मधुमेह

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मधुमेह की बीमारी एक ख़तरनाक रोग है। यह बीमारी हमारे शरीर में अग्न्याशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है। इसमें रक्त ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। धमनियों में बदलाव होते हैं। मधुमेह से पीड़ित मरीजों की आँखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का ख़तरा बढ़ जाता है। मधुमेह ग्लूकोज (रक्त शर्करा) की चयापचय[1] का एक विकार है। मधुमेह इन्सुलिन हार्मोन के साथ एक समस्या की वजह से होता है, जो ग्लूकोज चयापचय की निगरानी के लिए जिम्मेदार होता है।

इंसुलिन

इंसुलिन हमारे शरीर में बनने वाला एक प्राकृतिक हार्मोन होता है जिसे अग्नाशय बनाता है। इसका मुख्य कार्य हमारी कोशिकाओं में ग्लूकोज पहुँचाना एवं इसकी मात्रा को संतुलित रखना होता है। यह ग्लूकोज हमारी कोशिकाओं में पहुँचकर वसा बन जाती है और वहाँ सुरक्षित रहती है। यह वसा ऊर्जा बनाने में प्रयोग आती है। जब भी भोजन किया जाता है, अग्नाशय सटीक मात्रा में इंसुलिन का स्रवण करता है, इस क्रम में इस खाने से निर्मित चीनी शरीर के विभिन्न अंगों में सभी कोशिकाओं द्वारा उपयोग करने की आवश्यकता की पूर्ति होती है।

इंसुलिन का कार्य

शरीर सीमित मात्रा में ही ग्लूकोज चाहता है, जब हम आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज और वसा लेते है तो इंसुलिन इसे नियंत्रण करता है, पर धीरे धीरे हमारे इंसुलिन की कार्य क्षमता घटती जाती है और भोजन में ग्लूकोज और वसा की मात्रा बढती जाती है। असंतुलन को दूर करने के लिए शरीर अग्न्याशय को अधिक मात्रा में इंसुलिन बनाने का आदेश देता है।

मधुमेह के कारण

मधुमेह इंसुलिन हार्मोन उदर की एक बड़ी ग्रंथि जिसे अग्नाशय कहा जाता है, द्वारा उत्पादित होता है। मधुमेह होने पर यह इंसुलिन या तो अपर्याप्त होती है, या शरीर की कोशिकाओं इंसुलिन का प्रतिरोधी बन इसकी सभी कार्रवाई रोकती है, परिणामत रक्त में ग्लूकोज का दोषपूर्ण उपयोग होता है। हालांकि व्यक्ति आहार के रूप में सेवन जारी रखता है, खाने के रुप में ग्लूकोज की एक ताजा आपूर्ति जुड़ती रहती है, जो पहले से ही इंसुलिन की कार्यवाई के अभाव की वजह अप्रयुक्त ग्लूकोज से संतृप्त होती है, शरीर ऊर्जा की कमी से पीड़ित होने लगता है, जबकि ग्लूकोज शरीर की रक्त कोशिकाओं में प्रवेश करने की प्रतिक्षा में रहता है। परिणामस्वरूप, रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढने लगता है और अधिक हो कर मूत्र से बाहर उत्सर्जन शुरु होने लगता है। इस तरह मधुमेह की एक असत्यवत तस्वीर बनती है, हर जगह चीनी ही चीनी होती है लेकिन उपयोग करने के लिए एक बूंद भी नहीं होती है।[2]

हम ज़्यादा मात्रा में ग्लूकोज और वसा खाते है और ज़्यादा मात्रा में इंसुलिन बना कर उसे संतुलित करते है। कुछ वर्षों तक तो अग्न्याशय अधिक इंसुलिन बनाता है पर धीरे धीरे बेकार हो जाता है। तब शरीर में इंसुलिन की कमी होने लगते है है, रक्त में अंधाधुंध ग्लूकोज घुल कर हमारी कोशिकाओं में जमा होने लगता है। जिसके फलस्वरूप ग्लूकोज बढ़ने लगता है और कोशिकाओं में वसा ख़ूब इकठ्ठा होने लगता है।[3]

प्रकार

कारण और प्रस्तुति के आधार पर पर मधुमेह के प्रकार निर्भर हैं। इसे तीन प्रकार के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • प्रकार 1 - इसे जुवेनाइल (किशोर, बचपन) मधुमेह या इंसुलिन निर्भर मधुमेह कहा जाता है।
  • प्रकार 2 - देर से शुरु होना वाली या गैर इन्सुलिन निर्भर मधुमेह कहा जाता है।
  • जेस्टेशनल मधुमेह - गर्भावस्था के दौरान शुरू मधुमेह

