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{यह कथन किसका है कि "बिना भू-भाग के भी राज्य का अस्तित्व रह सकता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-11
 
|type="()"}
 
-गार्नर
 
-मैकाइवर
 
+सीले
 
-विलोबी
 
||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें।
 
  
{लॉक के अनुसार लोगों ने समझौता किस कारण किया था?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न-11
 
|type="()"}
 
+उनके अधिकारों की रक्षा हो सके
 
-पोपतंत्र का दमन किया जा सके
 
-गृह युद्धों का अंत हो सके
 
-शासकीय चर्च की स्थापना हो सके
 
||लॉक के अनुसार लोगों ने समझौता इसलिए किया था ताकि उनके अधिकारों की रक्षा हो सके। लॉक समझौता सिद्धांत में अपनी बाधाओं से संबंधित कुछ अधिकार व्यक्तियों ने समाज को इसलिए अर्पित कर दिए ताकि उसकी सामूहिक संतुलित बुद्धि से असुविधा, में बदल जाए। इस समझौता का उद्देश्य जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की आंतरिक तथा वाह्य संकटों से रक्षा करना था।
 
 
{निम्न में से न्याय का क्या अर्थ है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-1
 
|type="()"}
 
+कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
 
-भेदभाव किया जा सकता है।
 
-राजा की बुद्धि के अनुसार भेदभाव किया जा सकता है।
 
-बहुमत के अनुसार भेदभाव किया जा सकता है।
 
||सभी प्रकार के भेदभाव का अभाव ही न्याय है। ऑगस्टाइन के अनुसार, "न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी कि व्यवस्था मांग करती है।" वे आगे कहते हैं कि "जिन [[राज्य|राज्यों]] में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुंड मात्र कहे जा सकते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य है-(1). थ्रेसीमेकस के अनुसार, "न्याय शक्तिशाली की हित है"। (2). सैफालस के अनुसार, "न्याय सत्य बोलने तथा अपना कर्ज चुकाने में है"। (3). [[प्लेटो]] के अनुसार, "प्रत्येक व्यक्ति का अपना विशिष्ट कार्य करना तथा दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप न करना ही न्याय है"।
 
 
{निम्नलिखित में से व्यक्तिवादी विचारक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-11
 
|type="()"}
 
-हेराल्ड लास्की
 
-जेम्स मिल
 
+[[हर्बर्ट स्पेंसर]]
 
-[[अरस्तू]]
 
||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] प्रमुख व्यक्तिवादी विचारक हैं। व्यक्तिवाद व्यक्ति की स्वतंत्रता को अधिकतम तथा [[राज्य]] के कार्यक्षेत्र को न्यूनतम रखने की वकालत करता है। स्पेंसर की प्रमुख कृति 'द मैन वर्सेज द स्टेट' (मनुष्य बनाम राज्य) है। स्पेंसर ने प्राकृतिक चयन के नियम को सामाजिक प्रगति की प्रक्रिया पर लागू किया। इनके अनुसार "सामाजिक विकास की मुक्त प्रतिस्पर्धा में योग्य यथा परिश्रमी लोगों को उत्तर जीविता का अधिकार है।" राज्य द्वारा योग्य एवं परिश्रमी लोगों का हक छीन कर अयोग्य लोगों को देना सामाजिक प्रगति को कुंठित करना है। इस प्रकार स्पेंसर ने सभी प्रकार के कल्याण कार्यक्रमों का खंडन किया।
 
 
{निम्न में से कौन नव-उदारवाद का प्रमुख तर्क नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-1
 
|type="()"}
 
-बाजार संसाधनों का सर्वोत्तम इस्तेमाल करता है।
 
+वरण के परास को मजबूत करने के लिए सक्षमकार संसाधन व्यक्तियों और समूहों को प्रदान किए जाने चाहिए।
 
-एक योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था अकुशल और अपव्ययी होती है।
 
-निजी क्षेत्र के प्रभुत्व वाली किसी अर्थव्यवस्था का उत्पादन और प्रयोग में ज्ञान और प्रौद्योगिकी का विनियोजन अव्यवहित और अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी होता है।
 
||नव-उदारवाद [[राज्य]] के कार्य-क्षेत्र को फिर से समेटने के लिए मुक्त बाजारवाद तथा मुक्त बाजार समाज का समर्थन करता है। समकालीन विश्व में नव-उदारवाद की प्रेरणा से तीन नीतियों को अपनाया जा रहा है, उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण। नव-उदारवाद एक बार फिए से 'अहस्तक्षेप की नीति' का समर्थन करता है तथा बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था की बात करता है। यह संसाधनों को बाजार के हवाले करने का पक्षधर है न कि व्यक्तियों व समूहों को।
 
 
{लोकतंत्र के बारे में निम्नलिखित कथन किस विचारक का है? "इस बात से कोई इंकार नहीं करता कि वर्तमान प्रतिनिधि सभाओं में अनेक त्रुटियां हैं। पर यदि मोटरगाड़ी खराब हो जाए तो उसकी जगह [[बैलगाड़ी]] का इस्तेमाल करने लगना मूर्खता होगी, चाहे इसकी अल्पना कितनी मधुर क्यों न लगे।" (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-43,प्रश्न-2
 
|type="()"}
 
+सी.डी. बर्न्स
 
-लॉर्ड ब्राइस
 
-हेरल्ड जे.लास्की
 
-वाल्टर बेजहाट
 
||यद्यपि लोकतंत्र के व्यावहारिक स्वरूप में कुछ कमियां है लेकिन इन्हें दूर करके इसे और कार्यकुशल बनाय जा सकता  है। इसकी जगह पुरानी व्यवस्था राजतंत्र या अधिनायक तंत्र अपना लेना मूर्खता होगी। इसी संदर्भ में सी.डी. बर्न्स ने लिखा है कि "इस बात से कोई इनकार नहीं करता कि वर्तमान प्रतिनिधि सभाओं में अनेक त्रुटियां है। पर यदि मोटरगाड़ी खराब हो जाए तो उसकी जगह बैलगाड़ी का इस्तेमाल करने लगना मूर्खता होगी, इसकी कल्पना चाहे कितनी ही मधुर क्यो न लगे।" इसी प्रकार अल्फ्रेड स्मिथ ने लिखा है कि 'लोकतंत्र के सभी रोगों का निदान और अधिक लोकतंत्र के द्वारा ही हो सकता है।" इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1). सी.डी. बर्न्स- "सभी प्रकार का शासन शिक्षा प्रदान करने की एक पद्धति है। पर आत्मा शिक्षा ही सबसे अच्छी शिक्षा है, इसलिए सबसे अच्छा शासन स्वशासन है जो लोकतंत्र है।" (2). [[जवाहर लाल नेहरू]]- "लोकतंत्र का अर्थ है सहिष्णुत्ता- न केवल उन लोगों के प्रति जिनसे हम सहमत हो, बल्कि उनके प्रति भी जिनसे हम असहमत हों।" (3). [[महात्मा गांधी]]- "लोकतंत्र वह [[कला]] एवं [[विज्ञान]] है जिसके अंतर्गत जनसाधारण के विभिन्न वर्गों के भौतिक, आर्थिक, और आध्यात्मिक संस्थानों को सबके सामान्य हित की सिद्धि के लिए नियोजित किया जाता है।"
 
 
{मार्क्स ने पॅट्रीशियन- प्लेबियन और गिल्ड मास्टर जार्नीमेन का उल्लेख किस संदर्भ में किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-52,प्रश्न-11
 
|type="()"}
 
+वर्ग संघर्ष के संदर्भ में
 
-वर्ग सहयोग एवं [[विवाह]] के संदर्भ में
 
-नस्लीय संघर्ष के संदर्भ में
 
-नस्लीय सहयोग के संदर्भ में
 
||मार्क्स ने पॅट्रीशियन- प्लेबियन और गिल्ड मास्टर-जार्नीमेन का उल्लेख वर्ग संघर्ष के संदर्भ में किया है। कार्ल मार्क्स एवं फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा रचित पुस्तक कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो (1848) के अनुसार सभी वर्तमान समाजों का [[इतिहास]] वर्ग-संघर्ष का इतिहास है। यह वर्ग-संघर्ष विभिन्न कालों में विभिन्न वर्गों जैसे फ्रीमैन-स्लेव, पॅट्रीशियन-प्लेबियन. लॉर्ड-सर्फ, गिल्डमास्टर-जार्नीमेन के मध्य हुआ था। शोषक एवं शोषित के मध्य का यह संघर्ष कभी दृश्य एवं कभी अदृश्य रूप में होता है। जिसके परिणामस्वरूप या तो समाज का पुनर्निर्माण होता है या दोनों ही वर्गों का विनाश होता है।
 
 
{अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में यथार्थवादियों को तामस-पुत्र और आदर्शवादियों को प्रकाश-पुत्र की संज्ञा किसने दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-65,प्रश्न-11
 
|type="()"}
 
-मार्गेथाउ
 
-पामर एवं पार्किंस
 
+नाइबहर
 
-स्प्राउट
 
||राइनहोल्ड नाइबहर ने 'प्रकाश की संतान और 'अंधकार की संतान' की चर्चा की है। प्रकाश की संतान वे लोग हैं जो यह मानते हैं कि स्वहित को अधिक सार्वभौम नियमों के अधीन रखना चाहिए और विश्व कल्याण के साथ उसका मेल बैठाना चाहिए। दूसरी ओर अंधकार की संतान वे लोग हैं जो अपने संकल्प और हित के अलावा और कोई नियम नहीं जानते। इस आधार पर नाइबहर ने अंधकार की संतान (यथार्थवादी) को दुष्ट और बदमाश तथा प्रकाश की सन्तान (आदर्शवादी) को पुण्यात्मा मानता है। इसके अनुसार अंधकार की संतान समझदार है क्योंकि वह आत्मसंकल्प (स्वहित) की शक्ति को पहचानते हैं जबकि प्रकाश के संतान (आदर्शवादी) मूर्ख हैं क्योंकि वे आत्मसंकल्प (स्वहित) की शक्ति को ठीक से न पहचानने के कारण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अराजकता और अव्यवस्था के खतरे को बहुत छोटा करके देखते हैं।
 
 
{हॉब्स के 'लेवियाथन' में प्रयुक्त 'कॉमनवेल्थ' शब्द का क्या अर्थ हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-78,प्रश्न-90
 
|type="()"}
 
-सम्प्रभु
 
+समाज, राज्य एवं सरकार के लिए सामूहिक नाम
 
-प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले लोगों का वर्ग
 
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
 
||हॉब्स ने अपनी कृति 'लेवायथन' में 'कॉमनवेल्थ' शब्द का प्रयोग किया है जो समाज, राज्य तथा शासन तीनों का सामूहिक नाम है। हॉब्स ने ज्यामितीय विधि से अपनी चिंतन का प्रारम्भ प्राकृतिक अवस्था से करता है जो समाज, राज्य तथा शासन से विहीन कल्पित युग है। यह अवस्था हर तरह युद्ध, निरंतर भय तथा [[मृत्यु]] का खतरा है। इस अवस्था में बल और छल ही मनुष्य के सद्गुण है। इस प्रकार इस अवस्था से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति कामनवेल्थ (समाज, राज्य तथा शासन) की स्थापना करने के लिए शक्तियों को लेवायथन को सौंप देता है।
 
 
{"सतत जागरुकता ही स्वतंत्रता का मूल्य है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-82,प्रश्न-1
 
|type="()"}
 
-ब्राइस
 
-मैकाइवर
 
+वाशिंगटन
 
-मार्क्स
 
||"सतत जागरूकता ही स्वतंत्रता का मूल्य है।" यह कथन [[अमेरिका]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] वाशिंगटन का है। जे.एस. मिल ने अपनी पुस्तक 'On Liderty' में स्वतंत्रता को मानव जीवन का मूल आधार बताया है। सी.डी. बर्न्स ने कहा है कि स्वतंत्रता न केवल सभ्य जीवन का आधार है, वरन सभ्यता का विकास भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ही निर्भर करता है।" इसी संदर्भ में [[राधाकृष्णन|डॉ. राधाकृष्णन]] ने कहा है कि स्वतंत्रता किसी अन्य साध्य की प्राप्ति का साधन नहीं, वरन यह सर्वोच्च साध्य है।
 
