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− | {राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के अध्यक्ष कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-90
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− | +डॉ. अशोक वाजपेयी
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− | -प्रो. शंखो चौधरी
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− | -आनंद देव
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− | -राम निवास मिर्धा
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− | ||ललित कला अकादमी स्वतंत्र भारत में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो 5 अगस्त, 1954 को भारत सरकार द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो भारत सरकार द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली के रबीन्द्र भवन में है। इसके अतिरिक्त भुवनेश्वर, चेन्नई, गढ़ी (दिल्ली), कोलकत्ता, लखनऊ एवं शिमला में क्षेत्रीय कार्यालय है। प्रश्नकाल में डॉ. अशोक वाजपेयी (अप्रैल, 2008-दिसंबर, 2011) इसके अध्यक्ष थे। वर्तमान में कल्याण कुमार चक्रवर्ती (12 फरवरी, 2012 से) इसके अध्यक्ष हैं।
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− | {किस वेद में चमड़े पर 'अग्नि' के देवता के चित्र का उल्लेख है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-364
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− | -अथर्ववेद
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− | -यजुर्वेद
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− | -सामवेद
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− | +ऋग्वेद
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− | ||ऋग्वेद में चमड़े पर बने अग्नि देवता के चित्र का उल्लेख है। इस चित्र को यज्ञ के समय लटकाया जाता था और यज्ञ की समाप्ति पर लपेट लिया जाता था। इसमें भृगु ऋषि के वंशजों को लकड़ी के काम में दक्ष बताया गया है। ऋग्वेद में यज्ञशालाओं के चारों ओर की चौखटों पर बनी स्त्री देवियों की आकृतियों का भी उल्लेख आया है। ये देवियां ऊषा तथा रात्रि की प्रतीक थीं।
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− | {सिलिंडर सील का संबंध निम्न में से किस कला से है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-17
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− | -मिस्त्र की कला
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− | +मेसोपोटामिया की कला
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− | -भारतीय कला
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− | -ईरान की कला
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− | ||सिलिंडर सील का संबंध मेसोपोटामिया की कला से है। 3500 ईसा पूर्व के आस-पास सिलिंडर सील का आविष्कार हुआ। यह एक बेलन था जिस पर चित्रों को उकेरा गया था जिसे गीली मिट्टी पर रोल करके तस्वीरों में कहानी को उत्कीर्ण किया जाता था।
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− | {किस स्थान पर भारतीय पूर्व ऐतिहासिक चित्रकारी के नमूने मिलते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-6
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− | -होशंगावाद
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− | -अयोध्या
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− | +भोमबेटका
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− | -औरंगाबाद
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− | ||प्रकृति के विशाक प्रांगन में प्राकृतिक गुफाओं का अद्भुत संसार भीमबेटका के दोनों ओर बसा हुआ है जिसमें कभी प्रागैतिहासिक मानवों ने प्राकृतिक आपदाओं के समय शरण लिया होगा और बाद में उसमें निवास करने लगा होगा। यहां लगभग 700 गुफाएं हैं। जिनमें से 400 में न जाने कितने प्रागैतिहासिक चित्र बने हुए हैं जो आदि मानव के कलात्मक धरोहर है।
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− | {पोथी चित्रण का प्रारंभ किस शैली से हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-40,प्रश्न-4
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− | +पाल शैली
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− | -जैन शैली
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− | -मुगल शैली
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− | -राजपूत शैली
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− | ||पाल शैली एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक बंगाल में पाल वंश के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं।
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− | .पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा ग्रंथों में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, बुद्ध के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा जातक कथाओं से संबंधित हैं।
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− | .धर्मपाल ने गंगा के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया।
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− | .महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ।
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− | .इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं।
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− | .स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं।
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− | .इन चित्रों की शैली में अजंता की परंपरा विद्यमान है।
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− | .इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है।
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− | .पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करनदेवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
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− | {राजपूत शैली के चित्रों को इस नाम से भी जाना जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-16
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− | -मुगल शैली
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− | +राजस्थानी और हिंदू शैली
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− | -गुजराती शैली
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− | -मारवाड़ शैली
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− | ||राजपूत शैली को 'राजस्थानी और हिंदू शैली' के नाम से भी जाना जाता है। 16वीं शताब्दी की चितरकला और साहित्य पर वैष्णव संप्रदाय का गहरा प्रभाव पड़ा। इस आंदोलन के कारण राजस्थानी कला में काव्य की अत्यधिक नवीन सुमधुर कल्पना, भावुकता और रहस्यात्मकता का समावेश हुआ।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .कार्ल खंडालवाला ने 17वीं और 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल को राजस्थाने चित्रकला का स्वर्णयुग माना है।