इंसुलिन निर्भर मधुमेह

इसे जुवेनाइल (किशोर, बचपन) मधुमेह या इंसुलिन निर्भर मधुमेह कहा जाता है। यह अब एक ऑटोईम्यून विकार का परिणाम होना सिद्ध हो गया है। जिसमें प्रतिरक्षा कोशिकाओं अग्नाशय पर एक हमला कर इसकी कोशिकाओं को पूरी तरह से गलती से नष्ट कर देती है जिसके एक परिणाम के रूप में शरीर में इंसुलिन का उत्पादन नहीं हो पाता है। मधुमेह के के साथ जीने के लिए इस प्रकार के रोगियों को बाहर से जीवनभर इंसुलिन लेने की जरूरत होती है।

प्रकार 1 मधुमेह के लक्षण बचपन में या युवाकिशोर वयस्कों में शुरु होते हैं और वे तेजी से विकसित होते हैं। महत्वपूर्ण लक्षण लगातार भूख, असत्यवत वजन घटाना, प्यास और लघुशंका में वृद्धि, थकान और सहनशक्ति की कम, दृष्टि का धुँधलापन आदि शामिल हैं। यदि, शीघ्र निदान और इंसुलिन के साथ इलाज, नहीं किया जाता है तो टाइप 1 मधुमेह का रोगी जीवनघातक डायबिटिक - कोमा जिसे डायबिटिक किटोएसिडोसिस भी जाना जाता है में चला जा सकता है।

प्रौढ़ावस्था में शुरु होने वाली मधुमेह

प्रौढ़ावस्था में शुरु होने वाली मधुमेह वयस्कों में देखा जाने वाला मधुमेह का सबसे आम रूप है, और मोटे व्यक्तियों में, आरामदायक जीवन शैली के जीने वाले, बूढ़ापे और मधुमेह के पारिवारिक इतिहास के व्यक्तियों में होता है। इस मामले में, अग्नाशय शुरू में इंसुलिन की सामान्य मात्रा बना रहा होता है और अज्ञात कारणों से, शरीर में कोशिकाओं को इंसुलिन प्रतिरोध विकसित होने पर और वे क्रम में रक्त शर्करा का उपयोग करने के लिए इंसुलिन का उपयोग नहीं कर पाते। समय के साथ, अग्नाशय इंसुलिन का उत्पादन कम कर देता है।

प्रकार 1 के समान ही लक्षण होते हैं, लेकिन वे और अधिक धीरे धीरे विकसित होते हैं और शुरू में कई रोगियों द्वारा चूक किये जा सकते हैं। अब इस प्रकार के किशोरों में प्रकार 2 मधुमेह की बढ़ती घटनाओं और छोटे आयु के समूहों में दोषपूर्ण खाने की आदतों के कारण तनाव आदि से मधुमेह के बारे में चिंता के विषय है।

जेस्टेशनल मधुमेह

इस मामले में एक स्त्री में उसकी गर्भावस्था के पिछले कुछ महीनों में मधुमेह विकसित होती है। ज्यादातर मामलों में, बच्चे के जन्म के साथ मधुमेह समाप्त हो जाती है, लेकिन कुछ में यह प्रकार -2 मधुमेह के रुप में जारी रह सकती है। जेस्टेशनल मधुमेह है कि गर्भावस्था के दौरान होने के कुछ हार्मोनल गड़बड़ी के कारण घटित होती है। मधुमेह के इस प्रकार के रोगी में कोई स्पष्ट लक्षणों के साथ, केवल निदान असामान्य रक्त शर्करा रिपोर्टों के कारण शांत हो सकती है।

लक्षण

  • मधुमेह के रोगी को अधिक प्यास लगती है।
  • कोई घाव हो गया हो तो जल्दी ठीक नहीं होता।
  • पैरों की पिंडलियों में लगातार दर्द तथा ऐंठन रहना तथा सुन्न पड़ जाना।
  • शरीर की त्वचा सूखी रहना तथा पैरों के तलवे में जलन होना।
  • मधुमेह के रोगी को भूख बहुत लगती है।
  • बार-बार लघुशंका की इच्छा के अलावा वजन में गिरावट आँखों में रोशनी की कमी भी मधुमेह के लक्षण हो सकते हैं।
  • परिवार में किसी अन्य व्यक्ति को पहले से मधुमेह होना इस रोग की संभावना को बढ़ा देता है।[4]