 
 
 
 
 
{निम्न में से कौन-सा विद्वान 'भूमि को राज्य का आवश्यक तत्त्व' नहीं मानता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6,प्रश्न-12
 
|type="()"}
 
-हाल
 
-स्पेंसर
 
+उपर्युक्त दोनों
 
-उपर्युक्त में दे कोई नहीं
 
||राज्य के चार प्रमुख आवश्यक तत्त्व- जनसंख्या, सरकार, निश्चित भू-भाग तथा प्रभुसत्ता है। लेकिन कुछ विद्वान जैसे सीले, डुग्वी अथवा डिग्विट तथा हॉल आदि ने भूमि को राज्य का आवश्यक तत्त्व नहीं माना है। विकल्प में हॉल एवं डिग्विट दोनों के होने से किसी भी विकल्प का चयन संभव नहीं है चूंकि विकल्प (A) एवं (B) दोनों सही है।
 
 
{हॉब्स के सामाजिक समझौते में लोगों ने लेवियाथन को कौन-कौन से अधिकार सौंपे थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न- 12
 
|type="()"}
 
-केवल विद्रोह का अधिकार सौंपा
 
-केवल धार्मिक अधिकार सौंपा
 
+लगभग सभी अधिकार सौप दिए
 
-केवल राजनैतिक अधिकार सौंपा
 
||हॉब्स के सामाजिक समझौते में लोगों ने लेवियाथन को लगभग सभी अधिकार सौंप दिए। हॉब्स सामाजिक समझौता सिद्धांत में कहा है कि मैं व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह को अपना शासन स्वयं कर सकने का अधिकार एवं शक्ति इस शर्त पर समर्पित करता हूं कि तुम भी अपने अधिकार इसी तरह (व्यक्ति या व्यक्ति समूह को) समर्पित कर दो। इस तरह समझौते के परिणामस्वरूप समुदाय संयुक्त होता है और राज्य का निर्माण होता है। हॉब्स के अनुसार यहीं उस महान देवता लेवियाथन का जन्म होता है जिसकी कृपा पर अविनाशी ईश्वर की छत्रछाया में हमारी शांति एवं सुरक्षा निर्भर है।
 
 
{राजनीतिक न्याय किसके द्वारा सुनिश्चित होता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-2
 
|type="()"}
 
-विधायिका द्वारा
 
+संविधान द्वारा
 
-राजनीतिक दलों द्वारा
 
-निर्वाचन सत्ता द्वारा
 
||राजव्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। सभी व्यक्तियों को समान अवसर, समान रूप से प्राप्त होने चाहिएं तथा राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा सभी व्यक्तियों की लाभ प्राप्त भी सुनिश्चित होनी चाहिए, यही राजनीतिक न्याय है। इसकी प्राप्ति स्वाभाविक रूप से एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत ही की जा सकती है, जिसका आधार (स्त्रोत) संविधान होता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1) राजनीतिक न्याय प्राप्ति के मुख्य साधन हैं- वयस्क मताधिकार, सभी व्यक्तियों को भाषण- विचार, सम्मेलन, संगठन आदि नागरिक स्वतंत्रताएं, प्रेस की स्वतंत्रता, [[न्यायपालिका]] की स्वतंत्रता, भेद-भाव के बिना सार्वजनिक पदों हेतु सभी को समान अवसर आदि। (2) राजनीतिक न्याय की धारणा में यह तथ्य निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होगा।
 
 
{'योग्यत्तम की अतिजीविता' का सिद्धांत किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-12
 
|type="()"}
 
-[[प्लेटो]]
 
+[[हर्बर्ट स्पेंसर]]
 
-रूसो
 
-लॉक
 
||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-[[1903]]) उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश दार्शनिक और सिद्धांतकार हैं। इन्होंने योग्यतम की अतिजीविता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। स्पेंसर की पहली महत्वपूर्ण कृति 'सोशल स्टेटिक्स' (1850) चार्ल्स डार्विन की 'ओरजिन ऑफ़ स्पसीज' ([[1857]]) से 9 वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी। इस तरह स्पेंसर ने अपना विकासवादी सिद्धांत डार्विन से भी पहले रखा था। योग्यता की विजय या योग्यता की अतिजीविता शब्दावली का  प्रयोग सर्वप्रथम स्पेंसर ने ही किया था। यद्यपि यह डार्विन के नाम के साथ जुड़ कर प्रसिद्ध हुई। इस प्रकार स्पेंसर ही योग्यतम की अतिजीविता के सिद्धांत का प्रतिपादक है।
 
 
{"अनियंत्रित बाजार आधारित पूंजीवाद का परिणाम होगा- कार्यकुशलता, उत्पादन वृद्धि तथा व्यापक संपन्नता।" यह विश्वास किसके साथ जुड़ा है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-2
 
|type="()"}
 
+नव उदारवाद के साथ
 
-नव अनुदारवाद के साथ
 
-नव मार्क्सवाद के साथ
 
-इनमें से किसी के साथ नहीं
 
||"अनियंत्रित बाजार आधारित पूंजीवाद का परिणाम होगा- कार्यकुशलता, उत्पादन वृद्धि तथा व्यापक संपन्नता।" यह विश्वास नव उदारवाद के साथ जुड़ा हुआ है। नव उदारवाद वास्तव में शास्त्रीय उदारवाद की नकारात्मक उदारवादी धारा को पुनर्स्थापित करता है। यह राज्य के हस्तक्षेप को न्यूनतम करते हुए बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है। फ्रेडरिक हेयक व मिल्टन फ्रीडमैन प्रमुख नव उदारवादी सिद्धांतकार हैं। हेयक ने अपनी कृति 'रोड टू सर्फडम' (दासता के पथ पर) में लिखा है कि निर्देशित अर्थव्यवस्था व्यक्तियों के अव्यक्त ज्ञान का उतना उपयोग नहीं कर सकती जितना बाजार अर्थव्यवस्था कर सकती है। इसके अनुसार आर्थिक नियोजन का रास्ता सर्वाधिकारवाद की ओर ले जाता है। मिल्टन फ्रीडमैन ने 'कैपटिलिज्म एवं फ्रीडम' में लिखा है कि 'पूंजीवाद स्वतंत्रता की आवश्यक शर्त है। पूंजीवाद जिसमें निजी उद्यम को स्वतंत्र विनियम का पूरा अवसर हो व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अनिवार्य है।
 
 
{लोकतंत्र में 'गुटतंत्र के लौह नियम' का प्रतिपादन किसने किया है?  (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
+राबर्ट मिशेल्स
 
-विल्फ्रेटो पैरेटो
 
-गेतानो मोस्का
 
-रेमों आरों
 
||'गुटतंत्र का लौह नियम' जर्मन समाजशास्त्री 'राबर्ट मिशेल्स' द्वारा वर्ष [[1911]] में अपनी पुस्तक 'पॉलिटिकल पार्टीज' में दिया गया। मिशेल्स ने लोकतंत्र में अभिजनों के शासन को 'गुटतंत्र' की संज्ञा दी है। इनके अनुसार, किसी भी तरह का मानव संगठन स्थापित कर देने पर उसका नियंत्रण अंतत: एक छोटे से गुट के हाथों में आ जाता है और यह बात लोकतंत्रीय प्रणाली पर भी लागू होती है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1) [[इटली]] के समाजशास्त्री पैरेटो ने लोकतंत्र के अभिजन वर्गीय सिद्धांत के अंतर्गत 'अभिजनों के संचरण' का सिद्धांत दिया। (2) सी. राट्स मिल्स ने अपनी कृति पॉवर इलीट में अमेरिकी राजव्यवस्था का वर्णन किया है। उसके अनुसार तीन प्रकार के अभिजन वर्ग होते हैं- 1.सैन्य बल अभिजन, 2.राजनीतिक वर्ग अभिजन, 3.औद्योगिक वर्ग अभिजन। (3) मोस्का ने अपनी पुस्तक 'द रूलिंग क्लास' में कहा है कि सभी समाजों में केवल दो वर्ग पाए जाते हैं- पहला वर्ग जो शासन करता है, दूसरा वर्ग जिस पर शासन किया जाता है।
 
 
{सतत क्रांति का सिद्धांत किसने दिया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-52,प्रश्न-12
 
|type="()"}
 
-मार्क्स
 
-लेनिन
 
+माओ
 
-हो-ची मिन्ह
 
||'सतत क्रांति' या 'निरंतर क्रांति' का सिद्धांत माओं ने दिया। माओ के अनुसार, क्रांति कोई अंतिम समाधन नहीं है, बल्कि वह केवल अभीष्ट दिशा में प्रगति का एक चरण है। आर्थिक मोर्चे पर समाजवादी क्रांति हो जाने के बाद समाजवादी व्यवस्था अपने आप सुदृढ़ नहीं हो जाएगी; इसके लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और विचारधारात्मक मोर्चों पर समाजवाद को बढ़ावा देना जरूरी होगा, जिसमें लंबा समय लगेगा अत: समाजवादी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया 'निरंतर क्रांति' की प्रक्रिया है जिसमें कभी कोई ढील नहीं दी जा सकती।
 
 
{मूने के अनुसार स्टाफ कार्य के तीन पक्ष कौन-कौन से हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-12
 
|type="()"}
 
-सूचनात्मक
 
-परामर्शकारी
 
-पर्यवेक्षणात्मक
 
+उपुर्युक्त सभी
 
||स्टाफ से तात्पर्य ऐसे प्रमुख कार्यकारी प्रशासनिक संरचना से है जिसमें एक सर्वोच्च अधिकारी होता है जो अपने सहायता से कार्य का सम्पादन करता है। मूने के अनुसार स्टाफ कार्य के तीन क्षेत्र पक्ष है-(1) सूचनात्मक- स्टाफ का सूचना संबंधी कार्य यह है कि वह प्रमुख कार्यकारी के लिए उन समस्त सूचनाओं का संग्रह करता है जिसके आधार पर वह निर्णय करता है। (2) परामर्शकारी- आवश्यक सूचना संबंधी देने के साथ-साथ यह प्रमुख कार्यकारी को परामर्श भी देता है कि उसके राय में क्या निर्णय किये जाने चाहिए। यद्यपि प्रमुख कार्यकारी इनके सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। (3) अधीक्षणात्मक- स्टाफ को यह भी देखना होता है कि प्रमुख कार्यकारी ने जो निर्णय लिए हैं, वे उपयुक्त सूत्र या व्यवसाय अभिकरणों तक पहुंचा दिए गए हैं और उनका ठीक प्रकार से क्रियान्वयन हो रहा है या नहीं।
 
 
{निम्नलिखित में से कौन [[खेल]] सिद्धांत से नहीं जुड़े हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-78,प्रश्न-91
 
|type="()"}
 
+आरगांसकी
 
-स्नाइडर
 
-हर्सेन्यि
 
-सेलिंग
 
||आरगांसकी खेल सिद्धांत से नहीं जुड़े हैं बल्कि शक्ति की अवधारणा के विचारक हैं, जबकि खेल सिद्धांत के महत्त्व को प्रतिपादित करने वालों में मार्टिन शुविक, कार्ल, ड्वाइच, ऑस्कर मॉर्गेस्टर्न, जॉन न्यूमैन, हर्सेन्यि तथा टॉमस शैलिंग के नाम उल्लेखनीय हैं।
 
 
{"स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-82,प्रश्न-2
 
|type="()"}
 
-मिल
 
-लास्की
 
-बार्कर
 
+सीले
 
||''स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक  हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के कानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है।
 
 
 
 
 
 
 
{किसने कहा "[[राज्य]] [[पृथ्वी]] पर [[ईश्वर]] की गति है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-13
 
|type="()"}
 
-बेथम
 
-जे.एस. मिल
 
-[[कार्ल मार्क्स]]
 
