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'''रामास्वामी नायकर पेरियार''' (जन्म- [[17 सितंबर]], [[1879]], [[इरोड]], [[तमिलनाडु]]; मृत्यु- [[1973]]) [[ब्राह्मण]] होते हुए भी हिंदुत्व विरोधी थे। दलित और पिछड़े वर्गों की इस दशा के लिए ब्राह्मण प्रधान और मनुस्मृति पर आधारित [[हिंदू धर्म]] की संस्कृति को जिम्मेदार माना। इन विचारों को लेकर उनको विशेषकर [[उत्तर भारत]] में विरोध का सामना करना पड़ा था।   
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'''रामास्वामी नायकर पेरियार''' (जन्म- [[17 सितंबर]], [[1879]], [[इरोड]], [[तमिलनाडु]]; मृत्यु- [[1973]]) द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता थे और [[ब्राह्मण]] होते हुए भी हिंदुत्व विरोधी थे। दलित और पिछड़े वर्गों की इस दशा के लिए ब्राह्मण प्रधान और मनुस्मृति पर आधारित [[हिंदू धर्म]] की संस्कृति को जिम्मेदार माना। इन विचारों को लेकर उनको विशेषकर [[उत्तर भारत]] में विरोध का सामना करना पड़ा था।   
 
==परिचय==
 
==परिचय==
 
हिंदुत्व विरोधी और द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता ई.वी. रामास्वामी नायकर का जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के इरोड नामक शहर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही विद्रोही प्रवृत्ति के थे। जब अध्यापकों ने उन्हें स्कूल में पढ़ने के अयोग्य घोषित कर दिया तो पिता ने उन्हें व्यवसाय में लगा दिया। सार्वजनिक जीवन के आरंभ में रामास्वामी [[राजगोपालाचारी]] की प्रेरणा से कांग्रेस में सम्मिलित हुए। [[1920]] के [[असहयोग आंदोलन]] में वे जेल भी गए। परंतु अपने विचारों की उपेक्षा देखकर उन्होंने [[कांग्रेस]] छोड़ दी और 'आत्म सम्मान' नामक संगठन बनाया। [[रूस]] की यात्रा से वे इस नतीजे पर पहुंचे कि धार्मिकता से नहीं भौतिक समृद्धि  से ही पिछ्ड़ों की स्थिति सुधर सकती है। उनके मन में दलित और पिछड़े वर्गों की दशा के प्रति बेहद लगाव था और इस दशा को दूर करने के लिए संघर्ष किया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=743|url=}}</ref>
 
हिंदुत्व विरोधी और द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता ई.वी. रामास्वामी नायकर का जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के इरोड नामक शहर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही विद्रोही प्रवृत्ति के थे। जब अध्यापकों ने उन्हें स्कूल में पढ़ने के अयोग्य घोषित कर दिया तो पिता ने उन्हें व्यवसाय में लगा दिया। सार्वजनिक जीवन के आरंभ में रामास्वामी [[राजगोपालाचारी]] की प्रेरणा से कांग्रेस में सम्मिलित हुए। [[1920]] के [[असहयोग आंदोलन]] में वे जेल भी गए। परंतु अपने विचारों की उपेक्षा देखकर उन्होंने [[कांग्रेस]] छोड़ दी और 'आत्म सम्मान' नामक संगठन बनाया। [[रूस]] की यात्रा से वे इस नतीजे पर पहुंचे कि धार्मिकता से नहीं भौतिक समृद्धि  से ही पिछ्ड़ों की स्थिति सुधर सकती है। उनके मन में दलित और पिछड़े वर्गों की दशा के प्रति बेहद लगाव था और इस दशा को दूर करने के लिए संघर्ष किया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=743|url=}}</ref>
  
