"अब्दुल क़ादिर बदायूँनी" के अवतरणों में अंतर

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बदायूंनी, अब्दुल क़ादिर का जन्म 1540 में टोडा [[भारत]] में हुआ था। बदायूंनी, अब्दुल क़ादिर [[भारतीय]]-[[फ़ारसी]] इतिहासकार थे। बदायूंनी, अब्दुल क़ादिर भारत में [[मुग़ल काल|मुग़लकालीन]] इतिहास के प्रमुखतम लेखकों में से एक थे। बचपन में बदायूंनी बसबार में रहे और संभल व [[आगरा]] में उन्होंने अध्ययन किया। 1562 में वह बदायूं गए, वहाँ से [[पटियाला]] जाकर वह एक स्थानी राजा [[हुसैन ख़ाँ]] की सेवा में चले गए, जहाँ वह नौ वर्षों तक रहे। दरबार छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और विभिन्न मुस्लिम रहस्यवादियों के साथ अध्ययन किया। 1574 में बदायूंनी, अब्दुल क़ादिर मुग़ल बादशाह [[अक़बर]] के दरबार में पेश किए गए, जहाँ अक़बर ने उन्हें धार्मिक कार्यों के लिए नियुक्त किया और पेंशन भी दी।
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'''अब्द-उल क़ादिर बदायूँनी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Abd al-Qadir Bada'uni'', जन्म: 1540 - मृत्यु: 1615) [[फ़ारसी भाषा]] के भारतीय इतिहासकार एवं अनुवादक रहे थे। बदायूँनी का जन्म सन् 1540 ई. में [[बदायूँ]], [[भारत]] में हुआ था। अब्दुल क़ादिर भारत में [[मुग़ल काल|मुग़लकालीन]] इतिहास के प्रमुखतम लेखकों में से एक थे। बचपन में बदायूंनी बसबार में रहे और [[संभल]] व [[आगरा]] में उन्होंने अध्ययन किया। 1562 में वह बदायूं गए, वहाँ से [[पटियाला]] जाकर वह एक स्थानीय राजा हुसैन ख़ाँ की सेवा में चले गए, जहाँ वह नौ वर्षों तक रहे। दरबार छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और विभिन्न [[मुस्लिम]] रहस्यवादियों के साथ अध्ययन किया। 1574 में बदायूंनी मुग़ल बादशाह [[अकबर]] के दरबार में पेश किए गए, जहाँ अकबर ने उन्हें धार्मिक कार्यों के लिए नियुक्त किया और पेंशन भी दी। अब्दुल क़ादिर बदायूंनी की मृत्यु 1615 में भारत में हुई थी।
 
==कृतियाँ==
 
==कृतियाँ==
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अब्दुल क़ादिर बदायूँनी
Blankimage.png
पूरा नाम अब्द-उल क़ादिर बदायूँनी
अन्य नाम बदायूँनी
जन्म 1540 ई.
जन्म भूमि बदायूँ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1615 ई.
कर्म-क्षेत्र इतिहासकार और अनुवादक
मुख्य रचनाएँ 'किताब अल हदीस', 'मुंतख़ाब अत तवारीख़'
अन्य जानकारी महान इतिहासकार रशीदद्दीन द्वारा रचित जामी अद तवारीख़ जो कि सार्वभौतिक इतिहास है, का संक्षिप्त अनुवाद भी बदायूंनी ने किया।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

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अब्द-उल क़ादिर बदायूँनी (अंग्रेज़ी: Abd al-Qadir Bada'uni, जन्म: 1540 - मृत्यु: 1615) फ़ारसी भाषा के भारतीय इतिहासकार एवं अनुवादक रहे थे। बदायूँनी का जन्म सन् 1540 ई. में बदायूँ, भारत में हुआ था। अब्दुल क़ादिर भारत में मुग़लकालीन इतिहास के प्रमुखतम लेखकों में से एक थे। बचपन में बदायूंनी बसबार में रहे और संभलआगरा में उन्होंने अध्ययन किया। 1562 में वह बदायूं गए, वहाँ से पटियाला जाकर वह एक स्थानीय राजा हुसैन ख़ाँ की सेवा में चले गए, जहाँ वह नौ वर्षों तक रहे। दरबार छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और विभिन्न मुस्लिम रहस्यवादियों के साथ अध्ययन किया। 1574 में बदायूंनी मुग़ल बादशाह अकबर के दरबार में पेश किए गए, जहाँ अकबर ने उन्हें धार्मिक कार्यों के लिए नियुक्त किया और पेंशन भी दी। अब्दुल क़ादिर बदायूंनी की मृत्यु 1615 में भारत में हुई थी।

कृतियाँ

बादशाह द्वारा अधिकृत किए जाने पर बदांयूनी द्वारा लिखी गई बहुत सी कृतियों में सर्वाधिक सम्मानित कृति है- किताब अल हदीस (हदीस की किताब) है, जिसमें पैगंबर मुहम्मद के उपदेश हैं। यह पुस्तक आज मौजूद नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने तारीख़े हिज्र के हज़ार वर्ष पूरे होने पर इस पुस्तक की रचना करवाई थी, जिसमें दस से अधिक लेखकों ने काम किया था। महान् इतिहासकार रशीदद्दीन द्वारा रचित जामी अद तवारीख़ जो कि सार्वभौतिक इतिहास है, का संक्षिप्त अनुवाद भी बदायूंनी ने किया।

मुंतख़ाब अत तवारीख़

बदायूंनी, अब्दुल क़ादिर की सबसे महत्त्वपूर्ण किताब 'मुंतख़ाब अत तवारीख़' थी जिसका चुनाव इतिहास से किया गया था, जिसे अक्सर तारीख़े बदायूंनी (बदायूंनी का इतिहास) भी कहा जाता है। इसमें मुस्लिम भारत का इतिहास है और मुस्लिम धार्मिकों, चिकित्सकों, कवियों और विद्वानों पर अतिरिक्त खंड शामिल हैं। अकबर के धार्मिक नियमों की आलोचना किए जाने के कारण इस पुस्तक से विवाद का जन्म हुआ और 17वीं शताब्दी के आरंभ में जहाँगीर के शासनकाल तक इस पुस्तक को महत्त्व नहीं दिया गया। इन पुस्तकों के अलावा बदायूंनी को अनेक संस्कृत कथाओं और रामायणमहाभारत जैसे महाकाव्यों के अनुवाद का कार्य भी सौंपा गया।

हल्दी घाटी युद्ध

महाराणा प्रताप और उनके प्रिय घोड़े चेतक की गाथा को कौन नहीं जानता? लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हल्दीघाटी युद्ध का आंखों देखा हाल बदायूं के अब्दुल क़ादिर बदायूँनी ने लिखा है। यह युद्ध 18 जून, 1576 ईस्वीं में मेवाड़ और मुग़लों के बीच हुआ था। इसमें मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले हकीम ख़ाँ सूरी एकमात्र मुस्लिम सरदार थे। इस युद्ध में मुग़ल सेना का नेतृत्व राजा मानसिंह और आसफ़ ख़ाँ ने किया। युद्ध का आंखों देखा वर्णन बदायूं के अब्दुल क़ादिर बदायूँनी ने किया। युद्ध को आसफ़ ख़ाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी थी। युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की थी। वहीं ग्वालियर नरेश राजा रामशाह तोमर भी अपने तीन पुत्रों और पौत्र व सैकड़ों तोमर राजपूत योद्धाओं समेत मारे गए थे।


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