+हीगल
 
||हीगल 19वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध का जर्मन दार्शनिक था। इसे आदर्शवाद का प्रमुख उन्नायक माना जाता है। आदर्शवाद के अनुसार, इस जगत की समस्त वस्तुएं और सामाजिक संस्थाएं विचार तत्त्व की अभिव्यक्ति है। इसी संदर्भ में हीगल ने कहा है कि "राज्य पृथ्वी पर ईश्वर की गति है।" इनके अनुसार, राज्य आत्मा के उच्चतम विकास का प्रतीक है। यह ईश्वर की महायात्रा का अंतिम पड़ाव है।
 
 
{समाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से किस प्रकार के कार्य करने का प्रयत्न करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न-13
 
|type="()"}
 
-[[राज्य]] के इतिहासिक उद्गम का पता लगाना
 
+राजनीतिक बाध्यता के आधार की व्याख्या करना
 
-यथास्थिति का औचित्य स्थापित करना
 
-क्रांति द्वारा समाज में आमूल परिवर्तन लाना
 
||सामाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से राजनीतिक बाध्यता के आधार की व्याख्या करता है। राजनीतिक बाध्यता का सामान्यत: अर्थ राजा के क़ानूनों का नैतिक रूप से पालन करने से लगाया जाता है। जॉन लॉक ने 'टू ट्रीटाइसिस ऑफ़ गवर्नमेंट' में राजनीतिक बाध्यता की व्याख्या करते हुए बताया कि यह व्यक्ति की स्वयं की कल्पना व सहमति है। रूसो ने भी सामाजिक समझौता सिद्धांत में बताया है कि व्यक्ति अपने स्वयं के सहमति प्रदान किए हुए राज्य के नियमों के पालन के लिए बाध्य है।
 
 
{राजनीतिक न्याय से क्या तात्पर्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
+सभी को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों
 
-सभी को समान आर्थिक अधिकार प्राप्त हों
 
-सभी को समान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो
 
-सभी को हर प्रकार के भेद-भाव से रहित समान सुविधा प्राप्त हो।
 
||राजव्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। सभी व्यक्तियों को समान अवसर, समान रूप से प्राप्त होने चाहिएं तथा राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा सभी व्यक्तियों की लाभ प्राप्त भी सुनिश्चित होनी चाहिए, यही राजनीतिक न्याय है। इसकी प्राप्ति स्वाभाविक रूप से एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत ही की जा सकती है, जिसका आधार (स्त्रोत) संविधान होता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1) राजनीतिक न्याय प्राप्ति के मुख्य साधन हैं- वयस्क मताधिकार, सभी व्यक्तियों को भाषण- विचार, सम्मेलन, संगठन आदि नागरिक स्वतंत्रताएं, प्रेस की स्वतंत्रता, [[न्यायपालिका]] की स्वतंत्रता, भेद-भाव के बिना सार्वजनिक पदों हेतु सभी को समान अवसर आदि। (2) राजनीतिक न्याय की धारणा में यह तथ्य निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होगा।
 
 
{लेसेज़ फेयर का क्या अभिप्राय है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-13
 
|type="()"}
 
-[[धर्मनिरपेक्षता|धर्मनिरपेक्ष]]
 
-समाजवाद
 
+व्यक्ति को अकेला छोड़ दो
 
-इनमें से सभी
 
||आमतौर पर समझा जाता है कि यह पद 18वीं शताब्दी में [[फ्रांस]] के एक व्यक्ति जी.सी.एम. बिसेट द गोर्ने की देन है। व्यापार पर लगी अनेक पाबंदियों से तंग आकर एक दिन उनके मुंह से 'लेसेज़ फेर' अर्थात 'चीजों को अपने हाल पर छोड़ दो' निकल पड़ा। व्यक्ति- वादियों ने राज्य के हस्तक्षेप से बचने के लिए 'व्यक्ति को अकेला छोड़ दो' के रूप में इसका प्रयोग किया।
 
 
{किसने कहा था कि [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
-[[प्लेटो]]
 
-[[कार्ल मार्क्स]]
 
+[[एडम स्मिथ]]
 
-जॉन लॉक
 
||नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक/विचारक [[एडम स्मिथ]] ने [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का समर्थन किया। एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में निजी स्वामित्त्व के सिद्धांत का समर्थन करते हुए 'अहस्तक्षेप का सिद्धांत' प्रतिपादित किया। इसके अनुसार, व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों में राज्य का हस्तक्षेप न होने पर मनुष्य में कार्य करने की प्रेरणा अधिक होगी जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अधिक से अधिक संपदा उत्पन्न करेगा और वह अंतत: समाज के हित में होगी। स्मिथ के अनुसार "सच्ची स्वतंत्रता वाणिज्य से ही संभव है।"
 
 
{निम्न में से कौन लोकतंत्र को 'स्वीकृत पागलपन' कहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
-ल्यूडोविकी
 
-[[कार्ल मार्क्स]]
 
‌+टेलीरैंड
 
-प्रौंधा
 
||टेलीरैंड के अनुसार, "लोकतंत्र स्वीकृत पागलपन है।" उन्होंने लोकतंत्र को 'दुष्ट लोगों का कुलीनतंत्र' भी कहा है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-लोकतंत्र की आलोचना करने वाले अन्य विद्वानों के कथन निम्नलिखित हैं- (1) [[प्लेटो]], [[अरस्तू]] के अनुसार, "लोकतंत्र, भीड़तंत्र या मूर्खतंत्र या विकृत व्यवस्था है।" (2) कार्लाइल के अनुसार, "लोकतंत्र लाखों मूर्खों की सरकार है।" (3) लुडोविसी के अनुसार, "लोकतंत्र का अर्थ है [[मृत्यु]]।" (3) वाल्टर वेल के अनुसार, "लोकतंत्र भ्रष्ट प्लेटोवाद है।" (4) एंथनी गिडिन्स के अनुसार, "लोकतंत्र में भावनात्मकता एवं बहुमत अत्याधिकता देखी जाती है।" (4) वार्कर के अनुसार, "लोकतंत्र जुगाड़ों का शासन है।"
 
 
{माओ के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की भूमिका कैसी होगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-13
 
|type="()"}
 
-प्रतिक्रियात्मक
 
-शून्य
 
+महत्त्वपूर्ण
 
-महत्त्वहीन
 
||माओ के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। माओ किसानों को साथ लेकर मार्क्सवदी क्रांति की सफलता के लिए संघर्ष करता रहा। [[चीन]] के गांवों में विद्रोही किसानों को एकजुट करते हुए उसने चीन सोवियत रिपब्लिक की नींव रखी।
 
 
{"किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस-संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्त-संपन्न संस्था समझना असंगत है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-13
 
|type="()"}
 
-डायसी
 
+लास्की
 
-मेटलैंड
 
-लॉर्ड ब्राइस
 
||लास्की का कथन है कि "वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि संसद को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्ता-संपन्न समझना असंगत है।"
 
 
{हेगेल ने सभ्य समाज को किस रूप में देखा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-78,प्रश्न-92
 
|type="()"}
 
-विशिष्टता के साकार रूप में
 
-एकता के साकार रूप में
 
+सार्वभौमिकता के साकार रूप में
 
-समुदाय के साकार रूप में
 
||हेगेल ने सभ्य समाज को सार्वभौमिकता के साकार के रूप में देखा। इनके अनुसार सार्वभौमिकता अथवा विश्वात्मा का साकार रूप ही राज्य है। पहले यह विश्वात्मा जड़ में फिर धीरे-धीरे समाज में अंतत: राज्य का रूप ले लेती है। हेगेल आदर्शवादी सिद्धांत का प्रवर्तक है।
 
 
{"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
+सीले
 
-[[प्लेटो]]
 
-[[अरस्तू]]
 
-जॉन लॉक
 
||"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक  हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के कानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है।
 
 
 
 
 
{"[[राज्य]] [[पृथ्वी]] पर [[ईश्वर]] का पदक्षेप है" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-14
 
|type="()"}
 
-काण्ट
 
+हीगल
 
-रूसो
 
-बोसांके
 
||हीगल के अनुसार, राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का अवतरण (पदक्षेप) है। हीगल ने अपनी पुस्तक "The Philosophy of  Rights" में राज्य को मानवीय चेतना का विराट रूप कहा है। हीगल के अनुसार, राज्य चेतना की साकार प्रतिमा है इसलिए राज्य का क़ानून वस्तुपरक चेतना का मूर्त रूप है। अत: जो कोई क़ानून का पालन करता है, वही स्वतंत्र है। इस प्रकार हीगल ने निरंकुश राज्य का समर्थन करते हुए व्यक्ति को विरोध का अधिकार नहीं दिया। मुसोलिनी हीगल के इसी विचार से प्रभावित थे, इसलिए हीगल को फॉसीवाद का आध्यात्मिक गुरु कहा जाता है।
 
 
{निम्न वक्तव्यों में से कौन-सा वक्तव्य राज्य की उत्पत्ति के विषय में मार्क्सवादी सिद्धांत को स्पष्ट करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-14
 
|type="()"}
 
-राज्य की उत्पत्ति साधनों का विकास करने के उद्धेश्य से हुई
 
-राज्य की उत्पत्ति उत्पादन की विधि में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से हुई
 
+राज्य की उत्पत्ति उत्पादन के शोषणपरक संबंधों के रक्षार्थ हुई
 
-राज्य की उत्पत्ति वर्गविहीन समाज के उद्देश्य से हुई
 
||मार्क्सवाद के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति किसी नैतिक की सिद्धि के लिए नहीं हुई है बल्कि यह एक कृत्रिम संस्था है, जिसकी उत्पत्ति संपत्तिशाली-वर्ग के हितों की सुरक्षा के लिए हुई है। राज्य एक ऐसी संस्था है जो एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के दमन और शोषण के लिए स्थापित की गई है। इसमें उत्पादन के साधनों पर पूंजीपति व्यक्तियों का अधिकार बना रहता है। इसलिए मार्क्स राज्यविहीन समाज की स्थापना की वकालत करता है।
 
 
{जॉन राल्स के की न्याय की धारणा क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
-समाजवादी
 
-उपयोगितावादी
 
-समुदायवादी
 
+उदारवादी
 
||जॉन राल्स ([[1921]]-[[2002]]) 20वीं सदी के उदारवादी परम्परा के अमेरिकी विचारक हैं। इनकी पुस्तक (थ्योरी ऑफ़ जस्टिस) न्याय की अवधारणा के विकास में महत्त्वपूर्ण है। इसमें इन्होंने आज के उदारवादी समतावादी [[राज्य]] के अनुरूप न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इनका न्याय सिद्धान्त हॉब्स, लॉक, रूसो की भांति सामाजिक समझौते पर आधारित है। इनके न्याय सिद्धान्त को शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय सिद्धांत कहा जाता हैं इनके अनुसार राज्य का कार्य केवल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा करना नहीं है बल्कि सबसे अधिक जरुरत मंद लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक आदर्श बना कर मूल पदार्थों (वेतन, संपत्ति, अवसर, अधिकार, स्वतंत्रता, तथा स्वास्थ्य, शक्ति, क्षमता) को पुनर्वितरण द्वारा उपलब्ध कराना है। राल्स के अनुसार न्याय पुरस्कार का सिद्धांत न होकर क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है।
 
 
{"राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14
 
|type="()"}
 
-सेबाइन
 
+सीले
 
-बार्कर
 
-वेपर
 
||इतिहास में व्यक्ति, समाज और [[राज्य]] के भूतकालीन जीवन का लेखा-जोखा होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन। इन दोनों के बीच संबंधों को दर्शाते हुए सीले ने कहा है कि "राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" सीले पुन: कहते है, "राजनीति उच्छृंखल हो जाती है, यदि इतिहास द्वारा उसे उदार नहीं बनाया जाता तथा इतिहास कोरा साहित्य रह जाता है, यदि राजनीति से उसका विच्छेद हो जाता है।"
 
 
{संपत्ति  के अधिकार की मांग किसने की? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
-मार्क्सवाद
 