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− | .17वीं शताब्दी में राजपूत चित्रकला (राजस्थानी चित्रकला) नवीन दिशा में अग्रसर हुई।
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− | .19वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस शैली के चित्रों में भाव-चित्रण की निर्जीविता आने लगी।
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− | {निम्न में से किसने चित्रकला को प्रोत्साहित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-16
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− | +जहांगीर
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− | -औरंगजेब
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− | -उपर्युक्त दोनों
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− | -इनमें से कोई नहीं
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− | ||मुगल सल्तनत का संस्थापक बाबर कला प्रेमी था। कला की अभिरुचि हुमायूं को पुश्तैनी रूप में मिली। वह स्वयं उच्चकोटि का कलाकार था और अपने दरबार में अनेक कलाकारों को आश्रय देकर कला की निरंतर सेवा करता आ रहा था। अकबर ने अपने ने अपने पिता से पाया कला प्रेम और कलाकारों को और भी प्रोत्साहित किया। उसने बड़े-बड़े कलाकारों को दरबार में आश्रय दिया और उचित अर्थ एवं सम्मान प्रदान करके चित्रकला की उन्नति के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार लगभग सौ उच्चकोटि के चित्रकार अकबर के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अकबर के इन चित्रकारों की प्रसिद्धि ईरान तथा यूरोप तक फैली हुई थी। उनमें हिन्दू चित्रकार अधिक थे। कला के समुचित मूल्यांकन और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए अकबर के दरबार में प्रति सप्ताह चित्रों की प्रदर्शनी लगा करती थी। अकबर के पुत्र जहांगीर ने वंश-परंपरा से प्राप्त कला की विरासत को बड़ी योग्यता के साथ संभाला तथा उसको समृद्ध भी किया किंतु उसके पुत्र शाहजहां ने अपने पूर्वजों की भांति उत्कट कलाप्रियता नहीं दिखाई। यद्यपि उसके दरबार में भी चित्रकारों का जमघट लगा रहता था, फिर भी उनमें न तो वैसा उत्साह था और न कला के प्रति वैसी स्वाभाविक अभिरुचि ही।
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− | {महाराजा संसारचंद ने निम्न में से किस शैली को संरक्षण दिया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-5
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− | -किशनगढ़
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− | +पहाड़ी
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− | -मुगल
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− | -राजपूत
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− | ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने पहाड़ी चित्रकला शैली को संरक्षण प्रदान किया। कांगड़ा शैली (पहाड़ी शैली) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
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− | {भारतीय आधुनिक चित्रकला का इतिहास आरंभ होता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-6
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− | +बंगाल स्कूल से
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− | -कलकता स्कूल से
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− | -मद्रास स्कूल से
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− | -इनमें से कोई नहीं
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− | ||भारतीय चित्रकला के पुर्जागरण का श्रेय बंगाल शैली को दिया जाता है। इसी शैली को 'टैगोर शैली', वॉश शैली', 'पुनरुत्थान या पुनर्जागरण शैली' भी कहा जाता है, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई और भारतीय चित्रकला ने पाश्चात्य के प्रभाव से मुक्ति पाई। यहीं से भारतीय आधुनिक चित्रकला का इतिहास आरंभ होता है। बंगाल पुनरुत्थान युग के प्रवर्तक अबनीन्द्रनाथ टैगोर थे।
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− | {कलकत्ता आर्ट विद्यालय के प्राचार्य थे- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-89,प्रश्न-88
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− | +ई.बी.हैवेल
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− | -नंदलाल बोस
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− | -के.एन. मजूमदार
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− | -असित कुमार हल्दर
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− | ||ई.बी. हैवेल कलकत्ता आर्ट विद्यालय के प्राचार्य थे। उन्होंने वर्ष 1906 में अबनींद्रनाथ टैगोर के साथ बंगाल स्कूल की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .ई.बी. हैवेल ने अबनीन्द्रनाथ टैगोर के साथ मिलकर आधुनिक भारतीय कला की प्रारंभिक विचारधारा को जन्म दिया।
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− | .ई.बी. हैवेल की प्रमुख कृतियां हैं- इंडियन, स्कल्पचर एंड पेंटिंग, द आर्ट ऑफ हेरिटेज ऑफ़ इंडिया, भारतीय कला में हिमालय, ए हैंडबुक ऑफ इंडियन आर्ट।
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− | {राष्ट्रीय ललित कला अकादमी 'रबीन्द्र भवन' किस शहर में स्थित है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-91
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− | -मुंबई
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− | +दिल्ली
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− | -लखनऊ
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− | -कोलकाता
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− | ||ललित कला अकादमी स्वतंत्र भारत में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो 5 अगस्त, 1954 को भारत सरकार द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो भारत सरकार द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली के रबीन्द्र भवन में है। इसके अतिरिक्त भुवनेश्वर, चेन्नई, गढ़ी (दिल्ली), कोलकत्ता, लखनऊ एवं शिमला में क्षेत्रीय कार्यालय है। प्रश्नकाल में डॉ. अशोक वाजपेयी (अप्रैल, 2008-दिसंबर, 2011) इसके अध्यक्ष थे। वर्तमान में कल्याण कुमार चक्रवर्ती (12 फरवरी, 2012 से) इसके अध्यक्ष हैं।
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− | {अजंता की चैत्य गुफा थी-(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-365
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− | +पूजा-उपासना का स्थान
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− | -बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान
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− | -स्नान स्थल
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− | -आमोद-प्रमोद का स्थान
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− | ||'चैत्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'चिता संबंधी'। शवदाह के पश्चात बचे हुए अवशेषों को भूमि में गाड़कर उनके ऊपर जो समाधियां बनाई गईं, उन्हीं को प्रारंभ में 'चैत्य' या 'स्तूप' कहा गया इन समाधियों में महापुरुषों के धातु अवशेष सुरक्षित थे, अत: चैत्य उपासना के केंद्र बन गए। कालांतर में बौद्धों ने इन्हें अपनी उपासना का केंद्र बना लिया। चैत्यगृहों के समीप ही भिक्षुओं के रहने के लिए आवास बनाए गए जिन्हे 'विहार' कहा गया।
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− | {नील नदी की घाटी में पनपी सभ्यता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-18
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− | -सिंधु सभ्यता
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− | -चीनी सभ्यता
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− | +मिस्त्र की सभ्यता
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− | -मेसोपोटामिया की सभ्यता
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− | ||मिस्त्र की सभ्यता का विकास नील नदी की द्रोणि में हुआ। नील नदी विश्व की इस प्राचीन सभ्यता का आधार थी। मिस्त्र की 'नील नदी का उपहार' भी कहा जाता है क्योंकि इस नदी के अभाव में यह भू-भाग रेगिस्तान होता। मिस्त्र अफ्रीका महाद्वीप में स्थित है। इसकी समकालीन सभ्यताएं सिंधु घाटी सभ्यता (भारत) तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता (इराक) थी।
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− | {'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में कितनी गुफाएं प्राप्त हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-2
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− | -30
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− | +600
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− | -285
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− | -135
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− | ||भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार मध्य प्रदेश में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफाएं प्राप्त हुई हैं। अत: निकटस्थ उत्तर विकल्प (b) है। इन गुफाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बनेचित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है।
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− | {पाल पोथी चित्रों का विषय हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-40,प्रश्न-5
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− | -पाल राजाओं का जीवन चरित
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− | -नवाबों का दरबार
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− | +बुद्ध का जीवन चरित
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− | -चैतन्य महाप्रभु का जीवन चरित
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− | ||पाल शैली एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक बंगाल में पाल वंश के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं।
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− | .पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा ग्रंथों में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, बुद्ध के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा जातक कथाओं से संबंधित हैं।
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− | .धर्मपाल ने गंगा के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया।
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− | .महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ।
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− | .इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं।
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− | .स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं।
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− | .इन चित्रों की शैली में अजंता की परंपरा विद्यमान है।
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− | .इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है।
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− | .पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करनदेवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'
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− | {राजस्थानी चित्रकला किस अवधि में विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-17
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− | -19वीं-20वीं शताब्दी
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− | +16वीं-17वीं शताब्दी
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− | -11वीं-12वीं शताब्दी
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− | -16वीं शताब्दी
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− | ||राजपूत शैली को 'राजस्थानी और हिंदू शैली' के नाम से भी जाना जाता है। 16वीं शताब्दी की चितरकला और साहित्य पर वैष्णव संप्रदाय का गहरा प्रभाव पड़ा। इस आंदोलन के कारण राजस्थानी कला में काव्य की अत्यधिक नवीन सुमधुर कल्पना, भावुकता और रहस्यात्मकता का समावेश हुआ।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .कार्ल खंडालवाला ने 17वीं और 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल को राजस्थाने चित्रकला का स्वर्णयुग माना है।
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− | .17वीं शताब्दी में राजपूत चित्रकला (राजस्थानी चित्रकला) नवीन दिशा में अग्रसर हुई।
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− | {मुगल चित्रकला विकसित हुई- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-17
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− | |type="()"}
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− | -बाबर
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− | +अकबर
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− | -औरंगजेब
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− | -हुमायूं
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− | ||मुगल सल्तनत का संस्थापक बाबर कला प्रेमी था। कला की अभिरुचि हुमायूं को पुश्तैनी रूप में मिली। वह स्वयं उच्चकोटि का कलाकार था और अपने दरबार में अनेक कलाकारों को आश्रय देकर कला की निरंतर सेवा करता आ रहा था। अकबर ने अपने ने अपने पिता से पाया कला प्रेम और कलाकारों को और भी प्रोत्साहित किया। उसने बड़े-बड़े कलाकारों को दरबार में आश्रय दिया और उचित अर्थ एवं सम्मान प्रदान करके चित्रकला की उन्नति के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार लगभग सौ उच्चकोटि के चित्रकार अकबर के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अकबर के इन चित्रकारों की प्रसिद्धि ईरान तथा यूरोप तक फैली हुई थी। उनमें हिन्दू चित्रकार अधिक थे। कला के समुचित मूल्यांकन और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए अकबर के दरबार में प्रति सप्ताह चित्रों की प्रदर्शनी लगा करती थी। अकबर के पुत्र जहांगीर ने वंश-परंपरा से प्राप्त कला की विरासत को बड़ी योग्यता के साथ संभाला तथा उसको समृद्ध भी किया किंतु उसके पुत्र शाहजहां ने अपने पूर्वजों की भांति उत्कट कलाप्रियता नहीं दिखाई। यद्यपि उसके दरबार में भी चित्रकारों का जमघट लगा रहता था, फिर भी उनमें न तो वैसा उत्साह था और न कला के प्रति वैसी स्वाभाविक अभिरुचि ही।
