श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध अध्याय 3 श्लोक 54-55

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:54, 24 फ़रवरी 2017 का अवतरण (Text replacement - "ह्रदय" to "हृदय")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

एकादश स्कन्ध: तृतीयोऽध्यायः (3)

श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: तृतीयोऽध्यायः श्लोक 54-55 का हिन्दी अनुवाद


अपने-आपको भगवन्य ध्यान करते हुए ही भगवान की मूर्ति का पूजन करना चाहिये। निर्माल्य को अपने सिर पर रखे और आदर के साथ भगवद्विग्रह को यथास्थान स्थापित कर पूजा समाप्त करनी चाहिये । इस प्रकार जो पुरुष अग्नि, सूर्य, जल, अतिथि और अपने हृदय में आत्मरूप श्रीहरि की पूजा करता है, वह शीघ्र ही मुक्त हो जाता है ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-