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* ‘म’, ‘मा’, ‘मि’ के अनुनासिक रूप क्रमश: मँ, माँ, मिँ इत्यादि होते हैं परंतु शिरोरेखा के उपर मात्रा होने पर ‘चंद्रबिंदु’ के स्थान पर ‘बिंदु’ लगाने की रीति (सुविधार्थ) प्रचलित है। जैसे- मीँजना-मींजना, मेँहदी-मेंहदी।
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* व्यंजन-गुच्छों में जो व्यंजन ‘म’ से पहले आकर मिलते हैं- प्राय: उनकी खड़ी रेखा का लोप या कोई अन्य परिवर्तन होता है। जैसे- ज़ख़्म, युग्म, आत्म, जन्म, इल्म, वेश्य, भीष्म, भस्म)। क्, द्, ह्, के पहले आकार म से मिलने वाले रूप ‘क्म, द्म (द्म), ह्म (ह्म)’ और र का ‘र्म’ रूप ध्यान देने योग्य है। जैसे- हुक्म, पद्म, ब्रह्म, धर्म।
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* जब व्यंजन-गुच्छों में ‘म’ पहले आकर किसी व्यंजन से मिलता है, तब प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलता है। जैसे- निम्न, कम्पन, विलम्ब, शम्भु, रम्य, अम्ल, टेम्स। परंतु ‘र’ से मिलने पर बना ‘म्र’ रूप भिन्न है (आम्र, साम्राज्य) ध्यान देने योग्य हैं।
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* ‘प/फ/ब/भ’ में पहले आकर मिलने वाले ‘म्’ के स्थान पर सुविधा के लिये अनुस्वार जैसी बिन्दी का प्रयोग प्रचलित है (कम्पन-कंपन) परंतु यह अशुद्ध है और ’म्’ का प्रयोग करना ही उचित है।
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* ‘म’ का द्वित्व सम्भव है और उसे ‘म्म’ लिखा जाना चाहिये। जैसे- सम्मान, सम्मति।
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* शब्दों के अंत में आने वाले ‘म्’ के स्थान पर बिंदी का प्रयोग उस स्थति में निषिद्ध है जबकि वह वाक्य का अंतिम शब्द हो।
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* 'म' तीन गुरु वर्णों (ऽऽऽ) का गण है। संगीत में 'मध्यम स्वर' का संक्षिप्त रूप है।<ref>पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 1904</ref>
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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10:47, 8 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

म.jpg
विवरण देवनागरी वर्णमाला के पवर्ग का पाँचवा व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह द्वि-ओष्ठ्य (द्वयोष्ठ्य), घोष, अल्पप्राण और नासिक्य है। इसका महाप्राण रूप ‘म्ह’ कुछ बोलियों में ही मिलता है। जैसे- कुम्हार, तुम्हार।
व्याकरण [ पुल्लिंग- (धातु) मा + क ] ब्रह्मा, विष्णु, शिव, यम, चंद्रमा, समय, काल, विष, ज़हर।
संबंधित लेख , , ,
अन्य जानकारी ‘प/फ/ब/भ’ में पहले आकर मिलने वाले ‘म्’ के स्थान पर सुविधा के लिये अनुस्वार जैसी बिन्दी का प्रयोग प्रचलित है (कम्पन-कंपन) परंतु यह अशुद्ध है और ’म्’ का प्रयोग करना ही उचित है।

देवनागरी वर्णमाला के पवर्ग का पाँचवा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह द्वि-ओष्ठ्य (द्वयोष्ठ्य), घोष, अल्पप्राण और नासिक्य है। इसका महाप्राण रूप ‘म्ह’ कुछ बोलियों में ही मिलता है। जैसे- कुम्हार, तुम्हार।

विशेष-
  • ‘म’, ‘मा’, ‘मि’ के अनुनासिक रूप क्रमश: मँ, माँ, मिँ इत्यादि होते हैं परंतु शिरोरेखा के उपर मात्रा होने पर ‘चंद्रबिंदु’ के स्थान पर ‘बिंदु’ लगाने की रीति (सुविधार्थ) प्रचलित है। जैसे- मीँजना-मींजना, मेँहदी-मेंहदी।
  • व्यंजन-गुच्छों में जो व्यंजन ‘म’ से पहले आकर मिलते हैं- प्राय: उनकी खड़ी रेखा का लोप या कोई अन्य परिवर्तन होता है। जैसे- ज़ख़्म, युग्म, आत्म, जन्म, इल्म, वेश्य, भीष्म, भस्म)। क्, द्, ह्, के पहले आकार म से मिलने वाले रूप ‘क्म, द्म (द्म), ह्म (ह्म)’ और र का ‘र्म’ रूप ध्यान देने योग्य है। जैसे- हुक्म, पद्म, ब्रह्म, धर्म।
  • जब व्यंजन-गुच्छों में ‘म’ पहले आकर किसी व्यंजन से मिलता है, तब प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलता है। जैसे- निम्न, कम्पन, विलम्ब, शम्भु, रम्य, अम्ल, टेम्स। परंतु ‘र’ से मिलने पर बना ‘म्र’ रूप भिन्न है (आम्र, साम्राज्य) ध्यान देने योग्य हैं।
  • ‘प/फ/ब/भ’ में पहले आकर मिलने वाले ‘म्’ के स्थान पर सुविधा के लिये अनुस्वार जैसी बिन्दी का प्रयोग प्रचलित है (कम्पन-कंपन) परंतु यह अशुद्ध है और ’म्’ का प्रयोग करना ही उचित है।
  • ‘म’ का द्वित्व सम्भव है और उसे ‘म्म’ लिखा जाना चाहिये। जैसे- सम्मान, सम्मति।
  • शब्दों के अंत में आने वाले ‘म्’ के स्थान पर बिंदी का प्रयोग उस स्थति में निषिद्ध है जबकि वह वाक्य का अंतिम शब्द हो।
  • 'म' की शिरोरेखा ध्यान पूर्वक बनानी चाहिये क्योंकि उसके अभाव में 'म' को 'भ' समझने की भूल हो सकती है।
  • [ पुल्लिंग- (धातु) मा + क ] पुल्लिंग- ब्रह्मा, विष्णु, शिव, यम, चंद्रमा, समय, काल, विष, ज़हर। (छन्द०) 'मगण' का संक्षिप्त रूप।
  • 'म' तीन गुरु वर्णों (ऽऽऽ) का गण है। संगीत में 'मध्यम स्वर' का संक्षिप्त रूप है।[1]

म की बारहखड़ी

मा मि मी मु मू मे मै मो मौ मं मः

म अक्षर वाले शब्द


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 1904

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