+उदारवाद
 
-समाजवाद
 
-गांधीवाद
 
||उदारवाद के प्रणेता जॉन लॉक ने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना और कहा कि इन्हीं अधिकारों की सुरक्षा के लिए [[राज्य]] की उत्पत्ति हुई और उसका अस्तित्त्व बना हुआ है। लॉक इन अधिकारों में सबसे महत्त्वपूर्ण 'संपत्ति के अधिकार' को मानता है।
 
 
{निम्न में से किसने लोकतंत्र को 'एक जीवन रैली' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-5
 
|type="()"}
 
-[[एडम स्मिथ]]
 
-इ. बर्क
 
-हेरोल्ड लास्की
 
+टी.वी. स्मिथ
 
||टी.वी. स्मिथ 'लोकतंत्र को एक जीवन-शैली के रूप में' परिभाषित करते हैं। इसके अतिरिक्त मैकाइवर ने भी लोकतंत्र को एक जीवन पद्धति के रूप में परिभाषित किया हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) ऑस्टिन, डायसी, लावेल, ब्राइस आदि विचारक लोकतंत्र को सरकार के निर्वाचन की पद्धति के रूप में देखते हैं। (2) मैक्फर्सन के अनुसार, "लोकतंत्र चयन की ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोक निर्णय लिए जाते हैं।" (3) लॉरेन्स लावेल के अनुसार, "लोकतंत्र में कोई यह शिकायत नहीं कर सकता कि उसे सुनवाई का मौका नहीं मिला।" (4) वाल्टर बेजहाट के अनुसार, "लोकतंत्र, लोकशक्ति को भ्रमित करने का सबसे बड़ा तरीक़ा है। यह भ्रम इसलिए स्थापित होता है क्योंकि लोकतंत्र में वाद-विवाद एवं सहिष्णुता के लक्षण हैं जो लोगों को अधिकारों के भ्रमजाल में फंसाते हैं।"
 
 
{'लोक युद्ध' की संकल्पना विकसित करने का श्रेय किसको जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-14
 
|type="()"}
 
-व्लादिमीर लेनिन
 
-रूसो
 
-ग्राम्सी
 
+माओत्से-तुंग
 
||'लोक युद्ध' का सिद्धांत माओत्से-तुंग की अपनी विशिष्ट एवं मौलिक संकल्पना है। इसके अंतर्गत माओ ने सेना व हथियारों की तुलना में जनता को अधिक महत्त्व प्रदान किया। माओ के अनुसार, युद्ध में हथियारों का अपना महत्त्व है पर वे निर्णायक तत्त्व नहीं हैं। निर्णय मनुष्यों द्वारा किया जाना है, जड़ वस्तुओं के द्वारा नहीं। लोक युद्ध को सफल बनाने के लिए वह [[गुरिल्ला युद्ध]] या छापामार युद्ध पर अत्यधिक बल देता है।
 
 
{मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14
 
|type="()"}
 
-शक्ति संतुलन की व्यवस्था
 
+उत्तर परमाणु युद्ध मॉडल
 
-शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था
 
-दृढ़ द्विध्रुवीय व्यवस्था
 
||अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने, उसके विश्लेषण एवं भविष्य की चुनौतियों के समाधान के लिए मॉर्टन कैप्लान की [[1957]] की कृति System and Process in International Politics विश्व राजनीति का संरचनात्मक विश्लेषण के रूप में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था। कैप्लन ने अपनी इस पुस्तक में अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार के निम्न छ: मॉडल प्रस्तुत किए हैं- 1. शक्ति संतुलन व्यवस्थ, 2. ढीली द्विध्रुवीय व्यवस्था, 3. कठोर द्विध्रुवीय व्यवस्था, 4. सार्वभौमिक व्यवस्था
 
5. पदसोपानीय व्यवस्था, 6. इकाई निषेधाधिकार व्यवस्था
 
 
{राजनीतिक संस्कृति का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-93
 
|type="()"}
 
-फाइनर
 
-सिडनी वेब
 
+आमंड
 
-लासवेल
 
||वर्ष [[1963]] में अमेरिकी राजनीति वैज्ञानिक आमंड ने राजनीतिक संस्कृति का सबसे पहले प्रयोग किया। राजनीतिक संस्कृति का तात्पर्य संस्कृति के उन पक्षों से है जो राजनीति को प्रभावित करते हैं।
 
 
{किसने कहा स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-4
 
|type="()"}
 
-बैंथम
 
-जॉन लॉक
 
-कांट
 
+सीले
 
||''स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक  हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के कानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है।
 
 
 
 
 
{निम्न में किस विद्वान ने 'समाज को ईंट तथा [[राज्य]] को सीमेंट' कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-15
 
|type="()"}
 
+आशीर्वादम
 
-[[गिलक्राइस्ट|गिलक्रिस्ट]]
 
-गेटेल
 
-गार्नर
 
||आशीर्वादम ने समाज को ईंट तथा राज्य को सीमेंट कहा है। डॉ. आशीर्वादम ने अपनी पुस्तक 'राजनीति विज्ञान' में 'राज्य का स्वरूप' अध्याय में राज्य और समाज के मध्य संबंधो पर विस्तृत चर्चा किया है। इसमें टिप्पणी करते हुए इन्होंने लिखा है कि ईटों की दीवार में ईटें यदि समाज है तो उनके बीच लगी सीमेंट राज्य, जो ईटों को अपनी जगह पर बनाये रखती है ताकि दीवार ज्यों की त्यों कायम रहे। इसी प्रकार राज्य एवं समाज के मध्य संबंधों पर बार्कर ने लिखा है कि "समाज राज्य द्वारा कायम रखा जाता है औद यदि समाज इस प्रकार कायम न रखा जाए तो इसका अस्तित्व ही नहीं रहे।"
 
 
{वर्तमान समय में [[राज्य]] की उत्पत्ति का कौन-सा सिद्धांत सबसे अधिक मान्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-15
 
|type="()"}
 
+ऐतिहासिक
 
-आर्थिक
 
-दैवी
 
-शक्ति
 
||वर्तमान समय में राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी अर्थात ऐतिहासिक सिद्धांत सबसे अधिक मान्य व सही है। इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य समस्त अतीत में हुए विकास का फल है। यह अनेक तत्त्वों जैसे- सामाजिक भावना, रक्त बंधन, शक्ति, आर्थिक गतिविधियों, [[धर्म]] तथा राजनीतिक चेतना का फल है। राज्य का विकास धीरे-धीरे हुआ है। यह कबीली चरण से राष्ट्रीय और वैश्वीकरण की तरफ़ अग्रसर है। बर्गेस के अनुसार, 'मानव प्रकृति के सार्वभौम सिद्धांतों की क्रमिक पूर्णता ही राज्य है"।
 
 
{"एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धांत का भौतिक अंग है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-5
 
|type="()"}
 
+जॉन राल्स
 
-लॉर्ड एक्टन
 
-टॉनी
 
-जे.एस. मिल
 
||"एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धान्त का मौलिक अंग है", यह कथन जॉन राल्स का है। जॉन राल्स ने अपनी कृति 'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' में सामाजिक संविदा और कांट के विधि-दर्शन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। जॉन राल्स ने अपने न्याय सिद्धांत को 'शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय' की संज्ञा प्रदान की है।
 
 
{"[[इतिहास]] का राजनीति विज्ञान के बिना फल नहीं तथा राजनीति विज्ञान का इतिहास के बिना जड़ नहीं" यह किसने कहा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-15
 
|type="()"}
 
-गार्नर
 
-ब्लण्टशली
 
+सीले
 
-पॉल जेनेट
 
इतिहास में व्यक्ति, समाज और [[राज्य]] के भूतकालीन जीवन का लेखा-जोखा होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन। इन दोनों के बीच संबंधों को दर्शाते हुए सीले ने कहा है कि "राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" सीले पुन: कहते है, "राजनीति उच्छृंखल हो जाती है, यदि इतिहास द्वारा उसे उदार नहीं बनाया जाता तथा इतिहास कोरा साहित्य रह जाता है, यदि राजनीति से उसका विच्छेद हो जाता है।"
 
 
{'सामाजिक अभियांत्रिकी' का सिद्धांत' प्रस्तुत करने वाले उदारवादी विचारक  कौन हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-5
 
|type="()"}
 
-सी.बी. मैक्फर्सन
 
+कार्ल जे. पॉपर
 
-जॉन राल्स
 
-एल.टी. हॉब हाऊस
 
||'सामाजिक अभियांत्रिकी का सिद्धांत' कार्ल पॉपर ने प्रस्तुत किया था। कार्ल पॉपर को राजनीतिक चिंतन और व्यवहार के क्षेत्र में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करने के लिए जाना जाता है। अपनी कृति 'द ओपेन सोसाइटी एंड इट्स एनिमीज' के अंतर्गत पॉपर ने विशेष रूप से तीन विचारकों की मान्यताओं पर प्रहार किया। ये तीन विचारक [[प्लेटो]], हेगेल व [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] हैं। पॉपर ने 'पद्धति वैज्ञानिक व्यक्तिवाद' तथा 'उत्तरोत्तर परिवर्तन व्यक्तिवाद का सिद्धांत' भी प्रतिपादित किया।
 
 
{प्रतिनिधित्व का कौन-सा सिद्धांत प्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रतिष्ठा देता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-6
 
|type="()"}
 
-प्रतिक्रियावादी सिद्धांत
 
-अनुदारवादी सिद्धांत
 
-उदारवादी सिद्धांत
 
+क्रांतिकारी सिद्धांत
 
||प्रतिनिधित्व का क्रांतिकारी सिद्धांत प्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रतिष्ठा देता हैं। रूसो ने प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र की अलोचना करते हुए प्रत्यक्ष लोकतंत्र का समर्थन किया था। रूसो के अनुसार जनता केवल निर्वाचन के समय ही स्वतंत्र होती है। 'प्रत्यक्ष लोकतंत्र' स्विट्जरलैंड की शासन प्रणाली की विशिष्टता है।
 
 
{'श्रमिकों की तानाशाही' के सिद्धांत को किसने सुपरिष्कृत किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-15
 
|type="()"}
 
-कार्ल मार्क्स ने 'दास-कैपिटल' में
 
-कार्ल मार्क्स एव ऐंजिल्स ने 'कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो' में
 
-ऐंजिल्स ने 'आरिजिन ऑफ़ फैमिली प्रानवेट प्रॉपर्टी एंड स्टेट' में
 
+लेनिन ने 'स्टे एंड रिवोल्यूशन' में
 
||लेनिन ने वर्ष 1917 में लिखी अपनी पुस्तक 'राज्य और क्रांति' में 'श्रमिक की तानाशाही' को स्पष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन 1918 में लिखी अपनी पुस्तक 'प्रोलेलरिएड रेवोल्यूशन एंड रेनीगेड काउत्स्की' में उन्होंने सर्वहारा अधिनायकवाद या श्रमिक वर्ग की तानाशाही संबंधी विस्तृत विवेचन की।
 
 
{संरचनात्मक-प्रकार्यात्म क उपागम किसके नाम से जुड़ा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-15
 
|type="()"}
 
+आमंड और पावेल
 
-डेविड ईस्टन
 
-राबर्ट डाउल
 
-ओ.आर. यंग
 
||तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में व्यवस्था विश्लेषण का संरचात्मक प्रकार्यात्मक उपागम ईस्टन के निवेश निर्गत विश्लेषण से उत्पन्न असंतोष के कारण अस्तित्व में आया। इस उपागम का प्रयोग आमंड एवं पॉवेल ने किया है, इन्होंने राजनीतिक व्यवस्था के चार लक्षण माने हैं-
 
.राजनीतिक व्यवस्था के भागों में अंतर्निर्भरता .राजनीतिक व्यवस्था की सीमा। .राजनीतिक व्यवस्था का पर्यवरण। .राजनीतिक व्यवस्था द्वारा बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग।
 
 
{कौन-सी सत्ता प्रत्यायोजित नहीं की जानी चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-94
 
|type="()"}
 
-वित्त संबंधी शक्ति
 
-नियम बनाने की शक्ति
 
-नीति निर्धारित करने की शक्ति
 
+इनमें से कोई नहीं
 
||वह आदेश, नियम तथा उपनियम, जो संसद की किसी विधि द्वारा प्रदत्त सत्ता के अंतर्गत कार्यपालिका अथवा प्रशासन के द्वारा जारी किए जाते हों, 'प्रत्यायोजित विधायन' कहलाते हैं। तीव्रगामी आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तनों के कारण वर्तमान समय में प्रतिनिहित विधि निर्माण अपरिहार्य हो गया है। इसकी मात्रा में दिनो-दिन वृद्धि हो रही है। वर्तमान समय में वित्त संबंधी शक्ति, नियम बनाने की शक्ति तथा नीति निर्धारित करने की शक्ति प्रत्यायोजित की जा रही है। लेकिन भारत में प्रतिनिहित विधायन के क्षेत्र में संसदीय नियंत्रण के साथ न्यायिक नियंत्रण की व्यवस्था भी उभरी है।
 
 
{नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा निम्नलिखित में से किस एक पर बल देती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-5
 
|type="()"}
 
-समानता
 
-स्वायत्तता
 
+हस्तक्षेप की अनुपस्थिति
 
-पसंद की स्वतंत्रता
 
||नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा हस्तक्षेप की अनुपस्थिति पर बल देती है। नकारात्मक स्वतंत्रता या औपचारिक स्वतंत्रता से अभिप्राय है कि यदि कोई व्यक्ति कुछ करना चाहता हो और कर भी सकता हो, तो उसे वैसा करने से रोका न जाए।
 
 
 
 
 
 
{किसने कहा "राजनीति शास्त्र का राज्य से प्रारंभ और राज्य के साथ ही अंत होता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-16
 
|type="()"}
 
-कोकर
 
-सैबाइन
 
+गार्नर
 
-अरस्तू
 
||गार्नर ने अपनी पुस्तक 'Political Science and Government' में राजनीति विज्ञान की 'प्रकृति एवं विषय क्षेत्र' के संबंध में कहा है कि राज्य ही राजनीति विज्ञान का आरंभ और अंत है। इसका संबंध राज्य के सिद्धान्त, संगठन एवं व्यवहार से है। इसके साथ-साथ राज्य की उत्पत्ति एवं प्रकृति का परीक्षण, राजनीतिक संस्थाओं की प्रकृति, इतिहास एवं राज्य के रूपों की जांच पड़ताल, तथा जहां तक संभव हो राजनीतिक प्रगति एवं विकास के नियमों को निगमित करना इसके क्षेत्र में आते हैं।
 
 
{राज्य की उत्पत्ति के संबंध में कौन-सा सिद्धांत सर्वमान्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-16
 
|type="()"}
 
-दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत
 
-शक्ति का सिद्धांत
 
+विकासवादी सिद्धांत
 
-सामाजिक समझौता सिद्धांत
 
||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें।
 
 
{जॉन राल्स ने अपने न्याय सिद्धांत को क्या संज्ञा दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-6
 
|type="()"}
 
-वितरणात्मक न्याय
 
-सर्वसुलम न्याय
 
-प्रत्ययात्मक न्याय
 
+शुद्ध प्रक्रियात्मक याय
 
||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें।
 
 
{"शक्ति की राजनीति, लोक कल्याण की राजनीति, तकनीकी राजनीति तथा दलीय राजनीति की प्रवृत्ति केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति का मुख्य कारण रहा है"- किसने कहा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-16
 
|type="()"}
 
-प्रो.सी.एफ. स्ट्रांग
 
+प्रो.के.सी ह्वीयर
 
-प्रो. लास्की
 
-जेम्स वाइस
 
||प्रो.के.सी. ह्वीयर ने आधुनिक संघीय व्यवस्थाओं में केंद्र के शक्तिशाली होने एवं बढ़ती केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति के लिए 'शक्ति की राजनीति, आर्थिक मंदी की राजनीति, लोक कल्याण की राजनीति, तकनीकी राजनीति, एवं दलीय राजनीति' को मुख्य कारण माना है।
 
 
{निम्नलिखित में से किसका उदारवाद से मेल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-6
 
|type="()"}
 
+बुर्जुआ राज्य
 
-प्रतिनिधि सरकार
 
-लोक कल्याणकारी राज्य
 
-सीमित सरकार
 
||बुर्जुआ राज्य एक मार्क्सवादी धारणा है जो पूंजीपतियों द्वारा स्थापित राज्य को व्यक्त करती है, यह उदाहरवाद से संबंध नहीं रखता। प्रतिनिधि सरकार, लोक कल्याणकारी राज्य व सीमित सरकार आदि सभी उदारवाद की विशेसताएं हैं।
 
 
{किसने कहा था- "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौमिक नहीं है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-7
 
|type="()"}
 
+गिलक्राइस्ट
 
-लास्की
 
-गैटेल
 
-गार्नर
 
||गिलक्राइस्ट ने कहा है कि "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौमिक नहीं हैं"।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
विभिन्न देशों में वयस्क मताधिकार की आयु निम्नलिखित है-
 
.भारत में वयस्क मताधिकार की आयु 18 वर्ष है।
 
.फ्रांस व जर्मनी में वयस्क मताधिकार की आयु 20 वर्ष है।
 
.डेनमार्क व जापान में वयस्क मताधिकार की आयु 25 वर्ष है।
 
.नॉर्वे में वयस्क मताधिकार की आयु 23 वर्ष है।
 
 
{लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-16
 
|type="()"}
 
-पूंजीवाद की निम्नतम अवस्था है
 
-पूंजीवाद का संकुचन है
 
+पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है
 
-पूंजीवाद का समाजवाद में दिलय
 
||लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है। लेनिन ने इस अवस्था का विश्लेषण अपनी प्रसिद्ध कृति 'इंपीरियलिज्म: द हाइएस्ट स्टेज ऑफ़ कैपिटलिज्म' (साम्राज्यवाद: पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था) में किया।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.लेनिन साम्राज्यवाद को पूंजीवाद की अभिव्यक्ति मानते हैं।
 
.लेनिन ने वर्ष 1902 में 'ह्वाट इज टु बि इन?' (अब हमे क्या करना है?) की रचना किया। जिसमें अपने सैद्धांतिक विचारों का उल्लेख किया।
 
 
{निम्नलिखित में से कौन आमण्ड के हित-अभिव्यक्त करने वाली संरचनाओं के वर्गीकरण में शामिल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-16
 
|type="()"}
 
-संस्थात्मक संरचनाएं
 
-समुदायात्मक संरचनाएं
 
+प्रजातीय संरचनाएं
 
-प्रदर्शनात्मक संरचनाएं
 
||जी.ए. आमंड तथा पॉवेल ने अपनी पुस्तक 'Comparative Politics' में दबाव समूहों को चार श्रेणियों में विभक्त किया है-
 
.संस्थात्मक दवाब समूह (Institutional Prassure Groups)- ये दबाव समूह राजनीतिज दलों, विधान मण्डलों, सेना, नौकरशाही इत्यादि में सक्रिय रहते हैं।
 
.समुदायात्मक दबाव समूह (Associational Pressure Groups)- ये विशेषीकृत संघ होते है जो अपने विशिष्टहितों की पूर्ति करते हैं।
 
.गैर समुदायात्मक दबाव समूह (Non  Associational Pressure Groups)- ये संगठित संघ नहीं होते ये अनौपचारिका रूप से अपने हितों की अभिव्यक्ति करते हैं- जैसे- सांप्रदायिक और धार्मिक समुदाय, जातीय समुदाय आदि।
 
.प्रदर्शनात्मक दबाव समूह (Anomic Pressure Groups)- ये अपनी मांगों को लेकर अवैधानिक उपायों का प्रयोग करते हैं जैसे- हिंसा, राजनैतिक हत्या, दंगे तथा अन्य आक्रामक रवैया अपनाते हैं।
 
 
{'मूल्य तटस्थता' निम्न में से किसकी विशेषता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-95
 
|type="()"}
 
-अराजकतावादियों की
 
-बहुलवादियों की
 
-मार्क्सवादियों की
 
+व्यवहारवादियों की
 
||व्यवहारवाद ने राजनीति के अध्ययन के परंपरागत उपागम को चुनौती देते हुए विचार रखा कि प्रचलित संस्थाओं के कानूनी-औपचारिक पक्षों से ध्यान हटाकर उन व्यक्तियों या कार्यकर्त्ताओं के व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए ओ यथार्थ राजनीति के क्षेत्र में तरह-तरह की भूमिका निभाते हैं। व्यवहारवाद मुख्यत: शुद्ध ज्ञान का सिद्धान्त है जो मूल्यों से सरोकार नहीं रखता है। यह मूल्य तटस्थता की विशेषता रखता है। यह यथास्थिति का समर्थक है, जिसे सामाजिक परिवर्तन में कोई अभिरुचि नहीं है।
 
 
{"आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-6
 
|type="()"}
 
-ग्रीन
 
-जे.एस. मिल
 
+जी.डी.एच. कोल
 
-लास्की
 
||जी.डी.एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.लास्की के अनुसार, "मुझे स्वादिष्ट भोजन करने का अधिकार नहीं है यदि मेरे पड़ोसी को मेरे इस अधिकार के कारण सूखी रोटी से वंचित रहना पड़े।"
 
.जवाहरलाल नेहरू ने कहा है, "भूखे व्यक्ति के लिए मत का कोई मूल्य नहीं होता।"
 
.लास्की के अनुसार, "यदि राज्य संपत्ति को अधीन नहीं रखता, तो संपत्ति राज्य को वशीभूत कर लेगी।"
 
.कोल की तरह लास्की ने भी कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता कभी भी वास्तविक नहीं हो सकती।"
 
 
 
 
 
 
 
{"राजनीति शास्त्र का 'प्रारंभ और अंत' राज्य के साथ ही होता है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-17
 
|type="()"}
 
-लीकॉक का
 
-गिलक्राइस्ट का
 
+गार्नर का
 
-लास्कीका
 
||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें।
 
 
{राज्य की उत्पत्ति का सबसे सही सिद्धांत है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-17
 
|type="()"}
 
-दैवति उत्पत्ति सिद्धांत
 
-शक्ति सिद्धांत
 
-पैतृक सिद्धांत
 
+विकासकारी सिद्धांत
 
||उपर्युक्त प्रश्न की व्याख्या देखें।
 
 
{राल्स के अनुसार न्याय के लक्षण हैं- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-7
 
|type="()"}
 
-न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है
 
-प्रक्रियात्मक न्याय की प्रधानता
 
-सामाजिक न्याय से सरोकार
 
+उपर्युक्त सभी
 
 
||राल्स के अनुसार, "न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है, यह प्रक्रियात्मक होता है एवं इसका सरोकर सामाजिक न्याय से होता है"।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.समकालीन उदारवादी चिंतक जॉन राल्स ने अपनी कृति 'ए थ्योरी ऑफ जस्टिस' (न्याय सिद्धांत) में तर्क दिया कि उत्तम समाज में अनेक सद्गुण अपेक्षित होते हैं, जिनमें न्याय का स्थान सर्वप्रथम है। न्याय उत्तम समाज की आवश्यक  शर्क है किंतु यह उसके लिए पर्याप्त नहीं है।
 
.राल्स के अनुसार, न्याय की समस्या प्राथमिक वस्तुओं के न्यायपूर्ण वितरण की समस्या है। ये प्राथमिक वस्तुएं हैं- अधिकार एवं स्वतंत्रताएं, शक्तियां एवं अवसर, आय और संपदा, तथा आत्म-सम्मान के साधं।
 
.राल्स ने अपने न्याय सिद्धांत को 'शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय' की संज्ञा दी। इसका अर्थ है कि सर्वसम्मति से स्वीकार किए गए न्याय सिद्धांतों के प्रयोग से जो भी वितरण-व्यवस्था अस्तित्व में आएगी यह अनिवार्यत: न्यायपूर्ण होगी।
 
.राल्स ने न्याय की सर्वसम्मत प्रक्तिया निर्धारित करने हेतु सामाजिक अनुबंध की तर्क प्रणाली अपनाई।
 
.राल्स ने सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु भेद-मूलक सिद्धांत स्वीकारा जिसके अनुसार, किसी व्यक्ति की असाधारण योग्यता और परिश्रम हेतु विशेष पुरस्कार तभी न्यायसंगत होगा जब उससे समाज के कमजोर वर्ग या व्यक्तियों को अधिकतम लाभ पहुंचे। इसके बाद प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था के मानदंड को लागू किया जा सकता है।
 
 
{"राजनीति विज्ञान शक्ति की रचना और भागीदारी का अध्ययन है।" यह परिभाषा किसने दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-17
 
|type="()"}
 
-आलमंड एंड पावेल
 
+लासवेल व काप्लान
 
-राबर्ट ए. डहल
 
-गिलक्राइस्ट
 
||राजनीति विज्ञान के अध्ययन में व्यवहारवादी क्रांति ने इसकी परम्परागत अध्ययन क्षेत्र एवं अध्ययन की पद्धति दोनों में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया। इसकी परम्परागत धारणा में राज्य सरकार एवं संस्थाओं का अध्ययन किया जाता था। लेकिन व्यवहारवादी विचारक शक्ति, सत्ता एवं प्रभाव को अध्ययन का केन्द्र मानते हैं। ऐसे विचारकों में लासवेल, डहल, कैप्लान आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। लासवेल ने राजनीति शस्त्र की परिभाषा करते हुए लिखा है कि यह "शक्ति में सहभगी होने और उसका निरुपण (रचना) करने का अध्ययन है।" उनके अनुसार राजनीतिक क्रिया वह है जो शक्ति के परिप्रेक्ष्य में संपादित की जाए।
 
 
{उदारवाद का मौलिक सिद्धांत है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-7
 
|type="()"}
 
+वैयक्तिक स्वतंत्रता
 
-सामाजिक न्याय
 
-समानता
 
-राष्ट्रवाद
 
||उदारवाद व्यक्तिगत को सबसे महत्त्वपूर्ण मानता है। इसके अनुसार, व्यक्ति के उन कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, जिनका संबंध केवल उसके ही अस्तित्व से हो। व्यक्तिवादी विचारकों ने इस स्वतंत्रता का समर्थन किया है। मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा है कि "मानव समाज को केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार हो सकता है। अपने ऊपर, अपने शरी, मस्तिष्क और आत्मा पर व्यक्ति संप्रभु है।" उदारवाद का मूल तत्व वैयक्तिक स्वतंत्रता है।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.उदारवद की मुख्य मान्यताएं निम्न हैं-
 
.मनुष्य विवेकशील प्राणी है।
 
.व्यक्ति के हित एवं सामान्य हित में कोई बुनियादी टकराव नहीं है।
 
.व्यक्ति को कुछ प्राकृतिक अधिकार प्राप्त हैं।
 
.नागरिक समाज एक कृत्रिम उपकरण है जिसका ध्येय मनुष्यों का हित साधन है।
 
.उदारवाद केवल सांविधानिक शासन को ही मान्यता देता है।
 
.इसके अनुसार, व्यक्ति की स्वतंत्रता पर  कोई भी प्रतिबंध केवल इस आधार पर लगाया जा सकता है कि वह दूसरों को वैसी ही स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए आवश्यक हो।
 
.उदारवाद अनुबंध की स्वतंत्रता में विश्वास करता है।
 
.इसके अनुसार, सार्वजनिक नीति व्यक्तियों और समूहों की स्वतंत्र सौदेबाजी का परिणाम होना चाहिए।
 
इस प्रकार उदारवाद की संपूर्ण अवधारणा में वैयक्तिक स्वतंत्रता का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
 
 
{"सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन अभी मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।" यह किसने कहा था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-8
 
|type="()"}
 
-ब्राइस
 
+अब्राहम लिंकन
 
-लास्की
 
-लॉवेल
 
||अब्राहम लिंकन का कथन है कि "सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन सभी मनुष्यों को सदैव नहीं बनाया जा सकता।" वास्तव में लोकतंत्र ऐसी शासन पद्धति है जो सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के शासन प्रक्रिया में बराबर हिस्सा देती है।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.सीले-"लोकतंत्र वह शासन है जिसमें हर व्यक्ति भाग लेता है।"
 
.अब्राहम लिंकन-"लोकतंत्र जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता का शासन है।"
 
.डायसी-"लोकतंत्र सरकार का ऐसा रूप है जिसमें जनता का एक बड़ा भाग शासन करता है।"
 
 
{राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर किस विचारक का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-17
 
|type="()"}
 
-प्लेटो
 
-अरस्तू
 
+मार्क्स
 
-जान लॉक
 
||राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर मार्क्स का विश्वास था, मार्क्स ने द्वंद्वात्मक पद्धति के माध्यम से 'समजवाद' को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। संपूर्ण इतिहास को 'वर्गहीन समाज' की स्थापना की ओर अग्रसर होते हुए दिखाया। मार्क्स राष्ट्रवाद का विरोधी था।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.मार्क्स का सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ 'दास कैपिटल' और 'कम्यूनिस्ट मेनीफेस्टी' आदि हैं।
 
.दास कैपिटल को श्रमिकों का धार्मिक ग्रंथ तथा 'धनिकों का दिमाग ठंडा करने वाला नुस्खा' कहा जाता है।
 
 
{इनमें से किसे 'वैज्ञानिक प्रबंध का' पिता कहा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-17
 
|type="()"}
 
-एल्टन मेयो
 
-बर्नार्ड
 
-मैक्सवेबर
 
+एफ.डब्ल्यू. टेलर
 
||वैज्ञानिक प्रबंध में आयोजन, अनुसंधान, विश्लेषण, प्रयोग, विवेक, आदि बातों को अधिकतम महत्त्व दिया जाता है। वैज्ञानिक प्रबंध स्पष्टत: प्रबंध की वैज्ञानिक विधि है जिसके द्वारा साधनों का आदर्शतम समंवय करके न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रबंध का पिता अर्थात इसकी उत्पत्ति का श्रेय एफ.डब्ल्यू. टेलर को दिया जाता है।
 
 
{राजनीतिक चेतना का अर्थ है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-96
 
|type="()"}
 
-समाज के प्रति प्रेम
 
-धर्म के प्रति प्रेम
 
+राज्य के प्रति प्रेम
 
-सभ्यता/संस्कृति के प्रति प्रेम
 
||'राजनीतिक चेतना' का अर्थ 'राज्य के प्रति प्रेम' है। नागरिकों में राजनीतिक चेतना का विकास, राज्य, लोकमत, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, संप्रभुता, सरकार, समाज आदि से संबंधित मौलिक प्रश्नों पर विचार-विमर्श एवं चिंतन द्वारा होता है। उन्हें विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं तथा सिद्धांतों का ज्ञान हो जाता है। साथ ही वे यह समझने लगते हैं कि कौन-से राजनीतिक आदर्श उनके अपने देश और समाज के लिए कल्याणकारी हैं।
 
 
{"राजनीतिक समानता कभी वास्तविक नहीं हो सकती, यदि उसके साथ वास्तविक आर्थिक समानता न हो।' यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-7
 
|type="()"}
 
-मार्क्स का
 
-जे.एस. मिल का
 
+लास्की का
 
-जी.डी.एच. कोल का
 
 
 
 
 
 
 
 
{शक्ति की अवधारणा सर्वप्रथम किसने दी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-18
 
|type="()"}
 
+मैकियावेली
 
-कार्ल मार्क्स
 
-लासवेल
 
-बेकर
 
||आधुनिक युग में शक्ति की अवधारणा का प्रतिपादन सर्वप्रथम मैकियाबेली ने किया था। मैकियावेली ने राज्य के अस्तित्व के लिए शक्ति को मूल आधार माना। मैकियावेली ने राजनीति को शक्ति और नियंत्रण का विषय मानते हुए' इसे शक्ति के उपार्जन, परिरक्षण और प्रसार की कला के रूप में स्थापित किया है। मैकियावेली के अनुसार, प्रेम और भय- ये दो शक्तियां मनुष्यों को वश में कर सकती हैं, किंतु राजा के लिए भय का सहारा लेना ही अधिक श्रेष्ठ है। शक्ति भय की जननी है और भय प्रेम की अपेक्षा अधिक अनुशासन रखने में समर्थ है।
 
 
{राज्य की उत्पत्ति का कौन-सा सिद्धांत काल्पनिक नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-18
 
|type="()"}
 
-दैवी सिद्धांत
 
-शक्ति सिद्धांत
 
+ऐतिहासिक सिद्धांत
 
-सामाजिक समझौते का सिद्धांत
 
||राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी अथवा ऐतिहासिक सिद्धांत को काल्पनिक नहीं माना जाता हैं। इसमें राज्य को अन्य संस्थाओं की तरह ही सतत विकास का परिणाम माना जाता है। आधुनिक राज्य के विकास के मुख्य चरण- 1.स्वजन समूह, 2.संपत्ति, .3रीति-रिवाज, 4.शक्ति, 5.नागरिकता हैं। ऐतिहासिक सिद्धान्त राज्य को न दैवीय संस्था मानता है, न ही बल प्रयोग द्वारा स्थापित तथा न ही लोगों के आपसी समझौते द्वारा स्थापित ही मानता है। यह केवल राज्य को सतत विकास का परिणाम मानता है। जबकि दैवीय सिद्धांत, शक्ति सिद्धांत तथा सामाजिक समझौता सिद्धांत सभी का आधार एक काल्पनिक स्थिति पर आधारित है।
 
 
{निम्नलिखित में से किसने यह विचार व्यक्त किया है- "यदि न्याय व्यवस्था न हो तो राज्य लुटेरों की टोली बन जाता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-8
 
|type="()"}
 
-प्लेटो
 
-अरस्तू
 
+सेंट ऑगस्टाइन
 
-लॉक
 
||ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था भांग कहती है।
 
अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा
 
.'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है।
 
.प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है।
 
 
{किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18
 
|type="()"}
 
-कैटलिन
 
-हैंस मार्गेन्थो
 
-चार्ल्स हैगन
 
+हेराल्ड लैसवेल तथा अब्राहम कैपलन
 
 
{उदारवाद का मूल तत्व है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-8
 
|type="()"}
 
+वैयक्तिक स्वतंत्रता
 
-मिश्रित अर्थव्यवस्था
 
-पंथ निरपेक्षता
 
-समानता
 
 
{'मतों को गिना नहीं, तौला जाना चाहिए"- यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-9
 
|type="()"}
 
-ऑग
 
-रेन
 
+जे.एस. मिल
 
-फाइनर
 
||मिल का कथन है कि "मतो को गिना नहीं तौला जाना चाहिए।" जे.एस. मिल का विचार है कि शिक्षित है कि शिक्षित और योग्य व्यक्तियों को अज्ञानी एवं मूर्ख व्यक्तियों की तुलना में बहुलमत का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। ज्ञातव्य है कि इसी प्रकार का विचार सिजविक ने भी दिया है।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.मिल ने लिंग के आधार पर भेदभाव को स्वाकार नहीं किया और महिला मताधिकार की वकालत की।
 
.मिल के अनुसार मताधिकार उन्हीं को प्राप्त होना चाहिए जो निश्चित शैक्षणिक योग्यता रखते हों।
 
.मिल ने गुप्त मतदान का विरोध किया तथा खुले मतदान को उचित ठहराया।
 
.मिल के अनुसार संसद की तानाशाही प्रवृत्तियों पर अंकुश रखने के लिए द्विसदनीय संसद उपयोगी होती है।
 
.ज्ञातव्य है कि बेंथम 'एक व्यक्ति एक मत' का समर्थक था।
 
 
{निम्न में विचारकों का कौन-सा युग्म वैज्ञानिक समजवद के संस्थापकों में माना जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-19
 
|type="()"}
 
-चार्ल्स फूरिये तथा सेंट साइमन
 
-सिडनी वेब तथा बिएट्रिस वेब
 
+मार्क्स तथा ऐंजिल्स
 
-आर. एच. टावनी तथा विलियम एबेंसटीन
 
||कार्ल मार्क्स एवं ऐंजिल्स को वैज्ञानिक समाजवाद का संस्थापक माना जाता है। इसके अतिरिक्त चार्ल्स फूरिये, सेंट साइमन, थामस मूर, राबर्ट ओवन आदि काल्पनिक समाजवाद के संस्थापक कहे जाते हैं। 'समाजवाद' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 'राबर्ट ओवन' ने किया था।
 
