कपिल सिब्बल

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कपिल सिब्बल
Kapil-Sibal.jpg
पूरा नाम कपिल सिब्बल
जन्म 8 अगस्त, 1948
जन्म भूमि जालंधर, पंजाब
पति/पत्नी नीना सिब्बल
संतान दो पुत्र- अमित और अखिल
नागरिकता भारतीय
पार्टी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी
पद कैबिनेट मंत्री (मानव संसाधन मंत्रालय)
शिक्षा एम.ए. (इतिहास), एल. एल. बी., एल. एल. एम.
विद्यालय सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय और हार्वर्ड लॉ स्कूल
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
अन्य जानकारी चौदहवीं लोकसभा के गठन के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में विज्ञान एवं तकनीकी मामलों के साथ साथ भू-वैज्ञानिक मामलों के भी कैबिनेट मंत्री हैं।
अद्यतन‎
  • श्री कपिल सिब्बल एक भारतीय राजनीतिज्ञ, पूर्व वकील और भारत सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रीमंडल में मानव संसाधन मंत्रालय के मंत्री हैं।
  • कपिल सिब्बल दिल्ली के चाँदनी चौक लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं, एवं चौदहवीं लोकसभा के गठन के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में विज्ञान एवं तकनीकी मामलों के साथ साथ भू-वैज्ञानिक मामलों के भी कैबिनेट मंत्री हैं।

जीवन परिचय

कपिल सिब्बल जी का जन्म 8 अगस्त, 1948 जालंधर, पंजाब में हुआ। इनके पिताजी नाम श्री हीरा लाल सिब्बल और माताजी श्रीमती कैलाश रानी सिब्बल है। कपिल सिब्बल के पिताजी हीरा लाल सिब्बल एक प्रसिद्ध वकील थे जिन्हें सन 2006 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। कपिल सिब्बल 1964 में दिल्ली चले गए और सेंट स्टीफंस कॉलेज से इतिहास में एम.ए, दिल्ली विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. और 1977 में हार्वर्ड लॉ स्कूल से एल.एल.एम. उत्तीर्ण की। कपिल सिब्बल ने सन 13 अप्रॅल, 1973 में नीना सिब्बल से विवाह किया। उनके दो पुत्र अमित और अखिल हैं जिन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया है, और प्रतिष्ठित हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त कर भारत में वकालत की प्रेक्टिस कर रहे हैं।[1]

व्यक्तित्व परिचय

कपिल सिब्बल देश के सबसे महंगे वकीलों में से तो हैं ही, बल्कि वे कविताएं भी लिखते हैं। वे शायद दुनिया के अकेले ऐसे कवि होंगे जो अपने ब्लैकबेरी मोबाइल पर कविताएं लिखते हैं। उनका एक कविता संकलन छप चुका है और उसमें एक कविता है-

मुझे प्रेम का एसएमएस मत भेजना
क्योंकि मैं जल्दी मिटना नहीं चाहता
तुम तो मुझे इरेज कर दोगे।

कम लोगों को पता है कि कपिल सिब्बल तकनीकी विकास के मंत्री होने के नाते एक शोध दल के साथ दक्षिणी ध्रुव और अंर्टाटिका तक जा चुके हैं और शून्य से चालीस डिग्री नीचे के तापमान में हफ्तों रह चुके हैं। इस वैज्ञानिक दल का नेतृत्व भी उन्होंने किया था। वैसे वे 2005 और 2009 में विश्व आर्थिक फोरम डाबोस, स्विटजरलैंड भी जा चुके हैं और अमेरिका जा कर इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच बाकायदा दोस्ती और बाइज्जत दोस्ती की बात भी कर चुके हैं। [2]

