरान उन्हें कठोर कारावास की सजा हुई। वे [[विधानसभा]] और [[संसद]] के सदस्य भी रहे।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
द्वारसमुद्र का होयसल राजा जिसने 1110 ई. से 1141 ई तक राज्य किया। उनहोंने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त करके अपने राज्य का विस्तार किया। पहले वे जैन धर्मावलंबी थे और उनका नाम  बिहिदेव या बिहिग था। बाद में उन्होंने वैष्णव धर्म ग्रहण करके अपना पुराना नाम भी त्याग दिया और विष्णुवर्धन नाम रख लिया। विष्णुवर्धन को भव्य मंदिर निर्माण का शोक था। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=804|url=}}</ref>
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय कार्यकर्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी विष्णु शरण दुबलिश का जन्म [[2 अक्टूबर]] [[1899]] ईसवी को [[मेरठ ज़िला|मेरठ जिले]] के मखाना गांव में एक आर्यसमाजी परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा [[मेरठ]] में हुई। बी. ए. की पढ़ाई कर रहे थे तभी [[गांधीजी]] के [[असहयोग आंदोलन]] में शामिल हो गए और गिरफ्तार कर लिए गए। बाद में जेल से बाहर आने पर उन्होंने बी.ए.की शिक्षा पूरी की। जेल में रहते समय दुबलिश का संपर्क क्रांतिकारी साहित्य से हुआ और उनके विचारों में यह परिवर्तन आया कि स्वराज प्राप्ति के लिये गांधीजी के [[अहिंसा]] के मार्ग के स्थान पर सशस्त्र क्रांति का मार्ग अधिक कारगर है।
== वैष्णव धर्म प्रचारक==
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== क्रांतिकारी विचार  ==
विष्णु वर्धन ने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण कराया। बेलूर और हलेविड में कुछ मंदिर आज भी विद्यमान है। हलेविड का 11 सज्जा पट्टियों वाला मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। इसकी प्रत्येक पट्टी 700 फुट या उससे भी अधिक लंबी है और वे पशु पक्षियों तथा वृक्ष लताओ की आकृतियों से अलंकृत हैं। विष्णुवर्धन के इस मंदिर को कौशल और मानव श्रम का अनुपम उदाहरण माना जाता है।
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क्रांतिकारी साहित्य और प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचिन्द्र नाथ सान्याल के संपर्क में आने से विष्णु शरण दुबलिश क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति बन गये। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य बन गए। इस क्रांतिकारी दल में शीघ्र ही उनका महत्वपूर्ण स्थान बन गया। बताया जाता है कि 1925 की प्रसिद्ध काकोरी कांड की योजना को इन्हीं के घर पर अंतिम रुप दिया गया था।
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==जेल जीवन==
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काकोरी कांड के बाद 1925 में वे गिरफ्तार हुए और मुकदमे में 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा मिली। जेल में अधिकारियों के साथ संघर्ष हो जाने के कारण दुबलिश को आजन्म कैद की सजा देकर अंडमान भेज दिया। प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें बन जाने पर 1 नवंबर 1937 को वे रिहा हो सके। जेल में दुबलिश के विचारों में पुन: परिवर्तन हुआ और वे कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य चुना गया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण उन्हें फिर जेल में बंद कर दिया गया।
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==योगदान==
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स्वतंत्रता के बाद  दुबलिश जी का प्रदेश के पश्चिमी जिलों में स्वदेशी और ग्राम उद्योगों को प्रोत्साहित करने में विशेष योगदान रहा है। वे उत्तर प्रदेश की विधानसभा और संसद के सदस्य भी रहे।
  