 
{इनमें से कौन यथार्थवादी नहीं था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-18
 
|type="()"}
 
-हॉब्स
 
-थूसीडाइड्स
 
+कांट
 
-मैकियावेली
 
||कांट एक आदर्शवादी विचारक थे। आदर्शवाद या प्रत्ययवाद उन विचारों और मान्यताओं की समेकित विचारधारा है जिनके अनुसार, इस जगत की समस्त वस्तुएं विचार या चेतना की अभिव्यक्ति है। इसके विपरीत हॉब्स, थूसीडाइड्स तथा मैकियावेली यथार्थवादी विचारक हैं। ये राज्य के यंत्रीय सिद्धांत के समर्थक हैं।
 
 
{निम्न में से कौन अंतर्राष्ट्रीय संबंध में राज्य के केंद्रीय महत्त्व पर सहमत नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-97
 
|type="()"}
 
+बहुलवादी
 
-यथार्थवादी
 
-नव-यथार्थवादी
 
-संरचनात्मक यथार्थवादी
 
||बहुलवादी विचारक अंतर्राष्ट्रीय संबंध में राज्य के केंद्रीय महत्त्व पर सहमत नहीं हैं। बहुलवादी मानते हैं कि राज्य विभिन्न संघ समूहों में विभाजित है जो गैर-राज्य कर्त्ता (Non-State-Actors) के रूप में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जबकि नव-यथार्थवादी अथवा संरचात्मक संरचनात्मक यथार्थवादियों के अनुसार, संरचना के प्रभाव को राज्य के व्यवहार को समझाने के रूप में लिया जाना चाहिए। ये लोग राज्य की पारंपारिक सैन्य शक्ति के बजाय राज्य की संयुक्त क्षमताओं की प्रदर्शनात्मक शक्ति को महत्त्व प्रदान करते हैं। यथार्थवादी राष्ट्र/राज्य को अंतर्राष्ट्रीय संबंध में मुख्य अभिनेता मानते हैं।
 
 
{"आर्थिक स्वतंत्रता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता एक भ्रम है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-8
 
|type="()"}
 
+कोल
 
-लॉर्ड एक्टन
 
-मेटरलैंड
 
-बार्कर
 
 
 
 
 
 
{राज्य शब्द का पहली बार प्रयोग किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-19
 
|type="()"}
 
-प्लेटो
 
-अरस्तू
 
+मैकियावेली
 
-हॉब्स
 
||राहनीतिक दर्शन के इतिहास में 'राज्य' शब्द के पर्याय 'State' की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्द 'स्टेटो' से हुई जिसका सर्वप्रथम प्रयोग मैकियावेली मे अपनी पुस्तक 'द प्रिन्स' में किया था। इससे पूर्व यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने 'राज्य' के अर्थ को व्यक्त करने के लिए 'नगर राज्य' का प्रयोग किया था।
 
 
{निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य की उत्पत्ति की सही व्याख्या करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-19
 
|type="()"}
 
-राज्य का दैवी सिद्धांत
 
-समझौता सिद्धांत
 
-विकासवादी सिद्धांत
 
+अपने सीमित रूप में उपर्युक्त सभी
 
||राजनीति विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति एवं विकास की व्याख्या करने के लिए विभिन्न सिद्धांत यथा रक्त संबंध, दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत, सामाजिक समझौता सिद्धांत तथा विकासवादी सिद्धांत आए। रक्त संबंध संगठन का मूल आधार है यह परिवार एवं राज्य के विकास का मूल कारक रहा है। राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धांत ने राज्य की सर्वोच्च तथा जनता में आज्ञापालन का पाठ पढ़ाया, सामाजिक समझौता सिद्धान्त ने राज्य को मानवृत संस्था बतलाकर इसका उद्देश्य मानव सुरक्षा तथा कल्याण बताया। राज्य के ऐतिहासिक विकासवादी सिद्धांत ने राज्य को क्रमिक रूप से विकास का परिणाम बताया। इस प्रकार सभी सिद्धांत अपने सीमिति रूप में राज्य की उत्पत्ति की व्याख्या करते हैं।
 
 
{"यदि न्याय को पृथक कर दिया जाए तो राज्य एक लुटेरे की संपत्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-9
 
|type="()"}
 
-सालमंड का
 
+ऑगस्टाइन का
 
-कांट का
 
-बेंथम का
 
 
{आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना किसने दी थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-19
 
|type="()"}
 
-डेविड ईस्टन
 
-राबर्ट डाल
 
-लासवेल
 
+आर्थर बेंटलें
 
||आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना आर्थर बेंटले ने अपनी पुस्तक (The Process of Government' नामक पुस्तक में सुव्यवस्थित रूप से प्रस्तुत की। बेंटले परम्परागत राजनीतिविज्ञान का कड़ा आलोचक था। वह उसे बंजर, औपचारिकतापूर्ण, प्राणहीन, बंधिया और स्थैतिक मानता था। क्योंकि उसमें प्रक्रिया के अध्ययन पर पर्याप्त जोर नहीं दिया था। बेंटले के प्रयास से प्रक्रिया के अध्ययन को व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान में अपना लिया गया। अब व्यवस्थापिका तथा न्याय प्रक्रियाएं, निर्णय-निर्माण-प्रक्रिया तथा राजनीतिक प्रक्रिया के अध्ययन पर विशेष बल दिया गया।
 
 
{उदारवाद किसका हित चाहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-10
 
|type="()"}
 
-अभिजात्य वर्ग का
 
+धनवानों का
 
-निर्धनों का
 
-सब का
 
||उदारवाद के प्रेणेता लॉक ने व्यक्तियों के प्राकृतिक अधिकारों में से सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार 'संपत्ति के अधिकार' को माना। लॉक प्रारंभिक उदारवादी विचारक के रूप में संपत्ति का उत्पादन करने, संरक्षित करने, व्यापार- व्यवसाय करने का अधिकार व्यक्ति को देता है। उदारवाद की इस प्रवृत्ति से धनवानों का हित होता है क्योंकि लॉक के अनुसार, राज्य को व्यक्ति की 'सपत्ति के अधिकार' में आने वाली बाधाओं को खत्म करना चाहिए।
 
 
{किसने कहा "प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक शक्ति की हिस्सेदारी होती है?" (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-10
 
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-ब्राइस
 
-डायसी
 
+सीले
 
-बेनी प्रसाद
 
||सीले के अनुसार, "प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की हिस्सेदारी होती है।" लोकतंत्र के विषय में सीले की यह परिभाषा डायसी की लोकतंत्र संबंधी परिभाषा से इस अर्थ में भिन्न है कि डायसी 'लोकतंत्र को बहुमत की भागीदारी के रूप में ''परिभाषित करते हैं जबकि सीले प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी को लोकतंत्र की विशेषता मानते हैं।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.ब्राइस के अनुसार- "लोकतंत्र शासन का वह प्रहार है जिसमें राज्य के शासन की शक्ति किसी विशेष वर्गों के हाथ में निहित न होकर संपूर्ण जनसमुदाय में निहित होती है।"
 
.डा. बेनी प्रसाद के अनुसार- "लोकतंत्र जीन का ढंग है। यह इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति के सुख का महत्त्व उतना ही है जितना कि अन्य किसी के सुख का महत्त्व हो सकता है तथा किसी को भी अन्य किसी के सुख का साधन मात्र नहीं समझा जा सकता।
 
 
{"हरेक से अपनी क्षमता के अनुसार, हरेक को अपनी आवश्यकता के अनुसार।" यह सूत्र किस व्यवस्था का है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-20
 
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-पूंजीवादी
 
-समाजवादी
 
+साम्यवादी
 
-राष्ट्रवादी
 
||लेनिन ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'स्टेट एंड रिवोल्यूशन' (राज्य और क्रांति) के अंतर्गत 'समाजवदी और साम्यवादी व्यवस्थाओं में अंतर करते हुए लिखा है: समाजवादी दौर में व्यक्तियों के अधिकार इस सूत्र से निर्धारित किए जाते हैं- "प्रत्येक से अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार, प्रत्येक को अपने-अपने कार्य के अनुसार"। परंतु साम्यवाद के उन्नत दौर के अंतर्गत, जब उत्पादन की शतियां पूर्णत: विकसित हो जाती हैं, व्यक्तियों के अधिकार इस सूत्र से निर्धारित किए जाते है- "प्रत्येक से अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार, प्रत्येक को अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार"।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.साम्यवाद के दौर में सभी लोग कामगार होते हैं, इसलिए समाज वर्गहीन हो जाता है।
 
.साम्यवाद के युग में उत्पादन की नीतियां। संपूर्ण समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, किसी वर्ग के निजी लाभ के लिए बनाई जातीं।
 
.साम्यवाद के दौर में सब कामगारों की सारी आवश्यकताएं पूरी करना संभव हो जाता है, और प्रतिस्पर्धा की भावना बिल्कुल समाप्त हो जाती है।
 
 
{इनमें से किसने कहा था कि 'ज्ञान शक्ति है'? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-19
 
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-अरस्तू
 
+फ्रांसिस बेकन
 
-मिल
 
-हीगल
 
||'ज्ञान शक्ति है" यह सूक्ति फ्रांसिस बेकन की है। फ्रांसिस बेकन अंग्रेज दार्शनिक और न्यायविद हैं, जिसे वैज्ञानिक पद्धति का उन्नायक माना जाता है। यह ब्रिटिश अनुभववादी परंपरा का प्रथम सिद्धांतकार था जिसे जॉन लॉक, डेविड ह्यूम, मिल तथा रसेल ने आगे वढ़ाया। बेकन का विचार है कि विज्ञान को मानवता के हित और लाभ का साधन बनाना चाहिये। बेकन ने तर्क दिया कि प्रकृति के बारे में हम जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उससे हमें प्रकृति पर नियंत्रण स्थापित करने की शक्ति प्राप्त होती है। इसी विचार को बेकन ने 'ज्ञान ही शक्ति है' की सूक्ति के रूप में व्यक्त किया। यद्यपि हीगल ने कहा कि 'राज्य चेतना का विराट रूप है' तथापि उसका चेतना (Spirit) आत्मीय तत्व है न कि ज्ञान।
 
 
{अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में यर्थाथवादी सिद्धांत तीन मान्यताओं पर आधारित है। निम्न में से कौन-सी एक आधारभूत मान्यता नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-98
 
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-राजनेता अपने राष्ट्र-हितों की आकांक्षा करता है और उन्हें आगे बढ़ाता है।
 
+राष्ट्रीय हितों के लक्ष्यों को पूरा करने में राजनेता नैतिक सिद्धांतों को ध्यान मे रखते हैं।
 
-प्रत्येक राज्य का बहुराष्ट्रीय हित उसके प्रभाव के विस्तार में निहित है।
 
-राज्य अपने हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपनी शक्ति अथवा प्रभाव का प्रयोग करता है।
 
||यथार्थवाद के अनुसार, राष्ट्र की शक्ति का विकास की उनके दिलों को पूर्ण करने का एकमात्र साधन है। प्रत्येक राज्य और राजनेता सत्ता और शक्ति के विकास से ही अपने हित-पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। यथार्थवादी दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि विदेश नीति संबंधी निर्णय राष्ट्रीय हित के आधार पर लिए जाने चाहिए, न कि नैतिक सिद्धांतों और भावनात्मक मान्यताओं के आधार पर।
 
 
{निम्नलिखित में से किस एक विचारक ने स्वतंत्रता तथा समानता को (एक-दूसरे का) पूरक बताया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-9
 
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-लॉर्ड एक्टर
 
+मैकाइवर
 
-मैकियावेली
 
-डी. टाकविल
 
||मैकाइवर, आर.एच. टॉनी, एच.जे लास्की, टी.एच.ग्रीन, सी.बी. मैक्फर्सन आदि विचारक स्वतंत्रता एवं समानता को एक-दूसरे का पूरक मानते हैं।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.समानता का सबसे व्यवस्थित विश्लेषण आर.एच. टॉनी ने अपनी कृति 'इक्वैलिटी' में किया है।
 
