क़ुर्रतुलऐन हैदर

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क़ुर्रतुलऐन हैदर का (जन्म-1927 अलीगढ़, उत्तर प्रदेश), में हुआ था। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित उर्दू की प्रसिद्ध लेखिका है।

जीवन परिचय

क़ुर्रतुलऐन हैदर के पिता सज्जाद हैदर यिल्दिरम अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार थे। क़ुर्रतुलऐन हैदर के परिवार मे तीन पीढियों से लिखने की परंपरा रही। क़ुर्रतुलऐन हैदर के पिता की गणना उर्दू के प्रतिष्ठित कथाकारों में होती है। क़ुर्रतुलऐन हैदर की माँ नज़र सज्जाद हैदर ‘उर्दू’ की जेन ‘ऑस्टिन’ कहलाती थीं। क़ुर्रतुलऐन को बचपन से ही लिखने का शौक रहा प्रारंभ में उन्होंने बच्चो के लिए कुछ कहानियाँ लिखीं। क़ुर्रतुलऐन की पहली मौलिक कहानी प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका साक़ी में प्रकाशित हुई। संपादकीय में इसकी प्रशंसा विशेष उल्लेख के साथ की गई थीं। इस कहानी से क़ुर्रतुलऐन हैदर को काफ़ी प्रोत्साहन मिला और वह निरंतर लिखती चली गई। अपने लेखन में उन्होने कभी किसी के अनुकरण का प्रयास नही किया, जो कुछ भी लिखा अपने जीवनानुभव, कल्पना और चिंतन के आधार पर ही लिखा।

शिक्षा

1947 में क़ुर्रतुलऐन ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.किया। इसी वर्ष क़ुर्रतुलऐन हैदर की कहानियों का पहला संग्रह, सितारो के आगे प्रकाशित हुआ। इसमे संकलित लगभग सभी कहानियां उर्दू में अपने ढंग की अनूठी रचनाएँ थी। क़ुर्रतुलऐन हैदर ने घटनाओं की अपेक्षा उनसे जन्म लेने वाली अनुभूतियों और संवेदनाओ को विशेष महत्व दिया। इन कहानियों द्वारा पाठक के सम्मुख एक अपरिचित सी दुनिया प्रस्तुत की गई जिसमें जीवन की अर्थहीनता का सकेत था हर तरफ छाई हुई धुंध थी। एक मनोग्राही शायराना उदासी थीं। क़ुर्रतुलऐन हैदर 1950 से 1960 के मध्य लंदन मे रही। भारत लोटने के बाद उन्होने बम्बई में इम्प्रिट के प्रबंध संपादक का पद संभाला। उसके बाद लगभग सात वर्ष वह इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया के संपादन विभाग से सबंद्ध में रही। कथा लेखन के अलावा ललित कलाओं, ख़ासकर संगीत और चित्रकला में भी उनकी गहरी रुचि है। गर्दिशे रंगे चमन में उनके रेखांकन प्रकाशित हुए है। क़ुर्रतुलऐन हैदर का पहला उपन्यास मेरे भी सनमख़ाने 1949 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास भारत की समन्वित संस्कृति के माध्यम से मानवता की त्रासदी प्रस्तुत करता है। भारत की वह सामाजिक संस्कृति, जो यहाँ रहने वाले हिंदू मुस्लिम समुदायों के लिए एकता और प्रेम का प्रसाद और गौरव का प्रतीक थी, देश-विभाजन के बाद वह खंडित हो गई। यह पीड़ा मेरे भी सनमख़ाने में लखनऊ के कुछ आदर्शवादी अल्हड़ एवं जीवंत लड़के लड़कियों की सामूहिक व्यथा–कथा के माध्यम से बड़े ही मार्मिक रुप में दर्शाई गई है। 1952 में क़ुर्रतुलऐन हैदर का दूसरा उपन्यास सफ़ीना–ए–गमे दिल और 1954 में उनका दूसरा कहानी संकलन शीशे के घर प्रकाशित हुआ। इस संकलन में जलावतन यह दाग़ दाग़ उजाला और लंदन कहानियां विशेष उल्लेखनीय है। दिसंबर 1959 में क़ुर्रतुलऐन हैदर का सुप्रसिध उपन्यास आग का दरिया प्रकाशित हुआ जिसने साहित्य जगत मे तहलका मचा दिया। यह उपन्यास अपनी भाषा शैली, रचना-शिल्प, विषय–वस्तु और चिंतन, हर दृष्टि से एक नई पंरपरा का सूत्रपात करता है। कारे-जहाँ-दराज़ है, के बाद क़ुर्रतुलऐन हैदर के तीन और उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। एक उपन्यासकार के रूप मे क़ुर्रतुलऐन हैदर की गणना उर्दू के महान साहित्यकारों में की जाती है।

उपन्यास

  • मेरे भी सनमख़ाने (1949)
  • सफ़ीना-ए-गमे-दिल (1952)
  • आग का दारिया (1959)
  • आख़िरी शब के हमसफ़र (1979)
  • गर्दिशे–रंगे-चमन (1987)
  • चांदनी बेगम (1990)
  • कारे-जहाँ-दराज़ है। (1978-79)
  • शीशे के घर (1952)
  • पतझर की आवाज़ (1967)
  • रोशनी की रफ़्तार (1982)

पुरस्कार

क़ुर्रतुलऐन हैदर को साहित्य अकादमी पुरस्कार (1967) सोवियत लैंड़ नेहरु पुरस्कार (1969), गालिब अवार्ड (1985), इक़बाल सम्मान (1987), और ज्ञांपीठ पुरस्कार (1991), से सम्मानित किया गया।


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