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− | '''वी. वी. सुब्रमण्य अय्यर''' (जन्म- [[2 अप्रैल]], [[1881]], [[तिरुचिरापल्ली]], [[मद्रास]]; मृत्यु-[[1925]]) एक स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त थे। उन्हें [[अंग्रेजी]], लैटिन, फ्रेंच, [[संस्कृत]] और [[तमिल भाषा|तमिल]] भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण फ्रांसीसी अधिकारियों ने उन्हें एक बार [[पांडिचेरी]] से देश निकाला देकर अलजीयर्स भेज दिया था।
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− | ==परिचय==
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− | वराहनेरी वेंकटेश सुब्रमण्य अय्यर एक क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त थे। उनका जन्म [[2 अप्रैल]] [[1881]] को [[मद्रास]] प्रदेश के [[तिरुचिरापल्ली ज़िला|तिरुचिरापल्ली जिले]] में हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद वे अपने जिले में वकालत करने लगे। अय्यर अधिक सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से पहले [[रंगून]] गए और फिर बैरिस्टर बनने के लिए [[इंग्लैंड]] गये। वहां उनकी मुलाकात [[गांधीजी]] से हो गयी। सुब्रमण्य क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। उनका मानना था कि शस्त्रों के बल पर ही [[भारत]] को आजाद करया जा सकता है। वे क्रांतिकारियों द्वारा अत्याचारी अंग्रेज शासकों की हत्या को [[स्वतंत्रता संग्राम]] का अंग मानते थे। अय्यर कई भाषाओं ([[अंग्रेजी]], लैटिन, फ्रेंच [[संस्कृत]] और [[तमिल]]) के जानकार थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=812|url=}}</ref>
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− | ==क्रांतिकारी राष्ट्राभक्त==
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− | सुब्रमण्य अय्यर क्रांतिकारी राष्ट्राभक्त थे। [[गांधीजी]] के विचारों से वे उस समय सहमत नहीं थे। वे [[भारत]] को स्वतंत्रता दिलाने के लिये बल प्रयोग के पक्षधर थे। उन दिनों अय्यर का संपर्क [[वीर सावरकर|दामोदर विनायक सावरकर]] से भी हुआ। [[इंग्लैंड]] में कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद जैसे ही वहां के सम्राट के प्रति निष्ठा की शपथ लेने का समय आया तो सुब्रमण्य इसके लिए तैयार नहीं हुए और चुपचाप [[पांडिचेरी]] (जो [[फ्रांस]] के अधिकार में होने के कारण [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] की पुलिस की पहुंच से बाहर था) चले गए। [[1910]] में पांडिचेरी पहुंचने पर उन्होंने युवाओं को [[शस्त्र]] चलाना सिखाया और वे देश के अन्य क्रांतिकारियों के पास भी हथियार पहुंचाते थे।
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− | ==जेल यातना==
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− | वी. वी. सुब्रमण्य अय्यर [[1920]] तक [[पांडिचेरी]] में रहे और यहां उनकी [[अरविंद घोष|महर्षि अरविंद]] से मुलाकात हुई। वे पांडिचेरी से [[मद्रास]] आ गये और यहां उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला और सजा हुई। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण फ्रांसीसी अधिकारियों ने भी एक बार उन्हें पांडिचेरी से देश निकाला देकर अलजीयर्स पहुँचा दिया था।
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− | ==बहुभाषाविद्==
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− | वी. वी. सुब्रमण्य अय्यर बहुभाषाविद् थे। उन्हें [[अंग्रेजी]], लैटिन, फ्रेंच [[संस्कृत]] और [[तमिल]] भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने 'बाल भारती नामक' तमिल पत्रिका का संपादन किया। उनके ऊपर कंबन की रामायण का भी प्रभाव पड़ा था। उन्होंने [[तमिल भाषा]] की कई रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया। उनकी लिखी 'नेपोलियन की जीवनी' [[भारत सरकार]] ने जब्त कर ली थी।
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− | ==मृत्यु==
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− | वराहनेरी वेंकटेश सुब्रमण्य अय्यर का [[1925]] में निधन हो गया।
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− | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
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− | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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− | <references/>
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− | ==बाहरी कड़ियाँ==
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− | ==संबंधित लेख==
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− | {{स्वतंत्रता सेनानी}}
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− | [[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:अधिवक्ता]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:भारतीय चरित कोश]]
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− | वराहनेरी वेंकटेश सुब्रमण्य अय्यर एक क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त थे।उनका जन्म 2 अप्रैल 1881 को मद्रास प्रदेश की तिरुचिरापल्ली जिले में हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद भी अपने जिले में वकालत करने लगे। फिर अपने कार्य में अधिक सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से पहले रंगून गए और फिर बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड जा पहुंचे। वहां उनकी भेंट गांधी जी से हुई। सुब्रमण्य क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। उनकी मान्यता थी के शस्त्रों के बल पर ही भारत स्वतंत्र हो सकता है। गांधीजी के विचारों से भी उस समय सहमत नहीं हुए उन्हीं दिनों उनका संपर्क दामोदर विनायक सावरकर से भी हुआ। इंग्लैंड में कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद वहां के सम्राट के प्रति निष्ठा की शपथ लेने का समय आया तो सुब्रमण्यम इसके लिए तैयार नहीं हुए। और चुपचाप पांडिचेरी (जो फ्रांस के अधिकार में होने के कारण अंग्रेजों की पुलिस की पहुंच से बाहर था) चले गए। 1910 में पांडिचेरी पहुंचने पर उन्होंने युवकों को शस्त्र चलाना सिखाया और देश के अन्य क्रांतिकारियों के पास हथियार भी पहुंचाने लगे। वे क्रांतिकारियों द्वारा अत्याचारी अंग्रेज शासकों की हत्या को स्वतंत्रता संग्राम का अंग मानते थे। 1920 तक वे पांडिचेरी में रहे और महर्षि अरविंद से भी उनका संपर्क हुआ। उसके बाद वे मद्रास। आए यहां उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला और सजा हुई उनकी गतिविधियों के कारण फ्रांसीसी अधिकारियों ने भी एक बार उन्हें पांडिचेरी से देश निकाला देकर अलजीयर्स भेज दिया था।
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− | बीवी सुब्रमण्यम अय्यर बहुभाषाविद् थे। वे अंग्रेजी, लैटिनफ्रेंच संस्कृत और तमिल भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने 'बाल भारती नामक' तमिल पत्रिका का संपादन किया। उनके ऊपर कंबन की रामायण का भी प्रभाव पड़ा था। उन्होंने तमिल भाषा की कहीं रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया। उनकी लिखी 'नेपोलियन की जीवनी' भारत सरकार ने जब्त कर ली थी। 1925 में उनका देहांत हो गया।
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− | भारतीय चरित्र कोश 812
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