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− | + | रामजी भाई हंसमुख कमानी | |
− | + | प्रसिद्ध उद्योगपति और 'कमानी इंडस्ट्रीज' के संस्थापक रामजी भाई हंसमुख कमानी का जन्म 1888 गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में एक जैन परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा सौराष्ट्र और कोलकाता में हुई अपना व्यावसायिक जीवन उन्होंने फेरी लगाकर एल्युमीनियम के बर्तन बेचने से आरंभ किया। प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ हो जाने पर उन्हें अपना व्यवसाय बढ़ाने का उपयुक्त अवसर मिल गया। पहले कमानी ने कारखानों को एल्युमीनियम की पिंडो की आपूर्ति की और फिर स्वयं इसके बर्तन बनाने का कारखाना खोल लिया। इसमें जीवन लाल उनके सहयोगी थे। | |
− | + | इस उद्योग में पर्याप्त संपत्ति अर्जित करने के बाद कमाने और धन कमाने से बचना चाहते थे पर परिस्थितियों ने उन्हें इसका आंसर नहीं दिया जमनालाल बजाज के आग्रह पर 1938 में मुंबई के 'मुकुंद आयरन एंड स्टील वर्क्स' के मैनेजिंग डायरेक्टर बने। इस पद पर काम करते हुए उन्होंने अनुभव किया कि देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध पीतल और तांबे के टुकड़ों को मिलाकर धातु का अच्छा कारोबार किया जा सकता है। इसके बाद ही 1940 में कोलकाता में कमानी उद्योग को आगे बढ़ने का अवसर मिल गया। | |
− | + | द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के कूद पड़ने से कोलकाता के उद्योगों के लिए खतरा पैदा हो गया था। इसलिए कमानी अपने कारखाने को जयपुर ले आए और नाम रखा 'जयपुर मेटल इंडस्ट्रीज' यहां हथियारों के निर्माण में काम आने वाले गन मेटल सहित विविध प्रकार की धातुओं का निर्माण हुआ और कमानी उद्योग को इससे लाभ भी हुआ और उसकी ख्याति भी बढ़ी। | |
+ | इसके बाद फिर इस उद्योग ने पीछे नहीं देखा और निरंतर विभिन्न क्षेत्रों में इसका विस्तार होता गया इसके अंतर्गत अनेक कंपनियां बनी विदेशी कंपनियों से सहयोग हुआ। बिजली के ट्रांसमिशन टावर, विद्युत उपकरण, एक्सरे मशीनें, ट्यूब आदि विविध प्रकार की वस्तुओं का यह कंपनी उत्पादन करती है। विश्व के औद्योगिक जगत में कमानी को भी वही सम्मान प्राप्त है जो भारत की Tata कंपनी को है। | ||
+ | उद्योग के क्षेत्र में प्रगति के साथ-साथ रामजी भाई कमानी ने लोक सेवा के भी अनेक काम किए। उनके स्थापित किए हुए ट्र्रस्ट आज भी जरुरतमंदों की सहायता कर रहे हैं। उनका व्यक्तिगत जीवन अत्यंत सादा और गांधीजी से प्रभावित था। 1965 ईस्वी में उनका देहांत हो गया। | ||
+ | भारतीय चरित्र कोश 731 |
09:04, 10 जून 2018 का अवतरण
रामजी भाई हंसमुख कमानी
प्रसिद्ध उद्योगपति और 'कमानी इंडस्ट्रीज' के संस्थापक रामजी भाई हंसमुख कमानी का जन्म 1888 गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में एक जैन परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा सौराष्ट्र और कोलकाता में हुई अपना व्यावसायिक जीवन उन्होंने फेरी लगाकर एल्युमीनियम के बर्तन बेचने से आरंभ किया। प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ हो जाने पर उन्हें अपना व्यवसाय बढ़ाने का उपयुक्त अवसर मिल गया। पहले कमानी ने कारखानों को एल्युमीनियम की पिंडो की आपूर्ति की और फिर स्वयं इसके बर्तन बनाने का कारखाना खोल लिया। इसमें जीवन लाल उनके सहयोगी थे।
इस उद्योग में पर्याप्त संपत्ति अर्जित करने के बाद कमाने और धन कमाने से बचना चाहते थे पर परिस्थितियों ने उन्हें इसका आंसर नहीं दिया जमनालाल बजाज के आग्रह पर 1938 में मुंबई के 'मुकुंद आयरन एंड स्टील वर्क्स' के मैनेजिंग डायरेक्टर बने। इस पद पर काम करते हुए उन्होंने अनुभव किया कि देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध पीतल और तांबे के टुकड़ों को मिलाकर धातु का अच्छा कारोबार किया जा सकता है। इसके बाद ही 1940 में कोलकाता में कमानी उद्योग को आगे बढ़ने का अवसर मिल गया।
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के कूद पड़ने से कोलकाता के उद्योगों के लिए खतरा पैदा हो गया था। इसलिए कमानी अपने कारखाने को जयपुर ले आए और नाम रखा 'जयपुर मेटल इंडस्ट्रीज' यहां हथियारों के निर्माण में काम आने वाले गन मेटल सहित विविध प्रकार की धातुओं का निर्माण हुआ और कमानी उद्योग को इससे लाभ भी हुआ और उसकी ख्याति भी बढ़ी। इसके बाद फिर इस उद्योग ने पीछे नहीं देखा और निरंतर विभिन्न क्षेत्रों में इसका विस्तार होता गया इसके अंतर्गत अनेक कंपनियां बनी विदेशी कंपनियों से सहयोग हुआ। बिजली के ट्रांसमिशन टावर, विद्युत उपकरण, एक्सरे मशीनें, ट्यूब आदि विविध प्रकार की वस्तुओं का यह कंपनी उत्पादन करती है। विश्व के औद्योगिक जगत में कमानी को भी वही सम्मान प्राप्त है जो भारत की Tata कंपनी को है। उद्योग के क्षेत्र में प्रगति के साथ-साथ रामजी भाई कमानी ने लोक सेवा के भी अनेक काम किए। उनके स्थापित किए हुए ट्र्रस्ट आज भी जरुरतमंदों की सहायता कर रहे हैं। उनका व्यक्तिगत जीवन अत्यंत सादा और गांधीजी से प्रभावित था। 1965 ईस्वी में उनका देहांत हो गया।
भारतीय चरित्र कोश 731