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राधेश्याम कथावाचक (जन्म- 1890, बरेली, उत्तर प्रदेश) ने रामायण की कथा को खड़ी बोली पद्य को कई खंडों में लिपिबद्ध लिया है। यह रचना हिंदी क्षेत्रों, विशेषत: उत्तर-प्रदेश के गांवों में पिछले अनेक दशकों में अत्यंत लोकप्रिय रही है। 'राधेश्याम रामायण' में वर्णित नेतिक मुल्यों को जनसाधारण तक पहुँचाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आपने अपनी आत्मकथा भी लिखी है।

परिचय

राधेश्याम कथावाचक का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली में सन्‌ 1980 में हुआ था। आपने एक अन्य क्षेत्र में बड़ा ही प्रशंसनीय कार्य यह किया है कि 'न्यू एल्फ्रेंड कंपनी' आदि पारसी नाटक कंपनियां प्राय: अंग्रेजी और फारसी प्रेमाख्यान पर आधारित नाटकों का प्रदर्शन करके धन कमाया करती थीं। इसका लोकरुचि पर बड़ा प्रतिकूल प्रभाव पढ़ता था। राधेश्याम ने ऐसी कंपनियों द्वारा अभिनय करने के लिए पौराणिक आख्यानों के आधार पर सुरुचिपूर्ण नाटकों की रचना की है।

रचनाएं

राधेश्याम कथावाचक ने नाटकों के साथ-साथ अपनी आत्मकथा भी लिखी है। आपके द्वारा लिखित नाटकों में प्रमुख रूप से इस प्रकार हैं:

  1. 'श्री कृष्णावतार',
  2. 'रुकमणी मंगल',
  3. 'ईश्वर भक्ति',
  4. 'द्रौपदी स्वयंवर',
  5. 'परिवर्तन',
  6. 'सूर्य विजय',
  7. 'उषा अनिरुद्ध', और वीर अभिमन्यु विशेष उल्लेखनीय हैं।



   'राधेश्याम रामायण' के रचयिता राधेश्याम कथावाचक का जन्म सन 1890 ईसवी मैं बरेली उत्तर प्रदेश में हुआ था इन्होंने रामायण की कथा को खड़ी बोली पद्य में कई खंडों में लिपिबद्ध लिया। यह रचना हिंदी क्षेत्रों, विशेषत: उत्तर-प्रदेश के गांव में पिछले अनेक दशकों में अत्यंत लोकप्रिय रही है। इस प्रकार रामायण में वर्णित नैतिक मूल्यों को जनसाधारण तक पहुंचाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
     राधेश्याम ने एक अन्य क्षेत्र में भी प्रशंसनीय कार्य किया 'न्यू एल्फ्रेंड कंपनी' आदि पारसी नाटक कंपनियां प्राय: अंग्रेजी और फारसी प्रेमाख्यान पर आधारित नाटकों का प्रदर्शन करके धन कमाया करती थीं। इसका लोकरुचि पर बड़ा प्रतिकूल प्रभाव पढ़ता था। राधेश्याम ने ऐसी कंपनियों द्वारा अभिनय करने के लिए पौराणिक आख्यानों के आधार पर सुरुचिपूर्ण नाटकों की रचना की। उनके लिखित नाटकों में 'श्री कृष्णावतार', 'रुकमणी मंगल', 'ईश्वर भक्ति', 'द्रौपदी स्वयंवर', 'परिवर्तन', 'सूर्य विजय', 'उषा अनिरुद्ध', और वीर अभिमन्यु विशेष उल्लेखनीय हैं। इन रचनाओं को साहित्यिक मानदंड के अनुसार भले ही अति उच्च स्तर का न माना जाए फिर भी हिंदी की प्रचार की दृष्टि से इनका महत्त्व रहा है। आपने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी। 

भारतीय चरित् कोश 720