पर्यावरण
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पर्यावरण (अंग्रेजी: Envoirment) भौतिक वातावरण का द्योतक है। पर्यावरण 'Envoirment' का हिन्दी रूपान्तरण हैं, जो फ्रेंच शब्द 'Invoiren' से बना है। 'Invoirn' का अर्थ हैं - आसपास का आवरण।
हिन्दी शब्द पर्यावरण का ‘परि’ तथा ‘आवरण’ शब्दों का युग्म है। ‘परि’ का अर्थ हैं - ‘चारों तरफ’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ हैं - ‘घेरा’ अर्थात् प्रकृति में जो भी चारों ओर परिलक्षित है यथा- वायु, जल, मृदा, पेड़-पौधे तथा प्राणी आदि सभी पर्यावरण के अंग हैं। आक्सफोर्ड एडवान्स्ड लर्नर्स डिक्शनरी आफ करेंट इंग्लिश के अनुसार इनवायरमेंट का अर्थ है - आसपास की वस्तु स्थिति, परिस्थितियां अथवा प्रभाव। चेम्बर्स ट्वैन्टीएथ सेन्यचुरी डिक्शनरी में इनवायरमेंट अर्थात् पर्यावरण का अर्थ विकास या वृद्धि को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों से है। देश के पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 2 (क) के अनुसार पर्यावरण में वायु, जल, भूमि, मानवीय प्राणी, अन्य जीव-जन्तु, पौधे, सूक्ष्म जीवाणु और उनके मध्य विद्यमान अन्तर्सम्बन्ध सम्मिलित हैं।
सभी भूगोलविदों का सन्दर्भ विषय मुख्य रूप से मनुष्य का पर्यावरण रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य का अन्य जीव-जन्तुओं तथा पादप जीवन से अलग अस्तित्व किसी भी परिस्थित में सम्भव नहीं है। पार्क ने उन दशाओं के योग को पर्यावरण माना है, जो निश्चित समय में निश्चत स्थान पर मनुष्य को आवृत करती हैं। हर्सकोविट्स उन सभी बाहरी दशाओं और प्रभावों के योग को पर्यावरण मानते हैं जो प्राणी के जीवन और विकास को प्रभावित करते हैं। पर्यावरण की समता प्रकृति से की गयी हैं। प्रकृति में पाये जाने वाले निर्जीव भौतिक घटकों - वायु, जल, मृदा आदि तथा जैविक घटकों - पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, सूक्ष्म जीवाणु आदि के आधार पर पर्यावरण को मुख्यतः भौतिक एवं जैविक पर्यावरण में विभाजित किया गया है। ए. गाउजी ने अपनी पुस्तक ‘The Nature of Invoirment’ में पृथ्वी के भौतिक घटकों को ही पर्यावरण का प्रतिनिधि माना है। उनके अनुसार पर्यावरण को प्रभावित घटकों को ही पर्यावरण का प्रतिनिधि माना है। उनके अनुसार पर्यावरण को प्रभावित करने में मनुष्य एक महत्त्वपूर्ण कारक है। मैकाइवर के अनुसार पृथ्वी का धरातल और उसकी समस्त प्राकृतिक दशाएं, प्राकृतिक संसाधन, भूमि, जल, पर्वत, मैदान पदार्थ, पौधे, पशु तथा सम्पूर्ण प्राकृतिक शक्तियां, जो पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत आती है। ध्यातव्य हैं कि भौतिक पर्यावरण तथा जैविक पर्यावरण एक दूसरे को प्रभावित करते है। तात्पर्य यह है कि भौतिक पर्यावरण बदलने से जैविक पर्यावरण भी बदल जाता है।
पर्यावरण के प्रकार
भौतिक घटकों की तीन अवस्थाओं ठोस, द्रव तथा गैस के आधार पर भौतिक पर्यावरण की तीन श्रेणियाँ है
- स्थलमण्डलीय पर्यावरण
- जलमण्डलीय पर्यावरण
- वायुमण्डलीय पर्यावरण
इसी प्रकार जैविक घटकों की दो कोटियों-वनस्पति एवं जन्तु के आधार पर जैविक पर्यावरण की दो श्रेणियों हैं
- वानस्पतिक पर्यावरण
- जन्तु पर्यावरण
विभिन्न जीवधारियों द्वारियों सामाजिक समूह एवं संगठन की रचना करने के कारण सामाजिक पर्यावरण का निर्माण होता है, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक जीवधारी को अपने जीवन-निवार्ह, अस्तित्व एवं संबर्द्धन के लिए भौतिक पर्यावरण से पदार्थो को प्राप्त करना पड़ता है, फलस्वरूप आर्थिक पर्यावरण का निर्माण होता है। इसी प्रकार मानव द्वारा सांस्कृतिक एवं राजनीतिक पर्यावरण का निर्माण होता है।