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− | {महाराजा संसारचंद इस शैली की चित्रकला के महान संरक्षक थे- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-6
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− | |type="()"}
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− | +कांगड़ा
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− | -गढ़वाल
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− | -बसौली
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− | -मुलेर
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− | ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने पहाड़ी चित्रकला शैली को संरक्षण प्रदान किया। कांगड़ा शैली (पहाड़ी शैली) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
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− | {बंगाल शैली के शीर्षस्थ कलाकार हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-7
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− | |type="()"}
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− | -यामिनी राय
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− | -अमृता शेरगिल
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− | +अबनीन्द्रनाथ ठाकुर
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− | -एन.एस.बेंद्रे
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− | ||अबनींद्रनाथ ठाकुर, बंगाल शैली के शीर्षस्थ कलाकार हैं। इन्हीं के नेतृत्व में ही बंगाल शैली का जन्म हुआ।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .द इन्ट्रोडक्शन टू इंडियन आर्टिस्टिक एनॉटॉमी अबनींद्रनाथ ठाकुर की पुस्तक है।
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− | .इनके प्रमुख चित्र हैं-ताजमहल का निर्माण, शाहजहां की मुत्यु, विरही यज्ञ, औरंगजेब का बुढ़ापा, दीनबन्धु एंडूज, स्वतंत्रता का स्वप्न, पद्मपत्र में अश्रुबिन्दु, बुद्ध चरित्र, कृष्ण चरित्र, सांध्यदीप, चंडी व कृष्ण मंगल, रबीन्द्रनाथ का महाप्रयाण, भारतमाता, उमरखय्याम, राधाकृष्ण, शकुंतला आदि।
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− | {बंगाल शैली के कलाकार नहीं हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-89,प्रश्न-89
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− | |type="()"}
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− | -सुरेन्द्र कर
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− | -सैलेंद्र
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− | +रयिन मित्रा
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− | -मुकुल डे
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− | ||रथिन मित्रा कलकत्ता ग्रुप के प्रमुख कलाकार थे जबकि विकल्पों में दिए गए अन्य बंगाल शैली के कलाकार हैं।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .कलकत्ता ग्रुप के प्रमुख कलाकार हैं- नीरोद मजूमदार, शुभो टैगोर, गोपाल धोष, परितोष सेन, रथिन मित्रा, प्राण कृष्ण पाल, प्रदोष दासगुप्ता और कमला दासगुप्ता आदि।
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− | .कलकत्ता के आठ कलाकारों ने मिलकर लगभग वर्ष 1942-43 में कलकत्ता ग्रुप की स्थापना की।
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− | .इस ग्रुप के कलाकारों ने बंगाल शैली की 'नास्टेल्जिक' भावुकता से मुक्त होने की कोशिश की और एक नई विचारधारा का प्रचार किया तथा इसमें पूर्व-पश्चिम का संश्लेषण किया।
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− | {ललित कला अकादमी की स्थापना कब हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-92
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− | -1955 ई.
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− | +1954 ई.
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− | -1970 ई.
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− | -1972 ई.
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− | ||ललित कला अकादमी स्वतंत्र भारत में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो 5 अगस्त, 1954 को भारत सरकार द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो भारत सरकार द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली के रबीन्द्र भवन में है। इसके अतिरिक्त भुवनेश्वर, चेन्नई, गढ़ी (दिल्ली), कोलकत्ता, लखनऊ एवं शिमला में क्षेत्रीय कार्यालय है। प्रश्नकाल में डॉ. अशोक वाजपेयी (अप्रैल, 2008-दिसंबर, 2011) इसके अध्यक्ष थे। वर्तमान में कल्याण कुमार चक्रवर्ती (12 फरवरी, 2012 से) इसके अध्यक्ष हैं।
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− | {बौद्ध भिक्षु किसमें रहते थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-366
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− | +विहार
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− | -स्तूप
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− | -मंडप
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− | -बस्तियों
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− | ||'चैत्य' का शाब्दिक अर्थ है- 'चिता संबंधी'। शवदाह के पश्चात बचे हुए अवशेषों को भूमि में गाड़कर उनके ऊपर जो समाधियां बनाई गईं, उन्हीं को प्रारंभ में 'चैत्य' या 'स्तूप' कहा गया इन समाधियों में महापुरुषों के धातु अवशेष सुरक्षित थे, अत: चैत्य उपासना के केंद्र बन गए। कालांतर में बौद्धों ने इन्हें अपनी उपासना का केंद्र बना लिया। चैत्यगृहों के समीप ही भिक्षुओं के रहने के लिए आवास बनाए गए जिन्हे 'विहार' कहा गया।
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− |
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− | {तुलनखामेन का संबंध निम्न में से किस देश से रहा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-19
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− | |type="()"}
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− | -मेसोपोटामिया
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− | -बगदाद
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− | -इटली
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− | +मिस्त्र
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− | ||तुतनखामेन का संबंध मिस्त्र देश से रहा है। इनके पिता का नाम अखनाटेन था। तुतनखामेन की मृत्यु 19 वर्ष की आयु में 1324 ई.पू. के आस-पास हुई थी।
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− |
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− | {भीमबेटका क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-3
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− | |type="()"}
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− | -नगर
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− | -जंगल
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− | +पहाड़ी
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− | -मंदिर
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− | ||भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार मध्य प्रदेश में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफाएं प्राप्त हुई हैं। अत: निकटस्थ उत्तर विकल्प (b) है। इन गुफाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बनेचित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है।
| |
− |
| |
− | {पोथी चित्रण का प्रारंभ किस शैली से हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-6
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− | |type="()"}
| |
− | +पाल शैली
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− | -जैन शैली
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− | -मुगल शैली
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− | -कांगड़ा शैली
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− | ||पाल शैली एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक बंगाल में पाल वंश के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ।
| |
− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
| |
− | .प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं।
| |
− | .पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा ग्रंथों में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, बुद्ध के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा जातक कथाओं से संबंधित हैं।
| |
− | .धर्मपाल ने गंगा के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया।
| |
− | .महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ।
| |
− | .इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं।
| |
− | .स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं।
| |
− | .इन चित्रों की शैली में अजंता की परंपरा विद्यमान है।
| |
− | .इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है।
| |
− | .पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करनदेवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
| |
− |
| |
− | {राजस्थानी पेंटिंग के पसंदीदा विषय थे- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-19
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− | |type="()"}
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− | -राम-सीता
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− | -रावण-मंदोदरी
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− | +राधा-कृष्ण
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− | -अप्सराएं
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− | ||राजस्थानी चित्रशैली के पसंदीदा विषय राधा-कृष्ण के चित्रण थे। राजस्थानी चित्रकारों ने कवियों की रचनाओं पर आधारित चित्र भी बनाए, जिनमें 'नायिका भेद' को प्रमुखता दी गई और वैष्णव धर्म के प्रभाव के कारण इन चित्रों में नायक-नायिका साधारण पुरुष या स्त्री न होकर, कृष्ण और राधा हैं।
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− |
| |
− | {भारत में मुगल चित्रकला का प्रारंभ इनके समय हुआ- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-18
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− | |type="()"}
| |
− | -बाबर
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− | +हुमायूं
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− | -अकबर
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− | -जहांगीर
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− | ||मुगल सल्तनत का संस्थापक बाबर कला प्रेमी था। कला की अभिरुचि हुमायूं को पुश्तैनी रूप में मिली। वह स्वयं उच्चकोटि का कलाकार था और अपने दरबार में अनेक कलाकारों को आश्रय देकर कला की निरंतर सेवा करता आ रहा था। अकबर ने अपने ने अपने पिता से पाया कला प्रेम और कलाकारों को और भी प्रोत्साहित किया। उसने बड़े-बड़े कलाकारों को दरबार में आश्रय दिया और उचित अर्थ एवं सम्मान प्रदान करके चित्रकला की उन्नति के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार लगभग सौ उच्चकोटि के चित्रकार अकबर के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अकबर के इन चित्रकारों की प्रसिद्धि ईरान तथा यूरोप तक फैली हुई थी। उनमें हिन्दू चित्रकार अधिक थे। कला के समुचित मूल्यांकन और कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए अकबर के दरबार में प्रति सप्ताह चित्रों की प्रदर्शनी लगा करती थी। अकबर के पुत्र जहांगीर ने वंश-परंपरा से प्राप्त कला की विरासत को बड़ी योग्यता के साथ संभाला तथा उसको समृद्ध भी किया किंतु उसके पुत्र शाहजहां ने अपने पूर्वजों की भांति उत्कट कलाप्रियता नहीं दिखाई। यद्यपि उसके दरबार में भी चित्रकारों का जमघट लगा रहता था, फिर भी उनमें न तो वैसा उत्साह था और न कला के प्रति वैसी स्वाभाविक अभिरुचि ही।
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− | {कांगड़ा चित्रशैली किस राजा के समय विकसित हुई? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-7
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− | |type="()"}
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− | -राजा गोवर्धन
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− | +राजा संसारचंद
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− | -राजा सावंत सिंह
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− | -राजा हरि सिंह
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− | ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने पहाड़ी चित्रकला शैली को संरक्षण प्रदान किया। कांगड़ा शैली (पहाड़ी शैली) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
| |
− |
| |
− | {'औरंगजेब का बुढ़ापा' किसकी प्रसिद्ध कृति है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-8
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− | |type="()"}
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− | -असित कुमार हल्दर
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− | -जामिनी रॉय
| |
− | -नंदलाल बसु
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− | +अबनीन्द्रनाथ टेगोर
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− | ||अबनींद्रनाथ ठाकुर, बंगाल शैली के शीर्षस्थ कलाकार हैं। इन्हीं के नेतृत्व में ही बंगाल शैली का जन्म हुआ।
| |
− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .द इन्ट्रोडक्शन टू इंडियन आर्टिस्टिक एनॉटॉमी अबनींद्रनाथ ठाकुर की पुस्तक है।
| |
− | .इनके प्रमुख चित्र हैं-ताजमहल का निर्माण, शाहजहां की मुत्यु, विरही यज्ञ, औरंगजेब का बुढ़ापा, दीनबन्धु एंडूज, स्वतंत्रता का स्वप्न, पद्मपत्र में अश्रुबिन्दु, बुद्ध चरित्र, कृष्ण चरित्र, सांध्यदीप, चंडी व कृष्ण मंगल, रबीन्द्रनाथ का महाप्रयाण, भारतमाता, उमरखय्याम, राधाकृष्ण, शकुंतला आदि।
| |
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− | {इनमें से कौन असंबद्ध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-89,प्रश्न-90
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− | |type="()"}
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− | -के.एस.पन्निकर
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− | +मुकुल डे
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− | -एन.एस. बेन्द्रे
| |
− | -अमृता शेरगिल
| |
− | ||मुकुल डे अन्य तीनों चित्रकारों से असंबद्ध हैं क्योंकि विकल्प के अन्य तीनों चित्रकारों ने भारत में रहकर चित्रकला को बढ़ावा दिया जबकि मुकुल डे ने विदेशों में चित्रकला की शिक्षा प्राप्त की और वे शिक्षा के उद्देश्य से विदेश जाने वाले प्रथम भारतीय चित्रकार थे। अमृता शेरगिल ने भी पेरिस में कला की शिक्षा ग्रहण की थी।
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− | {शिकार के चित्र किस शैली में सबसे अधिक बने? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-19|type="()"}
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− | -पहाड़ी
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− | +मुगल
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− | -कंपनी
| |
− | -बूँदी
| |
− | ||मुगल शैली में आखेट (शिकार) के चित्र अधिक संख्या में बनाए गए। अकबर के समय भित्ति-चित्रों पर आखेट का चित्रांकन किया गया।
| |
− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .अकबर कालीन भित्ति-चित्रों में फतेहपुर सीकरी के महलों में बने हुए आखेट के चित्र विशेष उल्लेखनीय हैं।
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− | .जहांगीर एक सौन्दर्य प्रेमी बादशाह था। उसके शिकार के चित्रों में सजीवता दृष्टिगोचर होती हैं।
| |
− | .जहांगीर के काल की चित्रकला शैली, सूक्ष्मता में अकबर के काल की शैली से कहीं अधिक बढ़ गई।
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− |
| |
− | {कांगड़ा शैली का इतिहास किसके शासन काल में हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-9
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− | |type="()"}
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− | -भूपतपाल सिंह
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− | +संसारचंद
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− | -राम कृपाल सिंह
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− | -सावंत सिंह
| |
− | ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने पहाड़ी चित्रकला शैली को संरक्षण प्रदान किया। कांगड़ा शैली (पहाड़ी शैली) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
| |
− |
| |
− | {'औरंगजेब की वृद्धावस्था' के चित्र सुरक्षित रखे गए हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-9
| |
− | |type="()"}
| |
− | +राज्य पुस्तकालय, रामपुर में
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− | -वोस्टन संग्रहालय में
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− | -शाही पुस्तकालय में
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− | -बौद्ध संग्रहालय में
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− | ||राज्य पुस्तकालय, रामपुर में 'औरंगजेब की वृद्धावस्था' के चित्र सुरक्षित रखे गए हैं, जिसे बीजापुर के घेरे के समय पर चित्रित किया गया है।
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− |
| |
− | {निफ्ट शैक्षणिक केंद्र किस क्षेत्र में कार्य कर रहा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-367
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− | |type="()"}
| |
− | -ललित कला प्रशिक्षण
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− | -हस्त कौशल
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− | +फैशन तकनीक
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− | -सिरेमिक
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− | ||निफ्ट शैक्षणिक केंद्र फैशन तकनीक के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। यह वर्ष 1986 में भारत सरकार के 'वस्त्र मंत्रालय' के तत्त्वावधान में इस संस्थान की स्थापना की गई थी। यह संस्थान डिजाइन प्रबंधन और प्रौद्योगिकी का एक शीर्ष संस्थान है।
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− |
| |
− | {महारानी नेफेरतिती का संबंध निम्न में से किस काल से है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-20
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− | |type="()"}
| |
− | -ओल्ड किंगडम
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− | -मिडल किंगडम
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− | +न्यू किंगडम
| |
− | -मॉडर्न किंगडम
| |
− | ||मरारानी नेफेरतिती सा संबंध न्यू किंगडम (1570 ई.पू.- 1085 ई.पू.) काल से था। नेफेरतिती प्राचीन मिस्त्र के राजा अकेनतेन की पत्नी थीं। 'बस्त ऑफ़ नेफेरतिति' वर्तमान में आइलैंड म्यूजियम बर्लिन में रखा गया है।
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− |
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− | {'भीमबेटका' गुफाएं अवस्थित हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-4
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− | |type="()"}
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− | -राजस्थान में
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− | -उत्तर प्रदेश में
| |
− | -बिहार में
| |
− | +मध्य प्रदेश में
| |
− | ||भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वेबसाइट के अनुसार मध्य प्रदेश में स्थित 'भीमबेटका' नामक पहाड़ी में लगभग 700 प्राचीन गुफाएं प्राप्त हुई हैं। अत: निकटस्थ उत्तर विकल्प (b) है। इन गुफाओं में प्रस्तर सामग्री भी प्राप्त हुई है। जो 30,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. की है। यहां पर लगभग 400 गुफाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां पर बनेचित्रों का समय लगभग 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. माना जाता है।
| |
− |
| |
− | {पाल युगीन पाण्डुलिपि चित्र अधिकांशत: आधारित हैं-(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-7
| |
− | |type="()"}
| |
− | +हिन्दुत्व पर
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− | -ब्राह्मण धर्म पर
| |
− | -शैव मत पर
| |
− | -बौद्ध धर्म पर
| |
− | ||पाल शैली एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक बंगाल में पाल वंश के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ।
| |
− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
| |
− | .प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं।
| |
− | .पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा ग्रंथों में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, बुद्ध के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा जातक कथाओं से संबंधित हैं।
| |
− | .धर्मपाल ने गंगा के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया।
| |
− | .महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ।
| |
− | .इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं।
| |
