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"जब मूसा भगवान के पास बात करने गया था तो उसने दर्शन माँगा। भगवान ने कहा- तू न देख सकेगा। अच्छा पहाड़ की ओर देख। उस तेज़ को देख वह मूर्च्छित हो कर गिर पड़ा। ईश्वर ने अपने आदेश को पट्टियों पर लिखकर उसे दिया।" इसके बाद मूसा ने इस्राइल को ईश्वर द्वारा मिले "दस आदेश" दिये जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तम्भ है ।
 
"जब मूसा भगवान के पास बात करने गया था तो उसने दर्शन माँगा। भगवान ने कहा- तू न देख सकेगा। अच्छा पहाड़ की ओर देख। उस तेज़ को देख वह मूर्च्छित हो कर गिर पड़ा। ईश्वर ने अपने आदेश को पट्टियों पर लिखकर उसे दिया।" इसके बाद मूसा ने इस्राइल को ईश्वर द्वारा मिले "दस आदेश" दिये जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तम्भ है ।
  
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13:24, 10 जनवरी 2011 का अवतरण

हज़रत मूसा

इब्राहिमी धर्मों में एक प्रमुख नबी (ईश्वरीय सन्देशवाहक) माने जाते हैं। मूसा यहूदी धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। बाइबिल में हज़रत मूसा की कहानी दी गयी है, जिसके मुताबिक मिस्र के फ़राओ के ज़माने में जन्मे मूसा यहूदी माता-पिता के की औलाद थे पर मौत के डर से उनको उनकी माँ ने नील नदी में बहा दिया। उनको फिर फ़रऊन की पत्नी ने पाला और मूसा एक मिस्री राजकुमार बने।

कथा

महात्मा मूसा मिस्र का 'फ़रऊन'[1] पैलस्ताइन (फिलस्तीन) पर विजय कर, वहाँ के बहुत से निवासियों को बंदी बना अपने देश में ले गया। पीछे राजाज्ञा हुई कि बंदी बनाये इन इस्राईल की सन्तानों के कोई भी लड़के न बच पायें, किन्तु लड़कियाँ न मारी जाएँ। मूसा के उत्पन्न होने पर उसकी माँ ने बच्चे को मारे जाने के डर से नील नदी में बहा दिया। वह सन्दूक फ़रऊन की स्त्री के हाथ लगा। उसने इस बालक को बड़े प्रेम से पाला और संयोगवश उसकी माँ को ही दाई रख लिया। युवा होने पर मूसा ने एक मिस्री पुरुष से एक यहूदी को पिटते देख, मूसा ने उस मिस्री को मार डाला और ख़ुद भागकर 'मदैन' चला गया। वहाँ पर उसने ब्याह कर अपने श्वसुर के घर में 10 वर्ष तक ब्याह के बदले की गई प्रतिज्ञा के अनुसार उनकी सेवा की। जब अवधि पूरी होने पर वह परिवार को ले चला तो एक पर्वत पर उसने आग देखी। वह अकेला पहाड़ पर गया। वहाँ पर दिव्यवाणी हुई- मैं जगदीश्वर हूँ, अपने डंडे को भूमि पर डाल। जब उसने उसे भूमि पर डाल दिया, तो वह फनफनाता हुआ साँप हो गया। मूसा डरा। प्रभु ने कहा- आगे आ मूसा! डर नहीं। अपने हाथ को बगल में दे। वह चमकीला निकल आया। भगवान से इस प्रकार दो प्रमाणभूत चमत्कार पाकर प्रभु के आदेशानुसार वह 'फ़रऊन' के पास गया।

मूसा ने फ़रऊन के जादूगरों को अपने चमत्कार से जीता। रात को उसने इस्राईल संतति को ले अपने देश की ओर प्रयाण किया। अपने दासों को इस प्रकार हाथ से निकलते देख 'फ़रऊन' सेनासहित पीछे दौड़ा। मूसा ने अपने डंडे के चमत्कार से समुद्र में मार्ग बना लिया। जिससे उसके जाति वाले पार हो गए। जब फ़रऊन ने भी उसी तरह से उतरना चाहा तो मूसा के डंडे के उठाने से सब वहीं पर डूब गए। रास्ते में इस्राईल संतति को ईश्वर की ओर से दिव्य भोजन- 'मन्न', 'सल्वा' आता था। जब वह भगवान से बात करने और उसके आदेश लेने के लिए गया था और अपने भाई हारून के ज़िम्मे इस्राईल संतति को कर गया था तो इधर लोगों ने 'सामरी' के बहकावे में आकर बछड़ा बनाकर पूजना आरम्भ किया। मूसा के क्रोधित होने पर पीछे 'हारून' ने कहा- हे मेरी माँ के जने! न मेरी दाढ़ी पकड़, न सिर। मैं डरा कि तू कहेगा तूने बनी इस्राईल संतति में फूट डाल दी। सामरी ने जिब्राइल की धूलि से बछड़े बोलने की शक्ति तक उत्पन्न कर दी थी। "जब मूसा भगवान के पास बात करने गया था तो उसने दर्शन माँगा। भगवान ने कहा- तू न देख सकेगा। अच्छा पहाड़ की ओर देख। उस तेज़ को देख वह मूर्च्छित हो कर गिर पड़ा। ईश्वर ने अपने आदेश को पट्टियों पर लिखकर उसे दिया।" इसके बाद मूसा ने इस्राइल को ईश्वर द्वारा मिले "दस आदेश" दिये जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तम्भ है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'फ़रऊन' या 'फर्वा' मिस्र के सम्राटों की पदवी थी।