"रानी बेलुनचियार देवार" के अवतरणों में अंतर

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*रानी बेलुनचियार देवार क़ा जन्म 1750 में हुआ था।  
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'''रानी बेलुनचियार देवार''' का जन्म 1750 में हुआ था।  
*18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अंग्रज़ों ने दक्षिण के राजपूतों को कुचलने के हर सम्भव प्रयास किए।  
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*18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अंग्रज़ों ने दक्षिण के राजपूतों को कुचलने के हर सम्भव प्रयास किए।  
 
*शिवगंगा (देवार) के राजा मुथु बटुकनाथ ने अंग्रेज़ों की साम्राज्यवादी नीति का जमकर विरोध किया।  
 
*शिवगंगा (देवार) के राजा मुथु बटुकनाथ ने अंग्रेज़ों की साम्राज्यवादी नीति का जमकर विरोध किया।  
 
*बेलुनचियार राजा मुथु बटुकनाथ की पत्नी थी।  
 
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*अंतत: टीपू सुल्तान की सहायता से उसने अंग्रेज़ों को हराकर शिवगंगा पर पुन: अधिकार करके ही दम लिया।  
 
*अंतत: टीपू सुल्तान की सहायता से उसने अंग्रेज़ों को हराकर शिवगंगा पर पुन: अधिकार करके ही दम लिया।  
*विजय के बाद इस महान वीरांगना ने1799 ई. अपने पति की समाधि के पास बैठकर प्राण त्याग दिए।
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06:48, 10 मई 2020 के समय का अवतरण

रानी बेलुनचियार देवार का जन्म 1750 में हुआ था।

  • 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अंग्रज़ों ने दक्षिण के राजपूतों को कुचलने के हर सम्भव प्रयास किए।
  • शिवगंगा (देवार) के राजा मुथु बटुकनाथ ने अंग्रेज़ों की साम्राज्यवादी नीति का जमकर विरोध किया।
  • बेलुनचियार राजा मुथु बटुकनाथ की पत्नी थी।
  • वह इतनी वीर थी कि अंग्रेज़ समर्थक कुख्यात दस्यु कट्टु को तलवार के एक ही वार में मार दिया था।
  • अंग्रेज़ों ने एक विशाल सेना के साथ देवार पर आक्रमण किया तो राजा बटुकनाथ एवं रानी बेलुनचियार ने अंग्रेज़ों से डटकर मुकाबला किया।
  • पति के वीरगति प्राप्त होने के बाद भी रानी शत्रु से लड़ती रही अंग्रेज़ों को विजय तो मिली, परंतु वे रानी को नहीं पकड़ सके।
  • बेलुनचियार ने हिम्मत नहीं हारी एवं मैसूर के शासक टीपू सुल्तान से जाकर सहायता माँगी।
  • अंतत: टीपू सुल्तान की सहायता से उसने अंग्रेज़ों को हराकर शिवगंगा पर पुन: अधिकार करके ही दम लिया।
  • विजय के बाद इस महान् वीरांगना ने1799 ई. अपने पति की समाधि के पास बैठकर प्राण त्याग दिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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