.उपर्युक्त विचारकों के अलावा ह्यूम, बार्कर, रूसो भी स्वतंत्रता व समानता को एक दूसरे का पूरक मानते हैं।
 
.लास्की के अनुसार, "यदि स्वतंत्रता का अर्थ मानवीय आत्मा में लगातार विकास की शक्ति से है, तो यह समान लोगों के समाज लोगों के समाज के अतिरिक्त शायद ही कहीं संभव है। जहां गरीब और साहूकार हों, शिक्षित और अशिक्षित हों, वहां मालिक और नौकर जरूर मिलेंगे।"
 
.समानता के द्वारा स्वतंत्रता के आधार के रूप में कार्य किया जाता है। एक ऐसे राज्य में जिसमें समानता नहीं है, स्वतंत्रता हो ही नहीं सकती।
 
 
 
 
 
 
 
{किस राजनीतिक विचारक ने आधुनिक काल में 'राज्य' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-20
 
|type="()"}
 
-प्लेटो
 
-बोदां
 
+मैकियावेली
 
-हॉब्स
 
||मैकियावेली सबसे पहला राजनीतिक विचारक है जिसने 'राज्य' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया और इसकी महत्त्वपूर्ण स्थिति का निरूपण किया इसके अनुसार राज्य एक जेसी संस्था है, जो अपने क्षेत्र में सर्वोच्च शक्ति का प्रयोगी करती है। मैकियावेली ने इस बात पर सबसे अधिक जोर दिया है कि मानव जीवन की पूर्णता के लिए एक सुदृढ़ और संगठित राज्य की परम आवश्यकता है। सेबाइन के अनुसार, " 'राज्य' एक सर्वोच्च राजनीतिक संस्था के रूप में मैकियावेली की लेखनी से ही पहली बार अभिव्यक्त हुआ और तब से उसे 'संप्रभु' कहा जाने लगा, बाद में यहीं से संप्रभुता प्रतिपादित किया गया जो आधुनिक राज्य का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है"।
 
 
{'सामाजिक संविदा' का लेखक था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-20
 
|type="()"}
 
-बोदां
 
-गार्नर
 
-जवाहरलाल नेहरू
 
+रूसो
 
||'सामाजिक संविदा' की रचना वर्ष 1762 में तत्कालीन फ्रांसीसी लेखक रूसों ने फ्रेंच भाषा में की थी। इस पुस्तक का एक दूसरा नाम 'प्रिंसिपल ऑफ़ पॉलिटिकल राइट' भी है। इस पुस्तक में रूसो ने राज्य की उत्पत्ति की व्याख्या की है। इस पुस्तक की शुरुआत ही" मनुष्य जन्म से स्वतंत्र किंतु बेड़ियों से जकड़ा हुआ है" शब्दों से हुई है। 'सोशल कांट्रैक्ट' पुस्तक ने फ्रांस में राजनीतिक सुधारों के लिए हुई क्रांति में लोगों को प्रेरणा का कार्य किया था।
 
 
{"जिन राज्यों में न्याय नहीं होता, वह डाकुओं का समूह है।" यह शब्द निम्न में से किनके हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-10
 
|type="()"}
 
-प्लेटो
 
-अरस्तू
 
-सुकरात
 
+ऑगस्टाइन
 
 
{कैटलिन के अनुसार, राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34,प्रश्न-20
 
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+शक्ति का अध्ययन
 
-सार्वजनिक सहमति का अध्ययन
 
-संघर्ष का तनाव का अध्ययन
 
-मानव-स्वभाव का अध्ययन
 
||कैटलिन राजनीति शास्त्र को 'शक्ति का विज्ञान' कहते हैं। वे लिखते हैं, "शक्ति की संकल्पना संभवत: समस्त राजनीति शास्त्र की मूल संकल्पना है"। कैटलिन के अनुसार, राजनीति शास्त्र नियंत्रण की उस स्थिति का अध्ययन है जो शक्ति प्राप्त करने के लिए एक मूलभूत अज्ञात प्रेरण के द्वारा निर्धारित होती है।
 
 
{निम्नलिखित में से कौन-सा सही सुमेलित है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-11
 
|type="()"}
 
+उदारवाद मिश्रण है लोकतंत्र व व्यक्तिवाद का
 
-उदारवाद मिश्रण है साम्यवाद व व्यक्तिवाद का
 
-उदारवाद मिश्रण है समाजवाद व बाहुलवाद का
 
-उदारवाद मिश्रण है व्यक्तिवाद व मार्क्सवाद का
 
||उदारवाद को 'लोकतंत्र व व्यक्तिवाद का मिश्रण' कहा जाता है। उदारवाद में व्यक्ति की वैयक्तिकता को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उदारवाद शासन पद्धति के रूप में लोकतंत्र को स्वीकार करता है जो संवैधानिक व सीमित सरकार के द्वारा शासन करती है। कोयरनर के अनुसार "उदारवाद की शुरुआत और अंत दोनों वैयक्तिक स्वतंत्रता, वैयक्तिक मानवाधिकार एवं वैयक्तिक मानवीय खुशी से होता है।"
 
 
{"यदि अतिसमानता से प्रजातंत्र भ्रष्ट होता है तो साथ ही अतिसमानता की भावना से भी वह नष्ट हो जाएग।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-46,प्रश्न-11
 
|type="()"}
 
-मान्टेस्क्यू
 
+असस्तू
 
-मैकियावेली
 
-जे.एस. मिल
 
||अरस्तू ने कहा है कि "यदि अतिसमानता से प्रजातंत्र भ्रष्ट होता है तो साथ ही अतिसमानता की भावना से भी वह नष्ट हो जाएगा।"
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.गैटल का कथन है, "क्योंकि लोकतंत्र समानता के सामान्य सिद्धांत पर आधारित है, अत: इससे न्याय की वृद्धि होना संभक है जो कि राज्य के अस्तित्व के प्रधान लक्ष्यों में से एक है।"
 
.जे.एस. मिल ने कहा है कि" लोकतंत्र लोगों की देशभक्ति को बढ़ाता है क्योंकि नागरिक यह अनुभव करते हैं कि सरकार उन्हीं की उत्पन्न की हुई वस्तु है और अधिकारी उनके स्वामी न होकर सेवक हैं।"
 
.लावेल का कथन है, "अंत में, वही सरकार सर्वश्रेष्ट है, जो मनुष्य की नैतिकता, उद्योग, साहस, आत्मबोध  पवित्रता को दृढ़ बनाए। क्योंकि प्रजातंत्र इन बातों को पूरा करता है, इसलिए वह सबसे अच्छा शासन है।
 
 
{"राज्य के लुप्त हो जाने का विचार" संबंधित है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-21
 
|type="()"}
 
-उदारवाद से
 
-समाजवाद से
 
+साम्यवाद से
 
-श्रेणी समाजवाद से
 
||राज्य के लुप्त हो जाने का विचार" साम्यवाद से संबंधित है। मार्क्स के अनुसार, सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व के बाद जब विरोधी वर्गों का अंत हो जाएगा तो राज्य की सत्ता का भी अंत हो जाएगा और राज्यहीन व वर्ग विहीन समाज की स्थापना होगी।
 
 
{'शासकीय विचारधारा' की संकल्पना इनमें से किसकी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-20
 
|type="()"}
 
-परेटो
 
-माइकल्स
 
+मोस्का
 
-रॉबर्ट डाहल
 
||मोस्का अभिजन वर्गवादी विचारक है। इसने अपनी चर्चित कृति 'द रुलिंग क्लास' (शासक वर्ग) के अंतर्गत माना है कि सब समाजों में दो वर्ग पाये जाते है- शासक वर्ग तथा शासित वर्ग्। समाज के इस विभाजन को विशिष्ट वर्गवाद की संज्ञा दी जाती है। मोस्का ने तर्क दिया कि शासन प्रणाली में परिवर्तन होने पर राजनीतिक प्रणाली की इस बुनियादी प्रकृति में बदलाव नहीं आता। अत: लोकतंत्र को अपना लेने पर भी 'बहुमत का शासन अस्तित्व में नहीं आता' बल्कि इसमें अल्पमत के शासन को कायम रखने के गूढ़ तरीके पनाये जाते हैं। इसने लोकतंत्र में स्वतंत्र चुनावों की व्यवस्था को झूठी परिकल्पना कहा है।
 
 
{'सामुदायिकतावाद' एक प्रमुख धारा है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-80,प्रश्न-100
 
|type="()"}
 
-उदारवाद की
 
-मार्क्सवाद की
 
-सर्वाधिकारवाद की
 
+प्रत्ययवाद की
 
||'सामुदायिकतावाद' प्रत्ययवाद की एक प्रमुख धारा है क्योंकि यव व्यक्ति के अस्तित्व व्यक्ति को समाज की देन मानता है। इसलिए समाज की प्रति प्रतिबद्धता व्यक्ति के व्यक्तित्व का आवश्यक अंग है। जहां उदारवादा व्यक्ति की स्वतंत्रता, हितों और अधिकारों पर बल देता है, वहीं समुदायवद उसके दायित्वों और कर्त्तव्यों तथा समाज के सामान्य हित पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। समुदायवाद के समकालीन विचारक मैंकिटायर, सैंडल, माइकेल वाल्जर हैं जिनके आरंभिक चिंतन की जड़े ग्रीन व हीगल के विचारों मे मिलती हैं।
 
 
{जॉन स्टुअर्ड मिल के स्वतंत्रता के सिद्धांत के बारे में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-10
 
|type="()"}
 
-मिल की स्वतंत्रता की अवधारणा उपयोगितावाद से तार्किक रूप से सुसंगत है।
 
-मिल की स्वतंत्रता की अवधारणा उपयोगितावाद से विसंगत है।
 
-अधिकतम लोगों के अधिकतम हित की प्राप्ति में मिल स्वतंत्रता को अपरिहार्य साधन मानता है।
 
+मिल का विचार है कि स्वतंत्रता के बिना मनुष्य वौद्धिक और नैतिक पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता तथा विकास और एक आदर्श मनुष्य नहीं बन सकता।
 
||जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने स्वतंत्रता संबंधी विचार वर्ष 1859 में प्रकाशित ग्रंथ 'स्वतंत्रता पर' (On Liderty) में दिए हैं। मिल ने स्वतंत्रता के नकारात्मक दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया। मिल के अनुसार, व्यक्ति का उद्देश्य अपने व्यक्तित्व का उच्चतम एवं अधिकतम विकास है और यह विकास केवल स्वतंत्रता के वातावरण में ही संभव है। मिल का विचार है कि स्वतंत्रता के द्वारा ही मनुष्य बौद्धिक व नैतिक पूर्णता प्राप्त करके एक आदर्श मनुष्य बन सकता है।
 
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
 
.मिल के अनुसार, "व्यक्ति के जीवन में राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप और अधिकतम संभव सीमा तक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने की छूट ही स्वतंत्रता है और वह इसे अपनाने पर बल देता है।"
 
.मिल ने व्यक्ति की स्वतंत्रता को दो भागों में बांटा है- प्रथम विचारों की स्वतंत्रता, द्वितीय कार्य संबंधी स्वतंत्रता।
 
.मिल के अनुसार, व्यक्ति को विचारों की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए, मिल स्थापित परंपरा व धारणा के विरुद्ध विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता देता है तथा सनकी व्यक्ति को भी स्वतंत्रता दिए जाने का पक्षधर है।
 
.मिल, कार्य संबंधी स्वतंत्रता को रव-विषयक तथा पर-विषयक दो भागों में विभाजित करता है। उसके अनुसार स्व-विकास कार्यों में व्यक्ति को पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त होनी चाहिए, लेकिन पर-विषयक
 
कार्यों में व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित होती है, विशेषकर जब उसके कार्यों से समाज के अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता में बाधा पहुंचती हो।
 
</quiz>
 
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11:57, 19 जनवरी 2018 के समय का अवतरण