मिसरा
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मिसरा शे'र की प्रत्येक पंक्ति को मिसरा कहते हैं, इस प्रकार एक शे'र में दो पंक्तियाँ अर्थात दो मिसरे होते हैं- मिसरा-ए-उला और मिसरा-ए-सानी।
मिसरा-ए-उला
शे'र की पहली पंक्ति को मिसरा -ए- उला कहते हैं। 'उला' का शब्दिक अर्थ है 'पहला'।
मिसरा-ए-सानी
शे'र की दूसरी पंक्ति को मिसरा-ए-सानी कहते हैं। 'सानी' का शब्दिक अर्थ है 'दूसरा'।
- उदाहरण
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ---(दुष्यंत कुमार)[1]
- उपरोक्त शे'र में शे'र पहली पंक्ति (हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए) को 'मिसरा-ए-उला' और दूसरी पंक्ति (इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए) को 'मिसरा-ए-सानी' कहा जाएगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ (हिंदी) open books online। अभिगमन तिथि: 23 फ़रवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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