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'''शरतचंद्र दास''' ( जन्म- 1849, [[बंगाल]], मृत्यु- [[1917]]) एक साहसी गैर तिब्बती व्यक्ति थे जिन्होंने [[तिब्बत]] जाने का दुस्साहस किया और लोगों को तिब्बत और उसकी राजधानी [[ल्हासा]] के विषय में जानकारी दी थी।
 
==परिचय==
 
साहस करके पहली बार [[भारत]] से [[तिब्बत]] जाने वाले गैर तिब्बती शरद चंद्र दास का जन्म 1849 ई. में  [[बंगाल]] में एक निर्धन परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन एक साधारण अध्यापक के रूप में आरंभ किया। परंतु उनके अंदर ज्ञान अर्जित करने तथा दुस्साहसिक कार्य करने की बड़ी लगन थी। इसी प्रेरणा से वे [[1879]] में उस समय तिब्बत गए जब किसी भी गैर तिब्बती का वहां जाना निष्द्ध था। वे आधुनिक युग के लोगों को तिब्बत और उसकी राजधानी ल्हासा के बारे में सूचना देने वाले पहले व्यक्ति थे। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=831|url=}}</ref>
 
==दुस्साहसिक कार्य ==
 
शरतचंद्र दास को दुस्साहसिक कार्य करने में बड़ा आनंद आता था। [[तिब्बत]] और उसकी राजधानी [[ल्हासा]] के बारे में जानने के लिये उन्होंने (गैर तिब्बती का वहां प्रवेश निष्द्ध होते हुये भी) तिब्बत में प्रवेश किया और लोगों को वहाँ की जानकारी दी थी। [[1881]] में वे पुन: तिब्बत गए। उन्होंने तिब्बती भाषा सीखी और एक तिब्बती ग्रंथ का [[अंग्रेजी]] में अनुवाद किया। दास की दूसरी अंग्रेजी पुस्तक 'इंडियन पंडित्स इन लैंड ऑफ स्नो' (हिमाच्छादित देश में भारतीय पंडित) से दुनिया यह जान सकी कि मध्य युग में किस प्रकार भारतीय बौद्ध भिक्षु तिब्बत गए और वहां उन्होंने [[बौद्ध धर्म]] तथा [[भारतीय संस्कृति]] का प्रचार किया।
 
==मृत्यु==
 
शरतचंद्र दास का [[1917]] ई. में निधन हो गया।
 
  
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
 
[[Category:इतिहास कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:भारतीय चरित कोश]]
 
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साहस करके पहली बार भारत से तिब्बत जाने वाले गैर तिब्बती शरद चंद्र दास का जन्म 1849 ई. में  बंगाल में एक निर्धन परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन एक साधारण अध्यापक के रूप में आरंभ किया।  परंतु उनके अंदर ज्ञान अर्जित करने तथा दुस्साहसिक कार्य करने की बड़ी लगन थी। इसी प्रेरणा से वे  1879 में  उस समय तिब्बत गए जबकि किसी भी गैर तिब्बती का वहां प्रवेश  निष्द्ध था।  वे आधुनिक युग के लोगों को तिब्बत और उसकी राजधानी ल्हासा के बारे में सूचना देने वाले पहले व्यक्ति थे।
 
1881 में वे पुन: वहां गए।  उन्होंने तिब्बती भाषा सीखी  और एक तिब्बती ग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद किया। उनकी दूसरी अंग्रेजी पुस्तक 'इंडियन पंडित्स इन लैंड ऑफ स्नो' (हिमाच्छादित देश में भारतीय पंडित) से दुनिया यह जान सकी कि  मध्य युग में किस प्रकार भारतीय बौद्ध भिक्षु  तिब्बत गए  और वहां उन्होंने बौद्ध धर्म तथा भारतीय संस्कृति का प्रचार किया। शरतचंद्र दास का 1917 ईस्वी में देहांत हो गया।
 
भारतीय चरित्र कोश 831
 

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