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय कार्यकर्ता  विष्णु शरण दुबलिश का जन्म मेरठ जिले के मखाना गांव में 2 अक्टूबर 1899 ईसवी को एक आर्यसमाजी परिवार में हुआ था।उनकी शिक्षा मेरठ में हुई b.a. के विद्यार्थी थे तभी गांधी जी के असहयोग आंदोलन में बाहर आ गए और गिरफ्तार कर लिए गए बाद में जेल से बाहर आने पर उन्होंने बी.ए.की शिक्षा पूरी की।
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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  जेल जीवन में दुबलिश का संपर्क क्रांतिकारी साहित्य से हुआ उनके विचारों में परिवर्तन आया उन्होंने गांधी जी के अहिंसा के मार्ग के स्थान पर सशस्त्र क्रांति को स्वराज प्राप्ति का अधिक कारगर साधन समझा। जेल से बाहर आने पर प्रसिद्ध क्रांतिकारी सचिंद्र नाथ सान्याल के संपर्क में आए और हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य बन गए। इस क्रांतिकारी दल में शीघ्र ही उनका महत्वपूर्ण स्थान बन गया। कहते हैं 1925 की प्रसिद्ध काकोरी कांड की योजना को इन्हीं के घर पर अंतिम रुप दिया गया था काकोरी कांड के बाद 1925 में यह भी गिरफ्तार हुए और मुकदमे में 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा मिली जेल में अधिकारियों के साथ संघर्ष हो जाने के कारण दुबलिशजी  को आजन्म कैद की सजा देकर अंडमान भेज दिया।  प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें बन  जाने पर 1 नवंबर 1937 को वे रिहा हो सके।
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जेल में दुबलिश के विचारों में फिर परिवर्तन हुआ और वह कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य चुना गया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण उन्हें फिर जेल में बंद कर दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद दुबलिश जी उत्तर प्रदेश विधानसभा और संसद के सदस्य भी रहे प्रदेश के पश्चिमी जिलों में स्वदेशी और ग्राम उद्योगों को प्रोत्साहित करने में उनका विशेष योगदान रहा है।  
==बाहरी कड़ियाँ==
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भारतीय चरित कोश 804
==संबंधित लेख==
 
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द्वारसमुद्र का  होयसल राजा जिसने 1110 इस विषय 1141 ईस्वी तक राज्य किया।  उसने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त करके अपने राज्य का विस्तार किया। तत्कालीन धार्मिक दृष्टि से एक विशेष महत्व प्राप्त है पहले यह जैन धर्मावलंबी था और उसका नाम  बिहिदेव या बिहिग था। बाद में इसने वैष्णव धर्म ग्रहण करके अपना पुराना नाम भी त्याग दिया और विष्णुवर्धन नाम धारण कर लिया। वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए इसने अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण कराया। बेलूर और हलेविड में कुछ मंदिर आज भी विद्यमान है। हलेविड का 11 सज्जा पट्टियों वाला मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। इसकी प्रत्येक पट्टी 700 फुट या उससे भी अधिक लंबी है और वे पशु पक्षियों तथा वृक्ष लताओ की आकृतियों से अलंकृत हैं। विष्णुवर्धन की इस मंदिर को कौशल और मानव श्रम का  अनुपम उदाहरण माना जाता है।
 
भारतीय चरित कोश 804
 

12:31, 5 जुलाई 2018 का अवतरण

विष्णु शरण दुबलिश (जन्म- 2 अक्टूबर, 1899, मेरठ ज़िला) स्वतंत्रता सेनानी और रजनीतिज्ञ थे। स्वतंत्रता आंदोलनों के दौरान उन्हें कठोर कारावास की सजा हुई। वे विधानसभा और संसद के सदस्य भी रहे।

परिचय

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय कार्यकर्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी विष्णु शरण दुबलिश का जन्म 2 अक्टूबर 1899 ईसवी को मेरठ जिले के मखाना गांव में एक आर्यसमाजी परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा मेरठ में हुई। बी. ए. की पढ़ाई कर रहे थे तभी गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए और गिरफ्तार कर लिए गए। बाद में जेल से बाहर आने पर उन्होंने बी.ए.की शिक्षा पूरी की। जेल में रहते समय दुबलिश का संपर्क क्रांतिकारी साहित्य से हुआ और उनके विचारों में यह परिवर्तन आया कि स्वराज प्राप्ति के लिये गांधीजी के अहिंसा के मार्ग के स्थान पर सशस्त्र क्रांति का मार्ग अधिक कारगर है।

