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'''लाला जगत नारायन''' (जन्म- [[1899]], गुजरांवाला, पाकिस्तान)  [[कांग्रेस]] और [[आर्य समाज]] के प्रसिद्ध कार्यकर्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। वे छूआछूत के विरोधी थे और महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलें इस बात के समर्थक थे।
 
==परिचय==
 
[[कांग्रेस]] और [[आर्य समाज]] के प्रसिद्ध कार्यकर्ता लाला जगत नारायन का जन्म [[1899]] ईसवी में [[पंजाब]] के गुजरांवाला जिले में (पाकिस्तान) हुआ था। उन्होंने [[लाहौर]] के डी. ए. वी. कॉलेज में शिक्षा पाई। उसी समय वे [[पंजाब]] के प्रसिद्ध नेता [[लाला लाजपत राय]] के प्रभाव में आए। [[आर्य समाज]] के विचारों का भी उनके ऊपर प्रभाव पड़ा। इनके भाई परमानंद ने 'आकाशवाणी' नाम का एक पत्र प्रकाशित किया था। जगत नारायण उस पत्र के संपादक रहे। उन्होंने [[लाहौर]] में अपनी प्रेस की स्थापना की पर उसे सरकार ने जब्त कर लिया। वे इस बात के पक्षधर थे कि भारत की अपनी शिक्षा नीति हो और प्रारंभिक शिक्षा निशुल्क और अनिवार्य होनी चाहिए।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=|संपादन=|पृष्ठ संख्या=762|url=}}
 
</ref>
 
  
==स्वतंत्रता संग्राम में भाग==
 
लाला जगत नारायन अपनी कानून की पढ़ाई को बीच मेंं छोड़ कर [[गांधीजी]] के नेतृत्व वाले [[असहयोग आंदोलन]] में सम्मलित हो गये। [[1921]] से [[1942]] तक जितने भी आंदोलन हुए जगत नारायन ने उनमें सक्रिय भाग लिया। जगत नारायण को आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करने के आरोप में पांच-छह बार अपनी जमानत गंवानी पड़ी थी। उस समय के प्रमुख नेताओं डॉक्टर सत्यपाल, [[सैफुद्दीन किचलू|डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू]] आदि से उनका निकट संबंध था।
 
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
{{स्वतंत्रता सेनानी}}
 
[[Category:स्वतंत्रता सेनानी]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:भारतीय चरित कोश]]
 
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      कांग्रेस और आर्य समाज के प्रसिद्ध कार्यकर्ता लाला जगत नारायन का जन्म 1899 ईसवी में पंजाब के गुजरांवाला जिले में (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उन्होंने लाहौर DAV कॉलेज में शिक्षा पाई। उसी समय अभी पंजाब के प्रसिद्ध नेता लाला लाजपत राय के प्रभाव में आए। आर्य समाज के विचारों का भी उनके ऊपर प्रभाव पड़ा। कानून की पढ़ाई कर रहे थे कि तभी देश में गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन आरंभ हो गया। जगत नारायण ने भी अपना अध्ययन बीच में ही छोड़ दिया और आंदोलन में सम्मिलित हो गए। 1921 से 1942 तक जितने भी आंदोलन हुए जगत नारायन ने उसमें सक्रिय भाग लिया।
 
      भाई परमानंद ने 'आकाशवाणी' नाम का एक पत्र प्रकाशित किया था जगत नारायण  उसके संपादक रहे फिर उन्होंने लाहौर में अपने प्रेस की स्थापना की पर उसे सरकार ने जब्त कर लिया। जब सरकार ने प्रेस को छोड़ा तब भी जगत नारायण को आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करने के आरोप में पांच छह बार अपनी जमानत गंवानी पड़ी थी।  उस समय के प्रमुख नेताओं डॉक्टर सत्यपाल, [[सैफुद्दीन किचलू|डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू]] आदि से उनका निकट संबंध था अस्पृश्यता के विरोधी और स्त्री पुरुषों के समान अधिकारों के समर्थक थे। उनका कहना था कि भारत की अपनी शिक्षा नीति होनी चाहिए और प्रारंभिक शिक्षा निशुल्क और अनिवार्य की जाए।
 
 
भारतीय चरित्र कोश 762
 

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