"प्रयोग:दिनेश" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''लक्ष्मी मेनन''' (जन्म- [[1899]], [[त्रिवेंद्रम]]) शिक्षिका, वकील और राजनेता थीं। उन्हें [[पद्मभूषण]] से सम्मानित किया गया था। इन्होंने महिलाओं की स्थिति सुधारने के कामों पर विशेष बल दिया।
+
'''लालचंद नवल राय''' (जन्म- [[1870]], [[लरकाना]], मृत्यु- [[1956]])  वकील के रूप में प्रैक्टिस करते हुए सार्वजनिक जीवन में भी भाग लेना आरंभ किया। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा हेतु स्कूल खुलवाने के लिये अपना मकान दे दिया था।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
प्रसिद्ध महिला नेत्री और नारी उत्थान के लिए प्रयत्नशील लक्ष्मी मेनन का जन्म [[1899]] ईसवी में [[त्रिवेंद्रम]] में हुआ था। उन्होंने त्रिवेंद्रम, [[मद्रास]], [[लखनऊ]] और [[लंदन]] में शिक्षा पाई तथा एम.ए., एल.टी. और एल.एल.बी.. की डिग्रीयां लीं। देश और समाज के प्रति किये गये कार्यों के लिए [[1957]] में लक्ष्मी मेनन को [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया था। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=758|url=}}</ref>
+
अविभाजित भारत में [[सिंध]] के प्रसिद्ध हिंदू नेता लालचंद राय का जन्म [[1870]] ईसवी में लरकाना में हुआ था। पूरे सिंध में उस समय कोई कॉलेज नहीं था। इसलिए लालचंद ने मैट्रिक करने के बाद एक वकील के सहायक के रूप में काम करना आरंभ किया। धीरे-धीरे वे स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करने लगे और उनकी ख्याति बढ़ने लगी साथ ही उन्होंने सार्वजनिक जीवन में भी भाग लेना आरंभ किया। स्वतंत्रता के साथ हुए विभाजन के कारण लालचंद नवल राय भी शरणार्थी बनकर [[बड़ौदा]] आकर रहने लगे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=760|url=}}</ref>
==अध्यापन==
+
==बालिकाओं के प्रति झुकाव==  
लक्ष्मी ने एक शिक्षिका के रूप में जीवन आरंभ किया। 5 वर्ष तक वे कॉलेज, [[मद्रास]] में पढ़ाती रहीं। फिर गोखले क्वीन मैरिज मेमोरियल स्कूल, [[कोलकाता]] आईं। उन्होंने [[1930]] से [[1932]] तक आईटी कॉलेज, [[लखनऊ]] में अध्यापन कार्य किया। [[1951]]-[[1952]] में वे टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, [[पटना]] की प्राचार्या थींं।
+
लालचंद राय लड़कियों की शिक्षा के प्रति बेहद गम्भीर थे। उन्होंने [[1904]] में लरकाना में अपना मकान देकर लड़कियों का पहला स्कूल खुलवाया था। महिलाओं के प्रति जो कुरीतियां थीं उनका वे विरोध करते थे।
==राजनैतिक यात्रा==
+
==समर्थक एवं विरोध==
लक्ष्मी मेनन इसी दौरान [[जवाहर लाल नेहरु]] और [[सरोजिनी नायडू]] आदि के संपर्क में आईंं। वे 'ऑल इंडिया वूमेंस कांफ्रेंस' की संस्थापक सदस्य थी और इस संस्था की महामंत्री एवं अध्यक्ष भी रहीं। [[1952]] में वे [[राज्यसभा]] की सदस्य चुनी गईंं और [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] में [[भारत]] के प्रतिनिधि मंडल की सदस्य रहीं। उनकी कार्य क्षमता से प्रभावित होकर उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में, [[1952]] में विदेश मंत्रालय का सभा सचिव, [[1957]] में उपमंत्री और [[1962]] में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। उन्होंने [[भारत]] [[चीन]] संघर्ष के दिनों में विभिन्न देशों की यात्रा करके भारत के दृष्टिकोण का स्पष्टीकरण बड़ी सफलता के साथ किया।
+
[[1917]] में जब लालचंद [[नगरपालिका]] के अध्यक्ष थे तब सरकार ने नगरपालिका के मत के विरुद्ध भवन कर लगा दिया था। लालचंद सहित सभी सदस्यों ने पद त्याग करके इतना तीव्र आंदोलन छेड़ा कि सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा था। लालचंद राय सिंध की अकेली [[हिंदू]] सीट से [[1928]] में केंद्रीय असेंबली के सदस्य चुने गए और [[1945]] तक इस पद पर रहे। उन्होंने सुधार के सभी प्रस्तावों का समर्थन किया। [[बाल विवाह]] रोकने के लिए 'शारदा बिल' पास हो जाने के बाद लालचंद ने बिल में संशोधन करा कर इस पर रोक लगवाई थी।
==महिलाओं के प्रति ध्यान==
+
==मृत्यु==
[[1966]] में लक्ष्मी ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी। उन्होंने 'ऑल इंडिया वूमेंस कांफ्रेंस' संस्था के माध्यम से अपना पूरा ध्यान महिलाओं की स्थिति सुधारने के कामों में लगाया।
+
लालचंद नवल राय का [[1956]] में निधन हो गया।
इस संस्था की वे संस्थापक सदस्य, महामंत्री एवं अध्यक्ष भी थीं।
 
