राज कपूर

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रणबीर राज कपूर (जन्म- 14 दिसंबर, 1924, पेशावर, पाकिस्तान (पहले भारत में); मृत्यु- 2 जून, 1988, नई दिल्ली), हिंदी फ़िल्म अभिनेता, निर्माता व निर्देशक हैं। राज कपूर भारत, मध्य-पूर्व, तत्कालीन सोवियत संघ और चीन में लोकप्रिय हैं। राज कपूर जी को अभिनय विरासत में ही मिला था। इनके पिता पृथ्वीराज अपने समय के मशहूर रंगकर्मी और फिल्म अभिनेता हुए हैं। राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर ने अपने पृथ्वी थियेटर के जरिए पूरे देश का दौरा किया। राज कपूर भी उनके साथ जाते थे और रंगमंच पर काम भी करते थे। पृथ्वीराज कपूर को मरणोपरांत दादासाहेब फालके अवार्ड दिया गया।

जीवन परिचय

राज कपूर हिन्दी सिनेमा जगत का वह नाम है, जो पिछले आठ दशकों से फिल्मी आकाश पर जगमगा रहा है और आने वाले कई दशकों तक भुलाया नहीं जा सकेगा। राज कपूर की फिल्मों की पहचान उनकी आँखों का भोलापन ही रहा है। पृथ्वीराज कपूर के सबसे बड़े बेटे राज कपूर का जन्म 14 दिसम्बर 1924 को पेशावर में हुआ था। उनका बचपन का नाम रणबीर राज कपूर था। राज कपूर की स्कूली शिक्षा कोलकाता में हुई, लेकिन पढ़ाई में उनका मन कभी नहीं लगा। यही कारण था कि राज कपूर ने 10 की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। इस मनमौजी ने अपने विद्यार्थी जीवन में किताबें बेचकर खूब केले, पकोड़े और चाट खाई।

सन 1929 में जब पृथ्वीराज कपूर मुंबई आए, तो उनके साथ मासूम राज कपूर भी आ गए। पृथ्वीराज कपूर सिद्धांतों के पक्के इंसान थे। राज कपूर को उनके पिता ने साफ कह दिया था कि राजू, नीचे से शुरुआत करोगे तो ऊपर तक जाओगे। राज कपूर ने पिता की यह बात गाँठ बाँध ली और जब उन्हें सत्रह वर्ष की उम्र में रणजीत मूवीटोन में साधारण एप्रेंटिस का काम मिला, तो उन्होंने वजन उठाने और पोंछा लगाने के काम से भी परहेज नहीं किया। काम के प्रति राज कपूर की लगन पंडित केदार शर्मा के साथ काम करते हुए रंग लाई, जहाँ उन्होंने अभिनय की बारीकियों को समझा। एक बार राज कपूर ने गलती होने पर केदार शर्मा जी से चाँटा भी खाया था। उसके बाद एक समय ऐसा भी आया, जब केदार शर्मा ने अपनी फिल्म 'नीलकमल' (1947) में मधुबाला के साथ राज कपूर को नायक के रूप में प्रस्तुत किया।

अभिनय की शुरुआत

राज कपूर ने 1930 के दशक में बॉम्बे टॉकीज़ में क्लैपर-बॉय और पृथ्वी थिएटर में एक अभिनेता के रूप में काम किया, ये दोनों कंपनियाँ उनके पिता पृथ्वीराज कपूर की थीं। राज कपूर ने बाल कलाकार के रूप में 'इंकलाब' (1935) और 'हमारी बात' (1943), 'गौरी' (1943) में छोटी भूमिकाओं में कैमरे के सामने आ चुके थे। राज कपूर ने फिल्म वाल्मीकि (1946), 'नारद और अमरप्रेम' (1948) में कृष्ण की भूमिका निभाई थी। इन तमाम गतिविधियों के बावज़ूद उनके दिल में एक आग सुलग रही थी कि वे स्वयं निर्माता-निर्देशक बनकर अपनी स्वतंत्र फिल्म का निर्माण करे। उनका सपना 24 साल की उम्र में फिल्म 'आग' (1948) के साथ पूरा हुआ। राज कपूर ने पर्दे पर पहली प्रमुख भूमिका आग (1948) में निभाई, जिसका निर्माण और निर्देशन भी उन्होंने स्वयं किया था। इसके बाद राज कपूर के मन में अपना स्टूडियो बनाने का विचार आया और चेम्बूर में चार एकड़ जमीन लेकर 1950 में उन्होंने अपने आर.के. स्टूडियों की स्थापना की और 1951 में 'आवारा' में रूमानी नायक के रूप में ख्याति पाई। राज कपूर ने 'बरसात' (1949), 'श्री 420' (1955), 'जागते रहो' (1956) व 'मेरा नाम जोकर' (1970) जैसी सफल फ़िल्मों का निर्देशन व लेखन किया और उनमें अभिनय भी किया। उन्होंने ऐसी कई फ़िल्मों का निर्देशन किया, जिनमें उनके दो भाई शम्मी कपूर व शशि कपूर और तीन बेटे रणधीर, ऋषि व राजीव अभिनय कर रहे थे।

यद्यपि उन्होंने अपनी आरंभिक फ़िल्मों में रूमानी भूमिकाएँ निभाई, लेकिन उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध चरित्र 'चार्ली चैपलिन' का ग़रीब, लेकिन ईमानदार 'आवारा' का प्रतिरूप है। उनका यौन बिंबों का प्रयोग अक्सर परंपरागत रूप से सख्त भारतीय फ़िल्म मानकों को चुनौती देता था।

प्रसिद्ध गीत

राज कपूर की फ़िल्मों के कई गीत बेहद लोकप्रिय हुए, जिनमें 'मेरा जूता है जापानी', 'आवारा हूँ' और 'ए भाई ज़रा देख के चलो' शामिल हैं।

मृत्यु

2 मई, 1988 को एक पुरस्कार समारोह के दौरान, जिसमें उन्हें भारतीय फ़िल्म उद्योग का सर्वोच्च सम्मान दादासाहब फाल्के पुरास्कार प्रदान किया गया, कपूर को दमे का भयंकर दौरा पड़ा और वह गिर गए। इस घटना के एक महीने बाद उनकी मृत्यु हो गई।