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'''वीरेश लिंगम''' ( जन्म- [[16 अप्रैल]],1848, [[राजमहेंद्री]], मृत्यु- 1919) आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध समाजसेवी और [[साहित्यकार]] थे। वे जीवनभर समाज की कुरीतियों के विरुद्ध लड़ते रहे। बचपन में पिता का देहांत हो जाने के कारण उन्होंने आजीविका के लिये एक गांव के स्कूल में अध्यापक से जीवन आरंभ किया।
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'''वैकटा रेड्डी नायडू''' (जन्म- [[1875]], राजामुंद्री, [[आंध्र प्रदेश]]; मृत्यु- [[1 सितंबर]], [[1942]]) एक शिक्षक, [[अधिवक्ता (ऐडवोकेट)|अधिवक्ता]] के साथ-साथ [[तमिलनाडु]] के ब्राह्मण विरोधी नेता थे। उन्होंने गैर ब्राह्मण आंदोलन किया और 'जस्टिस पार्टी' नामक राजनीतिक संगठन बनाया।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध समाजसेवी और साहित्यकार वीरेशलिंगम का जन्म [[16 अप्रैल]] 1848 ई. को [[संस्कृति]] और [[साहित्य]] की प्रसिद्ध नगरी राजमहेन्द्री में हुआ था। उनका पूरा नाम कंटुकूरि वीरेश लिंगम था। साहित्य की रूचि उन्हें विरासत में मिली थी। 4 वर्ष की उम्र में ही पिता का देहांत हो जाने से उन्हें अपना मार्ग स्वयं खोजना पड़ा। घर पर [[तेलुगु]] और [[संस्कृत]] का अध्ययन करने के बाद 12 वर्ष की उम्र में विद्यालय में प्रविष्ट हुए। अपनी प्रतिभा और श्रम के कारण वे हमेशा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते थे। पिता की मृत्यु के बाद मामा ने वीरेश लिंगम को सहारा दिया था। परंतु मामा का निधन हो जाने के कारण उन्हें शिक्षा रोककर आजीविका का साधन खोजना पड़ा [[अंग्रेज]] जिला अधिकारी उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें सरकारी नौकरी देना चाहता था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=813|url=}}</ref>
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[[तमिलनाडु]] के ब्राह्मण विरोधी नेता कुरमा वैकटा रेड्डी नायडू का जन्म [[1875]] ईसवी में राजामुंद्री ([[आंध्र प्रदेश]]) में हुआ था। वे अपनी पड़ाई पूरी करके कुछ समय तक अध्यापक रहे। उन्होंने बाद में कानून की डिग्री लेकर वकालत करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र में भी काम किया। [[1900]] से [[1916]] तक वे [[कांग्रेस]] में रहे पर उन्होंने अनुभव किया कि सभी महत्वपूर्ण पदों को [[ब्राह्मण]] ले लेते हैं। यहीं से उन्होंने [[मद्रास]] में गैर ब्राह्मण आंदोलन आरंभ किया। उन्होंने अपने विचारों के प्रचार के लिए 'जस्टिस' नाम का अखबार निकाला और 'जस्टिस पार्टी' नामक राजनीतिक संगठन खड़ा किया। वैकटा रेड्डी नायडू इसमें प्रमुख थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=816|url=}}</ref>
==कुरीतियों से संघर्ष==
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== गैर ब्राह्मण आंदोलन==