 
==हिंदुत्व और हिंदी के विरोधी==
 
==हिंदुत्व और हिंदी के विरोधी==
रामास्वामी नायकर [[उत्तर भारत]] भी आए और [[हिंदू धर्म]] ग्रंथों का आलोचनात्मक अध्ययन करने पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि दलित और पिछड़े वर्गों की दशा के लिए [[ब्राह्मण]] प्रधान और मनुस्मृति पर आधारित हिंदू धर्म की व्यवस्था जिम्मेदार है। वे हिंदू लोकाचार विरोधी और [[हिंदी]] विरोधी हो गए। हिंदी विरोध के कारण राजा जी की सरकार ने भी उन्हें जेल में डाला था। [[संविधान]] और [[राष्ट्रीय ध्वज]] का अपमान, मूर्ति पूजा का उपहास, [[विनायक]], [[राम]] आदि की मूर्तियां तोड़ना तथा एक पुस्तक लिखकर राम, [[सीता]], [[लक्ष्मण]] आदि के संबंध में अशोभनीय टिप्पणी करने जैसे अनेक कार्य किए।   
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रामास्वामी नायकर [[उत्तर भारत]] भी आए और [[हिंदू धर्म]] ग्रंथों का आलोचनात्मक अध्ययन करने पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि दलित और पिछड़े वर्गों की दशा के लिए [[ब्राह्मण]] प्रधान और [[मनुस्मृति]] पर आधारित हिंदू धर्म की व्यवस्था जिम्मेदार है। वे हिंदू लोकाचार विरोधी और [[हिंदी]] विरोधी हो गए। हिंदी विरोध के कारण राजा जी की सरकार ने भी उन्हें जेल में डाला था। [[संविधान]] और [[राष्ट्रीय ध्वज]] का अपमान, मूर्ति पूजा का उपहास, [[विनायक]], [[राम]] आदि की मूर्तियां तोड़ना तथा एक पुस्तक लिखकर राम, [[सीता]], [[लक्ष्मण]] आदि के संबंध में अशोभनीय टिप्पणी करने जैसे अनेक कार्य किए।   
==रजनैतिक संगठन==  
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==राजनैतिक संगठन==  
रामास्वामी नायकर ने [[कांग्रेस]] छोड़ दी और 'आत्म सम्मान' नामक संगठन बनाया। वे जेल में रहते हुए 'जस्टिस पार्टी' के अध्यक्ष चुने गए। इस पार्टी को उन्होंने नया नाम दिया 'द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम'। अब रामास्वामी ने अलग 'द्रविड़नाडु' नामक स्वतंत्र देश की मांग शुरू कर दी। लेकिन अन्नादुराई के नेतृत्व में उनके कुछ साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया। इसका कारण 70 वर्ष की उम्र में उनका 28 वर्ष की महिला से विवाह बताया जाता है। इसके बाद भी उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखा।  
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रामास्वामी नायकर ने [[कांग्रेस]] छोड़ दी और 'आत्म सम्मान' नामक संगठन बनाया। वे जेल में रहते हुए 'जस्टिस पार्टी' के अध्यक्ष चुने गए। इस पार्टी को उन्होंने नया नाम दिया '[[द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम|द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम]]'। अब रामास्वामी ने अलग 'द्रविड़नाडु' नामक स्वतंत्र देश की मांग शुरू कर दी। लेकिन [[अन्नादुराई]] के नेतृत्व में उनके कुछ साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया। इसका कारण 70 वर्ष की उम्र में उनका 28 वर्ष की महिला से [[विवाह]] बताया जाता है। इसके बाद भी उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखा।  
 
==मृत्यु==
 
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द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता ई.वी. रामास्वामी नायकर पेरियार का [[1973]] को निधन हो गया।
 
द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता ई.वी. रामास्वामी नायकर पेरियार का [[1973]] को निधन हो गया।
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==संबंधित लेख==
 
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तमिलनाडु के हिंदुत्व विरोधी और द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता ई.वी. रामास्वामी नायकर का जन्म 17 सितंबर 1879 को इरोड नामक शहर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही विद्रोही प्रवृत्ति के थे। जब अध्यापकों ने उन्हें स्कूल में पढ़ने के अयोग्य घोषित कर दिया तो पिता ने उन्हें व्यवसाय में लगा दिया। लेकिन उन्होंने अपना ध्यान समाज के दलित और पिछड़े वर्गों की दशा की ओर लगाया। वे उत्तर भारत भी आए और हिंदू धर्म ग्रंथों का आलोचनात्मक अध्ययन करने पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इस विषमता के लिए ब्राह्मण प्रधान और मनुस्मृति पर आधारित हिंदू धर्म की व्यवस्था उत्तरदाई है।
 