− | .स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं।
| |
− | .इन चित्रों की शैली में अजंता की परंपरा विद्यमान है।
| |
− | .इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है।
| |
− | .पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करनदेवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
| |
− |
| |
− | {हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण किस शैली का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-20
| |
− | |type="()"}
| |
− | -पाल शैली का
| |
− | -अजंता शैली का
| |
− | -जैन शैली का
| |
− | +अलवर शैली का
| |
− | ||हाथी दांत की पटरियों पर चित्रण अलवर शैली में प्राप्त होता है। महाराजा मंगल सिंह के समय के प्रसिद्ध चित्रकार 'मूलचंद' तथा 'उदयराम' (अलवर शैली) ने हाथी दांत के फलकों पर सूक्ष्म चित्रण किया।
| |
− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
| |
− | .नानक राम, बुद्धराम, जगन्नाथ, रामगोपाल, रामप्रसाद, जगमोहन, रामसहाय तथा नेपोलिया आदि अलवर चित्र शैली के प्रमुख चित्रकार थे।
| |
− | .बुद्धराम राजगढ़ किले के शीशमहल तथा अलवर गुणीजनखाने के दरोगा थे, जो पशु-पक्षियों के चित्रांकन में भी दक्ष थे।
| |
− |
| |
− | {कौन-सा मुगल सम्राट चित्रकला को सबसे अच्छा समझता था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-20
| |
− | |type="()"}
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− | -हुमायूं
| |
− | -अकबर
| |
− | -शाहजहां
| |
− | +जहांगीर
| |
− | ||मुगल बादशाह जहांगीर स्वयं चित्रकला में रुचि लेता था। वह इसका कुशल पारखी था। किसी चित्र को देखकर वह वता सकता था कि उसके विभिन्न भाग यदि अलग-अलग व्यक्ति के द्वारा बनाए गए हैं तो कौन-सा भाग किस चित्रकार के बनाया है।
| |
− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
| |
− | .चित्रकारी में जहांगीर के उत्कृष्ट रुचि का वर्णन गिरीटो, विलियम हाकिंस और सत टामस रो सदृश यात्रियों ने भी किया है।
| |
− | .जहांगीर के शासनकाल में चित्रकला के क्षेत्र में भारतीय पद्धति का विकास हुआ।
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− |
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− | {कांगड़ा चित्रकला की उन्नति इनके समय हुई- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-8
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− | |type="()"}
| |
− | -राजा विधिचंद
| |
− | -राजा जयचंद
| |
− | +राजा संसारचंद
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− | -राजा रणजीत सिंह
| |
− | ||महाराजा संसारचंद (1775-1823 ई.) ने पहाड़ी चित्रकला शैली को संरक्षण प्रदान किया। कांगड़ा शैली (पहाड़ी शैली) राजा संसारचंद के समय विकसित हुई। कटोच राजवंश के संसारचंद चित्र प्रेमी, साहित्य प्रेमी तथा संगीत के मर्मज्ञ थे। संसारचंद के समय कांगड़ा चित्रकला उन्नति के शिखर पर थे। कांगड़ा शैली के प्रमुख चित्रकारी केंद्र गुलेर, नूरपुर, तोंरा, सुजानपुर तथा नादौन थे।
| |
− |
| |
− | {कौन वॉश-चित्रकला शैली से संबंधित नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-79,प्रश्न-10
| |
− | |type="()"}
| |
− | -बंद्रीनाथ आर्य
| |
− | -हरिहर लाल मेढ़
| |
− | +एस.जी. श्रीखंडे
| |
− | -सुखबीर सिंह सिंघल
| |
− | ||एस.जी. श्रीखंडे वॉश- चित्रकला शैली से संबंधित नहीं हैं बल्कि वे ग्राफ थियरी से संबंधित हैं जबकि बद्रीनाथ आर्य, हरिहर लाल मेढ़ तथा सुखवीर सिंह सिंघल लखनऊ वाश-चित्रकला से संबंधित हैं।
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− |
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− | {'फोन्त-द-गॉम' क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-368
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− | |type="()"}
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− | -दृश्य चित्र
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− | +गुफाएं
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− | -मूर्ति
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− | -रेखांकन
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− | ||फोन्त-द-गॉम (Font The Gaume) फ्रांस के दक्षिण-पश्चिम में स्थित गुफाएं हैं। यह फ्रांस की भूमि पर सर्वाधिक अलंकृत गुफाएं ब्यून घाटी में स्थित हैं। इनमें मुख्य गैलरी की ऊंचाई 23 से 26 फीट तक है। यहां लगभग 200 चित्र हैं।
| |
− |
| |
− | {सुमेरियन सभ्यता किस नदी के तट पर विकसित हुए? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-21
| |
− | |type="()"}
| |
− | -नील
| |
− | -यांगस्तजे
| |
− | -सिंधु
| |
− | +यूफेट्स
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− | ||सुमेरियन सभ्यता यूफ्रेट्स नदी के तट पर विकसित हुई।
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− |
| |
− | {भीमबेटका गुफा के चित्रों की खोज सर्वप्रथम किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-5
| |
− | |type="()"}
| |
− | -श्री राय कृष्ण दास
| |
− | -श्री रामचंद्र शुक्ल
| |
− | +श्री वी.एस. वाकड़कर
| |
− | -श्री नंदलाल बोस
| |
− | ||विष्ण्य श्रीधर वाकड़कर ने भीमबेटका के प्रागैतिहासिक चित्रों का सर्वप्रथम वर्ष 1958 में पता लगाया। यहां 500 वर्गमील के क्षेत्र में 30 पर्वतश्रेणियां अवस्थित हैं जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई 1365 फीट (410 मी.) से 2000 फीट (600 मी.) तक है। इन्हीं के ऊपर एक ट्रिगनोमेट्रिक स्टेशन स्थापित किया गया थाम कहां गत शताब्दी में सर्वेक्षण किए गए थे। इन पर्वत श्रेणियों की शिलाएं बलुआ पत्थर की हैं।
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− |
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− | {पाल शैली के चित्रों का प्रमुख विषय क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-41,प्रश्न-8
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− | |type="()"}
| |
− | +बौद्ध
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− | -बारहमासा
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− | -रागमाला
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− | -शृंगार
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− | ||पाल शैली एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली है। 9वीं से 12वीं शताब्दी तक बंगाल में पाल वंश के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासनकाल में विशेष रूप से विकसित होने वाली चित्रकला 'पाल शैली' थी। पाल शैली की विषय-वस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित रही है। इस शैली में बौद्ध ग्रंथों के अनेक दृष्टांत चित्र बनाए गए। पोथी चित्रण का प्रारंभ इसी शैली से हुआ।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
| |
− | .प्रमुख सचित्र पाल पोथियों में प्रज्ञापारमिला, साधना माला, पंचशिखा तथा करन देव गुहा महायान बौद्ध पोथियां प्राप्त होती हैं।
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− | .पाल शैली के समस्त चित्र बौद्ध धर्म एवं दर्शन तथा ग्रंथों में बनाए गए चित्र महायान के बौद्ध देवी-देवताओं, बुद्ध के जीवन, बौद्ध तीर्थों तथा जातक कथाओं से संबंधित हैं।