[[आंध्र प्रदेश]] की उस समय की पिछड़ी स्थिति देखकर वीरेश लिंगम आजीविका के साथ-साथ समाज सेवा भी करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सरकारी नौकरी स्वीकार न करके एक गांव के स्कूल में अध्यापक की नौकरी की। वे बड़े कुशल अध्यापक सिद्ध हुए। उनका ध्यान समाज को कुरीतियों से मुक्ति दिलाने की ओर भी था। उस समय [[बाल विवाह]] और वृद्ध विवाह का बोलबाला था बाल विधवाओं की बड़ी दुर्दशा थी। लड़कियों को कोई पढ़ाता नहीं था। इन कुरीतियों के समर्थन में पत्रिकाएं तक प्रकाशित होती थी।  यह देखकर वीरेश लिंगम ने अपनी लेखनी उठाई। और लेखनी के माध्यम से उन्होंने इन सभी कुप्रथाओं का विरोध आरंभ किया। उन्होंने अपने मत के प्रचार के लिए 'विवेक वर्धनी' नामक पत्रिका निकाली।
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वैकटा रेड्डी नायडू ने [[मद्रास]] में गैर ब्राह्मण आंदोलन आरंभ किया। ब्राह्मणेतर वर्गों के लिए विधानमंडलों में आरक्षण की मांग को लेकर [[इंग्लैंड]] भी गए थे। मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के अधीन हुए चुनावों का [[कांग्रेस]] ने बहिष्कार किया था। अतः जस्टिस पार्टी को चुनाव में सफलता मिली और मद्रास में उसका मंत्रिमंडल बना। वैकटा रेड्डी को उद्योग मंत्रालय मिला। बाद में तमिल मंत्री को स्थान देने के लिए उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने सरकारी सेवाओं में अधिक से अधिक गैर ब्राह्मणों की भर्ती की।
==योगदान==
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==राजनीतिक योगयता==
वीरेश लिंगम का [[साहित्य]] के सभी क्षेत्रों में विशेष योगदान रहा है। उन्होंने तेलुगु गद्य को स्थिरता प्रदान की। काव्य को नया रूप दिया और उच्च कोटि के ग्रंथों का अनुवाद करके अपनी [[भाषा]] का भंडार भरा। वे [[तेलुगु भाषा|तेलुगु]] के प्रथम [[उपन्यास]] लेखक, प्रथम समालोचक और प्रथम जीवन चरित्र लेखक थे।
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वैकटा रेड्डी नायडू राजनीतिक दृष्टि से योग्य व्यक्ति थे। वे [[दक्षिण अफ्रीका]] में [[भारत सरकार]] के एजेंट और [[1934]] में गवर्नर की कौंसिल के कानून सदस्य बने। [[1940]] में कुछ समय तक कार्यकारी गवर्नर रहने के बाद वे [[अन्नामलाई विश्वविद्यालय]] के वाइस चांसलर बनाये गए थे।  
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
कंटुकूरि वीरेश लिंगम का [[1919]] में देहांत हो गया।
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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तमिलनाडु के ब्राह्मण विरोधी नेता कुरमा वैकटा रेड्डी नयडू का जन्म 1875 ईसवी में राजामुंद्री आंध्र प्रदेश में हुआ था। उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद कुछ समय तक शिक्षक का काम किया। कानून की डिग्री लेकर वकालत करने लगे। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र में सक्रिय हुए।  1900 से 1916 तक वे कांग्रेस में रहे पर उन्होंने अनुभव किया के सभी महत्वपूर्ण पद ब्राह्मण ले लेते हैं। यहीं से मद्रास में  गैर ब्राह्मण आंदोलन आरंभ हुआ। अपने विचारों के प्रचार के लिए 'जस्टिस' नाम का अखबार निकाला गया और 'जस्टिस पार्टी' नामक राजनीतिक संगठन बना।
 
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वैकटा रेड्डी नायडू  इसमें प्रमुख थे।  ब्राह्मणेतर वर्गों के लिए विधानमंडलों में आरक्षण की मांग को लेकर इंग्लैंड भी गए थे। मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के अधीन हुए चुनावों का कांग्रेस ने बहिष्कार किया था। अतः जस्टिस पार्टी को चुनाव में सफलता मिली मद्रास में उसका मंत्रिमंडल बना। वैकटा रेड्डी नायडू उद्योग मंत्री बनाए गए। उन्होंने सरकारी सेवाओं में अधिक से अधिक गैर ब्राह्मणों की भर्ती की। लेकिन बाद में तमिल मंत्री को स्थान देने के लिए उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा।  फिर वे दक्षिण अफ्रीका में भारत सरकार की एजेंट और 1934 में गवर्नर की  कौंसिल के कानून सदस्य बने।  1940 में कुछ समय तक कार्यकारी गवर्नर रहने के बाद वे अन्नामलाई विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बनाये गए थे। 1 सितंबर 1942 को उनका देहांत हो गया।  
 
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  भारतीय चरित्र कोश 816
  आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध समाजसेवी और साहित्यकार वीरेशलिंगम का जन्म 16 अप्रैल 1848 ईस्वी को संस्कृति और साहित्य की प्रसिद्ध नगरी राजमहेंद्री में हुआ था। उनका पूरा नाम कंटुकूरि वीरेशलिंगम था। साहित्य की रूचि उन्हें परिवार से विरासत में मिली थी परंतु 4 वर्ष की उम्र में ही पिता का देहांत हो जाने से उन्हें अपना मार्ग स्वयं बनाना पड़ा। घर पर तेलुगु और संस्कृत का अध्ययन करने के बाद 12 वर्ष की उम्र में विद्यालय में प्रविष्ट हुए।  अपनी प्रतिभा और श्रम के कारण विश्व का प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते थे।  पिता की मृत्यु के बाद मामा ने वीरेशलिंगम को सहारा दिया था। परंतु मामा का निधन हो जाने के कारण उन्हें शिक्षा रोककर आजीविका का साधन खोजना पड़ा अंग्रेज जिला अधिकारी उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें सरकारी नौकरी देना चाहता था।
 
आंध्र प्रदेश की उस समय की पिछड़ी स्थिति देखकर वीरेश लिंगम आजीवका के साथ-साथ समाज सेवा भी करना चाहते थे इसलिए सरकारी नौकरी स्वीकार न करके उन्होंने एक गांव के स्कूल में अध्यापक के रूप में जीवन आरंभ किया। वे बड़े कुशल अध्यापक सिद्ध हुए। उनका ध्यान समाज को कुरीतियों से मुक्ति दिलाने की और भी था। उस समय बाल विवाह और वृद्ध विवाह का बोलबाला था बाल विधवाओं की बड़ी दुर्दशा थी। लड़कियों को कोई पढ़ाता नहीं था। इन कुरीतियों के समर्थन में पत्रिकाएं तक प्रकाशित होती थी। यह देखकर वीरेशलिंगम ने  अपनी लेखनी उठाई।  उन्होंने इन समस्त कुप्रथाओं का विरोध आरंभ किया अपने मत के प्रचार के लिए 'विवेक वर्धनी' नामक पत्रिका निकाली।
 
साहित्य के सभी क्षेत्रों में वीरेश लिंगम का प्रभाव पड़ा। उन्होंने तेलुगु गद्य को स्थिरता प्रदान की। काव्य को नया रूप दिया और उच्च कोटि के ग्रंथों का अनुवाद करके अपनी भाषा का भंडार भरा। वे तेलुगु के प्रथम उपन्यास लेखक, प्रथम समालोचक और प्रथम जीवन चरित्र लेखक थे। 1919 में उनका देहांत हो गया।
 
  भारतीय चरित्र कोश 813
 

08:22, 10 जुलाई 2018 का अवतरण

वैकटा रेड्डी नायडू (जन्म- 1875, राजामुंद्री, आंध्र प्रदेश; मृत्यु- 1 सितंबर, 1942) एक शिक्षक, अधिवक्ता के साथ-साथ तमिलनाडु के ब्राह्मण विरोधी नेता थे। उन्होंने गैर ब्राह्मण आंदोलन किया और 'जस्टिस पार्टी' नामक राजनीतिक संगठन बनाया।

परिचय

तमिलनाडु के ब्राह्मण विरोधी नेता कुरमा वैकटा रेड्डी नायडू का जन्म 1875 ईसवी में राजामुंद्री (आंध्र प्रदेश) में हुआ था। वे अपनी पड़ाई पूरी करके कुछ समय तक अध्यापक रहे। उन्होंने बाद में कानून की डिग्री लेकर वकालत करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र में भी काम किया। 1900 से 1916 तक वे कांग्रेस में रहे पर उन्होंने अनुभव किया कि सभी महत्वपूर्ण पदों को ब्राह्मण ले लेते हैं। यहीं से उन्होंने मद्रास में गैर ब्राह्मण आंदोलन आरंभ किया। उन्होंने अपने विचारों के प्रचार के लिए 'जस्टिस' नाम का अखबार निकाला और 'जस्टिस पार्टी' नामक राजनीतिक संगठन खड़ा किया। वैकटा रेड्डी नायडू इसमें प्रमुख थे।[1]

गैर ब्राह्मण आंदोलन

वैकटा रेड्डी नायडू ने मद्रास में गैर ब्राह्मण आंदोलन आरंभ किया। ब्राह्मणेतर वर्गों के लिए विधानमंडलों में आरक्षण की मांग को लेकर इंग्लैंड भी गए थे। मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के अधीन हुए चुनावों का कांग्रेस ने बहिष्कार किया था। अतः जस्टिस पार्टी को चुनाव में सफलता मिली और मद्रास में उसका मंत्रिमंडल बना। वैकटा रेड्डी को उद्योग मंत्रालय मिला। बाद में तमिल मंत्री को स्थान देने के लिए उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने सरकारी सेवाओं में अधिक से अधिक गैर ब्राह्मणों की भर्ती की।

राजनीतिक योगयता

वैकटा रेड्डी नायडू राजनीतिक दृष्टि से योग्य व्यक्ति थे। वे दक्षिण अफ्रीका में भारत सरकार के एजेंट और 1934 में गवर्नर की कौंसिल के कानून सदस्य बने। 1940 में कुछ समय तक कार्यकारी गवर्नर रहने के बाद वे अन्नामलाई विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बनाये गए थे।

मृत्यु

कुरमा वैकटा रेड्डी नायडू का 1 सितंबर, 1942 को निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 816 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख



तमिलनाडु के ब्राह्मण विरोधी नेता कुरमा वैकटा रेड्डी नयडू का जन्म 1875 ईसवी में राजामुंद्री आंध्र प्रदेश में हुआ था। उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद कुछ समय तक शिक्षक का काम किया। कानून की डिग्री लेकर वकालत करने लगे। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र में सक्रिय हुए। 1900 से 1916 तक वे कांग्रेस में रहे पर उन्होंने अनुभव किया के सभी महत्वपूर्ण पद ब्राह्मण ले लेते हैं। यहीं से मद्रास में गैर ब्राह्मण आंदोलन आरंभ हुआ। अपने विचारों के प्रचार के लिए 'जस्टिस' नाम का अखबार निकाला गया और 'जस्टिस पार्टी' नामक राजनीतिक संगठन बना। वैकटा रेड्डी नायडू इसमें प्रमुख थे। ब्राह्मणेतर वर्गों के लिए विधानमंडलों में आरक्षण की मांग को लेकर इंग्लैंड भी गए थे। मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के अधीन हुए चुनावों का कांग्रेस ने बहिष्कार किया था। अतः जस्टिस पार्टी को चुनाव में सफलता मिली मद्रास में उसका मंत्रिमंडल बना। वैकटा रेड्डी नायडू उद्योग मंत्री बनाए गए। उन्होंने सरकारी सेवाओं में अधिक से अधिक गैर ब्राह्मणों की भर्ती की। लेकिन बाद में तमिल मंत्री को स्थान देने के लिए उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा। फिर वे दक्षिण अफ्रीका में भारत सरकार की एजेंट और 1934 में गवर्नर की कौंसिल के कानून सदस्य बने। 1940 में कुछ समय तक कार्यकारी गवर्नर रहने के बाद वे अन्नामलाई विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बनाये गए थे। 1 सितंबर 1942 को उनका देहांत हो गया।

भारतीय चरित्र कोश  816