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'''विष्णु गणेश पिंगले''' (जन्म- [[1888]], [[पुणे ज़िला]], [[महाराष्ट्र]]; मृत्यु- [[17 नवंबर]], [[1915]], [[लाहौर]]) देश के लिए शहीद होने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे।
 
==परिचय==
 
देश की स्वतंत्रता के लिए शहीद होने वाले विष्णु गणेश पिंगले का जन्म [[1888]] ई. में [[महाराष्ट्र]] के [[पुणे ज़िला]] में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। शिक्षा के लिए वे पुणे के समर्थ विद्यालय में भर्ती हुए थे। उस समय यहां के जनमानस में क्रांतिकारी विचार फैल चुके थे। वे भी उन क्रांतिकारी विचारों के प्रभाव में आ गये। [[1910]] में जब विद्यालय के संचालक के राजनीतिक विचारों के कारण सरकार ने उसे बंद कर दिया तो [[1911]] मे पिंगले उच्च तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने [[अमेरिका]] चले गए।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=800|url=}}</ref>
 
==क्रांतिकारी विचार==
 
विष्णु गणेश पिंगले क्रांतिकारी स्वभाव के व्यक्ति थे। [[भारत]] से [[अमेरिका]] जाते समय पिंगले यह सोचकर गए थे कि सशस्त्र क्रांति से ही देश दासता से आजाद हो सकता है। वे अमेरिका में गदर पार्टी के संस्थापक [[लाला हरदयाल]] के संपर्क में आए। वहां के सीटल विश्वविद्यालय से इंजीनियरी में स्नातक बनने के साथ-साथ वे गदर पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ता भी बन गए। भारत की सेनाओं को क्रांति के लिए तैयार करने के उद्देश्य से पिंगले और उनके बहुत से साथी 'कामागाटा मारू' नाम के जहाज में बैठकर [[भारत]] पहुंचे। उन्होंने नाम बदलकर देश की अलग-अलग छावनियों की यात्रा की और भारतीय सैनिकों को [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] के विरुद्ध विद्रोह के लिए तैयार करने लगे। 
 
==फांसी की सज़ा==
 
विष्णु गणेश पिंगले और उनके शिक्षक साथियों को [[17 नवंबर]] [[1915]] को [[लाहौर]] सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया। पिंगले जिस समय [[भारतीय सेना]] को [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] के विरुद्ध विद्रोह के लिए तैयार कर रहे थे उसी वक्त कोई मुखबिर पैदा हो गया और उस मुखबिर की सूचना पर [[23 मार्च]] [[1915]] को पिंगले और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार किये गये 82 व्यक्तियों पर षड्यंत्र का मुकदमा चला जिनमें से 23 को फांसी की सजा हुई। उन व्यक्तियों में से 17 जनों की सजा आजीवन कारावास में बदल दी गई।
 
==मृत्यु==
 
विष्णु गणेश पिंगले का [[17 नवंबर]] [[1915]] को [[लाहौर]] सेंट्रल जेल में फांसी पर लटकाये जाने से देहांत हो गया।
 
  
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
{{स्वतंत्रता सेनानी}}
 
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:भारतीय चरित कोश]]
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
 
 
 
देश की स्वतंत्रता के लिए शहीद होने वाले विष्णु गणेश पिंगले का जन्म 1888 ईस्वी में महाराष्ट्र के पुणे जिले में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था।  शिक्षा के लिए वे पुणे के समर्थ विद्यालय में भर्ती हुए थे। उस समय यहां के वातावरण में क्रांतिकारी विचार फैल चुके थे। पिंगले भी उन से अछूते नहीं रहे। 1910 मैं जब विद्यालय के संचालक के राजनीतिक विचारों के कारण सरकार ने उसे बंद कर दिया तो 1911 मे पिंगले उच्च तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने अमेरिका चले गए।
 
भारत से पिंगले यह भावना लेकर गए थे कि सशस्त्र क्रांति से ही देश दासता से मुक्त हो सकता है अमेरिका में गदर पार्टी के संस्थापक लाला हरदयाल के संपर्क में आए। वहां के सीटल विश्वविद्यालय से इंजीनियरी में स्नातक बनने के साथ-साथ वे गदर पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ता भी बन गए।
 
भारत की सेनाओं को क्रांति के लिए तैयार करने के उद्देश्य से पिंगले  और उनके बहुत से साथी 'कामागाटा मारू' नाम की जहाज में बैठकर भारत पहुंचे।  उन्होंने नाम बदलकर देश की अलग-अलग छावनियों की यात्रा की और भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह के लिए तैयार करने लगे।  पर इसी बीच कोई मुखबिर पैदा हो गया।  उसकी सूचना पर 23 मार्च 1915 को पिंगले गिरफ्तार कर  लिए गए। कुल 82 व्यक्तियों पर षड्यंत्र का मुकदमा चला जिनमें 23 को फांसी की सजा हुई । बाद में 17 की सजा आजीवन कारावास में बदल गई पिंगले और उनके शिक्षक साथियों को 17 नवंबर 1915 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया।
 
भारतीय चरित कोश 800
 

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