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'''संबंध स्वामी''' (जन्म- 7वीं शताब्दी, [[मद्रास]]) [[दक्षिण भारत]] के प्रसिद्ध नालवारों में से एक थे। मान्यता है कि उन्होंने एक गाना गाया, तभी एक देवी ज्वाला दिखाई दी और संबंध स्वामी अपनी पत्नी सहित उसमें प्रविष्ट हो गये।
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'''सत्यदेव विद्यालंकार''' (जन्म- अक्टूबर, 1897, मृत्यु- 1965) प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने स्वतंत्रता अंदोलनों में भाग लेने के कारण जेल यातनायें भोगीं।
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अंत समय में उन्हें दिखाई नहीं देता था।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
दक्षिण के प्रसिद्ध नालवारों में से एक संबंध स्वामी का जन्म सातवीं शताब्दी में [[मद्रास]] के सिरकली नामक स्थान में हुआ था। इनके संबंध में अनेक आलौकिक बांतें प्रचलित हैं। 3 वर्ष की उम्र में जब उनके [[पिता]] मंदिर के तालाब में [[स्नान]] कर रहे थे, संबंध स्वामी को [[शिव]] के दर्शन हुए और ज्ञान प्राप्त हुआ। पिता के आने पर बालक ने पहला 'तेवरम्' (भजन) गाया। बाद में पिता के कंधे पर बैठकर उन्होंने [[दक्षिण भारत]] के तीर्थों की यात्रा की और अनेक चमत्कार दिखाए। इस यात्रा में उन्हें सोने का मंजीरा और मोती की पालकी मिली।
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प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक सत्यदेव विद्यालंकार का जन्म पंजाब की नाभा रियासत में अक्टूबर 1897 ई. को एक खत्री परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई थी। उन्होंने विद्यालंकार की उपाधि पाई। गुरुकुल में ही उनके ऊपर महर्षि दयानंद के विचारों का प्रभाव पड़ा और वे आर्य समाजी बन गए। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी प्रवृत्ति पत्रकारिता की ओर हो गयी थी। 1919 में इंद्र विद्यावाचस्पति के साथ उन्होंने विजय नामक पत्र निकाला जो बाद में 'वीर अर्जुन' हो गया। उसके बाद समय-समय पर उन्होंने पत्रों का संपादन किया ।
==आलौकिक बातें==
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==राष्ट्रवादी पत्रकार==
संबंध स्वामी के संबंध में अनेक आलौकिक बांतें प्रचलित हैं। 3 वर्ष की उम्र में उनको [[शिव]] के दर्शन हुए और ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने एक लड़की और [[मदुरई]] के पांड्य राजा को रोगमुक्त किया और सर्पदंश से मृत एक व्यापारी को जीवनदान दिया। संबंध स्वामी का दूसरा नाम संबंदर भी था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=881|url=}}</ref>
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सत्यदेव विद्यालंकार राष्ट्रवादी पत्रकार थे। उनकी पत्रकारिता में राष्ट्रीय भावना सर्वोपरि थी। 1921 में 'राजस्थान केसरी' नाम के एक लेख को आपत्तिजनक बताकर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। 1930 के नमक सत्याग्रह और 1932 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी वे जल गए। इस प्रकार उनका एक पैर किसी पत्र के कार्यालय में रहा तो दूसरा जेल में।
====शैव अनुयायी====
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==सम्पादन कार्य==
संबंध स्वामी [[शैव मत]] के प्रबल समर्थक थे। उनका कहना था कि [[भक्ति]] के द्वारा ही भगवान के चरणों तक पहुंचा जा सकता है।
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सत्यदेव विद्यालंकार ने समय-समय पर पत्रों का सम्पादन कार्य किया। उन्होंने 'राजस्थान केसरी', 'मारवाड़ी', विश्वमित्र', 'नवे भारत', 'अमर भारत', 'हिंदुस्तान', 'नवयुग', 'राजहंस', 'श्रद्धा' आदि पत्रों का संपादन किया ।
==रचना कार्य==
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==लेखक==
संबंध स्वामी के रचे हुए 1000 गीत उपलब्ध हैं। इनमें 'तेवरम' की संख्या 348 है, जो उपमा, सौंदर्य और अर्थ माधुरी की दृष्टि से बेजोड़ माने जाते हैं। संबंदर ने नंबियंदर नंबि की पुत्री से [[विवाह]] किया।
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सत्यदेव विद्यालंकार ने एक लेखक के रूप में भी कार्य किया है। लेखक के रूप में उनकी पहली पुस्तक थी- गांधी जी का मुकदमा, उनकी अन्य प्रमुख रचनाएं हैं दयानंद दर्शन, स्वामी श्रद्धानं,, आर्य सत्याग्रह, परदा, मध्य भारत, नव निर्माण की पुकार, करो या मरो, यूरोप में आजाद हिंद, लाल किले में, जय हिंद, राष्ट्रधर्म,  पंजाब की चिनगारी  आदि।
==मान्यता==
 
मान्यता है कि उन्होंने एक गाना गाया था, तभी एक देवी ज्वाला दिखाई दी और संबंध स्वामी अपनी पत्नी के सहित उस ज्वाला में समा गये।
 
  
  
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक सत्यदेव विद्यालंकार का जन्म पंजाब की नाभा रियासत में अक्टूबर 1897 ईसवी को एक खत्री परिवार में हुआ था उनकी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई और उन्होंने विद्यालंकार की उपाधि पाई। गुरुकुल में ही उनके ऊपर महर्षि दयानंद के विचारों का प्रभाव पड़ा और वे आर्य समाजी बन गए। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी प्रवृत्ति पत्रकारिता की ओर हो चली थी। 1919 में इंद्र विद्यावाचस्पति के साथ उन्होंने विजय नामक पत्र निकाला जो बाद में 'वीर अर्जुन' हो गया। उसके बाद समय समय पर उन्होंने राजस्थान केसरी मारवाड़ी विश्वमित्र, नवे भारत, अमर भारत, हिंदुस्तान, नवयुग, राजहंस, श्रद्धा आदि पत्रों का संपादन किया ।
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सत्यदेव विद्यालंकार  राष्ट्रवादी पत्रकार थे। 1921 में राजस्थान केसरी उनके एक लेख को आपत्तिजनक बताकर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। 1930 के नमक सत्याग्रह और 1932 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी वे जल गए। इस प्रकार उनका एक पैर किसी पत्र के कार्यालय में रहा तो दूसरा जेल में।  लेखक के रूप में उनकी पहली पुस्तक थी- गांधी जी का मुकदमा, उनकी अन्य प्रमुख रचनाएं हैं दयानंद दर्शन, स्वामी श्रद्धानं,, आर्य सत्याग्रह, परदा, मध्य भारत, नव निर्माण की पुकार, करो या मरो, यूरोप में आजाद हिंद,  लाल किले में, जय हिंद, राष्ट्रधर्म,  पंजाब की चिनगारी  आदि।
==संबंधित लेख==
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सत्यदेव के ऊपर गांधी जी के विचारों का बड़ा प्रभाव था।  वह अपनी पत्नी की साथ गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम में भी रहे थे।  साथ ही वे भारतीय क्रांतिकारियों की प्रशंसक थे।  1954 में  उनके नेत्रों की ज्योति जाती रही और 1965 में उनका देहांत हो गया।      भारतीय चरित्र कोश 885
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08:40, 18 अगस्त 2018 का अवतरण

सत्यदेव विद्यालंकार (जन्म- अक्टूबर, 1897, मृत्यु- 1965) प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने स्वतंत्रता अंदोलनों में भाग लेने के कारण जेल यातनायें भोगीं। अंत समय में उन्हें दिखाई नहीं देता था।

परिचय

प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक सत्यदेव विद्यालंकार का जन्म पंजाब की नाभा रियासत में अक्टूबर 1897 ई. को एक खत्री परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई थी। उन्होंने विद्यालंकार की उपाधि पाई। गुरुकुल में ही उनके ऊपर महर्षि दयानंद के विचारों का प्रभाव पड़ा और वे आर्य समाजी बन गए। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी प्रवृत्ति पत्रकारिता की ओर हो गयी थी। 1919 में इंद्र विद्यावाचस्पति के साथ उन्होंने विजय नामक पत्र निकाला जो बाद में 'वीर अर्जुन' हो गया। उसके बाद समय-समय पर उन्होंने पत्रों का संपादन किया ।

राष्ट्रवादी पत्रकार

सत्यदेव विद्यालंकार राष्ट्रवादी पत्रकार थे। उनकी पत्रकारिता में राष्ट्रीय भावना सर्वोपरि थी। 1921 में 'राजस्थान केसरी' नाम के एक लेख को आपत्तिजनक बताकर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। 1930 के नमक सत्याग्रह और 1932 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी वे जल गए। इस प्रकार उनका एक पैर किसी पत्र के कार्यालय में रहा तो दूसरा जेल में।

सम्पादन कार्य

सत्यदेव विद्यालंकार ने समय-समय पर पत्रों का सम्पादन कार्य किया। उन्होंने 'राजस्थान केसरी', 'मारवाड़ी', विश्वमित्र', 'नवे भारत', 'अमर भारत', 'हिंदुस्तान', 'नवयुग', 'राजहंस', 'श्रद्धा' आदि पत्रों का संपादन किया ।

लेखक

सत्यदेव विद्यालंकार ने एक लेखक के रूप में भी कार्य किया है। लेखक के रूप में उनकी पहली पुस्तक थी- गांधी जी का मुकदमा, उनकी अन्य प्रमुख रचनाएं हैं दयानंद दर्शन, स्वामी श्रद्धानं,, आर्य सत्याग्रह, परदा, मध्य भारत, नव निर्माण की पुकार, करो या मरो, यूरोप में आजाद हिंद, लाल किले में, जय हिंद, राष्ट्रधर्म, पंजाब की चिनगारी आदि।


प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक सत्यदेव विद्यालंकार का जन्म पंजाब की नाभा रियासत में अक्टूबर 1897 ईसवी को एक खत्री परिवार में हुआ था उनकी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई और उन्होंने विद्यालंकार की उपाधि पाई। गुरुकुल में ही उनके ऊपर महर्षि दयानंद के विचारों का प्रभाव पड़ा और वे आर्य समाजी बन गए। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी प्रवृत्ति पत्रकारिता की ओर हो चली थी। 1919 में इंद्र विद्यावाचस्पति के साथ उन्होंने विजय नामक पत्र निकाला जो बाद में 'वीर अर्जुन' हो गया। उसके बाद समय समय पर उन्होंने राजस्थान केसरी मारवाड़ी विश्वमित्र, नवे भारत, अमर भारत, हिंदुस्तान, नवयुग, राजहंस, श्रद्धा आदि पत्रों का संपादन किया ।

सत्यदेव विद्यालंकार  राष्ट्रवादी पत्रकार थे। 1921 में राजस्थान केसरी उनके एक लेख को आपत्तिजनक बताकर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। 1930 के नमक सत्याग्रह और 1932 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी वे जल गए। इस प्रकार उनका एक पैर किसी पत्र के कार्यालय में रहा तो दूसरा जेल में।  लेखक के रूप में उनकी पहली पुस्तक थी- गांधी जी का मुकदमा, उनकी अन्य प्रमुख रचनाएं हैं दयानंद दर्शन, स्वामी श्रद्धानं,, आर्य सत्याग्रह, परदा, मध्य भारत, नव निर्माण की पुकार, करो या मरो, यूरोप में आजाद हिंद,  लाल किले में, जय हिंद, राष्ट्रधर्म,  पंजाब की चिनगारी  आदि।

सत्यदेव के ऊपर गांधी जी के विचारों का बड़ा प्रभाव था। वह अपनी पत्नी की साथ गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम में भी रहे थे। साथ ही वे भारतीय क्रांतिकारियों की प्रशंसक थे। 1954 में उनके नेत्रों की ज्योति जाती रही और 1965 में उनका देहांत हो गया। भारतीय चरित्र कोश 885