क्रांतिकारी विचार

क्रांतिकारी साहित्य और प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचिन्द्र नाथ सान्याल के संपर्क में आने से विष्णु शरण दुबलिश क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति बन गये। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य बन गए। इस क्रांतिकारी दल में शीघ्र ही उनका महत्वपूर्ण स्थान बन गया। बताया जाता है कि 1925 की प्रसिद्ध काकोरी कांड की योजना को इन्हीं के घर पर अंतिम रुप दिया गया था।

जेल जीवन

काकोरी कांड के बाद 1925 में वे गिरफ्तार हुए और मुकदमे में 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा मिली। जेल में अधिकारियों के साथ संघर्ष हो जाने के कारण दुबलिश को आजन्म कैद की सजा देकर अंडमान भेज दिया। प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें बन जाने पर 1 नवंबर 1937 को वे रिहा हो सके। जेल में दुबलिश के विचारों में पुन: परिवर्तन हुआ और वे कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य चुना गया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण उन्हें फिर जेल में बंद कर दिया गया।

योगदान

स्वतंत्रता के बाद दुबलिश जी का प्रदेश के पश्चिमी जिलों में स्वदेशी और ग्राम उद्योगों को प्रोत्साहित करने में विशेष योगदान रहा है। वे उत्तर प्रदेश की विधानसभा और संसद के सदस्य भी रहे।


पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय कार्यकर्ता विष्णु शरण दुबलिश का जन्म मेरठ जिले के मखाना गांव में 2 अक्टूबर 1899 ईसवी को एक आर्यसमाजी परिवार में हुआ था।उनकी शिक्षा मेरठ में हुई b.a. के विद्यार्थी थे तभी गांधी जी के असहयोग आंदोलन में बाहर आ गए और गिरफ्तार कर लिए गए बाद में जेल से बाहर आने पर उन्होंने बी.ए.की शिक्षा पूरी की।

जेल जीवन में दुबलिश का संपर्क क्रांतिकारी साहित्य से हुआ उनके विचारों में परिवर्तन आया उन्होंने गांधी जी के अहिंसा के मार्ग के स्थान पर सशस्त्र क्रांति को स्वराज प्राप्ति का अधिक कारगर साधन समझा। जेल से बाहर आने पर प्रसिद्ध क्रांतिकारी सचिंद्र नाथ सान्याल के संपर्क में आए और हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य बन गए। इस क्रांतिकारी  दल में शीघ्र ही उनका महत्वपूर्ण स्थान बन गया।  कहते हैं 1925 की प्रसिद्ध काकोरी कांड की योजना को इन्हीं के घर पर अंतिम रुप दिया गया था काकोरी कांड के बाद 1925 में यह भी गिरफ्तार हुए और मुकदमे में 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा मिली जेल में अधिकारियों के साथ संघर्ष हो जाने के कारण दुबलिशजी  को आजन्म कैद की सजा देकर अंडमान भेज दिया।  प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें बन  जाने पर  1 नवंबर 1937 को वे रिहा हो सके। 

जेल में दुबलिश के विचारों में फिर परिवर्तन हुआ और वह कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य चुना गया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण उन्हें फिर जेल में बंद कर दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद दुबलिश जी उत्तर प्रदेश विधानसभा और संसद के सदस्य भी रहे प्रदेश के पश्चिमी जिलों में स्वदेशी और ग्राम उद्योगों को प्रोत्साहित करने में उनका विशेष योगदान रहा है। भारतीय चरित कोश 804