प्रभाव

मधुमेह रोगियों में करीब चार फीसदी रोगियों को प्रतिवर्ष पैर में घाव हो जाता है। पैरों में एक तो रक्त का प्रवाह कम होता है, दूसरा इसकी धमनियों में प्लेक तेजी से जमता है। लोग पैर की देखभाल के प्रति भी लापरवाह होते हैं, जिससे पैरों में घाव हो जाता है। यह घाव भरता नहीं, बल्कि बढ़ता चला जाता है। भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ मधुमेह रोगियों को पैरों में तकलीफ होती है। इसमें से करीब 40 हजार लोगों की जिन्दगी बचाने के लिए उनके पैरों को काट देना पड़ता है। यह किसी भी तरह की दुर्घटना के बाद पैरों के काटने की सबसे बड़ी वजह है। इसके अलावा शरीर के निचले हिस्से के संवेदनशील अंगों में भी घाव की शिकायत हो जाती है।

मधुमेह का नियंत्रण

  • मधुमेह होने के कारण पैदा होने वाली जटिलताओं की रोकथाम के लिए नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सफाई और संभावित इंसुलिन इंजेक्शन अथवा खाने वाली दवाइयों (डॉक्टर के सुझाव के अनुसार) का सेवन आदि कुछ तरीके हैं।
  • व्यायाम से रक्त शर्करा स्तर कम होता है तथा ग्लूकोज का उपयोग करने के लिए शारीरिक क्षमता पैदा होती है।
  • मधुमेह के मरीजों को त्वचा की देखभाल करना अत्यावश्यक है। भारी मात्रा में ग्लूकोज से उनमें कीटाणु और फफूंदी लगने की संभावना बढ़ जाती है। चूंकि रक्त संचार बहुत कम होता है अतः शरीर में हानिकारक कीटाणुओं से बचने की क्षमता न के बराबर होती है। शरीर की सुरक्षात्मक कोशिकाएँ हानिकारक कीटाणुओं को खत्म करने में असमर्थ होती है। उच्च ग्लूकोज की मात्रा से निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) होता है जिससे त्वचा सूखी हो जाती है तथा खुजली होने लगती है।

भारत में मधुमेह

भारत को मधुमेह की राजधानी कहा जाता है। खानपान की खराबी और शारीरिक श्रम की कमी के कारण पिछले दशक में डायबिटीज होने की दर दुनिया के हर देश में बढ़ी है। भारत में इसका सबसे विकृत स्वरुप उभरा है जो बहुत भयावह है। जीवनशैली में अनियमितता मधुमेह का बड़ा कारण है। एक दशक पहले भारत में डायबिटीज होने की औसत उम्र चालीस साल की थी जो अब घट कर 25 से 30 साल हो चुकी है। 15 साल के बाद ही बड़ी संख्या में लोगों को डायबिटीज का रोग होने लगा है। कम उम्र में इस बीमारी के होने का सीधा मतलब है कि चालीस की उम्र आते-आते ही बीमारी के दुष्परिणामों को झेलना पड़ता है।

भारत में 1995 में मधुमेह रोगियों की संख्या 1 करोड़ 90 लाख थी, जो 2008 में बढ़कर चार करोड़ हो गई है। अनुमान है कि 2030 में मधुमेह रोगियों की संख्या आठ करोड़ के आसपास हो जाएगी। दिल्ली मधुमेह अनुसंधान केन्द्र के अध्यक्ष डॉ. ए. के. झिंगन के अनुसार सभी तरह के निचले अंग विच्छेदन के मामले में 45 से 75 फीसदी मधुमेह रोगी होते हैं। 2030 में मधुमेह रोगियों की अनुमानित संख्या करीब आठ करोड़ है, जिसमें एक करोड़ लोगों को डायबिटिक पैरों का खतरा होगा। यह मधुमेह रोगियों में सर्वाधिक गम्भीर, जटिल व खर्चीली बीमारी है। इस रोग के परिणामस्वरूप शरीर के निचले हिस्से के अंगों के विच्छेदन की संख्या बढ़ी है। मधुमेह (डायबिटीज) के कारण ही किडनी की खराबी, हृदय आघात, पैरों का गैन्ग्रीन और आंखों का अन्धापन अब भारत की मुख्य स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है।

विश्व मधुमेह दिवस

14 नवम्बर चाटर्रा, बेन्टिंग का जन्म दिन है जिन्होंने कनाडा के टोरन्टो शहर में बेन्ट के साथ मिलकर सन 1921 में इन्सुलिन की खोज की थी। इतिहास की इस महान खोज को अक्षुण रखने के लिए इन्टरनेशनल डायबिटीज फेडेरेशन (आईडीएफ) द्वारा 14 नवम्बर को पिछले दो दशको से विश्व डायबिटीज दिवस हर साल मनाया जाता है। यह दिन डायबिटीज की खतरनाक दस्तक को लोगों को समझाती है।