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− | .धर्मपाल ने गंगा के किनारे 'भागकपुर' में विश्वविद्यालय बनवाया।
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− | .महीपाल, पाल वंश का प्रतिभाशाली सम्राट हुआ। उसके समय अनेक पाल पोथियों का चित्रण हुआ।
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− | .इस शैली के अधिकांश चित्र पोथियों में ही प्राप्त हैं।
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− | .स्फुट चित्र बंगाल के पट चित्र हैं।
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− | .इन चित्रों की शैली में अजंता की परंपरा विद्यमान है।
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− | .इस शैली के चित्र का सबसे उत्तम उदाहरण बुद्ध योग मुद्रा में कमल पर आसीन' (1807 ई.) है।
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− | पाल पोथियों में सचित्र उपलब्ध पोथियां हैं- 'साधनमाला' 'गंधव्यूह', 'करनदेवगुहा', 'पंचशिखा', 'महायान बौद्ध पोथियां'।
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− |
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− | {कौन-सा केंद्र राजस्थानी शैली का है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-21
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− | |type="()"}
| |
− | -बसौली
| |
− | -गढ़वाल
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− | +बीकानेर
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− | -अहमदनगर
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− | ||राजस्थान चित्रकला शैली की उपशाखा बीकानेर शैली के उद्भव का काल निर्धारण तो निश्चित नहीं हो पाया है परंतु संभवत: 16वीं-17वीं शताब्दी के आस-पास बीकानेर शैली का उद्भव हुआ।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .बीकानेर शैली के उद्भव का श्रेय यहां के 'उस्ताओं' को दिया जाता है।
| |
− | .चित्रों में सुनहरे रंग के अत्यधिक प्रयोग से बीकानेर शैली पर दक्षिण की बीजापुर शैली का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है।
| |
− | .मारवाड़ के शासक राव जोधा के द्वितीय पुत्र 'बीकाजी' द्वारा 1488 ई. में बीकानेर राज्य की स्थापना हुई थी।
| |
− | .यह क्षेत्र महाभारत काल में 'जांगम देश' के नाम से जाना जाता था।
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− | {एम.एफ. हुसैन मध्य प्रदेश के किस शहर के हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-98,प्रश्न-1
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− | -भोपाल
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− | +इंदौर
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− | -ग्वालियर
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− | -सतना
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− | ||एम.एफ. हुसैन का पूरा नाम मकबूल फिदा हुसैन है। इनका जन्म पंढ़रपुर, महाराष्ट्र में 17 सितंबर, 1915 को हुआ था। बचपन में हुसैन की मां का देहांत हो गया। इसके बाद एम.एफ. हुसैन अपने पिता के साथ इंदौर चले गए, जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई, आगे की शिक्षा उन्होंने बंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में ली।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .भारत सरकार ने एम.एस. हुसैन को पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
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− | .इनके द्वारा बनाई गई पहली फिल्म 'थ्रू द आइज ऑफ़ ए पेंटर' (चित्रकार की दृष्टि से) को बर्लिन उत्सव में दिखाया गया और उसे 'गोल्डन बियर' पुरस्कार प्राप्त हुआ।
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− | .इनके द्वारा बनाई भारतीय देवी-देवताओं की विवादित पेंटिंगके विरोध की वजह से उन्होंने वर्ष 2006 में भारत छोड़ दिया।
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− | .वर्ष 2010 में उन्हें कतर की नागरिकता प्राप्त हो गयी। वर्ष 2011 में इनकी मृत्यु लंदन में हो गई।
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− | .17 सितंबर, 2015 को एम.एफ. हुसैन का 100वां जन्म दिन मनाया गया।
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− | {सैंड्रो बोत्तिचेल्ली प्रसिद्ध कलाकार था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-112,प्रश्न-71
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− | -फ्लोरेंस का
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− | -रोम का
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− | +इटली का
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− | -स्पेन का
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− | ||'द बर्थ ऑफ़ वीनस' (वीनस का जन्म) 1486 ई. में इटली के चित्रकार सैंड्रे बोत्तिचेल्ली द्वारा चित्रित प्रसिद्ध चित्र है। यह कैनवास पर टेम्परा शैली का चित्र है। वर्तमान में यह चित्र इटली के उफीजी गैलरी में सुरक्षित है।
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− | {किस प्रभाववादी चित्रकार के चित्रों को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-116,प्रश्न-1
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− | -पॉल सेजां
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− | -आगस्ते रेन्वार
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− | +तूलू लॉत्रेक
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− | -एडगर डेगा
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− | ||तूलू लॉत्रेक के चित्रों विशेषकर लिथोग्राफ्स को विज्ञापन में प्रयुक्त किया गया था। वह उत्तर प्रभाववाद के श्रेष्ठ चित्रकार थे। 1890 के दशक के मध्य में 'Le Rite' नामक मैगजीन में उन्होंने अनेक चित्रण किए। उन्हें 'आधुनिक विज्ञापन का पितामह' भी कहा गया है।
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− | {इनमें कौन असंबद्ध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-58,प्रश्न-21
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− | -मंसूर
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− | -मनोहर
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− | +बिहजाद
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− | -मिस्किन
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− | ||बिहजाद एक प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार था जिसका उल्लेख बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी में किया है जबकि मंसूर, मनोहर एवं मिस्किन मुगलकालीन दरबारी चित्रकार थे।
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− | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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− | .मंसूर एवं मनोहर जहांगीर के दरबार से संबद्ध चित्रकार थे।
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− | .मिस्किन अकबर कालीन यूरोपीय शैली का चित्रकार था।
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− | .अबुल फजल ने अपनी पुस्तक 'आइने अकबरी' में मिस्किन का उल्लेख किया है।
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