बिगरी बात बनै नहीं -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:00, 20 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('<div class="bgrahimdv"> बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय ।<br /> ‘रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय ।
‘रहिमन’ फाटे दूध को, मथै न माखन होय ॥

अर्थ

लाख उपाय क्यों न करो, बिगड़ी हुई बात बनने की नहीं। जो दूध फट गया, उसे कितना ही मथो, उसमें से मक्खन निकलने का नहीं।


पीछे जाएँ
रहीम के दोहे
आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख