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'''लाला पिंडीदास''' (जन्म- [[1886]], गुजरांवाला,  मृत्यु- [[1969]]) [[पंजाब]] के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, क्रांतिकारी विचारों के कार्यकर्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने अस्पृश्यता और जातिवाद का सदा विरोध किया।
 
==परिचय==
 
[[पंजाब]] के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी कार्यकर्ता लाला पिंडीदास का जन्म [[1886]] ई. में गुजरांवाला जिले के एक गांव के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके अंदर विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्र भक्ति पैदा हो चुकी थी। [[बंकिम चंद्र चटर्जी]], [[स्वामी रामतीर्थ]], [[स्वामी विवेकानंद]] और [[स्वामी दयानंद सरस्वती]] के विचारों से वे बहुत प्रभावित थे। आरंभ में वे क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। लाला पिंडीदास बाद में [[गांधीजी]] से प्रभावित होकर [[कांग्रेस]] में सम्मिलित हो गए। [[1925]] में उन्होंने [[लाहौर]] से स्वराज नामक उर्दू दैनिक पत्र निकाला। इस पत्र के द्वारा वे विदेशी सत्ता के विरुद्ध प्रचार करते रहे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=764|url=}}</ref>
 
==संघर्ष एवं यातनाएं==
 
लाला पिंडीदास अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में लग गये और जेल की यातनाएं भोगीं। बंग- भंग के विरोध के बाद उन्होंने [[1907]] में अंग्रेजी साम्राज्य के विरोध में संघर्ष जारी रखने के लिए 'द इंडिया' नामक पत्र निकाला। इसमें उन्होंने अंग्रेजों द्वारा हो रहे शोषण का इतना प्रचार किया कि लाला पिंडीदास को 5 वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटने के बाद फिर उन्हें 4 वर्ष के लिए मियांवाली जिले में नजरबंद कर दिया। नजरबंदी से छूटने के बाद लाला पिंंडीदास कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए और उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा। उन्हें [[1930]] के [[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] में फिर गिरफ्तार कर लिया गया और [[1942]] के [[भारत छोड़ो आंदोलन]] में भाग लेने के कारण उन्हें [[1944]] तक जेल में बंद रखा।
 
==उदारवादी विचार==
 
लाला पिंडीदास उदार विचारों के व्यक्ति थे। उन्होंने अस्पृश्यता और जातिवाद के विरोध में सदैव संघर्ष किया। [[1947]] से उनकी राजनीति में सक्रियता नहीं रही।
 
==मृत्यु==
 
लाला पिंडीदास का [[1969]] में देहांत हो गया।
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
{{स्वतंत्रता सेनानी}}
 
[[Category:स्वतंत्रता सेनानी]][[Category:राजनेता]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश ]][[Category:भारतीय चरित कोश]]
 
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पंजाब के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी कार्यकर्ता लाला पिंडीदास का जन्म 1886 ई0 में गुजरांवाला जिले के एक गांव में एक संपन्न परिवार में हुआ था विद्यार्थी जीवन में ही उनके भीतर राष्ट्रीय भावनाएं पैदा हो चुकी थी। वे उस समय के प्रमुख स्थानीय नेताओं के विचारों से प्रभावित तो थे ही बंकिम चंद्र चटर्जी स्वामी, रामतीर्थ स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों का भी उनके जीवन को दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा। आरंभ में क्रांतिकारी विचारों के थे। बाद में गांधी जी के प्रभाव से कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। बंग- भंग के विरोध के बाद उन्होंने 1907 में अंग्रेजी साम्राज्य के विरोध में संघर्ष जारी रखने के लिए 'द इंडिया' नामक पत्र निकाला। इसमें उन्होंने अंग्रेजी द्वारा हो रहे शोषण का इतना प्रचार किया कि लाला पिंडीदास 5 वर्ष के लिए जेल में डाल दिए गए। जेल से निकले तो उन्हें 4 वर्ष के लिए मियांवाली जिले में नजरबंद कर दिया गया।
 
  नजरबंदी से छूटने के बाद लाला पिंंडीदास कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए 1925 में उन्होंने लाहौर से स्वराज नामक उर्दू दैनिक पत्र निकाला। इसके माध्यम से वे विदेशी सत्ता के विरुद्ध प्रचार करते रहे। उन्हें 1930 के  सविनय अवज्ञा आंदोलन में गिरफ्तार किया गया और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण वे 1944 तक जेल में बंद थे।
 
        लाला पिंडीदास उदार विचारों के व्यक्ति थे उन्होंने अस्पृश्यता और जातिवाद सदा विरोध किया। वे 1947 में सक्रिय राजनीति से अलग हो गए और 1969 में उनका निधन हो गया।
 
भारतीय चरित्र कोश 764
 

12:43, 6 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण