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'''शीलभद्र याजी''' (जन्म- [[2 मार्च]], [[1916]], [[पटना ज़िला]]) [[बिहार]] के प्रमुख राजनीतिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। वे [[विधानसभा]] और [[राज्यसभा]] के सदस्य भी रहे।
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'''शुजा शहज़ादा''' [[शाहजहां|मुगल सम्राट शाहजहां]] का विलासी प्रकृति का द्वितीय पुत्र था|
 
==परिचय==
 
==परिचय==
[[बिहार]] के प्रमुख राजनीतिक कार्यकर्ता शीलभद्र याजी का जन्म [[2 मार्च]], [[1916]] ई. को [[पटना ज़िला|पटना जिले]] में हुआ था। [[नमक सत्याग्रह]] के समय विद्यालय छोड़ने के बाद वे एक बार फिर पढ़ने के लिए भर्ती हुए पर [[1932]] में सदा के लिए [[स्वतंत्रता संग्राम]] में सम्मिलित हो गए। वे किसान नेता [[स्वामी सहजानंद सरस्वती|स्वामी सहजानंद]] और [[सुभाष चंद्र बोस]] के निकट संपर्क में आए तथा [[गांधी जी]] के विचारों का भी उन पर प्रभाव पड़ा। वे विद्यार्थी जीवन में ही [[1928]] में [[कोलकाता]] की [[कांग्रेस]] में भाग ले चुके थे। मार्क्स के [[साहित्य]] का भी उन पर प्रभाव पड़ा और कुछ समय वे कांग्रेस समाजवादी पार्टी में भी रहे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=852|url=}}</ref>
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मुगल सम्राट [[शाहजहां]] का द्वितीय पुत्र शुजा विलासी प्रकृति का था। उसके अंदर सम्राट बनने की महत्वाकांक्षा भी विद्यमान थी। 1657 में शुजा [[बंगाल]] का सूबेदार था। जब उसे शाहजहां के गंभीर रुप से बीमार पड़ने की सूचना मिली तो उसने बंगाल की उस समय की राजधानी राजमहल में स्वयं को सम्राट घोषित कर दिया। उसके बाद वह सेना सहित [[दिल्ली]] की ओर चल पड़ा। 1658 में शाही सेना से बहादुरपुर में परास्त होकर उसे पुनः [[बंगाल]] लौटना पड़ा।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=854|url=}}</ref>
==आज़ादी की लड़ाई==
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==सपरिवार अंत==
शीलभद्र याजी ने देश की आज़ादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। उन्हें आज़ादी के आंदोलनों में भाग लेने कारण [[1930]], [[1932]], [[1933]], और [[1940]] में गिरफ्तार किया गया था। [[1941]] में भूमिगत होने के बाद [[1945]] में पकड़े गये तो द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद ही रिहा हो सके। [[1939]] में जब [[सुभाष चंद्र बोस|सुभाष बाबू]] ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की तो याजी उस में सम्मिलित हो गए।
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शुजा शहज़ादा ने दारा की पराजय की सूचना मिलने पर उसने फिर युद्ध की कोशिश की परंतु [[औरंगजेब]] के सेनापति [[मीर जुमला]] ने उसे पराजित करके [[अराकान]] की ओर भागने के लिए मजबूर कर दिया और वहीं उसका परिवार सहित अंत हो गया।
==राजनैतिक सफर==
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राजनीतिक कार्यकर्ता शीलभद्र याजी [[1940]] में भी अखिल भारतीय किसान सभा के महामंत्री बने। इससे पहले वे [[1937]] में [[बिहार]] की [[विधानसभा]] के सदस्य चुने गए। स्वतंत्रता के बाद [[1957]] और [[1964]] में याजी [[राज्यसभा]] के सदस्य बने। स्वतंत्रता सेनानियों की समस्याओं के समाधान के लिए बने संगठन के अध्यक्ष की हैसियत से अंत तक वे काम करते रहे। उन्होंने विभिन्न दलों को मिलाकर संयुक्त वाममोर्चा बनाने का भी प्रयत्न किया था।
 
  
  
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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==संबंधित लेख==
 
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10:46, 29 जुलाई 2018 का अवतरण

शुजा शहज़ादा मुगल सम्राट शाहजहां का विलासी प्रकृति का द्वितीय पुत्र था|

परिचय

मुगल सम्राट शाहजहां का द्वितीय पुत्र शुजा विलासी प्रकृति का था। उसके अंदर सम्राट बनने की महत्वाकांक्षा भी विद्यमान थी। 1657 में शुजा बंगाल का सूबेदार था। जब उसे शाहजहां के गंभीर रुप से बीमार पड़ने की सूचना मिली तो उसने बंगाल की उस समय की राजधानी राजमहल में स्वयं को सम्राट घोषित कर दिया। उसके बाद वह सेना सहित दिल्ली की ओर चल पड़ा। 1658 में शाही सेना से बहादुरपुर में परास्त होकर उसे पुनः बंगाल लौटना पड़ा।[1]

सपरिवार अंत

शुजा शहज़ादा ने दारा की पराजय की सूचना मिलने पर उसने फिर युद्ध की कोशिश की परंतु औरंगजेब के सेनापति मीर जुमला ने उसे पराजित करके अराकान की ओर भागने के लिए मजबूर कर दिया और वहीं उसका परिवार सहित अंत हो गया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 854 |

बाहरी कड़ियाँ

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