पर्यावरण की गतिशीलता
पर्यावरण की प्रकृति गतिशील है। भौतिक तथा जैविक पर्यावरण के तत्वों में सदैव कुछ न कुछ परिवर्तन होता रहता है। स्थलाकृतियों के स्वरूप में भी कभी अचानक तो कभी धीरे-धीरे परिवर्तन होते हैं। ये समस्त परिवर्तन सूर्य की ऊर्जा के कारण होते हैं। ध्यातव्य है कि सूर्य, पृथ्वी और उसके वायुमण्डल को समान रूप से गर्म नहीं करता हे जिसकी वजह से वायु और जल का परिसंचरण होता है, परिणामस्वरूप विभिन्न ऋतुओं की जलवायु की दशाओं में परिवर्तन हो जाता है। भौतिक पर्यावरण में बहुत बड़े परिवर्तन भी हुए हैं, जिसकी वजह से पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं की कुछ जातियाँ विलुप्त हो गयीं तथा नये भौतिक पर्यावरण के अनुरूप पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं की नई जातियों का विकास हुआ। आज से क़रीब साढ़े छह करोड़ वर्ष पूर्व पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं की अनेक जातियां बहुत बड़ी संख्या में विलुप्त हो गयी। मनुष्य का विकास भी लगभग दस लाख वर्ष पूर्व पर्यावरण में आये परिवर्तन के कारण ही हुआ था।
पर्यावरण के कारक
जिस पर्यावरण में जीव रहते हैं, वह पर्यावरण कारकों के पारस्पिरक सम्बन्धों का एक जटिल सम्मिरण है। चूंकि पर्यावरण का प्रभाव जीवधारियों पर पड़ता है, इसलिए इसके कारकों का अध्ययन आवश्यक है। पर्यावरण का प्रत्येक भाग जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जीवन को प्रभावित करता है, पर्यावरणीय कारक कहलाता है। पर्यावरणीय कारक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।
पारिस्थितिक कारकों को जैविक कारक, वायुमण्डलीय कारक तथा अग्रि कारक में विभाजित किया गया है। जैविक कारकों के अन्तर्गत प्राणियों के जैविक सम्बन्ध, पौधों के जैविक सम्बन्ध, प्राणियों का पौधों पर प्रभाव एवं मानव का योगदान आते हैं, जबकि अजैविक कारकों को भौतिक एवं रासायनिक कारकों में विभाजित किया गया है। भौतिक कारकों के अन्र्तगत ताप कारक एवं प्रकाश कारक आते हैं। रासायनिक कारकों में जल कारक एवं मृदा कारक सम्मिलित हैं।
- पर्यावरण के दो भाग होते हैं
- भौतिक पर्यावरण (अजैविक पर्यावरण)
- जैविक पर्यावरण
- भौतिक पर्यावरण के तीन भाग हैं
- स्थलमण्डलीय पर्यावरण
- जलमण्डलीय पर्यावरण
- वायुमण्डलीय पर्यावरण
- जैविक पर्यावरण के दो भाग हैं
- वानस्पति पर्यावरण
- जन्तु पर्यावरण
- वानस्पति पर्यावरण के चार भाग हैं
- सामाजिक पर्यावरण
- सांस्कृतिक पर्यावरण
- आर्थिक पर्यावरण
- राजनीतिक पर्यावरण
भौतिक संघटक
पर्यावरण के तीन भौतिक संघटक हैं-
- अजैविक या भौतिक संघटक
- जैविक संघटक
- ऊर्जा संघटक
पर्यावरण सम्मेलन
पर्यावरण के सम्बन्ध में विश्व स्तर पर सम्पन्न प्रमुख सम्मेलन निम्नवत् हैं -
- पर्यावरण प्रदूषण पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन
- मानव पर्यावरण स्टॉकहोम सम्मेलन, 1972।
- नैरोबी सम्मेलन (नैरोबी घोषणा), 1982।
- ओजोन परत संरक्षण वियना अभिसमय, 1985।
- ओजोन परत संरक्षण वियना अभिसमय, 1985 द्वितीय।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण तथा विकास सम्मेलन (पृथ्वी सम्मेलन), 1989।
- द्वितीय संयुक्त राष्ट्र मानव सम्मेलन (हैबिटेट द्वितीय), 1996।
- क्योटो सम्मेलन, 1997।
- पृथ्वी सम्मेलन द्वितीय, 2002।
- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, 2007।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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