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 15: पंक्ति 14:
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{भारत के मुख्य न्यायाधीश}}
+
{{मुख्य न्यायाधीश}}
[[Category:शिक्षिका]][[Category:राजनेता]][[Category:अधिवक्ता]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:भारतीय चरित कोश]]
+
[[Category:अधिवक्ता]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:भारतीय चरित कोश]][[Category:राजनेता]][[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:राजनीति कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__
  
  
 
  
प्रसिद्ध महिला नेत्री और नारी उत्थान के लिए प्रयत्नशील लक्ष्मी मेनन का जन्म 1899 ईसवी में त्रिवेंद्रम में हुआ था। उन्होंने त्रिवेंद्रम, मद्रास, लखनऊ और लंदन में शिक्षा पाई तथा एम.ए.एल.टी. और एल.एल.बी.. की डिग्रीयां लीं। लक्ष्मी ने एक शिक्षिका के रूप में जीवन आरंभ किया। 5 वर्ष तक वे कॉलेज मद्रास में पढ़ाती रहीं। फिर गोखले  क्वीन मैरिज मेमोरियल  स्कूल कोलकाता आई। उन्होंने 1930 से 1932 तक आईटी कॉलेज लखनऊ में अध्यापन कार्य किया। उसके बाद कुछ वर्षों तक वकालत भी की।  1951‌‌-52 में वे टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज पटना की प्राचार्या थी। अपने इस घटना पूर्ण जीवन में लक्ष्मी जवाहर लाल जी और सरोजिनी नायडू आदि के संपर्क में आई ऑल इंडिया वूमेंस कांफ्रेंस की संस्थापक सदस्य थी और इस संस्था की महामंत्री और अध्यक्ष भी र हीं। 1952में वे राज्यसभा की सदस्य चुनी गई और राष्ट्र संघ में भारत के प्रतिनिधि मंडल की सदस्य रहीं। उनकी कार्य क्षमता से प्रभावित होकर उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में 1952 में विदेश मंत्रालय का सभा सचिव 1957 में उपमंत्री और 1962 में राज्य मंत्री का दायित्व सौंपा गया था। भारत चीन संघर्ष के दिनों में विभिन्न देशों की यात्रा करके भारत के दृष्टिकोण का स्पष्टीकरण उन्होंने बड़ी सफलता के साथ किया। 1966 में लक्ष्मी ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी और अपना पूरा ध्यान महिलाओं की स्थिति सुधारने के कामों में लगाया। 1957 में लक्ष्मी मेनन को पदम भूषण से सम्मानित किया गया था।
+
 
भारतीय चरित्र कोश 758
+
अविभाजित भारत में सिंध के प्रसिद्ध हिंदू नेता लालचंद राय का जन्म 1870 ईसवी में लरकाना में हुआ था। पूरे सिंध में उस समय कोई कॉलेज नहीं था। इसलिए लालचंद ने मैट्रिक करने के बाद एक वकील के सहायक के रूप में काम करना आरंभ किया। धीरे-धीरे वे स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करने लगे और उनकी ख्याति बढ़ने लगी साथ ही उन्होंने सार्वजनिक जीवन में भी भाग लेना आरंभ किया। 1904 में उन्होंने लरकाना में अपना मकान देकर लड़कियों का पहला स्कूल खुलवाया था।1917 में जब लालचंद नगरपालिका के अध्यक्ष थे सरकार ने नगरपालिका के मत के विरुद्ध भवन कर लगा दिया था लालचंद सहित सभी सदस्यों ने पद त्याग करके इतना तीव्र आंदोलन छेड़ा कि सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा था।
 +
  लाल चंद सिंध की अकेली हिंदू सीट से 1928 में केंद्रीय असेंबली के सदस्य चुने गए और 1945 तक इस पद पर रहे। असेंबली में मदन मोहन मालवीय की कांग्रेस नेशलिस्ट पार्टी के साथ थे।उन्होंने सुधार के सभी प्रस्तावों का समर्थन किया।  बाल विवाह रोकने के लिए 'शारदा बिल' पास हो जाने के बाद बहुत से लोग देशी रियासतों में जाकर छोटे बच्चों का विवाह कराने लगे थे।लालचंद ने बिल में संशोधन करा कर इस पर रोक  लगवाई थी।
 +
स्वतंत्रता के साथ हुए विभाजन के कारण लालचंद नवल राय को भी शरणार्थी बनकर बड़ौदा आना पड़ा था और यहीं 1956 में उनका देहांत हुआ।।
 +
भारतीय चरित्र कोश 760

12:47, 22 जून 2018 का अवतरण

लालचंद नवल राय (जन्म- 1870, लरकाना, मृत्यु- 1956) वकील के रूप में प्रैक्टिस करते हुए सार्वजनिक जीवन में भी भाग लेना आरंभ किया। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा हेतु स्कूल खुलवाने के लिये अपना मकान दे दिया था।

परिचय

अविभाजित भारत में सिंध के प्रसिद्ध हिंदू नेता लालचंद राय का जन्म 1870 ईसवी में लरकाना में हुआ था। पूरे सिंध में उस समय कोई कॉलेज नहीं था। इसलिए लालचंद ने मैट्रिक करने के बाद एक वकील के सहायक के रूप में काम करना आरंभ किया। धीरे-धीरे वे स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करने लगे और उनकी ख्याति बढ़ने लगी साथ ही उन्होंने सार्वजनिक जीवन में भी भाग लेना आरंभ किया। स्वतंत्रता के साथ हुए विभाजन के कारण लालचंद नवल राय भी शरणार्थी बनकर बड़ौदा आकर रहने लगे।[1]

बालिकाओं के प्रति झुकाव

लालचंद राय लड़कियों की शिक्षा के प्रति बेहद गम्भीर थे। उन्होंने 1904 में लरकाना में अपना मकान देकर लड़कियों का पहला स्कूल खुलवाया था। महिलाओं के प्रति जो कुरीतियां थीं उनका वे विरोध करते थे।

समर्थक एवं विरोध

1917 में जब लालचंद नगरपालिका के अध्यक्ष थे तब सरकार ने नगरपालिका के मत के विरुद्ध भवन कर लगा दिया था। लालचंद सहित सभी सदस्यों ने पद त्याग करके इतना तीव्र आंदोलन छेड़ा कि सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा था। लालचंद राय सिंध की अकेली हिंदू सीट से 1928 में केंद्रीय असेंबली के सदस्य चुने गए और 1945 तक इस पद पर रहे। उन्होंने सुधार के सभी प्रस्तावों का समर्थन किया। बाल विवाह रोकने के लिए 'शारदा बिल' पास हो जाने के बाद लालचंद ने बिल में संशोधन करा कर इस पर रोक लगवाई थी।

मृत्यु

लालचंद नवल राय का 1956 में निधन हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 760 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

साँचा:मुख्य न्यायाधीश




अविभाजित भारत में सिंध के प्रसिद्ध हिंदू नेता लालचंद राय का जन्म 1870 ईसवी में लरकाना में हुआ था। पूरे सिंध में उस समय कोई कॉलेज नहीं था। इसलिए लालचंद ने मैट्रिक करने के बाद एक वकील के सहायक के रूप में काम करना आरंभ किया। धीरे-धीरे वे स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करने लगे और उनकी ख्याति बढ़ने लगी साथ ही उन्होंने सार्वजनिक जीवन में भी भाग लेना आरंभ किया। 1904 में उन्होंने लरकाना में अपना मकान देकर लड़कियों का पहला स्कूल खुलवाया था।1917 में जब लालचंद नगरपालिका के अध्यक्ष थे सरकार ने नगरपालिका के मत के विरुद्ध भवन कर लगा दिया था लालचंद सहित सभी सदस्यों ने पद त्याग करके इतना तीव्र आंदोलन छेड़ा कि सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा था।

  लाल चंद सिंध की अकेली हिंदू सीट से 1928 में केंद्रीय असेंबली के सदस्य चुने गए और 1945 तक इस पद पर रहे। असेंबली में मदन मोहन मालवीय की कांग्रेस नेशलिस्ट पार्टी के साथ थे।उन्होंने सुधार के सभी प्रस्तावों का समर्थन किया।  बाल विवाह रोकने के लिए 'शारदा बिल' पास हो जाने के बाद बहुत से लोग देशी रियासतों में जाकर छोटे बच्चों का विवाह कराने लगे थे।लालचंद ने बिल में संशोधन करा कर इस पर रोक  लगवाई थी।
स्वतंत्रता के साथ हुए विभाजन के कारण लालचंद नवल राय को भी शरणार्थी बनकर बड़ौदा आना पड़ा था और यहीं 1956 में उनका देहांत हुआ।।

भारतीय चरित्र कोश 760