राजनीतिक जीवन

राजनीति में कपिल सिब्बल पहली बार 1998 में राज्यसभा के जरिए लाए गए थे मगर नेतृत्व का हाल यह है कि इसके पहले तीन बार देश की सबसे बड़ी अदालत की बार काउंसिल के अध्यक्ष भी रह लिए थे। क़ानून जाहिर है अपनी हर शक्ल में कपिल सिब्बल की समझ में आता है और वे जेनेवा जा कर किसी भी कारण से अंधाधुंध बंदी बनाए जाने और इससे मानवाधिकारों का हनन होने की शिकायत करने जेनेवा तक पहुंच गए थे। अब भी वे अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के बोर्ड में शामिल हैं। कपिल सिब्बल की छवि और उपलब्धियों को देखते हुए सबको हैरत हो सकती है कि वे चांदनी चौक जैसे पुराने इलाके से चुनाव क्यों लड़ते हैं? उन्हें तो दक्षिण दिल्ली के अभिजात मतदाताओं का उम्मीदवार होना चाहिए। मगर ये लोग यह नहीं जानते कि कपिल सिब्बल ने इतिहास में एम.ए किया है और चांदनी चौक से ज्यादा जीवित इतिहास कहाँ मिलेगा। अब तक जो लिखा उससे कपिल सिब्बल की जीवन गाथा तो सामने आई लेकिन अब भी लोगों को हैरत हो रही होगी कि देश के सबसे सफल प्रशासकों में से एक माने जाने वाले अर्जुन सिंह से लिया हुआ मानव संसाधन विकास मंत्रालय उन्हें सौपा गया। उनकी जानकारी के लिए कपिल सिब्बल जब विज्ञान और तकनीक के मंत्री बने थे तो इस मंत्रालय के बारे में ज्यादातर लोगों को पता तक नहीं था। इस बेहोश मंत्रालय को कपिल सिब्बल ने जीवित किया और खास तौर पर बीमार मौसम विभाग का कायाकल्प कर दिया। कपिल सिब्बल के सामने सबसे ज्यादा चुनौतियां है। एक तो उन्हें अर्जुन सिंह द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय को दिए गए प्रगतिशील और एक हद तक वामपंथी चेहरे को बरकरार ही नहीं रखना है बल्कि इसे अनाचार और भ्रष्टाचार से मुक्त भी करवाना है। संविधान के वे जानकार है और इसीलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अर्जुन सिंह द्वारा शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने वाले विधेयक को क़ानून बनाने में कामयाब होंगे। अर्जुन सिंह और मनमोहन सिंह के बीच संदेह की जो खाइयाँ थी, उम्र की जो बराबरी थी वह मामला कपिल सिब्बल के साथ नहीं हैं और इसीलिए उन्हें उनकी योजनाओं में सरकार के शिखर नेतृत्व का समर्थन मिलना स्वाभाविक है।

कार्य क्षमता

भारत में शिक्षा एक मुद्दा ही नहीं बल्कि देश के अस्तित्व के सामने खड़ा एक निहायत जरूरी सवाल है। सरकारी नारे कहते हैं कि सब पढ़े और सब बढ़े मगर शिक्षा या तो बहुत कुलीन और रईस लोगों के लिए सीमित है जो अपने बच्चों पर हजारों रुपए खर्च कर सकते हैं या फिर उस आम बच्चे के लिए शिक्षा का अर्थ अभी निर्धारित किया जाना है जो अब तक स्कूल सिर्फ इसलिए जाता है क्योंकि वहाँ दोपहर को पेट भरने के लिए दलिया मिल जाता है। कपिल सिब्बल को यह याद दिलाने की जरूरत नहीं कि शिक्षा एक धड़कते हुए लोकतंत्र में जनता पर किया जाने वाला उपकार नहीं बल्कि जनता का हक है। यह हक उसे संविधान से क्यों नहीं मिला, यही हैरत की बात है। यह सही है कि सरकार बढ़े शिक्षा बाजार की तरह महंगे स्कूल चला कर अपने उद्देश्यों में कामयाब नहीं हो सकती लेकिन केंद्रीय विद्यालयों और नवोदय स्कूलों का विराट विस्तार कर के गुणवत्ता वाली शिक्षा को सबके लिए सुलभ बनाया जा सकता है। लगभग यही हाल उच्च शिक्षा के मामले में है। विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय भारत में कई है और बहुत से खोले जा सकते हैं। इनकी डिग्रियों और उपाधियों को खगोलीय मान्यता मिले इसके लिए जरूरी है कि इस मान्यता को प्रमाणिकता और सरकार के साथ समाज का भी पूरा समर्थन प्राप्त हो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. People maxabout (अंग्रेजी) (एचटीएम)। । अभिगमन तिथि: 25 सितंबर, 2010।
  2. जनादेश (हिन्दी) (ए.एस.पी.एक्स)। । अभिगमन तिथि: 25 सितंबर, 2010।

बाहरी कड़ियाँ