    सार्वजनिक जीवन के आरंभ में रामास्वामी  राजगोपालाचारी की प्रेरणा से कांग्रेस में सम्मिलित हुए। 1920 के असहयोग आंदोलन में वे  जेल भी गए। हरिजनों के मंदिर प्रवेश के सत्याग्रह में भाग लिया। परंतु अपने विचारों की उपेक्षा देखकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 'आत्म सम्मान' नामक संगठन बनाया। रूस की यात्रा से वे  इस नतीजे पर पहुंचे कि धार्मिकता से नहीं भौतिक समृद्धि  से ही पिछ्ड़ों की स्थिति सुधर सकती है। यहीं से वे हिंदू लोकाचार विरोधी,हिंदी विरोधी  हो गए। हिंदी विरोध के कारण राजा जी की सरकार ने भी उन्हें जेल में डाला था। जेल में रहते हुए वे जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए इस पार्टी को उन्होंने नया नाम दिया 'द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम'। अब रामास्वामी ने अलग 'द्रविड़नाडु' नामक स्वतंत्र देश की मांग शुरू कर दी। लेकिन अन्नादुराई के नेतृत्व में उनके कुछ साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया। इसका कारण 70 वर्ष की उम्र में उनका 28 वर्ष की महिला से विवाह बताया जाता है। इसके बाद भी उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखा। संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, मूर्ति पूजा का उपहास, विनायक, राम आदि की मूर्तियां तोड़ना तथा एक पुस्तक लिखकर राम, सीता, लक्ष्मण आदि के संबंध में अशोभनीय टिप्पणी करने जैसे उनके कार्यों का उत्तर भारत में बड़ा विरोध हुआ था। अपने अनुयायियों के बीच पेरियार (महान आत्मा) माने जाने वाले रामास्वामी का 1973 में देहांत हो गया।
 
भारतीय चरित्र कोश 743
 

09:16, 16 जून 2018 का अवतरण

रामास्वामी नायकर पेरियार (जन्म- 17 सितंबर, 1879, इरोड, तमिलनाडु; मृत्यु- 1973) द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता थे और ब्राह्मण होते हुए भी हिंदुत्व विरोधी थे। दलित और पिछड़े वर्गों की इस दशा के लिए ब्राह्मण प्रधान और मनुस्मृति पर आधारित हिंदू धर्म की संस्कृति को जिम्मेदार माना। इन विचारों को लेकर उनको विशेषकर उत्तर भारत में विरोध का सामना करना पड़ा था।

परिचय

हिंदुत्व विरोधी और द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता ई.वी. रामास्वामी नायकर का जन्म 17 सितंबर 1879 को तमिलनाडु के इरोड नामक शहर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही विद्रोही प्रवृत्ति के थे। जब अध्यापकों ने उन्हें स्कूल में पढ़ने के अयोग्य घोषित कर दिया तो पिता ने उन्हें व्यवसाय में लगा दिया। सार्वजनिक जीवन के आरंभ में रामास्वामी राजगोपालाचारी की प्रेरणा से कांग्रेस में सम्मिलित हुए। 1920 के असहयोग आंदोलन में वे जेल भी गए। परंतु अपने विचारों की उपेक्षा देखकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 'आत्म सम्मान' नामक संगठन बनाया। रूस की यात्रा से वे इस नतीजे पर पहुंचे कि धार्मिकता से नहीं भौतिक समृद्धि से ही पिछ्ड़ों की स्थिति सुधर सकती है। उनके मन में दलित और पिछड़े वर्गों की दशा के प्रति बेहद लगाव था और इस दशा को दूर करने के लिए संघर्ष किया।[1]

हिंदुत्व और हिंदी के विरोधी

रामास्वामी नायकर उत्तर भारत भी आए और हिंदू धर्म ग्रंथों का आलोचनात्मक अध्ययन करने पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि दलित और पिछड़े वर्गों की दशा के लिए ब्राह्मण प्रधान और मनुस्मृति पर आधारित हिंदू धर्म की व्यवस्था जिम्मेदार है। वे हिंदू लोकाचार विरोधी और हिंदी विरोधी हो गए। हिंदी विरोध के कारण राजा जी की सरकार ने भी उन्हें जेल में डाला था। संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, मूर्ति पूजा का उपहास, विनायक, राम आदि की मूर्तियां तोड़ना तथा एक पुस्तक लिखकर राम, सीता, लक्ष्मण आदि के संबंध में अशोभनीय टिप्पणी करने जैसे अनेक कार्य किए।

राजनैतिक संगठन

रामास्वामी नायकर ने कांग्रेस छोड़ दी और 'आत्म सम्मान' नामक संगठन बनाया। वे जेल में रहते हुए 'जस्टिस पार्टी' के अध्यक्ष चुने गए। इस पार्टी को उन्होंने नया नाम दिया 'द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम'। अब रामास्वामी ने अलग 'द्रविड़नाडु' नामक स्वतंत्र देश की मांग शुरू कर दी। लेकिन अन्नादुराई के नेतृत्व में उनके कुछ साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया। इसका कारण 70 वर्ष की उम्र में उनका 28 वर्ष की महिला से विवाह बताया जाता है। इसके बाद भी उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखा।

मृत्यु

द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता ई.वी. रामास्वामी नायकर पेरियार का 1973 को निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 743 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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