विश्व मधुमेह दिवस हर साल 14 नवंबर को मनाया जाता है। इसी दिन बेटिंग का जन्मदिन भी है जिन्होंने सन 1921 में इंसुलीन की खोज की थी। फैंडरिक बेटिंग के योगदान को याद रखने के लिए इंटरनेशनल डायबेटिक फेडरेशन द्वारा 14 नवंबर को दुनिया के 140 देशों में मधुमेह दिवस मनाया जाता है। हर साल एक नया 'थीम' चयन किया जाता है और जनता को जागरुक बनाने की पहल की जाती है। सन 2006 से यह संयुक्त राष्ट्र विश्व मधुमेह दिवस हो गया है।

समाचार

गुरुवार, 4 नवंबर, 2010

इंसुलिन प्रतिरोधी हार्मोन का पता चला
भारत को मधुमेह की राजधानी कहा जाता है क्योंकि भारत में मधुमेह एक महामारी की तरह फैल रहा है। खानपान की खराबी और शारीरिक श्रम की कमी के कारण पिछले दशक में डायबिटीज होने की दर दुनिया के हर देश में बढ़ी है। भारत में इसका सबसे विकृत स्वरुप उभरा है जो बहुत भयावह है। जीवनशैली में अनियमितता मधुमेह का बड़ा कारण है। जल्द ही प्रकार 2 डायबिटीज का सफल इलाज किया जा सकेगा। जापान में कानाजावा युनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस के वैज्ञानिकों ने इंसुलिन प्रतिरोधी हार्मोन की खोज करने का दावा किया है। उनका कहना है कि इससे डायबिटीज की नई दवाएँ तैयार करने में बहुत मदद मिलेगी। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रकार 2 डायबिटीज के मरीज में यकृत से निकलने वाले इंसुलिन प्रतिरोधी हार्मोन का प्रवाह बहुत ज्यादा हो जाता है।

खोज

गौरतलब है कि इंसुलिन प्रतिरोधी (आईआर) एक भौतिक अवस्था है। इसमें यकृत से निकलने वाला इंसुलिन हार्मोन कम सक्रिय हो पाता है। इस वजह से खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है, जो प्रकार 2 डायबिटीज के लिए जिम्मेदार है। नया शोध जर्नल 'सेल मेटाबोलिज्म' में प्रकाशित हुआ। दल का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिक हीरोफूमी मिशू ने कहा, 'इस अध्ययन में यकृत की उस कार्यप्रणाली पर रोशनी डाला गया है जिसे पहले नहीं खोजा गया था। यह इंसुलिन प्रतिरोधी हार्मोन के प्रवाह के बारे में जानकारी देता है।' वैज्ञानिकों ने आरंभ में प्रकार 2 डायबिटीज वाले लोगों के यकृत में ज्यादातर पाए जाने वाले प्रवाह वाले प्रोटीन (हीपैटोकींस) से युक्त जीन की खोज की थी। इस खोज के आधार पर उन्हें लगा कि प्रकार 2 डायबिटीज और इंसुलिन प्रतिरोधी के विकास में यकृत का भी योगदान हो सकता है।

परिणाम

उन्होंने पाया कि ज्यादा इंसुलिन प्रतिरोधी टाइप2 डायबिटीज वाले लोगों में 'सेलिनो प्रोटीन पी (एसइपी)' का स्तर यकृत में बहुत ही ज्यादा होता है। इस तरह के प्रोटीन का स्तर स्वस्थ के मुकाबले डायबिटीज से पीड़ित लोगों में ज्यादा होता है। वैज्ञानिकों ने प्रयोग के तौर पर सेलिनो प्रोटीन को एक चूहे को दिया। इससे वह इंसुलिन प्रतिरोधी हो गया। उसके खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ गया। जब यकृत में सेलिनो प्रोटीन को निष्क्रिय किया गया, तो उसके खून में ग्लूकोज का स्तर कम हो गया। उल्लेखनीय है कि यह प्रोटीन यकृत में बनता है। हालांकि लोगों को खून में ग्लूकोज के स्तर को बनाए रखने में इसकी प्रमुख भूमिका के बारे में जानकारी मालूम नहीं थी। मिशू ने कहा, 'हमारे शोध ने यह संभावना बढ़ाई है कि यकृत से निकलने वाले हीपैटोकींस के प्रवाह में बाधा पहुंचने पर कई तरह की बीमारिया होने की आशंका होती है।'

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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (ऊर्जा उत्पादन के लिए ग्लूकोज की छिन्नता)
  2. मधुमेह (हिन्दी) हेल्थ एजुकेशन लाइब्रेरी। अभिगमन तिथि: 10 नवम्बर, 2010
  3. सिंह, रामबाबू। मधुमेह पर अब आपका नियंत्रण (हिन्दी) (एच टी एम एल) एलोवेरा प्रोडक्ट। अभिगमन तिथि: 10 नवम्बर, 2010
  4. मधुमेह (हिन्दी) इंडिक जी। अभिगमन तिथि: 10 नवम्बर, 2010

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