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'''विष्णु दामोदर चितले''' (जन्म- 4 जनवरी, 1906, कोल्हापुर, महाराष्ट्र; मृत्यु- 1961) प्रसिद्ध कम्युनिस्ट, राष्ट्रवादी एवं राजनीतिज्ञ थे। वे भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के घोर विरोधी थे।
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==परिचय==
 
प्रसिद्ध कम्युनिस्ट किंतु साथ ही राष्ट्रवादी विष्णु दामोदर चितले का जन्म 4 जनवरी 1906 को कोल्हापुर में  हुआ था। विष्णु दामोदर चितले जो 'भाई चितले' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए। उन्होंने पुणे से 1929 में बीए की परीक्षा पास की किंतु कानून और एम. ए. की परीक्षा पूरी नहीं कर सके क्योंकि आरंभ से ही उनका ध्यान राष्ट्रीय आंदोलनों की ओर था। वे कांग्रेस द्वारा जारी स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हुए साथ ही उनका सम्पर्क मार्क्सवादी साहित्य से हुआ।  कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बनने के बाद भी वे कांग्रेस के आंदोलनों में भाग लेते रहे।  उन्होंने किसानों और मजदूरों के हित के काम को प्राथमिकता दी। 1930-1931 के नमक सत्याग्रह मेंउन्होंने सक्रिय भाग लिया। वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी चुने गए।
 
==राष्ट्रवादी==
 
भाई चितले राष्ट्रवादी विचारों के व्यक्ति थे। मार्क्सवादी साहित्य से प्रभावित एवं कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य होने के बाद भी  भाई चितले ने अंतर्राष्ट्रीय आधार पर बनने वाली कम्युनिस्ट पार्टी की नीति का कभी अंधा अनुकरण नहीं किया। कम्युनिस्टों ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था भाई चितले ने उसका समर्थन किया था।  इस पर नाराज कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें निकाल दिया था लेकिन 1951 में उन्हें पार्टी में ले लिया गया। चीन के भारत पर आक्रमण के समय फिर उनका कम्युनिस्टों से मतभेद हो गया। भाई चितले भारत के पक्ष के समर्थक थे।
 
==निडरता==
 
 
 
प्रसिद्ध कम्युनिस्ट किंतु साथ ही राष्ट्रवादी विष्णु दामोदर चितले का जन्म 4 जनवरी 1906 को कोल्हापुर में  हुआ था। उन्होंने पुणे से 1929 में बीए की परीक्षा पास की किंतु कानून और m.a. की परीक्षा पूरी नहीं कर सके क्योंकि आरंभ से ही उनका ध्यान राष्ट्रीय आंदोलनों की ओर था। वे कांग्रेस द्वारा जारी स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हुए साथ ही उनका संपर्क मार्क्सवादी साहित्य से हुआ। इसके प्रभाव में विष्णु दामोदर चितले जो 'भाई चितले' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुएकम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गई परंतु फिर भी वे कांग्रेस के आंदोलनों ने भाग लेते रहें और उन्होंने किसानों और मजदूरों के बीच काम को प्राथमिकता दी। 1930-1931 के नमक सत्याग्रह मेंउन्होंने सक्रिय भाग लिया। वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी चुने गए।
 
          भाई चितले ने अंतर्राष्ट्रीय आधार पर बनने वाली कम्युनिस्ट पार्टी की नीति का कभी अंधा अनुकरण नहीं किया।कम्युनिस्टों ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था भाई चितले ने उसका समर्थन किया।  इस पर कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें निकाल दिया था लेकिन 1951 में  वे पार्टी में ले लिए गए।।चीन के भारत पर आक्रमण के समय फिर उनका कम्युनिस्टों से मतभेद हो गया।  भाई चितले भारत के पक्ष के समर्थक थे।
 
    गोवा मुक्ति आंदोलन के समय पुर्तगालियों की गोलियों की परवाह न करके भाई चितले 1000 व्यक्तियों को लेकर गोवा की सीमा पर पहुंच गए थे। संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के भी वे प्रमुख कार्यकर्ता थे। और उसकी ओर से महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य चुने गए थे। वे स्पष्ट विचारों के राष्ट्रवादी व्यक्ति थे। जब उनको कम्युनिस्ट पार्टी की नीति भारत के राष्ट्र हितों के विपरीत प्रतीत हुई।  उन्होंने खुलकर इसका विरोध किया। भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के वे कट्टर विरोधी थे।  1961 ईस्वी में भाई चितले का देहांत हो गया।
 
भारतीय चरित्र कोश 802
 

12:43, 6 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण